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Friday, January 9, 2015

रोमन हिन्दी को लेकर असगर वजाहत का एक पुराना लेख

“रोमन” हिंदी खिल रही है, “नागरी” हिंदी मर रही है

यह लेख मार्च 2010 में जनसत्ता में छपा था। इसे यहाँ फिर से लगाया है ताकि सनद रहे। इस सिलसिले में मैं कुछ और सामग्री खोजकर यहाँ लगाता जाऊँगा। 

मुंबई से फिल्म निर्देशक का फोन आया कि फिल्म के संवाद रोमन लिपि में लिखे जाएं। क्यों? इसलिए कि अभिनेताओं में से कुछ हिंदी बोलते-समझते हैं लेकिन नागरी लिपि नहीं पढ़ सकते। कैमरामैन गुजरात का है। वह भी हिंदी समझता-बोलता है लेकिन पढ़ नहीं सकता… इसी तरह… फिल्म से जुड़े हुए तमाम लोग हैं। फिल्मी दुनिया में गहरी पैठ रखने वालों ने बाद में बताया कि फिल्म उद्योग में तो हिंदी आमतौर पर रोमन लिपि में लिखी और पढ़ी जाती है। एनडीटीवी के हिंदी समाचार विभाग में बड़े ओहदे पर बरसों काम कर चुके एक दोस्त ने बताया कि टीवी चैनलों पर हिंदी समाचार आदि रोमन लिपि में लिखे जाते हैं। वजह केवल यह नहीं है कि समाचार पढ़ने वाला नागरी लिपि नहीं जानता है बल्कि यह भी है कि समाचार की जांच-पड़ताल करने वाले नागरी लिपि के मुकाबले रोमन लिपि ज्यादा सरलता से पढ़ सकते हैं।