हाल में मध्य प्रदेश ने राज्य में पाँच बाबाओं
को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है। इनमें एक हैं कम्प्यूटर बाबा, जिनकी धूनी रमाते
तस्वीर सोशल मीडिया में पिछले हफ्ते वायरल हो रही थी। तस्वीर में भोपाल के सरकारी
गेस्ट हाउस की छत पर बैठे बाबा साधना में लीन नजर आए। बाबा का कहना था कि सरकार ने
नर्मदा-संरक्षण समिति में उन्हें रखा है। इसी वजह से उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा
दिया गया है। सरकार ने जिन पाँच धर्मगुरुओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है, उनमें
कम्प्यूटर बाबा के अलावा नर्मदानंद महाराज, हरिहरानंद
महाराज, भैयू महाराज और पंडित योगेंद्र महंत शामिल हैं।
इनमें कुछ संतों ने नर्मदा नदी को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। शायद
सरकार ने उन्हें खुश करने के लिए यह तोहफा दिया है।
यह प्रकरण संतों-संन्यासियों को मिलने वाले
राज्याश्रय के बारे में विचार करने को प्रेरित करता है। यह उस महान संत-परम्परा से
उलट बात है, जिसने भारतीय समाज को जोड़कर रखा है। इस विशाल देश को दक्षिण से उत्तर और पूर्व
से पश्चिम तक जोड़े रखने में संतों की बड़ी भूमिका रही है। सैकड़ों-हजारों मील की
पैदल यात्रा करने वाला जैसा हमारा संत-समाज है, वैसा दुनिया में शायद ही कहीं मिलेगा।
इसमें उन सूफी संतों को भी शामिल करना चाहिए, जो इस्लाम और भारतीय संत-परम्परा के
मेल के प्रतीक हैं।