Sunday, August 29, 2021

मुद्रीकरण का राजनीतिकरण!


पिछले सोमवार को केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अस्ति मुद्रीकरण (असेट मॉनिटाइजेशन) के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के तहत केंद्र सरकार की करीब छह लाख करोड़ रुपये की परिसम्‍पत्तियों का अगले चार साल यानी 2024-25 तक मुद्रीकरण किया जाएगा। चालू वित्तवर्ष में इससे करीब 88,000 करोड़ रुपये की आय होगी। कार्यक्रम का मूल-विचार है कि पुरानी चल रही या बंद पड़ी परियोजनाओं (ब्राउनफील्ड प्रोजेक्ट्स) को पट्टे पर देकर पूँजी का सृजन किया जाए और उस पूँजी से नई परियोजनाएं (ग्रीनफील्‍ड प्रोजेक्ट्स) शुरू की जाएं। परियोजनाओं का स्वामित्व केंद्र सरकार के पास ही रहेगा, जबकि उनको चलाने के जोखिम निजी क्षेत्र को उठाने होंगे।

तेज इंफ्रास्ट्रक्चर विकास

इस कार्यक्रम में कुल पूँजी का करीब 65 फीसदी हिस्सा सड़कों, रेलवे और बिजली की परियोजनाओं से प्राप्त होगा। इस योजना के दायरे में 12 मंत्रालयों और विभागों की 20 तरह की संपत्तियां आएंगी, जिनमें मूल्य के हिसाब से सड़क, रेलवे और बिजली क्षेत्र की परियोजनाएं प्रमुख हैं। सूची बहुल बड़ी है, जिसमें टेलीकॉम, उड्डयन, खनन तथा भंडारण जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं। इस कार्यक्रम की जरूरत चार कारणों से है। पहली जरूरत तेज आर्थिक विकास के लिए नई परियोजनाओं को, खासतौर से इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में, शुरू करने की है। तेज गति से आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त पूँजी नहीं है और तीसरे, संसाधन एकत्र करने के लिए सरकार के राजस्व संग्रह में सुस्ती आई है और विनिवेश में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। चौथे, यह विकल्प उपलब्ध है, जिसका इस्तेमाल हुआ नहीं था। 

गति-शक्ति

यह कार्यक्रम अचानक पेश नहीं हुआ है। स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने 100 लाख करोड़ के गति-शक्तिकार्यक्रम की घोषणा की। वे 2019 से यह बात कह रहे हैं। वित्तमंत्री ने इस साल के बजट भाषण में इस तरफ इशारा किया था। वित्तमंत्री ने बजट भाषण में कहा था कि राष्‍ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) के लक्ष्य को हासिल करने के लिए तीन कदम प्रस्तावित हैं: 1.संस्‍थागत संरचनाएं बनें, 2.परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण हो और 3. केंद्र तथा राज्यों के बजट में पूंजीगत व्यय बढ़े। इसके पहले दिसंबर 2019 में वित्तमंत्री ने 6,835 परियोजनाओं के साथ एनआईपी को लॉन्च किया था। अब एनआईपी का विस्‍तार कर दिया गया है और इसमें 7,400 परियोजनाएं हो गई हैं। कुछ महत्‍वपूर्ण अवसंरचना मंत्रालयों के अधीन 1.10 लाख करोड़ रुपये की लागत की 217 परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं।

विकास वित्त संस्थान

अवसंरचना के लिए पूँजी जुटाने के इरादे से इस साल के बजट में कहा गया कि सरकार 20000 करोड़ रुपये की पूंजी से एक विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) स्थापित करेगी। नए संस्थान का लक्ष्य अगले तीन साल में 5 लाख करोड़ का पोर्टफोलियो बनाने का होगा। डीएफआई की स्‍थापना के लिए विधेयक संसद ने बजट सत्र में ही पास कर दिया। परिसंपत्ति मुद्रीकरण के तहत एनएचएआई द्वारा चालू की जा चुकी टोल रोड, बिजली की ट्रांसमिशन लाइनें,  गेल, आईओसीएल एवं एचपीसीएल की तेल व गैस पाइपलाइनें, टियर-2 एवं टियर-3 शहरों के हवाई अड्डे, केंद्रीय भंडारण निगम, नैफेड इत्‍यादि की भंडारण परिसंपत्तियां, और खेल स्टेडियम के अलावा काफी परिसम्पदा का हिसाब भी अभी देश में नहीं है।

सड़क, रेल, बिजली

इनका समुचित इस्तेमाल किया जाए, तो नई परियोजनाओं के लिए पूँजी की व्यवस्था सम्भव है। सरकार ने जो कार्यक्रम रखा है उसके अनुसार करीब 26,700 किलोमीटर लंबाई की सड़क परियोजनाओं से 1.6 लाख करोड़, रेलवे से 1.52 लाख करोड़, पावर ट्रांसमिशन से 45,200 करोड़, बिजली उत्पादन से 39,832 करोड़ रुपए सरकार को मिल सकते हैं। देश के 25 हवाई अड्डों के जरिए 20,782 करोड़ रुपए और बंदरगाहों से 12,828 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य है। ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन’ रोजगार पैदा करने, जीवनयापन में सुधार और सभी के लिए बुनियादी अवसंरचना तक समान पहुँच सुनिश्चित करने में मददगार होगी, जिससे विकास अधिक समावेशी हो सकेगा। इसमें ‘राज्यों के पूंजीगत व्यय हेतु विशेष सहायता योजना’ और ‘औद्योगिक गलियारे’ आदि शामिल हैं।

राजनीतिकरण

सरकार की ओर से हालांकि यह बात काफी पहले से कही जा रही है, पर इस हफ्ते जैसे ही वित्तमंत्री ने यह घोषणा की कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कहा है कि पिछले 70 साल में जो भी देश की पूंजी बनी है, उसे बेचा जा रहा है। राहुल गांधी ने ही नहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा है कि सरकार देश की संपत्ति बेचने की साजिश कर रही है। हालांकि यह विनिवेश से हटकर कार्यक्रम है, पर विनिवेश भी सन 1991 के आर्थिक सुधारों के साथ आई नीति है। सच यह भी है कि 2008 में यूपीए सरकार ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को पट्टे पर देने के लिए आग्रह पत्र आमंत्रित किया था। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान महाराष्ट्र में मुम्बई-पुणे कॉरिडोर के सम्पत्ति मुद्रीकरण के माध्यम से आठ हजार करोड़ रुपये की राशि इकट्ठी की गई थी।

विचारधारा

यह राजनीतिक निर्णय है, जो आर्थिक-विचारधारा से जुड़ा है। यह योजना प्रधानमंत्री की रणनीतिक विनिवेश नीति के अनुरूप है, जिसके तहत सरकार केवल कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में उपस्थिति बनाए रखेगी और शेष को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब खुलकर आर्थिक उदारीकरण के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की शब्दावली में वामपंथी विचारों का पुट नजर आता है। उनके आलोचक कहते हैं कि राहुल वस्तुतः वामपंथी भी नहीं हैं। कई बार वे औद्योगीकरण के भी विरोधी नजर आते हैं। सरकारी सम्पत्ति बेचनाजैसा वाक्यांश आम जनता को आसानी से समझ में आता है, पर पूछा जाए कि आपका मकान खाली पड़ा है, तो क्या उसे किराए पर उठाने में कोई दोष है?  

वित्तमंत्री का दावा है कि हम सरकारी संपत्ति बेचेंगे नहीं। सरकार का स्वामित्व बरकरार रहेगा। समझौते की तय सीमा के बाद संपत्ति सरकार को वापस सौंप दी जाएगी। दूसरे सरकार का यह राजनीतिक फैसला है जरूर, पर इससे जुड़ी संस्थाएं राजनीतिक नहीं हैं। राजनीतिक सरकारें आती-जाती रहती हैं, पर संस्थाएं बची रहती हैं, जिन्हें कार्यक्रमों को संचालित करना होता है।

चुनौतियाँ

राजनीति के अलावा दूसरी चुनौतियाँ भी हैं। हाल में खबर थी कि रेलवे ने निजी क्षेत्र की ट्रेनें चलाने की जो योजना शुरू की थी, उसके परिणाम उत्साहवर्धक नहीं हैं। केंद्र सरकार तैयार है, लेकिन खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं। केवल दो पार्टियाँ सामने आई हैं, जिनमें से एक सार्वजनिक क्षेत्र की है। रेलवे ने 30 हजार करोड़ के निजीकरण के अपने मेगा प्लान पर दोबारा गौर करने का फैसला किया है। रेग्युलेटर का नहीं होना, फिक्स्ड हॉलेज चार्ज, रिवेन्यू शेयरिंग बिजनेस मॉडल, रूट फ्लेक्सिबिलिटी जैसी कुछ समस्याएं हैं, जिसके कारण प्राइवेट प्लेयर ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। एयर इंडिया के निजीकरण में दिक्कतें हैं।

ऐसे कार्यक्रम की सफलता के लिए विवादों के कुशल समाधान-तंत्र की जरूरत भी होगी। ज्यादातर परियोजनाएं पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट (इनविट) और इसी किस्म की दूसरी व्यवस्थाओं से चलेंगी। इसके लिए निजी क्षेत्र का विश्वास जीतने की जरूरत भी होगी। सरकारी लालफीताशाही का इतिहास हम देख चुके हैं। व्यवस्थाओं को व्यावहारिक बनाने की जरूरत होगी। केंद्र सरकार इस कार्यक्रम में राज्य सरकारों को भी जोड़ना चाहती है, पर देश में सहकारी संघवाद की भावना किस हद तक विकसित है, कहना मुश्किल है। जब केंद्र और राज्यों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता हो, तो मामला और संगीन हो जाता है। राज्यों के साथ संसाधनों के वितरण को लेकर भी मसले खड़े हो सकते हैं। पंद्रहवें वित्त आयोग ने केंद्र और राज्यों के वित्तीय उत्तरदायित्व कानून की फिर से जाँच करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त अंतर-सरकारी समूह की स्थापना की सिफारिश की है। इतने बड़े कार्यक्रम में जटिलताओं का होना सहज बात है। समय के साथ उनके समाधान भी आएंगे।

ऐसे कार्यक्रम की सफलता के लिए विवादों के कुशल समाधान-तंत्र की जरूरत भी होगी। ज्यादातर परियोजनाएं पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट (इनविट) और इसी किस्म की दूसरी व्यवस्थाओं से चलेंगी। इसके लिए निजी क्षेत्र का विश्वास जीतने की जरूरत भी होगी। सरकारी लालफीताशाही का इतिहास हम देख चुके हैं। व्यवस्थाओं को व्यावहारिक बनाने की जरूरत होगी। केंद्र सरकार इस कार्यक्रम में राज्य सरकारों को भी जोड़ना चाहती है, पर देश में सहकारी संघवाद की भावना किस हद तक विकसित है, कहना मुश्किल है। जब केंद्र और राज्यों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता हो, तो मामला और संगीन हो जाता है। राज्यों के साथ संसाधनों के वितरण को लेकर भी मसले खड़े हो सकते हैं। पंद्रहवें वित्त आयोग ने केंद्र और राज्यों के वित्तीय उत्तरदायित्व कानून की फिर से जाँच करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त अंतर-सरकारी समूह की स्थापना की सिफारिश की है। इतने बड़े कार्यक्रम में जटिलताओं का होना सहज बात है। समय के साथ उनके समाधान भी आएंगे।

हरिभूमि में प्रकाशित

 

 

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