क्या वास्तव में सरकारें किसी कानूनी-प्रक्रिया को अपनाए बगैर तोड़फोड़ कर रही हैं? या तथ्य कुछ और हैं? ऐसे ही सवाल हिंसा के दौरान नष्ट हुई सार्वजनिक संपत्ति को लेकर भी हैं। अदालत को देखना होगा कि उसकी भरपाई कौन करेगा? अब जब फोटोग्राफी एक-एक चेहरे की पहचान बताने लगी है, तब अपराधियों को सजा कैसे मिलेगी? उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से देश के सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, जो हुआ, वह नियमानुसार है। याचिकाकर्ता मामले को अदालत के सामने गलत ढंग से रख रहे है। नोटिस बहुत पहले जारी किए गए थे, ये लोग पेश नहीं हुए।
Tuesday, September 3, 2024
बुलडोजर-न्याय और राजनीति के पेचोख़म…
Wednesday, August 21, 2024
लेटरल एंट्री: यानी दूध के जले…
भारत सरकार ने मिड-लेवल पर सरकार में विशेषज्ञों को शामिल करने की पार्श्व-प्रवेश योजना (लेटरल एंट्री) से फौरन पल्ला झाड़ लिया है, पर यह बात अनुत्तरित छोड़ दी है कि क्यों तो इस भर्ती का विज्ञापन दिया गया और उतनी ही तेजी से क्यों उसे वापस ले लिया गया? केंद्रीय लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने मिड-लेवल पर 45 विशेषज्ञों की सीधी भर्ती के लिए 17 अगस्त को विज्ञापन निकाला था, जिसे तीसरे ही दिन वापस ले लिया गया। विज्ञापन के अनुसार 24 केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, डायरेक्टर और उप सचिव के पदों पर 45 नियुक्तियाँ होनी थीं।
इन 45 पदों में संयुक्त सचिवों के दस पद वित्त
मंत्रालय के अधीन डिजिटल अर्थव्यवस्था, फिनटेक, साइबर सुरक्षा और निवेश और गृह
मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) जैसे मामलों से
जुड़े थे, जिनमें तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होती है। इन पदों को सिंगल काडर पद
कहा गया था, जिनमें आरक्षण की व्यवस्था नहीं थी।
सरकार का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा सामाजिक न्याय के पक्षधर रहे हैं, पर व्यावहारिक सच यह है कि जैसे ‘दूध का जला, छाछ भी फूँककर पीता है’ वैसे ही लोकसभा चुनाव में धोखा खाने के बाद भारतीय जनता पार्टी कोई राजनीतिक जोखिम मोल नहीं लेगी। पर विज्ञापन जारी करते वक्त सरकार ने इस खतरे पर विचार नहीं किया होगा। लेटरल एंट्री का विरोध केवल कांग्रेस ने ही नहीं किया है, एलजेपी जैसे एनडीए के सहयोगी दल ने भी किया। अभी तो यह तीसरा दिन ही था। देखते ही देखते विरोधी-स्वरों के ऊँचे होते जाने का अंदेशा था।
Wednesday, February 12, 2020
केजरीवाल की गुगली से भ्रमित भाजपा
Saturday, August 31, 2019
मंदी रोकने के लिए बड़े फैसले करने होंगे
Sunday, August 25, 2019
आर्थिक सुधारों के सूत्रधार जेटली
Tuesday, July 23, 2019
प्रकृति को मत कोसो, प्रबंधकों से पूछो
Saturday, July 6, 2019
भविष्य के स्वप्नों की तस्वीर
इस बजट में भारतवर्ष के भविष्य की न केवल तस्वीर खींची गई है, उसे साकार बनाने के तरीकों की घोषणा की गई है। निर्मला सीतारमण का बजट भाषण सामान्य व्यक्ति को भी उतना ही समझ में आया, जितना कि विशेषज्ञों को। चूंकि बजट के ज्यादातर प्रावधान वही हैं, जो फरवरी में पेश किए गए बजट में थे। बल्कि फरवरी में ही यह भी कहा गया था कि हम भारत को पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ साल में दस ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनाएंगे। अलबत्ता निर्मला सीतारमण ने वहाँ तक जाने के रास्ते को स्पष्ट किया। इस साल की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि यह काम तभी होगा, जब हमारी सालाना संवृद्धि कम से कम आठ फीसदी की दर से हो। इस बजट में उस दर को हासिल करने की दिशा नजर आती है।
वित्तमंत्री को भरोसा है कि हम इस साल तीन ट्रिलियन की सीमारेखा पार कर जाएंगे। वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में है। हमारी उम्मीदों के तीन बड़े कारण हैं। पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट है, मुद्रास्फीति काबू में है और राजकोषीय घाटा 3.4 से घटकर 3.3 फीसदी पर आ गया है। यानी कि सरकार ने वित्तीय अनुशासन बनाए रखा। राजस्व के मामले में वित्तमंत्री ने आयकर में हो रही रिकॉर्ड वृद्धि का जिक्र किया है। जीएसटी पर अभी अंदेशे हैं। यों इस बजट का मुख्य जोर पूँजी निवेश और तरलता बढ़ाने पर है।
Friday, July 5, 2019
आर्थिक सूझबूझ और राजनीतिक चतुराई की परीक्षा
Sunday, May 26, 2019
बीजेपी के फुटप्रिंट का विस्तार हुआ
Tuesday, May 21, 2019
एक्ज़िट पोल में छिपी कुछ पहेलियाँ
दूसरी तरफ यह भी सही है कि अब पोल-संचालक ज्यादा सतर्क हैं। उनके पास अब बेहतर तकनीक और अनुभव है। वे आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का सहारा ले रहे हैं। विश्लेषण करते वक्त वे राजनीति-शास्त्रियों, मानव-विज्ञानियों और दूसरे विशेषज्ञों की राय को भी शामिल करते हैं। उनसे चूक कहाँ हो सकती है, इसकी समझ भी उन्होंने विकसित की है। विश्लेषकों को लगता है कि इसबार के पोल सच के ज्यादा करीब होंगे। बावजूद इसके इन पोल पर गहरी निगाह डालें, तो कुछ पहेलियाँ अनसुलझी नजर आती हैं।
यों सभी पोल इसपर एकमत हैं कि एनडीए सबसे बड़े समूह के रूप में उभर रहा है। फिर भी सीटों की संख्या के उनके अनुमान 240 और 340 के बीच हैं। इतना बड़ा फासला नई पहेली को जन्म देता है। बिग पिक्चर एक जैसी है, पर विस्मय फैलाने वाला डेविल डिटेल में है। टोटल में एक जैसे हैं, फिर भी अलग-अलग राज्यों के अनुमानों में भारी फर्क है। बीजेपी की सफलता या विफलता के लिए जिम्मेदार तीन राज्यों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, उनकी संख्याओं पर गौर करें, तो संदेह पैदा होते हैं। पार्टी के भीतर के लोग भी मान रहे हैं कि यूपी में महागठबंधन का अंकगणित बीजेपी पर भारी पड़ सकता है। पर वे मानते हैं कि इसकी भरपाई बंगाल, ओडिशा और पूर्वोत्तर के राज्य करेंगे।
Saturday, March 9, 2019
मंदिर-मस्जिद विवाद के समाधान की दिशा में पहला बड़ा कदम
Saturday, February 2, 2019
बजट में सपने हैं, जुमले और जोश भी!
Friday, January 11, 2019
क्या आरक्षण बीजेपी की नैया पार लगाएगा?
Saturday, December 29, 2018
गठबंधन का महा-गणित
Sunday, December 2, 2018
दिल्ली के द्वार पर किसानों की गुहार
Wednesday, November 7, 2018
बीजेपी के लिए खतरे का संकेत है बेल्लारी की हार
Tuesday, October 30, 2018
ऐसे तो नहीं रुकेगा मंदिर का राजनीतिकरण
Saturday, October 6, 2018
बाएं बाजू रूस, दाएं अमेरिका
भारत और रूस के बीच 19 वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान आठ समझौते हुए हैं। ये समझौते रक्षा, नाभिकीय ऊर्जा, स्पेस और अर्थ-व्यवस्था से जुड़े हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि ये समझौते अमेरिका की धमकी के बाद हुए हैं। अमेरिका ने धमकी दी है कि वह उन देशों पर पाबंदी लगाएगा, जो रूसी हथियार खरीदते हैं। पिछले महीने भारत और अमेरिका के बीच पहली बार जब टू प्लस टू वार्ता हुई थी, तब यह सवाल सबसे ऊपर था कि भारत इस मिसाइल प्रणाली को खरीद भी पाएगा या नहीं?
Saturday, September 8, 2018
भारत-अमेरिका रिश्तों का अगला कदम
Tuesday, August 14, 2018
विरोधी-एकता के दुर्ग में दरार
राज्यसभा के उपसभापति चुनाव में पड़े वोटों के आधार पर राजनीति शास्त्र के शोधछात्र राहुल वर्मा का 2019 के चुनाव में बनने वाले सम्भावित गठबंधनों का अनुमान |
कांग्रेस समेत विरोधी दलों की रणनीति अलग-अलग राज्यों में संयुक्त प्रत्याशी खड़े करने की है, ताकि बीजेपी-विरोधी वोट बँटने न पाएं। यह रणनीति उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और एक हद तक महाराष्ट्र में अब भी कारगर है, पर उसके जिरह-बख्तरों की दरारें भी नजर आने लगी हैं। साफ है सत्तारूढ़ दल ने इस चुनाव को कुछ समय के लिए टालकर बीजू जनता दल और टीआरएस के साथ विचार-विमर्श पूरा कर लिया। यह विमर्श केवल राज्यसभा के उप-सभापति चुनाव तक सीमित नहीं है। अब यह 2019 के चुनाव तक जाएगा। कांग्रेस ने इस चुनाव को या तो महत्व नहीं दिया या उसे भरोसा था कि यह चुनाव इस सत्र में नहीं होगा। कांग्रेस के दो सांसदों का वोट न देना भी उसके असमंजस को बढ़ाने वाला है।