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Friday, January 18, 2013

डॉ सॉक ने कहा, कैसा पेटेंट?


जिस तरह रुक्सा खातून के नाम से बहुत कम लोग परिचित हैं उसी तरह  जोनास एडवर्ड सॉक (28 अक्टूबर1913-23 जून 1995) के नाम से भी बहुत ज्यादा लोग परिचित नहीं हैं। परिचित हैं भी तो इस बात से कि उन्होंने पोलियो का वैक्सीन तैयार किया। हालांकि आज इस वैक्सीन में सुधार हो चुका है, पर उन्हें श्रेय जाता है ऐसी बीमारी का टीका तैयार करने का जो 1955 के पहले तक सार्वजनिक स्वास्थ्य के सामने खड़े सबसे बड़े खतरे के रूप में पहचानी जाती थी।जोनास एडवर्ड सॉक के यहूदी माता-पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, पर उनकी तमन्ना थी कि उनका बेटा कोई अच्छा काम करे। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में सॉक ने डॉक्टरी की पढ़ाई की, पर वे विलक्षण इस बात में साबित हुए कि उन्होंने रिसर्च का रास्ता पकड़ा।

सन 2009 में बनी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के अनुसार सन 1952 में अमेरिका में पोलियो की महामारी ने तकरीबन 58,000 लोगों को निशाना बनाया। उस वक्त अमेरिकी लोगों के मन में एटम बम के बाद दूसरी सबसे खतरनाक चीज पोलियो की बीमारी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूज़वेल्ट इसके सबसे प्रसिद्ध शिकारों में एक थे। इसके सबसे ज्यादा पीड़ित बच्चे थे, जो बच भी जाते तो पूरा जीवन विकलांग के रूप में बिताते थे। सॉक की वैक्सीन बनने के बाद इसके फील्ड ट्रायल भी विलक्षण थे। अमेरिका के 20,000 डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मियों, 64,000 स्कूल कर्मचारियों, 2,20,000 वॉलंटियरों और 18,00,000 बच्चों ने इसके परीक्षण में हिस्सा लिया। 12 अप्रेल 1955 को जब इस वैक्सीन की सफलता की घोषणा हुई तो सॉक को चमत्कारिक व्यक्ति के रूप में याद किया गया। वह दिन राष्ट्रीय अवकाश जैसा हो गया। और जब एक टीवी इंटरव्यू में सॉक से सवाल किया गया कि इस टीके का पेटेंट किसके नाम है, सॉक ने जवाब दिया, "कोई पेटेंट नहीं, क्या आप सूरज को पेटेंट करा सकते हैं?"("There is no patent. Could you patent the sun?")

सॉक के जीवन काल में ही एड्स की बीमारी दुनिया में प्रवेश कर चुकी थी और उन्होंने जीवन के अंतिम वर्ष उसकी वैक्सीन तैयार करने पर लगाए। वे यह काम पूरा कर नहीं पाए।

डॉ सॉक ने पेटेंट से इनकार क्यों किया
ओपन माइंड डॉ सॉक का इंटरव्यू

आपने रुक्सा खातून का नाम सुना है?


यह तस्वीर रुक्सा खातून की है। इस साल 12 जनवरी को भारत ने पोलियो की बीमारी से मुक्ति के दो साल पूरे कर लिए। हाल में खबर आई थी कि देश में पोलियो की आखिरी शिकार रुक्सा खातून नाम की छोटी सी लड़की को पैरों में सर्जरी की ज़रूरत है। पोलियों के कारण उसके दोनों पैर बराबर नहीं हैं। कुछ साल पहले तक पोलियो एक भयानक बीमारी थी। पल्स पोलियो अभियान केवल टीकाकरण के लिहाज से ही नहीं मानवीय प्रश्नों पर संचार माध्यमों के इस्तेमाल के लिहाज से दुनिया के सफलतम कार्यक्रमों में से एक है। पोलियो के टीके का विरोध भी हुआ, कोल्ड चेन से लेकर गाँव-गाँव जाने की दिक्कतें भी सामने आईं, पर भारत ने इसे सफल बनाकर दिखाया। दो साल पहले तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत और नाइजीरिया अंग्रेजी में अपने नाम के पहले अक्षरों के आधार पर 'पेन'(PAIN) देश कहलाते थे। भारत का नाम इनमें से हट गया है। शेष देशों का नाम भी हट जाएगा। जब हम निश्चय करके एक बीमारी को खत्म कर सकते हैं तो क्या अपनी तमाम बीमारियों को, शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक, खत्म नही कर सकते? कर सकते हैं। ज़रूर कर सकते हैं। नीचे कुछ जानकारियाँ देखें और विचार करें।