जब से
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए निष्प्रभावी हुए हैं,
पश्चिमी देशों
में भारत की नकारात्मक तस्वीर को उभारने वाली ताकतों को आगे आने का मौका मिला है।
ऐसा अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के दूसरे देशों में भी हुआ
है। गत 21 नवंबर को अमेरिका की एक सांसद ने प्रतिनिधि
सभा में एक प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर में कथित
मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा करते हुए भारत-पाकिस्तान से विवादित क्षेत्र में
विवाद सुलझाने के लिए बल प्रयोग से बचने की मांग की गई है।
कांग्रेस सदस्य
रशीदा टलैब (या तालिब) ने यह प्रस्ताव दिया है। इलहान उमर के साथ कांग्रेस के लिए
चुनी गई पहली दो मुस्लिम महिला सांसदों में एक वे भी हैं, जो फलस्तीनी मूल की हैं। सदन में गत 21 नवंबर को पेश किए गए प्रस्ताव संख्या 724 में भारत और पाकिस्तान से तनाव कम करने के लिए बातचीत शुरू
करने की मांग की गई है। प्रस्ताव का शीर्षक है,
‘जम्मू-कश्मीर में
हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा और कश्मीरियों के स्वयं निर्णय को समर्थन।’
छवि को धक्का
इस प्रस्ताव का
विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि इसका कोई
सह-प्रायोजक नहीं है। इसे सदन की विदेश मामलों की समिति को आगे की कार्रवाई के लिए
भेजा जाएगा, पर अमेरिकी संसद और मीडिया में पिछले तीन
महीनों से ऐसा कुछ न कुछ जरूर हो रहा है जिससे भारत की छवि को धक्का लगता है। सामान्यतः
पश्चिमी देशों में भारतीय लोकतंत्र की प्रशंसा होती है, पर इन दिनों हमारी व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे
हैं। गत 19 नवंबर को कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के एक
विमर्श में कश्मीर के बरक्स भारतीय लोकतंत्र से जुड़े सवालों पर विचार किया गया।
उसके एक हफ्ते पहले अमेरिकी कांग्रेस के मानवाधिकार संबंधी एक पैनल ने
जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद की स्थिति पर सुनवाई की। अमेरिकी
कांग्रेस की गतिविधियों पर निगाह रखने वाले पर्यवेक्षकों का कहना था कि इसके पीछे
पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिकों और पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के करीबी लोगों हाथ
है और उन्होंने इस काम के लिए बड़े पैमाने पर धन मुहैया कराया है।