प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार 13 जनवरी को जिस ‘एमवी गंगा-विलास’ को हरी झंडी दिखाकर दुनिया के सबसे लंबी नदी-क्रूज यात्रा की शुरुआत की थी, उसे अपनी यात्रा के तीसरे दिन ही नकारात्मक खबरों का सामना करना पड़ा। 16 जनवरी को दिनभर इस आशय की खबरें छाई रहीं कि वाराणसी से चला ‘क्रूज’ बिहार के छपरा में पानी उथला होने के कारण फँस गया। पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उसे वहां किनारे लगना था। सैलानियों को छपरा से 11 किमी दूर डोरीगंज बाजार के पास चिरांद के पुरातात्विक स्थलों का दौरा करना था।
यह खबर पूरी तरह सच साबित नहीं हुई। वास्तव में
छपरा में किसी समस्या का सामना हुआ भी होगा, तो वह अल्पकालिक थी, क्योंकि यह पोत
अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़ गया। सरकार की ओर से जारी
वक्तव्य में कहा गया कि यात्रा के दौरान जलस्तर बनाए रखा गया और यात्रा अपने
कार्यक्रम के अनुसार चली। अलबत्ता डोरीगंज में पोत को किनारे लगाने के बजाय जब
यात्रियों को नावों की मदद से उतारकर किनारे लाया गया, तो पोत के फँसने की खबर
किसी ने दौड़ा दी। संभव है कि पोत के चालक दल को लगा हो कि किनारे पर पानी ज्यादा
नहीं है, इसलिए धारा के बीच में ही पोत को बनाए रखा जाए। पर इसे फँसना तो नहीं कहा
जा सकता है।
पर्यटन-संस्कृति
यात्रा में यह अप्रत्याशित व्यवधान था या नहीं, इसे लेकर कई प्रकार की राय हो सकती हैं, पर उसके पहले ही पर्यावरण, पर्यटन के सांस्कृतिक-दुष्प्रभाव और इसके कारोबार को लेकर तमाम सवाल उठाए जा रहे थे। दुनिया के सबसे लंबे रिवर-क्रूज़ के रूप में प्रचारित इस यात्रा के साथ देश की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है। देश के नदी जलमार्गों को विकसित करने की योजना से जुड़ी यह एक लंबी छलाँग है। पर इसे स्वीकृति दिलाने में समय लगेगा।