उत्तराखंड के पंच प्रयाग हैं। विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग और देवप्रयाग। नदियों का संगम भारत में बहुत ही पवित्र माना जाता है। नदियां देवी का रूप मानी जाती हैं। प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम के बाद गढ़वाल-हिमालय के क्षेत्र के संगमों को सबसे पवित्र माना जाता है, क्योंकि गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियों का यही उद्गम स्थल है। जिन जगहों पर इनका संगम होता है उन्हें प्रमुख तीर्थ माना जाता है। यहीं पर श्राद्ध के संस्कार होते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस
में प्रकाशित ये तस्वीरें देवप्रयाग की हैं। इन तस्वीरों में हाल की उत्तराखंड
आपदा के पहले और बाद की स्थिति नजर आ रही है। दूसरी तस्वीर शुक्रवार 13 फरवरी की है।
इसमें अलकनंदा का मटमैला रंग देखा जा सकता है। यानी पानी तब तक साफ हुआ नहीं था। अलकनंदा
सतोपथ ग्लेशियर से शुरू होती है और विष्णुप्रयाग में धौली गंगा से मिलती है,
जिसमें 7 फरवरी की बाढ़ के बाद मिट्टी और पत्थर पानी के साथ बहकर आए। इसके बाद अलकनंदा,
नंदप्रयाग में नंदाकिनी से मिलती है। फिर कर्णप्रयाग में पिंडर से और रूद्रप्रयाग
में मंदाकिनी से और फिर भगीरथी से देवप्रयाग में मिलती है। इसके बाद इसका नाम गंगा
होता है। देवप्रयाग में अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों का संगम होता है। यहाँ से आगे
इसे गंगा कहा जाता है।
इंडियन एक्सप्रेस
में लालमणि वर्मा की रिपोर्ट के अनुसार बरसात में नदियों का पानी कुछ मटमैला हो
जाता है, पर सर्दियों में ऐसा होने की जानकारी नहीं है। गत 7 फरवरी को आई बाढ़ के
साथ मिट्टी बहकर चार दिन बाद ऋषिकेश पहुँची। यानी 250 किलोमीटर की यात्रा में उसे
चार दिन लगे।