Thursday, December 31, 2020

नेपाल का संकट क्या चीन के सीधे हस्तक्षेप से सुलझ पाएगा?

 


नेपाल में गत 20 दिसंबर को संसद हो जाने के बाद से असमंजस की स्थिति है। पिछले हफ्ते ऐसा लगा था कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी किसी प्रकार का हस्तक्षेप कर रही है। वहाँ से पार्टी की एक उच्च स्तरीय टीम नेपाल का दौरा करके वापस चली गई है, पर स्थितियाँ जस की तस हैं। चीनी प्रतिनिधिमंडल ने जानने का प्रयास किया कि क्या संसद की पुनर्स्थापना संभव है। यदि संभव नहीं है, तो क्या चुनाव उन तारीखों में हो सकेंगे, जिनकी घोषणा की गई है। बुधवार 30 दिसंबर को यह टीम वापस लौट गई।

सवाल है कि क्या इस राजनीतिक संकट का समाधान चीन कर पाएगा? इस बीच खबर है कि नेपाली विदेशमंत्री प्रदीप ग्यावली भारत और नेपाल के बीच बने संयुक्त आयोग की बैठक में भाग लेने के लिए जनवरी में भारत आएंगे। अभी इसकी तारीख तय नहीं है। यह यात्रा औपचारिक है, पर संभव है कि इस दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातें हों।

Wednesday, December 30, 2020

औद्योगिक विकास में मददगार होगा डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर

 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार 29 दिसंबर को ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (ईडीएफसी) राष्ट्र को समर्पित किया। देश के तेज औद्योगिक विकास के लिए यह महत्वपूर्ण परिघटना है। इस मौके पर पीएम ने 351 किलोमीटर लंबे रेल खंड न्यू खुर्जा से न्यू भाऊपुर डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का वर्चुअल उद्घाटन किया। उन्होंने प्रयागराज के सूबेदारगंज में बनाए गए ईडीएफसी के ऑपरेशन कंट्रोल सेंटर का भी उद्घाटन किया। यह कंट्रोल रूम अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है। यहाँ से पूरे कॉरिडोर की मॉनिटरिंग की जा सकेगी देश में ऐसा पहली बार होगा जब कंट्रोल रूम में लगे स्क्रीन पर ट्रेन लाइव दिखाई देगी

जब आप दिल्ली से कानपुर की तरफ ट्रेन से जाएं, तो आपको अपनी लाइन के साथ चलती कुछ और रेलवे लाइनें दिखाई पड़ेंगी। यह ईडीएफसी है। देश के तेज आर्थिक विकास के लिए कनेक्टिविटी की भूमिका है। हाईवे, रेलवे, एयर वे, वॉटर वे, आईवे की जरूरत है। प्रधानमंत्री के इस मौके पर दिए गए भाषण के राजनीतिक निहितार्थ पर ध्यान न दे, तो इतना साफ है कि जैसा हमारी ज्यादातर योजनाओं के साथ हुआ है, यह कार्यक्रम भी समय से पीछे चला गया है। मोदी का कहना है कि साल 2006 में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली, उसके बाद यह सिर्फ कागजों और फाइलों में बनता रहा। केंद्र को राज्यों के साथ जिस गंभीरता से बात करनी चाहिए थी वह किया ही नहीं। साल 2014 तक एक किमी ट्रैक भी नहीं बिछाया गया। 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद इस प्रोजेक्ट की फाइलों को फिर खंगाला गया, अधिकारियों को नए सिरे से आगे बढ़ने के लिए कहा गया। इसका बजट 11 गुना यानी 45 हजार करोड़ रुपये से अधिक बढ़ गया।

Tuesday, December 29, 2020

जीवन-शैली को बदल गया यह साल


इस साल मार्च में जब पहली बार लॉकडाउन घोषित किया गया, तब बहुत से लोगों को पहली नजर में वह पिकनिक जैसा लगा था। काफी लोगों की पहली प्रतिक्रिया थी, आओ घर में बैठकर घर का कुछ खाएं। काफी लोगों ने लॉकडाउन का आनंद लिया। फेसबुक पर रेसिपी शेयर की जाने लगीं। पर जैसे ही बीमारी बढ़ने और मौत की खबरें आने लगीं, लोगों के मन में दहशत ने धीरे-धीरे प्रवेश करना शुरू दिया। मॉल, रेस्त्रां और सिनेमाघरों के बंद होने से नौजवानों की पीढ़ी को धक्का लगा। अचानक कई तरह की सेवाएं खत्म हो गईं। सिर और दाढ़ी के बाल बढ़ने लगे। ब्यूटी पार्लर बंद हो गए। ज़ोमैटो और स्विगी की सेवाएं बंद। पीत्ज़ा और बर्गर की सप्लाई बंद। अस्पतालों में सिवा कोरोना के हर तरह का इलाज ठप। 

कोविड-19 ने हमारे जीवन और समाज को कितने तरीके से बदला इसका पता बरसों बाद लगेगा। भावनात्मक बदलावों को मुखर होकर सामने आने में भी समय लगता है। इस दौरान छोटे बच्चों का जो भावनात्मक विकास हुआ है, उसकी अभिव्यक्ति भी एक पीढ़ी बाद पता लगेगी। इतना समझ में आता है कि जीवन और समाज में किसी एक वैश्विक घटना का इतना गहरा असर शायद इसके पहले कभी नहीं हुआ होगा। पहले और दूसरे विश्व युद्ध का भी नहीं। इसका असर जीवन-शैली, रहन-सहन और मनोभावों के अलावा उद्योग-व्यापार और तकनीक पर भी पड़ा है।

ठहर गई जिंदगी

विमान सेवाएं शुरू होने के बाद दुनिया के इतिहास में पहला मौका था, जब सारी दुनिया की सेवाएं एकबारगी बंद हो गईं। रेलगाड़ियाँ, मोटरगाड़ियाँ थम गईं। गोष्ठियाँ, सभाएं, समारोह, नाटक, सिनेमा सब बंद। खेल के मैदानों में सन्नाटा छा गया। विश्व कप क्रिकेट स्थगित, इस साल जापान में जो ओलिंपिक खेल होने वाले थे, टल गए।

Monday, December 28, 2020

‘सुंदर सपनों’ को तोड़ने वाला साल

आप पूछें कि इस गुजरते साल 2020 को हम किस तरह याद रखें, तो पहला जवाब है महामारी का साल।’ महामारी न होती, तब भी इसे यादगार साल होना था। ‘इंडिया 2020: ए विज़न फॉर द न्यू मिलेनियम’ डॉ एपीजे कलाम की किताब है, जो 1998 में लिखी गई थी। तब वे राष्ट्रपति बने नहीं थे, पर उन्होंने 2020 के भारत का सपना देखा था। इस साल की शुरुआत उस सपने के साथ हुई थी और अंत ‘स्वप्न-भंग’ से हुआ। सपनों पर पानी फेरने वाला साल।

गिलास पूरा खाली नहीं है। यह हमारी परीक्षा का साल था। फिर भी एक मुश्किल दौर को हमने जीता है। साल की शुरूआत आंदोलनों से हुई और समापन किसान आंदोलन के साथ हो रहा है। देश की राजधानी में जामिया मिलिया विवि और शाहीनबाग के नाम से जो आंदोलन शुरू हुआ था, उसकी छाया विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे दिल्ली शहर पर पड़ी। दिल्ली को सांप्रदायिक दंगे ने घेर लिया। उत्तर प्रदेश के शहरों में भी हिंसा हुई।

नमस्ते ट्रंप

फरवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दिल्ली यात्रा के दौरान दिल्ली में फसाद की बुनियाद पड़ गई थी। इस हिंसा के पहले दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विवि परिसर में हिंसा हुई, जिसकी प्रतिक्रिया में देश के अनेक शिक्षा-संस्थानों में आंदोलनों का दौर बना रहा। कोरोना का हमला न होता, तो शायद यह साल ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ की बहस का विषय बनता। जलते भारत को लेकर तमाम अंदेशे हैं और उम्मीदें भी, जो ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ हैं।

Sunday, December 27, 2020

खेतों में इतनी मायूसी क्यों?


किसान-आंदोलन जिस करवट भी बैठे, भारत में खेती से जुड़े बुनियादी सवाल अपनी जगह बने रहेंगे। विडंबना है कि महामारी से पीड़ित इस वित्तीय वर्ष में हमारी जीडीपी लगातार दो तिमाहियों में संकुचित होने के बावजूद केवल खेती में संवृद्धि देखी गई है। इस संवृद्धि के कारण ट्रैक्टर और खेती से जुड़ी मशीनरी के उत्पादन में भी सुधार हुआ है। अनाज में आत्म निर्भरता बनाए रखने के लिए हमें करीब दो प्रतिशत की संवृद्धि चाहिए, जिससे बेहतर ही हम कर पा रहे हैं, फिर भी हम खेती को लेकर परेशान हैं।

खेती से जुड़े हमारे सवाल केवल अनाज की सरकारी खरीद, उसके बाजार और खेती पर मिलने वाली सब्सिडी तक सीमित नहीं हैं। समस्या केवल किसान की नहीं है, बल्कि गाँव और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था की है। गाँव, गरीब और किसान को लेकर जो बहस राजनीति और मीडिया में होनी चाहिए थी वह पीछे चली गई है। भारत को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने अन्न के लिहाज से एक अभाव-पीड़ित देश की छवि को दूर करके अन्न-सम्पन्न देश की छवि बनाई है, फिर भी हमारा किसान परेशान है। हमारी अन्न उत्पादकता दुनिया के विकसित देशों के मुकाबले कम है। ग्रामीण शिक्षा, संचार, परिवहन और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मानकों पर हम अपेक्षित स्तर को हासिल करने में नाकामयाब रहे हैं।

Saturday, December 26, 2020

कांग्रेस पर चले शिवसेना के तीर

 मुंबई कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष अशोक उर्फ ​​भाई जगताप ने रविवार 20 दिसंबर को संकेत दिया था कि पार्टी 2022 के मुंबई नगर निकाय चुनाव में सभी 227 सीटों पर लड़ेगी। इस प्रतिक्रिया का असर है कि शिवसेना ने यूपीए अध्यक्ष को बदलने की मांग की है। शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में इशारों में कहा गया है कि यूपीए की कमान शरद पवार को सौंपी जानी चाहिए। वर्तमान में सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष हैं।

सामना में छपे संपादकीय में लिखा है कि सोनिया ने अब तक यूपीए अध्यक्ष की भूमिका बखूबी निभाई, लेकिन अब बदलाव करना होगा। दिल्ली में आंदोलन कर रहे किसानों का साथ देने के लिए आगे आना होगा। संपादकीय में लिखा गया है कि कई विपक्षी दल हैं जो यूपीए में शामिल नहीं हैं। उन दलों को साथ लाना होगा। कांग्रेस का अलग अध्यक्ष कौन होगा, यह साफ नहीं है। राहुल गांधी किसानों के साथ खड़े हैं, लेकिन कहीं कुछ कमी लग रही है। ऐसे में शरद पवार जैसे सर्वमान्य नेता को आगे लाना होगा।

सामना में लिखा गया कि अभी जिस तरह की रणनीति विपक्ष ने अपनाई है, वह मोदी और शाह के आगे बेअसर है। सोनिया गांधी का साथ देने वाले मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल जैसे नेता अब नहीं रहे। इसलिए पवार को आगे लाना होगा।

दिल्ली की सीमा पर किसानों का आंदोलन शुरू है। इस आंदोलन को लेकर दिल्ली के सत्ताधीश बेफिक्र हैं। सरकार की इस बेफिक्री का कारण देश का बिखरा हुआ और कमजोर विरोधी दल हैं। फिलहाल, लोकतंत्र में जो गिरावट आ रही है, उसके लिए भाजपा या मोदी-शाह की सरकार नहीं, बल्कि विरोधी दल सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। वर्तमान स्थिति में सरकार को दोष देने की बजाय विरोधियों को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है।

Friday, December 25, 2020

बीजेपी-विरोध के अंतर्विरोध


ज्यादातर विरोधी दलों के निशाने पर होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर कोई महामोर्चा नहीं बन पाना, अकेला ऐसा बड़ा कारण है, जो भारतीय जनता पार्टी को क्रमशः मजबूत बना रहा है। अगले साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में यह बात नजर आएगी, पर उसकी एक झलक इस समय भी देखी जा सकती है।

बीजेपी के खिलाफ रणनीति में एक तरफ ममता बनर्जी मुहिम चला रही हैं, वहीं सीपीएम ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर 11 पार्टियों का जो संयुक्त बयान जारी किया है, उसमें तृणमूल का नाम नहीं है। यह बयान केंद्र सरकार के कृषि-कानूनों के विरोध में है। इसपर उन्हीं 11 पार्टियों के नाम हैं, जिन्होंने किसान-आंदोलन के समर्थन में 8 दिसंबर के भारत बंद का समर्थन किया था।

Thursday, December 24, 2020

बंगाल में कांग्रेस और वाममोर्चे के गठबंधन का रास्ता साफ

 

कांग्रेस आलाकमान ने अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वाम दलों के साथ गठबंधन करने के प्रस्ताव को बृहस्पतिवार को औपचारिक रूप से स्वीकृति प्रदान कर दी है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने गुरुवार 24 दिसंबर को ट्वीट कर यह जानकारी दी। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, ‘Today the Congress High command has formally approved the electoral alliance with the #Left parties in the impending election of West Bengal.’ (कांग्रेस आलाकमान ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में वाम दलों के साथ गठबंधन को आज औपचारिक रूप से स्वीकृति प्रदान की।)

इसके पहले कांग्रेस के पश्चिम बंगाल प्रभारी जितिन प्रसाद ने कहा था, यह चुनाव पश्चिम बंगाल की अस्मिता, संस्कृति और संस्कार को बचाने का है जिन पर चोट करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने हाल में पश्चिम बंगाल का दौरा किया था और वहां प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं की राय लेकर नेतृत्व को इससे अवगत कराया था। इसके बाद नेतृत्व ने गठबंधन करने को हरी झंडी दी है। इसके पहले 2016 के विधानसभा चुनाव में भी वाम दल और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े थे। ये दोनों दल केरल में एक दूसरे मुख्य विरोधी हैं।

कश्मीर में लोकतंत्र की वापसी


 जम्मू-कश्मीर इस महीने हुए डीडीसी चुनाव में गुपकार गठबंधन (पीएजीडी) स्पष्ट रूप से जीत मिली है, पर बीजेपी इस बात पर संतोष हो सकता है कि उसे घाटी में प्रवेश का मौका मिला है। चूंकि राज्य में अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय बनाए जाने के बाद ये पहले चुनाव थे, इसलिए एक बात यह भी स्थापित हुई है कि इस केंद्र शासित राज्य में धीरे-धीरे राजनीतिक स्थिरता आ रही है। एक तरह से इस चुनाव को उस फैसले पर जनमत संग्रह भी मान सकते हैं।

इसमें एक बात यह साफ हुई कि कश्मीर की मुख्यधारा की जो पार्टियाँ पीएजीडी के रूप में एकसाथ आई हैं, उनका जनता के साथ जुड़ाव बना हुआ है। अलबत्ता बीजेपी को जम्मू क्षेत्र में उस किस्म की सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद थी। बीजेपी को उम्मीद थी कि घाटी की पार्टियाँ इस चुनाव का बहिष्कार करेंगी, पर वैसा हुआ नहीं। बहरहाल घाटी के इलाके में पीएजीडी की जीत का मतलब है कि जनता राज्य के विशेष दर्जे और पूर्ण राज्य की बहाली की समर्थक है, जो पीएजीडी का एजेंडा है।

जिले की असेंबली

इन चुनावों में सीट जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण पूरे जिले में सफलता हासिल करना है। पीएजीडी का कश्मीर के 10 में से 9 जिलों पर नियंत्रण स्थापित हो गया है, जबकि बीजेपी को जम्मू क्षेत्र में केवल छह जिलों पर ही सफलता मिली है। कुल मिलाकर जो 20 डीडीसी गठित होंगी, उनमें से 12 या 13 पर पीएजीडी और कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे। इस चुनाव की निष्पक्षता भी साबित हुई है, जिसका श्रेय उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को जाता है। पर सवाल आगे का है। इस नई संस्था की कश्मीर में भूमिका क्या होगी और विधानसभा के चुनाव कब होंगे?

Wednesday, December 23, 2020

बृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव में गठबंधन को लेकर कांग्रेस की दुविधा


मुंबई कांग्रेस के नव-निर्वाचित प्रमुख अशोक उर्फ ​​भाई जगताप ने रविवार 20 दिसंबर को संकेत दिया कि पार्टी 2022 के मुंबई नगर निकाय चुनाव में सभी 227 सीटों पर लड़ेगी। उनका यह बयान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस बयान के बाद आया है कि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सभी स्थानीय निकाय-चुनावों में मिलकर लड़ेगा। इसमें उन्होंने मुंबई नगर महापालिका भी शामिल है। उनका यह बयान नवंबर के अंतिम सप्ताह में तब आया था, जब अघाड़ी सरकार ने एक साल पूरा किया था। उन्होंने कहा था कि महा विकास अघाडी (एमवीए) के सहयोगी दल बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनाव सहित सभी चुनाव मिलकर लड़ेंगे।

हाल में हुए विधान परिषद में एमवीए के दलों ने मिलकर बीजेपी को शिकस्त भी दी है। अब कांग्रेस के मुंबई अध्यक्ष का यह बयान कुछ सवाल खड़े करता है। इससे कांग्रेस के भीतर भ्रम और दुविधा की स्थिति का पता भी लगता है। जगताप ने पुणे जिले के जेजुरी में पत्रकारों से कहा, "सीटों का बंटवारा करना एक मुश्किल काम है, इसलिए, हमें एक पार्टी के रूप में उन लोगों के बारे में सोचना चाहिए, जो पार्टी के झंडे को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं और बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के आगामी चुनाव में सभी 227 सीटों पर लड़ना चाहिए।"

Tuesday, December 22, 2020

प्रियंका गांधी के प्रयास से संभव हुई कांग्रेस के असंतुष्टों के साथ बैठक


इंडियन एक्सप्रेस की खबर है कि प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप से कांग्रेस पार्टी के 23 असंतुष्टों के साथ सोनिया गांधी की
मुलाकात के रास्ते खुले। अखबार ने पार्टी सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि प्रियंका का पत्र लिखने वाले नेताओं में से एक के साथ सम्पर्क बना हुआ था। वे प्रयास कर रही थीं कि मामला किसी तरह से सुलझे, क्योंकि पार्टी के भीतर टकराव के रहते भारतीय जनता पार्टी के साथ मुकाबला करना आसान नहीं होगा।

उधर 23 नेता भी संवाद चाहते थे, पर अगस्त में उस पत्र के सामने आने के बाद उनपर जिस किस्म के हमले हुए उससे उनका रुख भी कड़ा होता गया। उसके बाद बात गाली-गलौज तक पहुँच गई और नेतृत्व की ओर से उनकी बात को समझने की कोई कोशिश दिखाई नहीं पड़ी।

भारी औद्योगीकरण की अनुपस्थिति की देन है पंजाब का किसान आंदोलन


दिल्ली के आसपास चल रहे किसान आंदोलन के संदर्भ में सोमवार 21 दिसंबर के इंडियन एक्सप्रेस में धनमंजिरी साठे का ऑप-एड लेख प्रकाशित हुआ है, जिसमें लेखिका का कहना है कि यह आंदोलन पंजाब में हरित-क्रांति के बावजूद वहाँ औद्योगीकरण न हो पाने के कारण जन्मा है। लेखिका सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक हैं।

इन्होंने लिखा है, मुख्यतः पंजाब के किसानों के इस आंदोलन ने विकासात्मक-अर्थशास्त्र (डेवलपमेंट-इकोनॉमिक्स) से जुड़े प्रश्नों को उभारा है। विकास-सिद्धांत कहता है कि किस तरह से एक पिछड़ी-खेतिहर अर्थव्यवस्था औद्योगिक (जिसमें सेवा क्षेत्र शामिल है) अर्थव्यवस्था बन सकती है। इसके अनुसार औद्योगिक-क्रांति की दिशा में बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में कृषि-क्रांति होनी चाहिए। यानी कि खेती का उत्पादन और उत्पादकता इतनी बड़ी मात्रा में होने लगे कि खेती में लगे श्रमिक उद्योगों में लग सकें और औद्योगिक श्रमिकों को खेतों में हो रहे अतिरिक्त उत्पादन से भोजन मिलने लगे।  

पंजाब में साफ तौर पर कृषि-क्रांति (हरित-क्रांति) हो चुकी है। वहाँ काफी मात्रा में अतिरिक्त अन्न उपलब्ध है। यदि पंजाब स्वतंत्र देश होता, तो कृषि-क्रांति के बाद समझदारी इस बात में थी कि पहले दौर में आयात पर रोक लगाकर, औद्योगीकरण को प्रोत्साहन दिया जाता। ऐसे में खेती के काम में लगे अतिरिक्त श्रमिकों को उद्योगों में लगाया जा सकता था। पर पंजाब एक बड़े देश का हिस्सा है। इसलिए उसकी खेती के लिए देश के दूसरे क्षेत्रों में आसान बाजार उपलब्ध है। पंजाब न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर भारतीय खाद्य निगम को गेहूँ बेचता रहा है। पंजाब में एमएसपी और एपीएमसी मंडियों के विकास के कारण वहाँ के किसानों की स्थिति देश के दूसरे इलाकों के किसानों से काफी बेहतर है। एमएसपी और बेहतर तरीके से चल रही मंडियाँ केंद्र की एक सुनियोजित योजना के तहत विकसित हुई हैं, जिसका उद्देश्य है देश में पहले खाद्य-उत्पादन के क्षेत्र में आत्म-निर्भरता और उसके बाद अतिरिक्त अनाज भंडारण की स्थिति हासिल की जाए, ताकि साठ के मध्य-दशक जैसी स्थिति फिर पैदा न हो। यह स्थिति वृहत स्तर पर कुछ समय पहले हासिल की जा चुकी है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि देश में कुपोषण की स्थिति नहीं है।

खेती की आय बढ़ने से औद्योगिक-उत्पादों की माँग बढ़ी। जैसे कि ट्रैक्टर, कार, वॉशिंग मशीन वगैरह। ये चीजें उन राज्यों में तैयार होती हैं, जिन्होंने अपने यहाँ औद्योगिक हब तैयार कर लिए हैं। जैसे कि तमिल नाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक। संक्षेप में पंजाब में कृषि-क्रांति हुई, पर चूंकि उसके अनाज के लिए देश का बड़ा बाजार खुला हुआ था, इसलिए वह औद्योगिक-क्रांति की दिशा में नहीं बढ़ा। 

एक अर्थव्यवस्था के भीतर एक प्रकार का भौगोलिक-विशेषीकरण होना चाहिए, जो प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और जमीन की उर्वरता वगैरह से जुड़ा हो। जैसे कि सहज रूप से खानें झारखंड में हैं। इसी आधार पर पंजाब को हरित-क्रांति के लिए चुना गया था। इस बात की उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हरेक राज्य, हरेक सामग्री के उत्पादन में कुशल होगा। पर पंजाब का मामला विस्मयकारी है। सवाल है कि विकास की इकाई क्या हो?

कृषि-क्रांति से जो दूसरी परिघटना होती है, वह है खेती से मुक्त हुए मजदूरों को उद्योगों में लगाया जा सकता है। पर पंजाब में खास औद्योगीकरण नहीं हुआ। पंजाब कृषि-प्रधान राज्य बना रहा और दुर्भाग्य से उसे इस बात पर गर्व है। बुनियादी तौर पर वर्तमान आंदोलन, औद्योगीकरण की कमी को व्यक्त कर रहा है। बिहार में भी औद्योगीकरण नहीं हुआ है, इसलिए वहाँ के सीमांत और छोटे किसान दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। पर पंजाब में इस वर्ग के लोग उतने गरीब नहीं हैं, जितने बिहार के प्रवासी हैं, पर वे उतने अमीर भी नहीं हैं, जितने पंजाब के किसान हैं।

कोई वजह नहीं है जो पंजाब को औद्योगिक-क्रांति से रोके। पर पंजाब की नीतियों में ठहराव है। जब तक किसानों को उनके अनाज की एमएसपी के सहारे उचित कीमत मिल रही है और लोग पर्याप्त संतुष्ट और सम्पन्न हैं, वहाँ की राज्य सरकार पर वर्षों से कुछ करने का दबाव नहीं है। 

उम्मीद है कि वर्तमान संकट का संतोषजनक समाधान निकल आएगा, पर बुनियादी दरार बनी रहेगी। पंजाब में शहरी आबादी करीब 40 फीसदी है। वृहत स्तर पर औद्योगीकरण के सहारे यह संख्या बढ़नी चाहिए।

वर्तमान आंदोलन एक तरह से पंजाब के नीति-निर्धारकों को जगाने की कोशिश है। भारतीय अर्थव्यवस्था खाद्य-संकट के स्तर से उबर कर कुछ फसलों में अतिरिक्त उपज के स्तर पर आ चुकी है। जाहिर है कि कोई भी सरकार हरेक उपज (यहाँ गेहूँ) के लिए खुली एमएसपी जारी नहीं रख सकती। वस्तुतः अस्सी के दशक में शरद जोशी और वीएम दांडेकर के बीच इसी बिन्दु पर बहस थी।

कुछ बड़े किसान स्थायी सरकारी कर्मचारी की तरह बन चुके हैं और वे अपनी आय को सुरक्षित बनाकर रहना चाहते हैं-यह उनका अधिकार है। यह स्पष्ट नहीं है कि बीजेपी ने इन कानूनों को पास करने में जल्दबाजी क्यों की। भारत में आमतौर पर उम्मीद की जाती है कि सरकारें अलोकप्रिय बदलावों को खामोशी के साथ करती हैं, घोषणा करके नहीं करतीं।

बहरहाल सरकार को बफर स्टॉक बनाए रखने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए कुछ अनाज एमएसपी पर खरीदना होगा। इसलिए पंजाब में और इसी किस्म की खेती वाले दूसरे राज्यों में किसानों और सरकार को बीच का रास्ता खोजना होगा। इसके साथ ही जैसा कि दुनिया के दूसरे देशों में सरकारें करती हैं, सब्सिडी देनी होगी, पर निजी क्षेत्र के विस्तार को भी बढ़ावा देना होगा। बड़े किसानों की क्षमता है और वे गैर-गेहूँ, गैर-धान फसलों की ओर जा सकते हैं।

पंजाब का औद्योगीकरण मुश्किल नहीं है। वहाँ कानून-व्यवस्था की बेहतरीन स्थिति है। लोग उद्यमी, मेहनती, शिक्षित और स्वस्थ हैं। पंजाब को बांग्लादेश और वियतनाम से सीखना चाहिए और ऐसे औद्योगीकरण की ओर जाना चाहिए, जिसमें श्रमिकों की खपत हो। पंजाब ही नहीं पूरे देश को उनसे सीखने की जरूरत है। सरकार छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों की दिशा में काफी कुछ कर सकती है। इन्हीं उद्योगों को बड़ा बनने का मौका दिया जाए। पंजाब इस मामले में रास्ता दिखा सकता है।

 


Monday, December 21, 2020

जन. नरवणे की अरब-यात्रा की पृष्ठभूमि में है भावी आर्थिक-सहयोग

भारत के थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे मंगलवार 8 दिसंबर को एक हफ़्ते के लिए संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के दौरे पर जब रवाना हुए, तब कुछ पर्यवेक्षकों का माथा ठनका था। उन्हें यह बात अटपटी लगी। वे भारत और मुस्लिम देशों के रिश्तों को पाकिस्तान के संदर्भ में देखते हैं, जबकि यह नजरिया अधूरा और गलतियों से भरा है। कोविड-19 के कारण यह यात्रा प्रस्तावित समय के बाद हुई है। अन्यथा इसे पहले हो जाना था। इसलिए इसके पीछे किसी तात्कालिक घटना को जोड़कर देखना उचित नहीं होगा।

सच यह है कि पश्चिम एशिया में राजनीतिक-समीकरण बदल रहे हैं। खासतौर से इजरायल के साथ अरब देशों के रिश्तों में बदलाव नजर आ रहा है। हाल में ईरान के नाभिकीय वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या के बाद से भी इस इलाके में तनाव है। हत्या के पीछे ईरान ने इजरायल का हाथ बताया है, पर तनाव की गर्म हवाएं सऊदी अरब तक भी पहुँची हैं। स्वाभाविक रूप से ये बातें भी पृष्ठभूमि में होंगी।

Sunday, December 20, 2020

अयोध्या में मस्जिद निर्माण की सकारात्मक पहल


 अयोध्या में राम मंदिर के समानांतर मस्जिद की स्थापना का कार्यक्रम जिस सकारात्मकता के साथ सामने लाया गया है उसका स्वागत होना चाहिए। उम्मीद करनी चाहिए कि यह कार्यक्रम धार्मिक संस्थाओं की सामाजिक भूमिका की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। मस्जिद और उससे जुड़ी दूसरी इमारतों में आधुनिक स्थापत्य तथा डिजायन का इस्तेमाल सोच-विचार की नई दिशा को बता रहा है। 

मंदिर-मस्जिद विवाद के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत उ.प्र. सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या के धन्नीपुर गांव में प्रदेश सरकार द्वारा दी गई पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद के निर्माण की तैयारी शुरू हो गई है। इस निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इंडो-इस्लामिक फाउंडेशन के नाम से एक ट्रस्ट गठित किया है।

इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट ने शनिवार 19 दिसंबर को अयोध्या प्रस्तावित उस मस्जिद के ब्लूप्रिंट को जारी किया, जो उस जमीन पर बनेगी, जो अयोध्या से जुड़े मुकदमे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मिली है। राज्य सरकार ने अयोध्या के धन्नीपुर गाँव में पाँच एकड़ जमीन इस काम के लिए दी है।

सेहत किसकी जिम्मेदारी?

महामारी के कारण यह साल अपने आप वैश्विक स्वास्थ्य-चेतना वर्ष बन गया है। पर वैश्विक स्वास्थ्य-नीतियों का इस दौरान पर्दाफाश हुआ है। पिछले एक हफ्ते में स्वास्थ्य से जुड़ी तीन बड़ी खबरें हैं। गत 12 दिसंबर को स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) जारी किया, जिसके अनुसार बाल पोषण के संकेतक उत्साहवर्धक नहीं हैं। बच्चों की शारीरिक विकास अवरुद्धता में बड़ा सुधार नहीं है और 13 राज्यों मे आधे से ज्यादा बच्चे और महिलाएं रक्ताल्पता से पीड़ित हैं।

इस रिपोर्ट पर बात हो ही रही थी कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के एक पीठ ने स्वास्थ्य को नागरिक का मौलिक अधिकार मानते हुए कुछ महत्वपूर्ण निर्देश सरकार को दिए हैं। तीसरी खबर यह है कि भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या एक करोड़ पार कर गई है। अमेरिका के बाद भारत दूसरा ऐसा देश है, जहाँ एक करोड़ से ज्यादा कोरोना-पीड़ित हैं। 

Saturday, December 19, 2020

क्या राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष बनने को तैयार हैं?


कांग्रेस पार्टी में कुछ वरिष्ठ नेताओं के असंतोष को लेकर करीब चार महीने की चुप्पी के बाद अंततः आज 19 दिसंबर को 10, जनपथ पर सोनिया गांधी की अध्यक्षता में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई। बैठक पाँच घंटे तक चली। इसमें अशोक गहलोत, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पृथ्वीराज चह्वाण, शशि थरूर, मनीष तिवारी, अम्बिका सोनी, पी चिदंबरम समेत कुछ नेता शामिल हुए। इनके अलावा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी इस मौके पर उपस्थित थे। इस बैठक से पार्टी के भीतर का मौन तो टूटा है, पर किसी न किसी स्तर पर असंतोष बाकी है। 

एनडीटीवी की वैबसाइट के अनुसार बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि मैं उसी तरह काम करने को तैयार हूँ जैसा आप लोग कहेंगे। पवन बंसल के हवाले से यह खबर देते हुए एनडीटीवी ने यह भी लिखा है कि जब पवन बंसल से पूछा गया कि क्या इससे यह माना जाए कि राहुल फिर से अध्यक्ष बनने को तैयार हैं, तब बंसल ने कहा कि राहुल को लेकर कोई मसला नहीं है, पर अपने शब्द मेरे मुँह से मत कहलवाइए। पार्टी अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। यों भी असंतुष्ट इस बात को कह रहे हैं कि पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर चुनाव होना चाहिए।

अखबार हिंदू की वैबसाइट के अनुसार पार्टी ने आंतरिक विषयों पर चिंतन-शिविर आयोजित करने का निश्चय किया है। यह जानकारी हिंदू ने पवन बंसल के हवाले से दी है। उधर समाचार एजेंसी एएनआई ने पृथ्वीराज चह्वाण के हवाले से खबर दी है कि बैठक सकारात्मक माहौल में हुई, जिसमें वर्तमान स्थितियों में पार्टी के हालचाल और उसे मजबूत बनाने के तरीकों पर विचार किया गया। एनडीटीवी की खबर के अनुसार राहुल गांधी ने इस बैठक में भी कुछ वरिष्ठ नेताओं को संबोधित करते हुए अपनी बात कहने में कोई कमी नहीं की। उन्होंने कमलनाथ को संबोधित करते हुए कहा कि जब आप मुख्यमंत्री थे, तब राज्य को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चला रहा था।

Friday, December 18, 2020

पुराने अंदाज में केजरीवाल

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल करीब दो साल की खामोशी के बाद फिर से अपनी पुरानी शैली में वापस आते नजर आ रहे हैं। इन दिनों दिल्ली में पंजाब से आए किसानों के समर्थन में दिए गए वक्तव्यों के अलावा गत गुरुवार 17 दिसंबर को दिल्ली विधानसभा में उनके बयानों में उनकी पुरानी राजनीति की अनुगूँज थी।

उन्होंने केंद्र सरकार को संबोधित करते हुए कहा, कोरोना काल में क्यों ऑर्डिनेंस पास किया? पहली बार राज्यसभा में बिना वोटिंग के 3 बिल को कैसे पास कर दिया गया? सीएम ने कहा कि दिल्ली विधानसभा केंद्र के कृषि कानूनों को खारिज कर रही है। केंद्र सरकार कानून वापिस ले।

कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली विधानसभा में गुरुवार को एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था। सत्र की शुरुआत होने पर मंत्री कैलाश गहलोत ने एक संकल्प पत्र पेश किया, जिसमें तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की बात कही गई। इसके बाद हर वक्ता को बोलने के लिए पांच मिनट का वक्त दिया गया। बाद में विधानसभा ने कृषि कानूनों को निरस्त करने का एक संकल्प स्वीकार कर लिया।

सोनिया गांधी अब असंतुष्टों से मुलाकात करेंगी

 इस साल अगस्त में कांग्रेस अध्यक्ष को चिट्ठी लिखने वाले 23 वरिष्ठ नेताओं में से कुछ के साथ सोनिया गांधी की मुलाकात शनिवार 19 दिसंबर को तय हुई है। यह खबर इंडियन एक्सप्रेस ने दी है। अखबार की वैबसाइट पर प्रकाशित खबर के अनुसार सोनिया गांधी के पास इस बैठक में शामिल होने वाले संभावित नेताओं के नाम की सूची भेजी गई है। उनमें से चुनींदा लोगों को बुलाया जाएगा।

इस बैठक में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के रहने की संभावना भी है। उनके अलावा मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम, एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल भी बैठक में उपस्थित हो सकते हैं।

Thursday, December 17, 2020

चीन से कर्जा लेकर पाकिस्तान ने सऊदी पैसा लौटाया


पाकिस्तान ऐसे मुकाम पर है, जहाँ पहले कभी नहीं था। पाकिस्तानी साप्ताहिक अखबरा फ्रायडे टाइम्स में कार्टून

आर्थिक रूप से तंगी में आए पाकिस्तान ने चीन से कर्जा लेकर सऊदी अरब को एक अरब डॉलर वापस लौटा दिए हैं। सऊदी अरब कुछ समय पहले तक पाकिस्तान का संरक्षक था और दो साल पहले जब पाकिस्तान के ऊपर विदेशी देनदारी का संकट आया था, तब सऊदी अरब ने उसे तीन अरब डॉलर का कर्ज दिया था। हाल में दोनों देशों को रिश्ते में खलिश आ जाने के कारण पाकिस्तान पर यह धनराशि जल्द वापस करने का दबाव है। ऐसे में चीन ने सहायता करके पाकिस्तान की इज्जत बचाई है। बाहरी कर्जों को चुकाने के लिए वह चीन से लगातार कर्ज ले रहा है।

जानकारी मिली है कि चीन ने पाकिस्तान को डेढ़ अरब डॉलर (करीब 11 हजार करोड़ भारतीय रुपये) की सहायता स्वीकृत की है। इस धनराशि से पाकिस्तान सऊदी अरब के दो अरब डॉलर (करीब 14,500 करोड़ रुपये) का कर्ज चुकाएगा। पाकिस्तान ने सऊदी अरब के बकाया एक अरब डॉलर लौटा दिए हैं और बाकी एक अरब डॉलर जनवरी में चुकाने का वायदा किया है। यह जानकारी पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय ने वहाँ के अखबार ट्रिब्यून को दी है।

सोनू सूद और लंगर-संस्कृति


तमाम नकारात्मक बातों के बीच बहुत सी अच्छी बातें हो रही हैं। वे ध्यान खींचती हैं। मार्च के महीने में देश-व्यापी लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासी मजदूरों के सामने घर जाने की समस्या पैदा हो गई। उस दौरान फिल्म अभिनेता सोनू सूद गरीबों के मसीहा के रूप में सामने आए। उनके ‘घर भेजो अभियान’ ने देखते ही देखते उन्हें करोड़ों लोगों के बीच पहचान दिला दी। दूसरों की मदद करने का उनका यह कार्यक्रम रुका नहीं है, बल्कि कई नई शक्लों में सामने आ रहा है। हाल में उन्होंने एक नई पहल की शुरुआत की, जिसका नाम 'खुद कमाओ घर चलाओ' है। इसके तहत वे उन लोगों को ई-रिक्शे दिलवा रहे हैं, जो इस दौरान बेरोजगार हो गए हैं।

लॉकडाउन के दौरान जहाँ सड़कों पर पुलिस के डंडे खाते प्रवासी मजदूरों की खबरें थीं, वहीं कुछ खबरें ऐसी भी थीं कि लोगों ने दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों के भोजन की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। पुलिस की छवि एक तरफ इस डंडेबाजी से खराब हुई वहीं ऐसी खबरें भी थीं कि पुलिस ने गरीबों के भोजन का इंतजाम किया। बहुत से लोगों ने व्यक्तिगत रूप से और कुछ लोगों ने आपस में मिलकर संगठित रूप से  इस काम को किया। फिर भी यह पर्याप्त नहीं था। इसे जितने बड़े स्हातर पर जिस तरीके से संचालित होना चाहिए, उसपर विचार करने की जरूरत है। गुरुद्वारों के लंगर एक बेहतरीन उदाहरण हैं।  पंजाब के किसानों के दिल्ली आंदोलन के दौरान लगे लंगरों में उन गरीबों को भी देखा गया है, जो आसपास रहते हैं। इन बातों ने देश की अंतरात्मा को झकझोरा है। क्यों नहीं ऐसी कोई स्थायी व्यवस्था बने, जो गरीबों को भोजन देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले। 

पीपुल्स आर्काइव्स ऑफ रूरल इंडिया की वैबसाइट की हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इन लंगरों में आसपास के फुटपाथों और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले कई परिवार शामिल हैं, जो विरोध प्रदर्शन वाली जगह पर मुख्य रूप से लंगर—मुफ़्त भोजन—के लिए आते हैं जो दिन भर चलता है। यहाँ भोजन के अलावा कई तरह की उपयोगी वस्तुएं जैसे दवा, कंबल, साबुन, चप्पल, कपड़े आदि मुफ़्त में मिलते हैं।

डाउन टु अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के कारण पैदा हुआ आर्थिक संकट गरीब व कमजोर तबके के लिए मुसीबतों के पहाड़ लेकर आया। सर्वे में शामिल आबादी के एक बड़े हिस्से को भूखा भी रहना पड़ा। सितंबर और अक्टूबर में जब हंगर वाच को लेकर सर्वे किया गया था, तो पता चला कि हर 20 में से एक परिवार को अक्सर रात का खाना खाए बगैर सोना पड़ा। नकारात्मक माहौल में ऐसी सकारात्मक बातें, हमारी चेतना को चुनौती देती हैं और बदहाल लोगों के लिए कुछ करने का आह्वान करती हैं। 



Wednesday, December 16, 2020

प्रणब मुखर्जी की किताब को लेकर भाई-बहन में असहमति क्यों?


प्रणब मुखर्जी की आने वाली किताब को लेकर उनके बेटे और बेटी के बीच असहमति का कारण समझ में नहीं आता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह असहमति ट्विटर पर व्यक्त की गई है, जबकि यह बात आसानी से एक फोन कॉल पर व्यक्त हो सकती थी। इतना ही नहीं पूर्व राष्ट्रपति के पुत्र ने किताब को लेकर प्रकाशक से अपनी भावनाएं भी ट्विटर पर शेयर की हैं, जबकि वे चाहते तो यह बात फोन करके भी कह सकते थे। इस बात को भाई-बहन की असहमति के रूप में देखा जा रहा है। यह किताब को प्रमोट करने की कोशिश है या पारिवारिक विवाद? मेरे मन में कुछ संशय हैं। लगता यह है कि पुस्तक में जो बातें हैं, वे शर्मिष्ठा की जानकारी में हैं और प्रणब मुखर्जी ने अपने जीवन के अनुभवों को बेटी के साथ साझा किया है। 

प्रणब मुखर्जी की किताब 'The Presidential Years' के प्रकाशन पर उनके बेटे अभिजित मुखर्जी ने ट्वीट कर कहा, चूंकि मैं प्रणब मुखर्जी का पुत्र हूं, ऐसे में इसे प्रकाशित किए जाने से पहले मैं एक बार किताब की सामग्री को देखना चाहता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि किताब को प्रकाशित करने के लिए उनकी लिखित अनुमति ली जाए। उन्होंने इस ट्वीट में रूपा बुक्स के मालिक कपीश मेहता और पुस्तक के प्रकाशक रूपा बुक्स को टैग किया है।

Tuesday, December 15, 2020

भारतीय भाषाओं में इंजीनियरी की पढ़ाई


इंजीनियरिंग के स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए होने वाली आगामी परीक्षा जॉइंट एंटरेंस एग्जामिनेशन मेन (JEE Main) देश की 12 भाषाओं में होगी। इस परीक्षा से जुड़ी बातें तभी बेहतर तरीके से समझ में आएंगी, जब इनका संचालन हो जाएगा। पहली नजर में मुझे यह विचार अच्छा लगा और मेरी समझ से इसके साथ भारतीय शिक्षा के रूपांतरण की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इंजीनियरी के कोर्स में प्रवेश के लिए फरवरी 2021 से शुरू हो रही यह परीक्षा चार चक्रों में होगी। फरवरी से मई तक हरेक महीने एक परीक्षा होगी।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पिछले गुरुवार 10 दिसंबर को कहा कि एक साल में चार बार संयुक्त प्रवेश परीक्षा इसलिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि छात्र विभिन्न परीक्षाओं के एक ही दिन होने या कोविड-19 जैसी स्थिति की वजह से अवसरों से वंचित न हो सकें। उन्होंने कहा कि जेईई (मेन 2021) के लिए पाठ्यक्रम पिछले साल जैसा ही रहेगा। एक और प्रस्ताव का अध्ययन किया जा रहा है, जिसके तहत छात्रों को 90 (भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और गणित के 30 -30 सवालों) में से 75 सवालों (भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और गणित के 25-25 सवालों) का जवाब देने का विकल्प मिलेगा।

Monday, December 14, 2020

वैश्विक स्वास्थ्य-नीतियों पर भी विचार होना चाहिए

कोविड-19 ने इनसान के सामने मुश्किल चुनौती खड़ी की है, जिसका जवाब खोजने में समय लगेगा। कोई नहीं कह सकता कि इस वायरस का जीवन-चक्र अब किस जगह पर और किस तरह से खत्म होगा। बेशक कई तरह की वैक्सीन सामने आ रहीं हैं, पर वैक्सीन इसका निर्णायक इलाज नहीं हैं। इस बात की गारंटी भी नहीं कि वैक्सीन के बाद संक्रमण नहीं होगा। यह भी पता नहीं कि उसका असर कितने समय तक रहेगा।

महामारी से सबसे बड़ा धक्का करोड़ों गरीबों को लगा है, जो प्रकोपों का पहला निशाना बनते हैं। अफसोस कि इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक की ओर देख रही दुनिया अपने भीतर की गैर-बराबरी और अन्याय को नहीं देख पा रही है। इस महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति दुनिया के पाखंड का पर्दाफाश किया है।

नए दौर की नई कहानी

सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक रणनीति का जिक्र अस्सी के दशक में शुरू हुआ था। फिर नब्बे के दशक में दुनिया ने पूँजी के वैश्वीकरण और वैश्विक व्यापार के नियमों को बनाना शुरू किया। इस प्रक्रिया के केंद्र में पूँजी और कारोबारी धारणाएं ही थीं। ऐसे में गरीबों की अनदेखी होती चली गई। हालांकि उस दौर में वैश्विक गरीबी समाप्त करने और उनकी खाद्य समस्या का समाधान करने के वायदे भी हुए थे, पर पिछले चार दशकों का अनुभव अच्छा नहीं रहा है।

Sunday, December 13, 2020

ईयू डिसइनफोलैब की असलियत क्या है?

 


यूरोपीय यूनियन में फ़ेक न्यूज़ पर काम करने वाले एक संगठन 'ईयू डिसइनफोलैब' ने दावा किया है कि पिछले 15 साल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नेटवर्क काम कर रहा है, जिसका मक़सद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को बदनाम करना और भारत के हितों को फ़ायदा पहुँचाना है। यह खबर पाकिस्तानी मीडिया पर पिछले दो-तीन दिन से काफी सुर्खियाँ बटोर रही है। इस खबर को भारत में बीबीसी हिंदी, द वायर और स्क्रॉल ने विस्तार से प्रकाशित किया है। वहीं इंडिया टुडे, एएनआई और फर्स्ट पोस्ट ने भारत के विदेश मंत्रालय के स्पष्टीकरण को प्रकाशित किया है।

बीबीसी हिंदी ने आबिद हुसैन और श्रुति मेनन बीबीसी उर्दू, बीबीसी रियलिटी चेक को इस खबर का क्रेडिट देते हुए जो खबर दी है, वह मूलतः बीबीसी अंग्रेजी की रिपोर्ट का अनुवाद है। ज्यादातर रिपोर्टों में इस संस्था के विवरण ही दिए गए हैं। किसी ने यह नहीं बताया है कि इस संस्था की साख कितनी है और इस प्रकार की कितनी रिपोर्टें पहले तैयार हुई हैं और क्या केवल पाकिस्तान के खिलाफ ही प्रोपेगैंडा है या पाकिस्तान की कोई संस्था भी भारत के खिलाफ प्रचार का काम करती है।

किसान आंदोलन : गतिरोध टूटना चाहिए

किसान आंदोलन से जुड़ा गतिरोध टूटने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार और किसान दोनों अपनी बात पर अड़े हैं। सहमति बनाने की जिम्मेदारी दोनों की है। जब आप आमने-सामने बैठकर बात करते हैं, गतिरोध तभी टूटता है पर कई दौर की वार्ता के बाद भी बात वहीं की वहीं है। किसानों का कहना है कि बात तो करने को हम तैयार हैं, पर पहले आप तीन कानूनों को वापस लें। उन्होंने अपने आंदोलन का विस्तार करने की घोषणा की है, जिसमें हाइवे जाम करना, रेलगाड़ियों को रोकना और टोल प्लाजा पर कब्जा करने का कार्यक्रम भी शामिल है। फिलहाल किसानों का तांता लगा हुआ है, एक वापस जाता है, तो दस नए आते हैं।

केंद्र सरकार ने किसानों को लिखित रूप से देने का आश्वासन किया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा। सरकार ने कानून में बदलाव की पेशकश की है, ताकि सरकारी और प्राइवेट मंडियों के बीच समानता रहे। बाहर से आने वाले व्यापारियों पर भी शुल्क लगाने की बात मान ली गई है। व्यापारियों का पंजीकरण होगा और विवाद खड़े होने पर अदालत जाने का अवसर रहेगा। पर किसानों की एक ही माँग है कि तीनों कानूनों को वापस लो।

Saturday, December 12, 2020

चीन को तुर्की-ब-तुर्की जवाब

 


भारत और चीन के बीच जवाबी बयानों का सिलसिला अचानक चल निकला है। गत बुधवार 9 दिसंबर को ऑस्ट्रेलिया के एक थिंकटैंक लोवी इंस्टीट्यूट में विदेशमंत्री एस जयशंकर के एक बयान के जवाब में अगले ही दिन चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने लद्दाख के घटनाक्रम की सारी जिम्मेदारियाँ भारत के मत्थे मढ़ दीं। उन्होंने कहा कि हम तो बड़ी सावधानी से द्विपक्षीय समझौतों का पालन कर रहे थे। इसके जवाब में शुक्रवार को भारतीय प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि चीन को अपने शब्दों और अपने कार्यों का मिलान करके देखना चाहिए। 

अब शनिवार को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने फिर कहा है कि पिछले सात महीनों से लद्दाख में चल रहे गतिरोध में भारत की परीक्षा हुई है और इसमें हम सफल होकर उभरेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों पर पार पाएंगे। फिक्की की वार्षिक महासभा के साथ एक इंटर-एक्टिव सेशन में जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में जो हुआ, वह वास्तव में चीन के हित में नहीं था। इस घटना-क्रम के कारण भारत के प्रति दुनिया की हमदर्दी बढ़ी है।