Showing posts with label चुनाव-2021. Show all posts
Showing posts with label चुनाव-2021. Show all posts

Sunday, May 9, 2021

पाँच राज्यों के सबक और वक्त की आवाज़


पिछले रविवार को घोषित पाँच राज्यों के चुनाव-परिणामों ने राज-व्यवस्था, राजनीति, समाज और न्याय-व्यवस्था को कई तरह से प्रभावित किया है। ये परिणाम ऐसे दौर में आए हैं, जब देश एक त्रासदी का सामना कर रहा है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार देश के नागरिक मौत को सामने खड़ा देख रहे हैं और राजनीति को दाँव-पेचों से फुर्सत नहीं है। जब परिणाम घोषित हो रहे थे, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और हरियाणा समेत अनेक राज्यों में ऑक्सीजन और दवाओं की कमी से रोगियों की मौत हो रही थी।

चुनाव-संचालन

यह संकट पिछले साल बिहार के चुनाव के समय भी था, पर इसबार परिस्थितियाँ बहुत ज्यादा खराब हैं। चूंकि लोकतांत्रिक-प्रक्रियाओं का परिपालन भी होना है, इसलिए इन मजबूरियों को स्वीकार करना होगा, पर चुनाव आयोग तथा अन्य सांविधानिक-संस्थाओं के लिए कई बड़े सबक यह दौर देकर गया है। इस दौरान मद्रास हाईकोर्ट को चुनाव-आयोग पर काफी सख्त टिप्पणी करनी पड़ी।

चुनाव  संचालन के लिए आयोग के पास तमाम अधिकार होते हैं, फिर भी बहुत सी बातें उसके हाथ से बाहर होती हैं। राजनीतिक दलों ने भी प्रचार के दौरान दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने में कोई कमी नहीं की। जरूरत इस बात की थी कि वे प्रचार के तौर-तरीकों को लेकर आमराय बनाते। चुनाव-आयोग और ईवीएम को विवादास्पद बनाने की राजनीतिक-प्रवृत्ति भी बढ़ी है। खासतौर से इसबार बंगाल में चुनाव-आयोग लगातार राजनीतिक-विवेचना का विषय बना रहा।

बीजेपी की पराजय

चार राज्यों और एक केंद्र-शासित प्रदेश के परिणामों में देश की भावी राजनीति के लिए तमाम संदेश छिपे हैं। भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, वामपंथी दलों और तमिलनाडु के दोनों क्षेत्रीय दलों पर इन परिणामों का असर आने वाले समय में देखने को मिलेगा। हालांकि हरेक राज्य का राजनीतिक महत्व अपनी जगह है, पर बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जीत और भारतीय जनता पार्टी की पराजय सबसे बड़ी परिघटना है। बीजेपी ने जिस तरह से अपनी पूरी ताकत इस चुनाव में झोंकी और जैसे पूर्वानुमान थे, उसे देखते हुए यह झटका है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की निजी हार।

Friday, May 7, 2021

चुनाव-परिणामों का कांग्रेस पर असर



पिछले कई महीनों से कांग्रेस पार्टी की आंतरिक राजनीति का विश्लेषण बाहर के बजाय भीतर से ज्यादा अच्छा हो रहा है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका ग्रुप-23 की है, जो पार्टी में हैं, पर नेतृत्व की बातों से असहमति को पार्टी के मंच पर और बाहर भी व्यक्त करते हैं। बहरहाल हाल में हुए पाँच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर पार्टी ने बहुत संकोच के साथ ही प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राहुल गांधी ने 2 मई को तीन ट्वीट किए थे। एक में कहा गया था कि हम जनता के फैसले को स्वीकार करते हैं। ऐसा ही ट्वीट पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने किया। राहुल गांधी के शेष दो ट्वीट में ममता बनर्जी और एमके स्टालिन को जीत पर बधाई दी गई थी। उन्होंने ममता बनर्जी को बधाई दी, पर ऐसी ही बधाई पिनाराई विजयन को नहीं दी।

विस्तार से पार्टी का कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ, पर जी-23 के दो वरिष्ठ सदस्यों कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद ने कहा कि देश में महामारी की स्थिति को देखते हुए यह समय टिप्पणी करने के लिहाज से उचित नहीं है। बंगाल की हार को लेकर अधीर रंजन चौधरी ने दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार को कुछ सफाई दी है। खबर थी कि उन्होंने कोई ट्वीट भी किया है, पर वह नजर नहीं आया। शायद हटा दिया गया। ऐसा लगता है कि फिलहाल पार्टी की रणनीति है कि चुनाव-परिणामों पर चर्चा नहीं की जाए। इसकी जगह महामारी को लेकर केंद्र पर निशाना लगाया जाए। यह रणनीति एक सीमा तक काम करेगी, पर यह एक प्रकार का पलायन साबित होगा।

केरल में असंतोष

नेतृत्व ने भले ही चुनाव-परिणामों पर चुप्पी साधी है, पर कार्यकर्ता मौन नहीं है। केरल से उनकी आवाज सुनाई पड़ी है। उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी की सत्ता में वापसी होगी। केरल में इससे पहले सत्ता में बैठी सरकार ने कभी वापसी नहीं की है, इसलिए यूडीएफ को वापसी की उम्मीद थी। बहरहाल शुरूआती चुप्पी के बाद, केरल दबे-छिपे बातें सामने आने लगी हैं। एर्नाकुलम के युवा कांग्रेस सांसद हिबी एडेन ने फेसबुक पर लिखा, हमें क्या अब भी लगातार सोते हाईकमान की आवश्यकता क्यों है?

Wednesday, May 5, 2021

बंगाल की हिंसा की गहराई से पड़ताल की जरूरत


पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। उनकी फिलहाल सबसे बड़ी जवाबदेही उस हिंसा को लेकर है, जो किसी न किसी रूप में तीसरे दिन भी जारी थी। हालांकि हिंसा के तीन दिन बाद आज कुछ अखबारों में इन घटनाओं की कवरेज हुई है, पर बंगाल या देश-विदेश के मीडिया ने इन घटनाओं की गहराई से पड़ताल करने की कोशिश नहीं की है, जो चिंता का विषय है।

ज्यादातर अखबारों ने ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक बयानों और सरकारी गतिविधियों को खबर बनाया है। यह पता लगाने की कोशिश नहीं की है कि इनके पीछे क्या कारण हैं। खासतौर से बंगाल के अखबारों ने इन खबरों की या तो अनदेखी की है या शांति बनाए रखने की मुख्यमंत्री की अपील को प्रमुखता दी है। चौबीस घंटे सनसनी फैलाने वाले टीवी चैनलों के प्रतिनिधियों या कैमरामैनों ने भी घटनास्थलों तक जाकर पीड़ितों से बात करने का प्रयास नहीं किया है। जो वीडियो वायरल हुए हैं, वे घटनास्थलों पर उपस्थित लोगों ने मोबाइल फोनों से तैयार किए हैं।

स्त्रियों से दुर्व्यवहार

इस कवरेज से ही पता लगेगा कि स्त्रियों के साथ क्या सलूक किया गया और घरों पर किस तरह से हमले हुए हैं। ये घटनाएं बंगाल की राजनीति के एक महत्वपूर्ण पहलू से वास्ता रखती हैं। दिल्ली के एक अखबार ने कल अपने सम्पादकीय में जरूर लिखा कि ममता बनर्जी को उस हिंसा पर रोक लगानी चाहिए, जिसमें उनके समर्थक अपने विरोधियों को निशाना बना रहे हैं। पर केवल हिंसा को लेकर न तो सम्पादकीय लिखे गए हैं और गहराई से विवेचन किया गया है। बंगाल के आर्थिक पिछड़ेपन के पीछे देहाती क्षेत्रों में व्याप्त इस हिंसा की भी भूमिका है।

Tuesday, May 4, 2021

बंगाल की हिंसा पर मीडिया की खामोशी

सीताराम येचुरी ने इन तस्वीरों को अपने ट्वीट में शेयर किया है

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से बड़े पैमाने पर हिंसा चल रही है। राज्य के कई इलाकों से देसी बम फोड़ने और आगजनी की खबरें भी हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की
एक रिपोर्ट में 11 लोगों के मरने की खबर है। हैरत की बात है कि इन खबरों को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया खामोश है। हिंसा की खबरें आते हुए करीब 40 घंटे हो गए हैं, पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ऐसी खबर देखने को नहीं मिली है। भारतीय मीडिया में छिटपुट खबरें हैं, जिन्हें जोड़कर देखने पर ही हिंसा की तस्वीर उभरती है। ऐसा लगता नहीं कि किसी ने इस हिंसा की पड़ताल करने की कोशिश की हो।

हालांकि चुनाव आयोग ने कोविड-19 की भयावह स्थिति को देखते हुए परिणाम आने के बाद किसी प्रकार के जश्न मनाने के लिए मना किया था, पर रविवार को दिन में ही परिणाम आते-आते जश्न मनाने का सिलसिला शुरू हो गया था। सोमवार को भारतीय जनता पार्टी ने तृणमूल कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि उसके कार्यकर्ता हमले कर रहे हैं। पार्टी ने दावा किया कि उसके अनेक कार्यकर्ताओं की इस हिंसा में मौत हो गई।

Monday, May 3, 2021

तृणमूल जीती, पर हारा कौन?


पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के बहुमत में आते ही जोशो-जश्न के अलावा हिंसा की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। यह सब तब, जब चुनाव आयोग ने नतीजों का जश्न मनाने पर रोक लगा रखी है। परिणाम आ जाने के बाद चुनाव आयोग की जिम्मेदारी खत्म हो गई है, पर अब इस तरफ बहुत कम लोगों  का ध्यान है कि बंगाल की सड़कों पर क्या हो रहा है। इसे रास्ते पर लाने की जिम्मेदारी अब ममता बनर्जी की सरकार पर है।

रविवार को जब चुनाव परिणाम आ रहे थे, तभी खबर आई कि आरामबाग स्थित भाजपा कार्यालय में आग लगा दी गई है। आरोप है कि वहाँ से तृणमूल उम्मीदवार सुजाता मंडल के हारने के बाद उनके समर्थक नाराज हो गए और उन्होंने भाजपा दफ्तर को फूँक डाला। ममता बनर्जी का कहना है कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनके उम्मीदवार को खदेड़ा और सिर पर वार किया।

ममता के लिए अब परीक्षा की घड़ी है। हुल्लड़बाजी से गाड़ी ज्यादा दूर तक चलेगी नहीं। राज्य में आर्थिक गतिविधियां बढ़ानी होंगी। अभी का राजनीतिक मॉडल उन बेरोजगार नौजवानों के सहारे है, जो स्थानीय स्तर पर क्लब बनाकर संगठित हैं और उसके आधार पर उगाही, अवैध वसूली और कमीशन से कमाई करते हैं। यह मॉडल सीपीएम से विरासत में पार्टी को मिला है। पर इससे राज्य की जनता को कुछ मिलने वाला नहीं है।

शुभेंदु अधिकारी की गाड़ी पर हमला

हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार नंदीग्राम से ममता बनर्जी को हराने वाले बीजेपी के प्रत्याशी शुभेंदु अधिकारी की कार पर हमला हुआ। इसी तरह नटबारी में बीजेपी प्रत्याशी मिहिर गोस्वामी की कार को क्षतिग्रस्त किया गया। सिऊरी में बीजेपी के दफ्तर को तहस-नहस किया गया।

बंगाल के परिणामों का राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर होगा

रविवार को जब बंगाल के चुनाव परिणाम आ ही रहे थे, तभी खबर आई कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने आरामबाग स्थित भाजपा कार्यालय में आग लगा दी। बंगाल की राजनीतिक संस्कृति में यह बात सामान्य लगती है, पर क्या तृणमूल इसे आगे भी चला पाएगी? क्या बंगाल के तृणमूल-मॉडल को जनता का समर्थन मिल गया है? या यह ममता बनर्जी के चुनाव-प्रबंधन की विजय है?

बंगाल के इस परिणाम का देश के राजनीतिक भविष्य पर गहरा असर होने वाला है। इसका बीजेपी और उसके संगठन, कांग्रेस और उसके संगठन तथा विरोधी दलों के गठबंधन पर असर होगा। ममता बनर्जी अब राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के मुकाबले में उतरेंगी। वे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को जितनी बड़ी चुनौती पेश करेंगी, उतनी ही बड़ी चुनौती कांग्रेस और उसके नेता-परिवार के लिए खड़ी करेंगी।

विरोधी-राजनीति

दूसरी तरफ विरोधी दल यदि ममता बनर्जी के नेतृत्व में गोलबंद होंगे, तो इससे कांग्रेस की राजनीति भी प्रभावित होगी। सम्भव है राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ममता के नेतृत्व को स्वीकार कर ले, पर उसका दूरगामी प्रभाव क्या होगा, यह भी देखना होगा। राहुल का मुकाबला अब ममता से भी है। इसकी शुरूआत इस चुनाव के ठीक पहले शरद पवार ने कर दी थी। वे एक अरसे से इस दिशा में प्रयत्नशील थे।

Sunday, March 21, 2021

बीजेपी का अश्वमेध यज्ञ

अगले शनिवार को असम और बंगाल में विधानसभा चुनावों के पहले दौर के साथ देश की राजनीति का रोचक पिटारा खुलेगा। इन दो के अलावा 6 अप्रेल को पुदुच्चेरी, तमिलनाडु और केरल में चुनाव होंगे, जहाँ की एक-एक सीट का राजनीतिक महत्व है। इन पाँचों से कुल 116 सदस्य लोकसभा में जाते हैं, जो कुल संख्या का मोटे तौर पर पाँचवां हिस्सा हैं। यहाँ की विधानसभाएं राज्यसभा में 51 सदस्यों (21%) को भी भेजती हैं।

इस चुनाव को भारतीय जनता पार्टी के अश्वमेध यज्ञ की संज्ञा दी जा सकती है। सन 2019 के चुनाव में हालांकि भारतीय जनता पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली, पर उसे मूलतः हिंदी-पट्टी की पार्टी माना जाता है। पुदुच्चेरी में उसका गठबंधन सत्ता पाने की उम्मीद कर रहा है, जो तमिलनाडु का प्रवेश-द्वार है। पूर्वांचल में उसने असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में पैठ बना ली है, पर उसका सबसे महत्वपूर्ण मुकाबला पश्चिम बंगाल में हैं, जहाँ विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने यहां 211 सीटें जीती थीं। लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को 70 और बीजेपी को सिर्फ तीन। फिर भी वह मुकाबले में है, तो उसके पीछे कुछ कारण हैं।  

लोकसभा 2019 के चुनाव में भाजपा ने बंगाल में भी झंडे गाड़े। राज्य के तकरीबन 40 फ़ीसदी वोटों की मदद से 18 लोकसभा सीटें उसे हासिल हुईं। तृणमूल ने 43 फ़ीसदी वोट पाकर 22 सीटें जीतीं। दो सीटें कांग्रेस को मिलीं और 34 साल तक बंगाल पर राज करने वाली सीपीएम का खाता भी नहीं खुला। पिछले कई वर्षों से बीजेपी इस राज्य में शिद्दत से जुटी है। अब पहली बार उसकी उम्मीदें आसमान पर हैं। अमित शाह का दावा है, अबकी बार 200 पार। क्या यह सच होगा?

बंगाल का महत्व

बंगाल का महत्व कितना है, इसे समझने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों पर ध्यान दें। गत 18 मार्च को उन्होंने पुरुलिया को संबोधित किया। यह रैली शनिवार 20 मार्च को होनी थी लेकिन इसे दो दिन पहले ही आयोजित कराया गया। 20 मार्च को खड़गपुर में रैली हुई। आज बांकुड़ा में और 24 को कांटी मिदनापुर में रैलियाँ होंगी। पार्टी पहले चरण से ही माहौल बनाने की कोशिश में है। इससे पहले मोदी 7 मार्च को बंगाल आए थे। तब उन्होंने कोलकाता के बिग्रेड मैदान में जनसभा को संबोधित कर ममता पर निशाना साधा था।

Saturday, March 20, 2021

मोदी की बांग्लादेश यात्रा से भी जुड़ा है पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव

पिछले साल मतुआ समाज की बोरो मां वीणापाणि देवी से आशीर्वाद लेते नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते बांग्लादेश की दो दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। इस यात्रा का दो देशों के रिश्तों से जितना वास्ता है, उतना ही पश्चिमी बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव से भी है। हो सकता है कि भविष्य के तीस्ता जैसे समझौतों से भी हो। बांग्लादेश में इस साल मुजीब वर्ष यानी शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। इसके साथ ही बांग्लादेश की मुक्ति और स्वतंत्रता संग्राम के 50 वर्ष भी इस साल पूरे हो रहे हैं। दोनों देशों के राजनयिक संबंधों के 50 साल भी।

बांग्लादेश में मोदी तुंगीपाड़ा स्थित बंगबंधु स्मारक में जाएंगे। इसके अलावा वे ओराकंडी स्थित हरिचंद ठाकुर के मंदिर में भी जाएंगे। नरेंद्र मोदी 27 मार्च को ओराकंडी में मतुआ मंदिर जाएंगे। यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री इस मंदिर का दौरा करेगा। वे बारीसाल जिले के शिकारपुर में सुगंध शक्तिपीठ में भी जाएंगे। इसके अलावा वे कुश्तिया में रवीन्द्र कुटी बाड़ी और बाघा जतिन के पैतृक घर में भी जा सकते हैं। इन सभी जगहों का राजनीतिक महत्व है।

ओराकंडी मतुआ समुदाय के गुरु हरिचंद ठाकुर और गुरुचंद ठाकुर का जन्मस्थल है। इसकी स्थापना 1860 में एक सुधार आंदोलन के रूप में की गई थी। इस समुदाय के लोग नामशूद्र कहलाते थे और अस्पृश्य माने जाते थे। हरिचंद ठाकुर ने इनमें चेतना जगाने का काम किया। उनके समुदाय के लोग उन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं। मतुआ धर्म महासंघ समाज के दबे-कुचले तबके के उत्थान के लिए काम करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में कुल आबादी के 23.5 प्रतिशत दलित और 5.8 प्रतिशत आदिवासी हैं। बंगाल के दलित एवं आदिवासी मतुआ धर्म महासंघ के स्वाभाविक समर्थक माने जाते हैं।

उत्तर 24 परगना जिले में बनगांव स्थित मतुआ धर्म महासंघ के मुख्यालय में मतुआ माता वीणापाणि देवी के साथ गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक की थी। वीणापाणि देवी के दबाव में ही ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार को मतुआ कल्याण परिषद का गठन करना पड़ा। वीणापाणि देवी का गत वर्ष निधन हो गया। अब उनके पुत्र और पौत्र मतुआ आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।

Tuesday, March 16, 2021

बंगाल की भगदड़ और मीडिया का यथास्थितिवादी नज़रिया


पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें हैं। यहाँ से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुकाबला उनसे बगावत करके भारतीय जनता पार्टी में आए शुभेंदु अधिकारी से है। इस क्षेत्र का मतदान 1 अप्रेल को यानी दूसरे दौर में होना है। शुरुआती दौर में ही राज्य की राजनीति पूरे उरूज पर है। एक तरफ बंगाल की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भागने की होड़ लगी हुई है, वहीं मीडिया के चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में अब भी ममता बनर्जी की सरकार बनने की आशा व्यक्त की गई है। शायद यह उनकी यथास्थितिवादी समझ है। चुनाव कार्यक्रम को पूरा होने में करीब डेढ़ महीने का समय बाकी है, इसलिए इन सर्वेक्षणों के बदलते निष्कर्षों पर नजर रखने की जरूरत भी होगी।

भारत में चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों का इतिहास अच्छा नहीं रहा है। आमतौर पर उनके निष्कर्ष भटके हुए होते हैं। फिर ममता बनर्जी की पराजय की घोषणा करने के लिए साहस और आत्मविश्वास भी चाहिए। बंगाल का मीडिया लम्बे अर्से से उनके प्रभाव में रहा है। बंगाल के ही एक मीडिया हाउस से जुड़ा एक राष्ट्रीय चैनल इस बात की घोषणा कर रहा है, तो विस्मय भी नहीं होना चाहिए। अलबत्ता तृणमूल के भीतर जैसी भगदड़ है, उसपर ध्यान देने की जरूरत है। मीडिया के विश्लेषण 27 मार्च को मतदान के पहले दौर के बाद ज्यादा ठोस जमीन पर होंगे। पर 29 अप्रैल के मतदान के बाद जो एक्ज़िट पोल आएंगे, सम्भव है उनमें कहानी बदली हुई हो।

भगदड़ का माहौल

सन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से टीएमसी के 17 विधायक, एक सांसद कांग्रेस, सीपीएम और सीपीआई के एक-एक विधायक अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। यह संख्या लगातार बदल रही है। हाल में मालदा के हबीबपुर से तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी सरला मुर्मू ने टिकट मिलने के बावजूद तृणमूल छोड़ दी और सोमवार 8 मार्च को भाजपा में शामिल हो गईं। बंगाल में यह पहला मौका है, जब किसी प्रत्याशी ने टिकट मिलने के बावजूद अपनी पार्टी छोड़ी है। बात केवल बड़े नेताओं की नहीं, छोटे कार्यकर्ताओं की है। केवल तृणमूल के कार्यकर्ता ही नहीं सीपीएम के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी को छोड़कर भागे हैं। इसकी वजह पिछले दस वर्षों से व्याप्त राजनीतिक हिंसा है।

Thursday, February 25, 2021

कांग्रेस के भविष्य पर पाँच राज्यों में लटकी तलवार


सोमवार 22 फरवरी को पुदुच्चेरी में वी नारायणसामी के इस्तीफे के बाद दक्षिण भारत में कांग्रेस की एकमात्र सरकार का पतन हो गया। अब केवल पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं। इनके अलावा महाराष्ट्र और झारखंड के सत्तारूढ़ गठबंधनों में वह शामिल है। एक साल के भीतर उसकी दूसरी सरकार का पतन हुआ है। उसके पहले कर्नाटक की सरकार गई थी और पिछले साल सचिन पायलट के असंतोष के कारण राजस्थान में सरकार पर संकट आया था।

पर्यवेक्षकों के सामने अब दो-तीन सवाल हैं। अगले कुछ महीनों में पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं। इनमें पुदुच्चेरी के अलावा असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं। सवाल है कि इन चुनावों में कांग्रेस की सम्भावनाएं क्या हैं और उनसे आगे पार्टी की राजनीति किस रास्ते पर जाएगी? दूसरा सवाल पार्टी संगठन को लेकर है। पार्टी अध्यक्ष का चुनाव फिलहाल जून तक के लिए टाल दिया गया है। तबतक इन पाँचों राज्यों के चुनाव परिणाम आ जाएंगे, जिनसे पार्टी की दिशा और साफ होगी।

नेतृत्व का सवाल

पिछले कुछ समय से संसद के दोनों सदनों में कांग्रेसी रणनीति के अंतर्विरोध दिखाई पड़ रहे थे। लोकसभा में राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी अपेक्षाकृत आक्रामक रही है। उनका साथ दिया अधीर रंजन चौधरी, गौरव गोगोई, के सुरेश, मणिकम टैगोर और रवनीत सिंह बिट्टू ने। राज्यसभा में पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद और उनके सहायक आनंद शर्मा की भूमिका से हाईकमान संतुष्ट नजर नहीं आया। ये दोनों 23 उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने पिछले साल अपना असंतोष व्यक्त करते हुए पार्टी अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी थी।

मई 2019 में राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष हैं, पर व्यावहारिक रूप से राहुल गांधी ही सर्वेसर्वा हैं। उन्होंने अपने विश्वासपात्र जितेन्द्र सिंह को असम की, तारिक अनवर को केरल की, जितिन प्रसाद को पश्चिम बंगाल की और दिनेश गुंडूराव को तमिलनाडु और पुदुच्चेरी की जिम्मेदारी दी है। पाँचों गठबंधनों पर राहुल गांधी की मुहर ही होगी।

Friday, December 25, 2020

बीजेपी-विरोध के अंतर्विरोध


ज्यादातर विरोधी दलों के निशाने पर होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कोई महामोर्चा नहीं बन पाना, अकेला ऐसा बड़ा कारण है, जो भारतीय जनता पार्टी को क्रमशः मजबूत बना रहा है। अगले साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में यह बात नजर आएगी, पर उसकी एक झलक इस समय भी देखी जा सकती है।

बीजेपी के खिलाफ रणनीति में एक तरफ ममता बनर्जी मुहिम चला रही हैं, वहीं सीपीएम ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर 11 पार्टियों का जो संयुक्त बयान जारी किया है, उसमें तृणमूल का नाम नहीं है। यह बयान केंद्र सरकार के कृषि-कानूनों के विरोध में है। इसपर उन्हीं 11 पार्टियों के नाम हैं, जिन्होंने किसान-आंदोलन के समर्थन में 8 दिसंबर के भारत बंद का समर्थन किया था।

Thursday, December 24, 2020

बंगाल में कांग्रेस और वाममोर्चे के गठबंधन का रास्ता साफ

 

कांग्रेस आलाकमान ने अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वाम दलों के साथ गठबंधन करने के प्रस्ताव को बृहस्पतिवार को औपचारिक रूप से स्वीकृति प्रदान कर दी है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने गुरुवार 24 दिसंबर को ट्वीट कर यह जानकारी दी। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, ‘Today the Congress High command has formally approved the electoral alliance with the #Left parties in the impending election of West Bengal.’ (कांग्रेस आलाकमान ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में वाम दलों के साथ गठबंधन को आज औपचारिक रूप से स्वीकृति प्रदान की।)

इसके पहले कांग्रेस के पश्चिम बंगाल प्रभारी जितिन प्रसाद ने कहा था, यह चुनाव पश्चिम बंगाल की अस्मिता, संस्कृति और संस्कार को बचाने का है जिन पर चोट करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने हाल में पश्चिम बंगाल का दौरा किया था और वहां प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं की राय लेकर नेतृत्व को इससे अवगत कराया था। इसके बाद नेतृत्व ने गठबंधन करने को हरी झंडी दी है। इसके पहले 2016 के विधानसभा चुनाव में भी वाम दल और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े थे। ये दोनों दल केरल में एक दूसरे मुख्य विरोधी हैं।

Sunday, November 1, 2020

केरल को छोड़ सीपीएम बाकी जगह कांग्रेस के साथ


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी ने शनिवार 31 अक्तूबर को तय किया कि पश्चिम बंगाल विधानसभा के आगामी चुनाव में पार्टी तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले में कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होगी। बंगाल में दोनों पार्टियाँ अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं।

इस प्रकार फिलहाल सीपीएम बंगाल में कांग्रेस के साथ दोस्ती और केरल में टकराव की अपनी नीति पर चलेगी। केरल में भी बंगाल के साथ-साथ आगामी मई में चुनाव होने वाले हैं। पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि केरल की जनता इतनी समझदार और प्रौढ़ है कि दोनों पार्टियों की इस जरूरत को अच्छी तरह से महसूस कर सके।

असम में भी, जहाँ विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, सीपीएम सेक्युलर पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव में हिस्सा लेगी। इन पार्टियों कांग्रेस भी शामिल है। तमिलनाडु में पार्टी द्रमुक के साथ उस गठबंधन में शामिल होगी, जिसका एक घटक कांग्रेस भी है।

सीपीएम पोलित ब्यूरो ने पिछले रविवार यानी 25 अक्तूबर को बंगाल में कांग्रेस के साथ सहयोग करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी। पार्टी की केरल शाखा अपने राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होना नहीं चाहती, पर उसने बंगाल में गठबंधन का विरोध नहीं किया।

केरल की राजनीति में दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे की कट्टर दुश्मन हैं। इन दिनों भी वहाँ कई मुद्दों को लेकर टकराव चल रहा है। इनमें एक मुद्दा सीपीएम के राज्य महासचिव कोडियेरी बालकृष्णन के पुत्र बिनीश की ड्रग से जुड़े एक मनी लाउंडरिंग मामले में गिरफ्तारी का है। दूसरा मुद्दा सोने की तस्करी को लेकर है, जिसमें मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन के पूर्व प्रमुख सचिव एम शिवशंकर को गिरफ्तार किया गया है।