Showing posts with label न्यूज़18. Show all posts
Showing posts with label न्यूज़18. Show all posts

Friday, April 5, 2024

जलेबी जैसी घुमावदार 'पॉलिटिक्स' में दोस्ती और दुश्मनी का मतलब!


शिवसेना (उद्धव) की ओर से एकतरफा प्रत्याशी घोषित करने के बाद महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन में खींचतान है. शरद पवार कांग्रेस और शिवसेना दोनों से नाराज हैं. उनकी शिकायत है कि जब सीटों बँटवारे की बातें चल रही थीं, तो एमवीए के घटक दलों ने अलग-अलग सीटें क्यों घोषित कीं? उधर कांग्रेस के संजय निरुपम शिवसेना से नाराज़ हैं. उद्धव ठाकरे भी नाराज़ है. बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित) की रस्साकशी भी चल रही है. यूपी में रामपुर और मुरादाबाद की सीटों को लेकर समाजवादी पार्टी के भीतर घमासान चला. आजम खां भले ही जेल में हैं, पर मुरादाबाद के मौजूदा सांसद एसटी हसन का टिकट उन्होंने कटवा दिया और रुचिवीरा को दिलवा दिया. पर रामपुर में उनकी नहीं सुनी गई और मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट मिल गया.

भारतीय राजनीति उतनी सीधी सपाट नहीं है, जितनी दिखाई पड़ती है. वह जलेबी जैसी गोल है. विचारधारा, सामाजिक-न्याय, जनता की सेवा और कट्टर ईमानदारी जैसे जुमले अपनी जगह हैं. पंजाब में आम आदमी पार्टी को झटका देते हुए जालंधर के सांसद सुशील कुमार रिंकू बीजेपी में शामिल हो गए. रिंकू 17वीं लोकसभा में आप के एकमात्र सांसद थे. वे सुर्खियों में तब आए थे, जब हंगामे की वजह से पूरे सत्र के लिए निलंबित हुए थे.

चलती का नाम गाड़ी

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. चुनाव के दौरान अंतिम समय की भगदड़, मारामारी और बगावतें कोई नई बात नहीं. इसबार बीजेपी ने चार सौ से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, उनमें से 17वीं लोकसभा में 291 पर उसके सांसद थे. इनमें 101 को टिकट नहीं मिला. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 119 सांसदों के टिकट काटे थे. टिकट कटने से बदमज़गी पैदा होती है. गठबंधनों में सीटों के बँटवारे को लेकर भी खेल होते हैं, पर सार्वजनिक रूप से दिखावा किया जाता है कि सब कुछ ठीकठाक है.

Friday, March 29, 2024

समस्या राजनीतिक-वंशवाद से ज्यादा ‘राजवंशवाद’ की है


लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और इसके साथ ही परिवारवाद या वंशवाद की बहस फिर से चल निकली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कई बार वंशवाद की आलोचना करते हुए कहा है कि राजनीति में नए लोगों को आना चाहिए.

राजनीति में नए लोगों का आना यानी पोलिटिकल रिक्रूटमेंट ऐसा विषय है, जिसपर हमारे देश में ज्यादा विचार नहीं हुआ है. हमने मान लिया है कि कोई राजनीति में है, तो कम से कम उसका एक बेटा या बेटी को राजनीति में जाना ही है. इसे समझना होगा कि नए लोग राजनीति में कैसे आते हैं, क्यों आते हैं और वे सफल या विफल क्यों होते हैं?

दुनिया में लोकतंत्र अपेक्षाकृत नई व्यवस्था है. राजतंत्र और सामंतवाद आज भी कई देशों में कायम है और हम अभी संक्रमणकाल से गुज़र रहे हैं. लोकतंत्र अपनी पुष्ट संस्थाओं के सहारे काम करता है. विकसित लोकतांत्रिक-व्यवस्थाओं में भी भाई-भतीजावाद, दोस्त-यारवाद, वंशवाद, परिवारवाद वगैरह मौज़ूद है, जिसका मतलब है मेरिट यानी काबिलीयत की उपेक्षा. जो होना चाहिए, उसका न होना.   

वंशवाद पर मोदी जब हमला करते हैं, तब सबसे पहले उनके निशाने पर नेहरू-गांधी परिवार होता है. इसके बाद वे तमिलनाडु के करुणानिधि, बिहार के लालू और यूपी के मुलायम परिवार वगैरह को निशाना बनाते हैं. इस बात से ध्यान हटाने के लिए जवाब में मोदी की पार्टी पर भी प्रहार होता है.

बीजेपी के घराने

हाल में बीजेपी के प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी होने के बाद किसी ने ट्वीट किया: प्रेम धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर, बीएस येदियुरप्पा के पुत्र राघवेंद्र, रवि सुब्रमण्य के भतीजे तेजस्वी सूर्या, वेद प्रकाश गोयल के बेटे पीयूष गोयल, एकनाथ खडसे की पुत्रवधू रक्षा खडसे, गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे, बालासाहेब विखे पाटील के पौत्र और राधाकृष्ण विखे के पुत्र सुजय को टिकट मिला है.

Wednesday, March 13, 2024

कांग्रेस के सीने पर अमेठी का जख़्म


लोकसभा क्षेत्र: अमेठी

रायबरेली से सोनिया गांधी के हट जाने के बाद दूसरा बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी भी अमेठी को छोड़ेंगे?  2019 के चुनाव से इतना स्पष्ट जरूर हो गया था कि पार्टी को अब अमेठी पर पूरा भरोसा नहीं है, इसीलिए राहुल के लिए केरल की वायनाड सीट खोजी गई. स्मृति ईरानी के हाथों अमेठी में मिली हार ने पार्टी का मनोबल तोड़कर रख दिया है.

सोमवार 19 फरवरी को राहुल गांधी और स्मृति ईरानी दोनों अमेठी में थे. उस मौके पर स्मृति ईरानी ने कहा कि 2019 में राहुल ने अमेठी को छोड़ा था, आज अमेठी ने उन्हें छोड़ दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि वे अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं तो वायनाड जाए बिना अमेठी से (चुनाव) लड़कर दिखाएं.

संभव है कि राहुल गांधी सामना करने को तैयार भी हो जाएं, पर वे वायनाड या किसी दूसरी सेफ सीट के बगैर ऐसा नहीं करेंगे. संभव है परिवार का कोई सदस्य यहाँ से चुनाव लड़े. राहुल गांधी की भारत-जोड़ो न्याय-यात्रा अमेठी से भी होकर गुज़री है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि यहाँ के लोग रायबरेली और अमेठी से केवल परिवार के ही किसी सदस्य को देखना चाहते हैं. वे 2019 की गलती को सुधारना चाहते हैं.

दूसरी ओर स्मृति ईरानी दुगने उत्साह के साथ मैदान में हैं. जिस दिन राहुल गांधी की यात्रा अमेठी पहुँची, उसी रोज उन्होंने भी अपना कार्यक्रम यहाँ रखा. वे चार दिन अमेठी में रहीं. यहाँ से चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी अपने नए संसदीय क्षेत्र वायनाड तो कई बार गए हैं, लेकिन उन्होंने अमेठी आना छोड़ दिया. दूसरी तरफ भाजपा ने तेजी से अपने संगठन का विस्तार किया है. स्मृति ईरानी अपने कार्यकर्ताओं के संपर्क में लगातार बनी रहती हैं.

Tuesday, March 12, 2024

नेहरू-गांधी परिवार के ‘गढ़’ में दरार


 लोकसभा क्षेत्र: रायबरेली

1977 के लोकसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था. एक शाम हमारे रायबरेली संवाददाता ने खबर दी कि आज एक चुनाव सभा में राजनारायण ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न गाय-बछड़ा को इंदिरा गांधी और संजय गांधी की निशानी बताया है. खबर बताने वाले ने राजनारायण के अंदाज़े बयां का पूरी नाटकीयता से विवरण दिया था. बावजूद इसके कि इमर्जेंसी उस समय तक हटी नहीं थी और पत्रकारों के मन का भय भी कायम था. बताने वाले को पता था कि जरूरी नहीं कि वह खबर छपे.

उस समय मीडिया भी क्या था, सिर्फ अखबार, जिनपर संयम की तलवार थी. सवाल था कि इस खबर को हम किस तरह से छापें. बहरहाल वह खबर बीबीसी रेडियो ने सुनाई, तो बड़ी तेजी से चर्चित हुई. मुझे याद नहीं कि अखबार में छपी या नहीं. वह दौर था, जब खबरें अफवाहें बनकर चर्चित होती थीं. मुख्यधारा के मीडिया में उनका प्रवेश मुश्किल होता था. चुनाव जरूर हो रहे थे, पर बहुत कम लोगों को भरोसा था कि कांग्रेस हारेगी.

इंदिरा गांधी का चुनाव

रायबरेली पर पूरे देश की निगाहें थीं. चुनाव परिणाम की रात लखनऊ के विधानसभा मार्ग पर स्थित पायनियर लिमिटेड के दफ्तर के गेट पर हजारों की भीड़ जमा थी. दफ्तर के बाहर बड़े से बोर्ड पर एक ताज़ा सूचनाएं लिखी जा रही थीं. गेट के भीतर उस ऐतिहासिक बिल्डिंग के दाएं छोर पर पहली मंजिल में हमारे संपादकीय विभाग में सुबह की शिफ्ट से आए लोग भी देर रात तक रुके हुए थे.

बाहर की भीड़ जानना चाहती थी कि रायबरेली में क्या हुआ. शुरू में खबरें आईं कि इंदिरा गांधी पिछड़ रही हैं, फिर लंबा सन्नाटा खिंच गया. कोई खबर नहीं. उस रात की कहानी बाद में पता लगी कि किस तरह से रायबरेली के तत्कालीन ज़िला मजिस्ट्रेट विनोद मल्होत्रा ने अपने ऊपर पड़ते दबाव को झटकते हुए इंदिरा गांधी की पराजय की घोषणा की. बहरहाल रायबरेली और वहाँ के डीएम का नाम इतिहास में दर्ज हो गया.

मोदी का निशाना

इंदिरा गांधी की उस ऐतिहासिक पराजय के 47 साल बाद सत्रहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदा की भांति परिवार-केंद्रित कांग्रेस पार्टी पर निशाना लगाते हुए कहा, एक ही प्रोडक्ट बार-बार लॉन्च करने के चक्कर में कांग्रेस की दुकान पर ताला लगने की नौबत आ गई है.