Showing posts with label भारत-पाकिस्तान. Show all posts
Showing posts with label भारत-पाकिस्तान. Show all posts

Thursday, March 7, 2024

पाकिस्तान-भारत रिश्तों में सुधार की आहट और अंदेशे


पाकिस्तान में नई गठबंधन सरकार बन गई है, जिसके प्रधानमंत्री पद पर पीएमएल (नून) के शहबाज़ शरीफ चुन लिए गए हैं और पूरी संभावना है कि 9 मार्च को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव में पीपीपी के आसिफ अली ज़रदारी चुन लिए जाएंगे. क्या इस बदलाव से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में भी बदलाव आएगा?

बाहरी सतह पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जिससे कहा जा सके कि अब भारत-पाकिस्तान रिश्ते सुधरेंगे. दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद शहबाज़ शरीफ ने जो पहला बयान दिया है, उसमें भी ऐसी कोई बात नहीं कही है. अलबत्ता पाकिस्तान की ओर से चीजों को सामान्य बनाने के कुछ संकेत मिले हैं.

इस सरकार को सेना का समर्थन भी हासिल है, इसलिए माना जा रहा है कि भारत के साथ रिश्तों में सरकारी विसंगतियाँ कम होंगी. फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों देशों के रिश्ते इसलिए सुधर जाएंगे, क्योंकि वहाँ नवाज़ शरीफ फिर से ताकतवर हो गए हैं. रिश्ते तभी सुधरेंगे, जब शांति-स्थापना की समझदारी पक्के तौर पर जन्म ले लेगी. या फिर मजबूरियाँ ऐसे मोड़ पर आ जाएंगी, जहाँ से निकलने का रास्ता ही नहीं बचेगा. 

संबंध-सुधार की धीमी गति

पाकिस्तान में भारत से दोस्ती की बात करना राजनीतिक-दृष्टि से आत्मघाती माना जाता है. नवाज़ शरीफ एकबार इसके शिकार हो चुके हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा उम्मीद यही की जा सकती है कि नई सरकार इस मामले में बड़े जोखिम उठाने के बजाय धीरे-धीरे रिश्ते बेहतर बनाने का प्रयास करेगी. बहुत कुछ दोनों देशों के मीडिया-कवरेज पर भी निर्भर करेगा.

Thursday, August 17, 2023

भारत-पाकिस्तान एकसाथ ‘15 अगस्त’ क्यों नहीं मनाते?

पाकिस्तान की स्वतंत्रता की पहली वर्षगाँठ पर जारी डाक टिकट, जिसमें स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त बताया गया है। 

भारत और पाकिस्तान के टाइम-ज़ोन अलग-अलग हैं. स्वाभाविक है, दोनों की भौगोलिक स्थितियाँ अलग हैं, इसलिए टाइम-ज़ोनभी अलग हैं, पर दोनों के स्वतंत्रता दिवस अलग क्यों हैं?  एक दिन आगे-पीछे क्यों मनाए जाते हैं, जबकि दोनों ने एक ही दिन स्वतंत्र देश के रूप में जन्म लिया था? इसके पीछे पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान की खुद को भारत से अलग नज़र आने की चाहत है.

पाकिस्तान में एक तबका खुद को भारत से अलग साबित करने पर ज़ोर देता है. उन्हें लगता है कि हम भारत के साथ एकता को स्वीकार कर लेंगे, तो इससे हमारे अलग अस्तित्व के सामने खतरा पैदा हो जाएगा. उनकी कोशिश होती हैं कि देश के इतिहास को भी केवल इस्लामी इतिहास के रूप में पेश किया जाए. सरकारी पाठ्य-पुस्तकों में इतिहास का काफी काट-छाँटकर विवरण दिया जाता है.

बेशक, यह न तो पूरे देश की राय है और न संज़ीदा लेखक, विचारक ऐसा मानते हैं, पर एक तबका ऐसा ज़रूर है, जो भारत से अलग नज़र आने के लिए कुछ भी करने को आतुर रहता है. इस इलाके में एकता से जुड़े जो सुझाव आते हैं, उनमें दक्षिण एशिया महासंघ बनाने, एक-दूसरे के यहाँ आवागमन आसान करने, वीज़ा की अनिवार्यता खत्म करने और कलाकारों, खिलाड़ियों तथा सांस्कृतिक-सामाजिक कर्मियों के आने-जाने की सलाह दी जाती है.

1857 की वर्षगाँठ

इन सलाहों पर अमल कौन और कब करेगा, इसका पता नहीं, अलबत्ता 14 और 15 अगस्त के फर्क से पता लगता है कि किसी को न बातों पर आपत्ति है. 2006-07 में जब भारत में 1857 की क्रांति की 150वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी, तब एक प्रस्ताव था कि भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों मिलकर इसे मनाएं, क्योंकि ये तीनों देश उस संग्राम के गवाह हैं.

जनवरी 2004 में दक्षेस देशों के इस्लामाबाद में हुए 12वें शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सुझाव दिया था कि क्यों न हम 2007 में 1857 की 150वीं वर्षगाँठ तीनों देश मिलकर मनाएं. पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता मसूद खान से जब यह सवाल पूछा गया, तब उन्होंने कहा, इसका जवाब है नहीं. उसके अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़फरुल्ला खां जमाली ने कहा, देखते हैं विचार करेंगे. वैसे पाकिस्तान 1857 को दूसरी निगाह से देखता है.

बहरहाल दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हमारा सवाल बनता है कि हम मिलकर एक ही दिन अपना स्वतंत्रता-दिवस क्यों नहीं मनाते? इसके जवाब में अजब-गजब बातें कही जाती हैं.

एक दिन पहले शपथ

भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ, तो पाकिस्तान भी उसी दिन आज़ाद हुए. भ्रम केवल इस बात से है कि पाकिस्तान की संविधान सभा में गवर्नर जनरल और वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन का भाषण और उसके बाद का रात्रिभोज 14 अगस्त को हुआ था.

चूंकि भारत ने अपना कार्यक्रम मध्यरात्रि से रखा था, इसलिए यह सम्भव नहीं था कि वे कराची और दिल्ली में एक ही समय पर उपस्थित हो पाते. किसी ने ऐसा सोचा होता, तो शायद दोनों देशों की सीमा पर 14-15 की मध्यरात्रि को एक ऐसा समारोह कर लिया जाता, जिसमें दोनों देशों का जन्म एकसाथ होता.

शायद इस वजह से 14 अगस्त की तारीख को चुना गया, पर 14 अगस्त को पाकिस्तान बना ही नहीं था. शपथ दिलाने से पाकिस्तान बन नहीं गया, वह 15 को ही बना. तब पाकिस्तान ने 15 अगस्त को ही स्वतंत्रता दिवस मनाया और कई साल तक 15 को मनाया.

Friday, May 19, 2023

एससीओ में उभरेगी भारतीय विदेश-नीति की दिशा


एससीओ विदेशमंत्रियों के सम्मेलन के हाशिए पर भारत-पाकिस्तान मसलों के उछलने की वजह से एससीओ की गतिविधियाँ पृष्ठभूमि में चली गईं. रूस-चीन प्रवर्तित इस संगठन का विस्तार यूरेशिया से निकल कर एशिया के दूसरे क्षेत्रों तक हो रहा है. जब दुनिया में महाशक्तियों का टकराव बढ़ रहा है, तब इस संगठन की दशा-दिशा पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है. खासतौर से इसलिए कि इसमें भारत की भी भूमिका है.

इस साल भारत में हो रहे जी-20 और एससीओ के कार्यक्रमों में वैश्विक-राजनीति के अंतर्विरोध उभर रहे हैं और उभरेंगे. ज़ाहिर है कि भारत दो ध्रुवों के बीच अपनी जगह बना रहा है. एससीओ पर चीन और रूस का वर्चस्व है. यहाँ तक कि संगठन का सारा कामकाज रूसी और चीनी भाषा में होता है. जी-20 संगठन नहीं एक ग्रुप है, पर उसकी भूमिका बहुत ज्यादा है.

रूस और चीन मिलकर नई विश्व-व्यवस्था बनाना चाहते हैं. यूक्रेन-युद्ध के बाद से यह प्रक्रिया तेज हुई है. इसमें एससीओ और ब्रिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एससीओ के अलावा भारत, रूस और चीन ब्रिक्स के सदस्य भी हैं. ब्राजील हालांकि बीआरआई में शामिल नहीं है, पर वहाँ हाल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उसका झुकाव चीन की ओर बढ़ा है.

भारत की दिलचस्पी

रूस और चीन के बीच भी प्रतिस्पर्धा है. रूस के आग्रह पर ही भारत इसका सदस्य बना है. चीन के साथ भारत दूरगामी संतुलन बैठाता है. सवाल है कि भारत इस संगठन में अलग-थलग तो नहीं पड़ेगा? हमारी दिलचस्पी रूस से लगे मध्य एशिया के देशों के साथ कारोबारी और सांस्कृतिक संपर्क बनाने में है.

भारत क्वाड का सदस्य भी है, जो रूस और चीन दोनों को नापसंद है. अमेरिका, जापान और यूरोप के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. इन बातों में टकराव है, जिससे भारत बचता है. फिलहाल संधिकाल है और आर्थिक-शक्ति हमारे महत्व को स्थापित करेगी.

Sunday, May 7, 2023

भारत-पाकिस्तान रिश्तों की गर्मा-गर्मी


विदेशमंत्रियों के गोवा सम्मेलन में पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी की उपस्थिति के कारण सारी निगाहें भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर केंद्रित हो गईं, जबकि एससीओ में द्विपक्षीय मसले उठाए नहीं जाते। इसलिए सम्मेलन में कही गई बातों और मीडिया से कही गई बातों को अलग-धरातल पर समझने की कोशिश करनी चाहिए। दोनों विदेशमंत्रियों की आमने-सामने बातचीत भी नहीं हुई, फिर भी प्रकारांतर से आतंकवाद और कश्मीर का मसला उठा और दोनों पक्षों ने कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा बातें कह दीं। 

शायद मीडिया, राजनीति और सीमा के दोनों ओर की जनता यही सुनना चाहती थी। सम्मेलन में चीन के विदेशमंत्री भी आए थे, और भारत-चीन सीमा पर चल रहे गतिरोध का जिक्र भी सम्मेलन के हाशिए पर हुआ, पर मीडिया का सारा ध्यान भारत-पाकिस्तान पर रहा। शायद इसीलिए दोनों नेताओं ने कुछ ऐसे जुम्ले बोले, जिनसे राजनीति और मीडिया का कारोबार भी चलता रहे। अलबत्ता सम्मेलन में उस किस्म की आतिशबाज़ी नहीं हुई, जिसकी उम्मीद काफी लोगों को थी।  

कयास ही कयास

सबको पहले से पता था कि इस दौरान दोनों देशों के विदेशमंत्रियों की आमने-सामने बातें नहीं होंगी, फिर भी कयास थे कि हाथ मिलाएंगे या नहीं, एक-दूसरे से बातें करेंगे या नहीं वगैरह। इस कार्यक्रम के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि इसकी कवरेज के लिए पाकिस्तान से पत्रकारों की एक टीम भी आई थी, जबकि इस सम्मेलन में द्विपक्षीय सरोकारों पर कोई बात नहीं होने वाली थी।

केवल डेढ़ दिन में बने इस माहौल से समझा जा सकता है कि भारत-पाकिस्तान रिश्तों का क्या महत्व है और जब ये ठंडे होते हैं, तब भी भीतर से कितने गर्म होते हैं। संयोग से इस सम्मेलन के समय जम्मू-कश्मीर के राजौरी में आतंकवादियों से मुठभेड़ में सेना के पाँच जवानों के शहीद होने की खबर भी आई है, जिससे यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान-परस्त लोग सक्रिय हैं और वे इस महीने श्रीनगर में हो रहे जी-20 के कार्यक्रमों पर पानी फेरना चाहते हैं।

ऐसा जवाब देंगे…

भारत-पाकिस्तान रिश्तों के ठंडे-गर्म मिजाज का पता इस सम्मेलन के दौरान बोली गई कुछ बातों से लगाया जा सकता है। मसलन श्रीनगर में हो रही जी-20 की बैठक के सिलसिले में बिलावल भुट्टो ने कहा, ‘दुनिया के किसी ईवेंट का श्रीनगर में आयोजन भारत की अकड़ (एरोगैंस) को दिखाता है। वक्त आने पर हम ऐसा जवाब देंगे कि उनको याद रहेगा।’ वहीं भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान को आतंकी इंडस्ट्री का प्रवक्ता बताया। 

इन दो बयानों को अलग रख दें, तो बिलावल भुट्टो ने जयशंकर की तारीफ भी की। जयशंकर ने उनका नमस्कार से स्वागत किया, जिसपर बिलावल ने कहा, हमारे यहां सिंध में इसी तरह से सलाम किया जाता है। जयशंकर ने सबका स्वागत इसी तरीके से किया। उन्होंने किसी भी मौके पर मुझे ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि हमारे द्विपक्षीय संबंधों का इस बैठक पर कोई असर है।

Wednesday, March 22, 2023

इस माहौल में क्या भारत-पाक वार्ता संभव है?


 देस-परदेश

पाकिस्तान अपने आर्थिक-संकट और आंतरिक राजनीतिक-विवादों में उलझा हुआ है, पर बीच-बीच में भारत-पाकिस्तान बातचीत शुरू होने की सुगबुगाहट सुनाई पड़ती है. ऐसा पिछले साल अप्रेल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से चल रहा है. पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक टकराव के दौरान भी कई बार यह बात सुनाई पड़ी है कि भारत के साथ रिश्ते सुधारने चाहिए.

पाकिस्तान में यह मानने वाले भी हैं कि भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को कायम करना देशहित में है. खासतौर से जब अमेरिका और ईयू में मंदी है, तब भारत के साथ कारोबारी संबंध बनाने से पाकिस्तान की गिरती दशा को सुधारा जा सकता है. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि 2019 में व्यापारिक-रिश्तों को तोड़ना गलत था.

भारत-पाकिस्तान रिश्तों की गाड़ी ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलती है. किसी भी क्षण जबर्दस्त झटका लगता है और सब कुछ बिखर जाता है. फिर भी एक आस बँधी रहती है कि शायद अब कुछ सकारात्मक हो. दूसरी तरफ पाकिस्तान में एक पूरा प्रतिष्ठान भारत-विरोध के नाम पर खड़ा है. उसका मूल स्वर है ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान.’ कश्मीर के मामले पर पूरा देश बेहद ऊँचे तापमान पर गर्म रहता है.

Friday, March 17, 2023

इमरान की गिरफ्तारी होने या नहीं होने से खत्म नहीं होगा पाकिस्तान का राजनीतिक-संकट


हालांकि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान फिलहाल गिरफ्तारी से बचे हुए हैं, पर लगता है कि तोशाखाना केस में वे घिर जाएंगे. इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने उनके गिरफ्तारी वारंट पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसका मतलब है कि अदालत ने इस मामले में फौरन रिलीफ नहीं दी है. लाहौर हाई कोर्ट ने पहले गुरुवार सुबह 10 बजे तक ज़मान पार्क में पुलिस-कार्रवाई पर रोक लगाई और फिर उसे एक दिन के लिए और बढ़ा दिया. इससे फिलहाल टकराव रुक गया है, पर राजनीतिक-संकट कम नहीं हुआ है. वस्तुतः गिरफ्तारी हुई, तो एक नया संकट शुरू होगा. और नहीं हुई, तो एक नज़ीर बनेगी, जो देश की कानून-व्यवस्था के लिए सवाल खड़े करेगी. उधर तोशाखाना केस की सुनवाई कर रहे जज ने कहा है कि इमरान अदालत में हाजिर हो जाएं, तो गिरफ्तारी वारंट वापस हो जाएगा.

पाकिस्तान के वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक और सामरिक संकटों का हल तभी संभव है, जब वहाँ की राजनीतिक-शक्तियाँ एक पेज पर आएं. ताजा खबर है कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने इसकी पेशकश की है, और इमरान ने कहा है कि देशहित में मैं किसी से भी बात करने को तैयार हूँ। फिर भी इसकी कल्पना अभी नहीं की जा सकती है. सरकार और इमरान के राष्ट्रीय-संवाद के बीच तमाम अवरोध हैं। बहरहाल जो टकराव चल रहा है, उसे किसी तार्किक परिणति तक पहुँचना होगा. इस संकट की वजह से अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का बेलआउट पैकेट खटाई में पड़ा हुआ है.

आर्थिक-संकट

पाकिस्तान की कोशिश है कि अमेरिका की मदद से मुद्राकोष के रुख में कुछ नरमी आए. पिछले हफ्ते देश के वित्त सचिव हमीद याकूब शेख ने कहा था कि पैकेज की घोषणा अब कुछ दिन के भीतर ही हो जाएगी. यह बात पिछले कई हफ्तों से कही जा रही है. मुद्राकोष देश की वित्तीय और खासतौर से राजनीतिक-स्थिति को लेकर आश्वस्त नहीं है. दूसरी तरफ ऐसी अफवाहें उड़ाई जा रही हैं कि आईएमएफ ने देश के नाभिकीय-मिसाइल कार्यक्रम को रोकने की शर्त भी लगाई है. इसपर सरकार ने सफाई भी दी है.

Wednesday, March 1, 2023

भारत-पाक संवाद: रास्ते बनाइए, भले ही पथरीले हों


 देस-परदेश

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर हाल में कुछ खबरें ऐसी सुनाई पड़ीं, जिन्हें एकसाथ जोड़कर पढ़ने की इच्छा होती है. हालांकि इन खबरों की पृष्ठभूमि अलग है और उनका आपस में सीधे कोई संबंध नहीं है, पर उनसे दोनों देशों के ठंडे-गर्म रिश्तों की शिद्दत का पता लगता है.

पहली खबर है पाकिस्तानी सेना के पूर्व डीजी आईएसपीआर मेजर जनरल (सेनि) अतहर अब्बास ने हाल में 14वें कराची लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान हुई एक चर्चा में कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सेना के बजाय किसी दूसरे स्तर पर बातचीत होनी चाहिए. ऐसा पाकिस्तान के हित में जरूरी है.

दूसरी खबर है पाकिस्तान की मदद को लेकर भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर का दो टूक बयान. पाकिस्तान इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. जयशंकर से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि क्या ऐसे में हम पाकिस्तान की सहायता कर सकते हैं?  

उन्होंने जवाब दिया कि स्वाभाविक रूप से पड़ोसियों की  चिंताएं हैं और एक भावना है कि हमें उनकी मदद करनी चाहिए. कल अगर किसी और पड़ोसी को कुछ हो जाता है तो भी यही होगा, लेकिन आप जानते हैं कि पाकिस्तान के लिए देश में क्या भावना है?  जयशंकर ने श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौरान भारत की सहायता का जिक्र किया और कहा कि श्रीलंका के साथ हमारे संबंध अलग हैं.

पड़ोसी का धर्म

ध्यान दें पिछले साल पाकिस्तान में जबर्दस्त बाढ़ आई थी, जिसमें भारी जान-माल का नुकसान हुआ था. आमतौर पर अतीत में दोनों देशों में जिसपर भी प्राकृतिक आपदा आई, दूसरे ने मदद की है. पर इसबार की आपदा में भारत ने पाकिस्तान की सहायता नहीं की. भारत ने संभवतः सहायता का मन बनाया था, पर पाकिस्तान ने मदद की प्रार्थना नहीं की. दूसरी तरफ हाल में तुर्किये के भूकंप के बाद भारत ने आगे बढ़कर मदद की.

Tuesday, February 7, 2023

करगिल के ‘विलेन’ मुशर्रफ, जो शांति-प्रयासों के लिए भी याद रहेंगे


भारत और पाकिस्तान को आसमान से देखें तो ऊँचे पहाड़, गहरी वादियाँ, समतल मैदान, रेगिस्तान और गरजती नदियाँ दिखाई देंगी. दोनों के रिश्ते भी ऐसे ही हैं. उठते-गिरते और बनते-बिगड़ते. सन 1988 में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हमले न करने का समझौता किया और 1989 में कश्मीर में पाकिस्तान-परस्त आतंकवादी हिंसा शुरू हो गई. 1998 में दोनों देशों ने एटमी धमाके किए और उस साल के अंत में वाजपेयी जी और नवाज शरीफ का संवाद शुरू हो गया, जिसकी परिणति फरवरी 1999 की लाहौर बस यात्रा के रूप में हुई.

लाहौर के नागरिकों से अटल जी ने अपने टीवी संबोधन में कहा था, ‘यह बस लोहे और इस्पात की नहीं है, जज्बात की है. बहुत हो गया, अब हमें खून बहाना बंद करना चाहिए.‘ भारत और पाकिस्तान के बीच जज्बात और खून का रिश्ता है. कभी बहता है तो कभी गले से लिपट जाता है. संयोग की बात है कि वाजपेयी जी की भारत वापसी के कुछ दिन बाद देश की राजनीति की करवट कुछ ऐसी बदली कि उनकी सरकार संसद में हार गई. दूसरी ओर उन्हीं दिनों पाकिस्तानी सेना कश्मीर के करगिल इलाके में भारतीय सीमा के अंदर ऊँची पहाड़ियों पर कब्जा कर रही थी.

कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी को अचानक आन पड़ी आपदा का सामना करना पड़ा. नवाज़ शरीफ के फौजी जनरल परवेज मुशर्रफ की वह योजना गलत साबित हुई, पर वह साल बीतते-बीतते शरीफ साहब को हटाकर परवेज मुशर्ऱफ़ देश के सर्वे-सर्वा बन गए. उन्हें सबसे पहली बधाई अटल जी ने दी, जो चुनाव जीतकर फिर से दिल्ली की कुर्सी पर विराजमान हो गए थे.

तख्ता-पलट

12 अक्तूबर, 1999 की बात है. उन दिनों भारत के केबल नेटवर्क पर पाकिस्तान टीवी भी दिखाई पड़ता था. शाम को पीटीवी पर खबर आई कि प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने अपने सेनाध्यक्ष जनरल परवेज़ मुशर्ऱफ़ की छुट्टी कर दी. यह बड़ी सनसनीखेज खबर थी, क्योंकि पाकिस्तान में सेनाध्यक्ष के आदेश से प्रधानमंत्री तो हटते देखे गए हैं, पर प्रधानमंत्री किसी सेनाध्यक्ष को हटाने की घोषणा करे, ऐसा दूसरी बार हो रहा था.

यह हिम्मत भी नवाज शरीफ ने ही दोनों बार की थी. इसके पहले 1998 में उन्होंने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल जहांगीर करामत को बर्खास्त किया था. बहरहाल 12 अक्तूबर 1999 को जब परवेज मुशर्रफ श्रीलंका के दौरे से वापस लौट रहे थे, नवाज शरीफ ने उनकी बर्खास्तगी के आदेश जारी कर दिए. पर इसबार नवाज शरीफ कामयाब नहीं हुए.

Wednesday, February 1, 2023

सिंधु नदी के पानी में घुलती कड़वाहट


 देश-परदेस

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में पहले से जारी बदमज़गी में सिंधुजल विवाद के कारण कुछ कड़वाहट और घुल गई है. भारत ने पाकिस्तान को नोटिस दिया है कि हमें सिंधुजल संधि में बदलाव करना चाहिए, ताकि विवाद ज्यादा न बढ़ने पाए. इस नोटिस में 90 दिन का समय दिया गया है.

इस मसले ने पानी के सदुपयोग से ज्यादा राजनीतिक-पेशबंदी की शक्ल अख्तियार कर ली है. पाकिस्तान इस बात का शोर मचा रहा है कि भारत हमारे ऊपर पानी के हथियार का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि भारत में माना जा रहा है कि हमने पाकिस्तान को बहुत ज्यादा रियायतें और छूट दे रखी हैं, उन्हें खत्म करना चाहिए.

भारतीय संसद की एक कमेटी ने 2021 में सुझाव दिया था कि इस संधि की व्यवस्थाओं पर फिर से विचार करने और तदनुरूप संशोधन करने की जरूरत है. उससे पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा भी इस आशय के प्रस्ताव पास कर चुकी थी. कुल मिलाकर पाकिस्तान को उसकी आतंकी गतिविधियों का सबक सिखाने की माँग लगातार की जा रही है.  

आर्बिट्रेशन का सहारा

पाकिस्तान की फौरी प्रतिक्रिया से लगता नहीं कि वह संधि में संशोधन की सलाह को मानेगा. वह विश्वबैंक द्वारा नियुक्त पंचाट-प्रक्रिया के सहारे इन समस्याओं का समाधान करना चाहता है. यह प्रक्रिया शुक्रवार 27 जनवरी को शुरू हो गई है. उसके शुरू होने के दो दिन पहले भारत ने यह नोटिस दिया है.

भारत को शिकायत है कि पाकिस्तान ने संधि के अंतर्गत विवादों के निपटारे के लिए दोनों सरकारों के बीच बनी व्यवस्था की अनदेखी कर दी है. भारत का यह भी कहना है कि विवादों के निपटारे के लिए संधि के अनुच्छेद 9 में जो चरणबद्ध व्यवस्था की गई थी, उसे भी तोड़ दिया गया है.

खास बात यह भी है कि भारत के जिन बाँधों को लेकर विवाद खड़ा हुआ है, वे इस दौरान ही बने हैं और अब काम कर रहे हैं. यानी पानी अब पूरी तरह बहकर पाकिस्तान जा रहा है. किशनगंगा बाँध झेलम पर और रतले बाँध चेनाब नदी पर बना है. झेलम की सहायक नदी है किशनगंगा, जिसका नाम पाकिस्तान में नीलम है.

Wednesday, January 25, 2023

पाकिस्तान की सेहत के लिए अच्छे नहीं ऐसे यू-टर्न


 देस-परदेश

भारत-पाकिस्तान रिश्तों में किस कदर तेजी से उतार-चढ़ाव आता है, इसका पता पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम में देखा जा सकता है. पहले खबर आई कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने यूएई के चैनल अल अरबिया के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि हम कश्मीर समेत सभी मुद्दों पर पीएम नरेंद्र मोदी के साथ गंभीर बातचीत करना चाहते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि भारत के साथ तीन-तीन युद्ध लड़कर पाकिस्तान ने सबक सीख लिया है. इससे गरीबी, बेरोजगारी और परेशानी के सिवा हमें कुछ नहीं मिला. अब हम शांति चाहते हैं. मंगलवार 17 जनवरी को पाकिस्तान के सरकारी टीवी चैनल पर साक्षात्कार के प्रसारण के फौरन बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि पीएम के बयान को गलत संदर्भ में लिया गया. बातचीत तभी हो सकती है, जब भारत अगस्त 2019 के फैसले को वापस ले.

ईमानदार बातचीत

शरीफ ने अरब चैनल पर सोमवार 16 जनवरी को प्रसारित बातचीत में कहा था कि दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू कराने में संयुक्त अरब अमीरात महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिसके भारत के साथ बेहतर संबंध हैं. शरीफ ने कहा, भारतीय नेतृत्व व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेरा संदेश है कि आइए हम टेबल पर बैठें और कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों को सुलझाने के लिए गंभीर व ईमानदार बातचीत करें.

शहबाज़ शरीफ हाल में यूएई की यात्रा पर गए थे और वहाँ उन्होंने 12 जनवरी को राष्ट्रपति मुहम्मद बिन ज़ायेद अल-नाह्यान के साथ मुलाकात की थी. उस मुलाकात का ही ज़िक्र उन्होंने अल अरबिया के इंटरव्यू में किया. इस इंटरव्यू में उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन और अगस्त, 2019 का ज़िक्र भी किया था.

Sunday, November 27, 2022

पाक-सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के निहितार्थ


पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए सैयद आसिम मुनीर के नाम को स्वीकृति देकर कई तरह की आशंकाओं को खत्म कर दिया। आशंका थी कि वे अड़ंगा लगाएंगे। पाकिस्तान में सेनाध्यक्ष का पद राजनीतिक-दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि सेना अब कह रही है कि हमारी दिलचस्पी राजनीति में नहीं है, पर वहाँ की व्यवस्था में सेना की भूमिका खत्म नहीं होगी। खासतौर से वहाँ की विदेश-नीति और भारत के साथ रिश्ते सेना तय करती है। देखना होगा कि आसिम मुनीर की राजनीतिक-दृष्टि क्या है? उनसे किस प्रकार के प्रशासनिक-राजनीतिक परिवर्तन की आशा है? क्या इमरान खान नहीं चाहते थे कि वे सेनाध्यक्ष बनें? यदि हाँ, तो क्योंउनके आने से दक्षिण एशिया में तनाव कम होगा या बढ़ेगा? भारत के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा वगैरह।  

शुरुआती हिचक

गुरुवार 24 नवंबर को पाकिस्तान की सूचना मंत्री मरियम औरंगजेब ने एक ट्वीट में कहा कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने लेफ्टिनेंट जनरल साहिर शमशाद मिर्जा को जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ का अध्यक्ष और लेफ्टिनेंट जनरल सैयद आसिम मुनीर को सेनाध्यक्ष नियुक्त करने का फैसला किया है। सांविधानिक व्यवस्था के अनुसार राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री के फ़ैसले पर मुहर लगानी चाहिए, पर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसके पहले कहा था कि राष्ट्रपति अपना फैसला करने के पहले मुझसे परामर्श करेंगे। इस वजह से अंदेशा था। अल्वी साहब इमरान खान की पार्टी पीटीआई से आते हैं। वे चाहते तो इस नियुक्ति को करीब एक महीने तक टाल भी सकते थे। ऐसा होने पर वे और ज्यादा विवादास्पद हो जाते, साथ ही इमरान खान की पार्टी पीटीआई के साथ सेना के रिश्ते खराब हो जाते।  

नियुक्ति का महत्व

देश के नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति 29 नवंबर तक हो जानी चाहिए। उस दिन जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल समाप्त होने वाला है। उसके दो दिन पहले 27 नवंबर को ही ले जनरल आसिम मुनीर का कार्यकाल खत्म हो रहा है। बहरहाल गुरुवार को ही लाहौर में इमरान खान और राष्ट्रपति की मुलाकात हुई और शाम को राष्ट्रपति ने इस्लामाबाद आकर अपनी स्वीकृति दे दी। राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी इसके पहले एक विवादास्पद काम कर चुके हैं। इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास मत के सफल होने के बाद शहबाज़ शरीफ़ को उन्होंने शपथ नहीं दिलाई। राष्ट्रपति भवन से ख़बर आई कि राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी की तबीयत अचानक बिगड़ गई है जिसके कारण वे शपथ नहीं दिलवा सकेंगे। अंततः सीनेट चेयरमैन सादिक संजरानी ने नए प्रधानमंत्री को शपथ दिलाई। बाद में जब परवेज़ इलाही को पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलवाने की बात आई तो उन्होंने रातोंरात राष्ट्रपति भवन में परवेज़ इलाही को शपथ दिलाई।

इमरान और सेना

2018 के चुनाव में सेना ने धाँधली करके इमरान को प्रधानमंत्री बनाया, पर इमरान भस्मासुर साबित हुए और उनकी हरकतों के कारण सेना ने उनसे दूरी बना ली। आसिम मुनीर के बारे में कहा जाता है कि जब वे आईएसआई के प्रमुख थे, तब उन्होंने इमरान से उनकी पत्नी बुशरा बीबी की शिकायतें की थीं। बुशरा बीबी की प्रसिद्धि इस बात में है कि वे झाड़-फूँक करती हैं और जिन्नात उनके कब्जे में हैं। उनके तंत्र-मंत्र से ही इमरान प्रधानमंत्री बने हैं। बहरहाल आसिम मुनीर की शिकायत के कुछ समय बाद ही उन्हें आईएसआई प्रमुख के पद से हटाकर फैज़ हमीद को आईएसआई चीफ बना दिया गया। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार इमरान आसिम मुनीर को आर्मी चीफ़ बनाने के खिलाफ थे। चूँकि उन्होंने बतौर डीजी आईएसआई उनको हटाया था, इसलिए उन्हें डर था कि आगे जाकर दिक्कतें होंगी। डर यह भी है कि चुनाव के दौरान सेना उनके खिलाफ भूमिका निभाएगी। आसिम मुनीर अच्छे अफसर माने जाते हैं, पर इस वक्त उन्हें राजनीतिक रूप से विवादास्पद मान लिया गया है।

नए सवाल

सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के बाद अब राजनीति से जुड़े नए सवाल खड़े होंगे। उसके पहले देखना होगा कि इमरान खान, फौरन चुनाव कराने के लिए जिस आंदोलन को चला रहे हैं, वह कहाँ तक जाता है। पहले उनकी मंशा थी कि नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के पहले ही चुनाव हो जाएं। उन्हें उम्मीद है कि वे जीतकर आएंगे। ऐसा हो नहीं पाया, पर वे किसी न किसी रूप में अपना चुनाव-अभियान जारी रखेंगे। पीएमएल (नून) की सरकार की कोशिश है कि देश में स्थिरता आनी चाहिए। स्थिरता आई भी है। आर्थिक स्थितियाँ कुछ बेहतर हुई हैं, विदेशी रिश्ते भी बेहतर हुए हैं। पर क्या इन सब बातों की बदौलत इमरान खान को रोक पाएंगे? इमरान जिस भावनात्मक रथ पर सवार हैं, उसका मुकाबला करना आसान नहीं है।

Wednesday, May 4, 2022

बहुत मुश्किल है पाकिस्तान के साथ रिश्तों का सँवर पाना


मजाज़ की दो लाइनें हैं, बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना/ तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है। दुनिया की जगह पाकिस्तान पढ़ें, तब हम इससे अपने मतलब भी निकाल सकते हैं। शहबाज़ शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के पहले से ही कयास लगने लगे थे कि इमरान का हटना क्या भारत से रिश्तों के लिहाज से अच्छा होगा? नरेंद्र मोदी के बधाई संदेश से अटकलों को और बल मिला, गोकि मोदी 2018 में इमरान के प्रधानमंत्री बनने पर भी ऐसा ही बधाई संदेश दे चुके हैं। ऐसी औपचारिकताओं से गहरे अनुमान लगाना गलत है। भारत से रिश्ते सुधारना फिलहाल पाकिस्तानी वरीयता नहीं है। हाँ, उनकी सेना के दृष्टिकोण में आया बदलाव ध्यान खींचता है।  

रिश्ते सुधरने से दोनों देशों और उनकी जनता का बेशक भला होगा, पर तभी जब राजनीतिक लू-लपेट कम हो। पूरे दक्षिण एशिया पर यह बात लागू होती है। इस इलाके के लोगों को आधुनिकता और इंसान-परस्ती की जरूरत है, धार्मिक और मज़हबी दकियानूसी समझ की नहीं। पाकिस्तान में आ रहे बदलाव पर इसलिए नजर रखने के जरूरत है। फिलहाल रिश्तों को सुधारने का राजनीतिक-एजेंडा दोनों देशों में दिखी नहीं पड़ता, बल्कि दुश्मनी का बाजार गर्म है।

सुधार हुआ भी तो राजनयिक-रिश्तों की बहाली से इसकी शुरुआत हो सकती है। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद पहले पाकिस्तान ने और उसके बाद भारत ने अपने हाई-कमिश्नरों के वापस बुला लिया था। जो भी हल्का-फुल्का व्यापार हो रहा था, उसे बंद कर दिया गया। इन रिश्तों की बहाली के लिए भी पहल पाकिस्तान को करनी होगी, क्योंकि उन्होंने ही दोनों फैसले किए थे। पर उनकी शर्त है कि अनुच्छेद 370 के फैसले को भारत वापस ले, जिसकी उम्मीद नहीं।

सेना की दृष्टि

पाकिस्तानी सेना मानती है कि अनुच्छेद 370 भारत का अंदरूनी मामला है, हमें इसपर जोर न देकर कश्मीर समस्या के समाधान पर बात करनी चाहिए। शहबाज़ शरीफ ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की बात कही है। पर वे चाहते हुए भी जल्दबाजी में कदम नहीं बढ़ाएंगे, क्योंकि इसमें उनके राजनीतिक-जोखिम भी जुड़े हैं। पर उसके पहले पाकिस्तानी राजनीति की कुछ पहेलियों को सुलझना होगा।

शरीफ सरकार खुद में पहेली है। वह कब तक रहेगी और चुनाव कब होंगे? नवम्बर में जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। उनकी जगह नया सेनाध्यक्ष कौन बनेगा और उसकी नियुक्ति कौन करेगा? शरीफ या चुनाव के बाद आने वाली सरकार? इमरान खान चाहते हैं कि चुनाव फौरन हों, पर चुनाव आयोग का कहना है कि कम से कम छह महीने हमें तैयारी के लिए चाहिए। इस सरकार के कार्यकाल अगस्त, 2023 तक बाकी है, पर इसमें शामिल पार्टियों की इच्छा है कि चुनाव हो जाएं। अक्तूबर तक चुनाव नहीं हुए, तो सेनाध्यक्ष का फैसला वर्तमान सरकार को ही करना होगा।

Friday, January 14, 2022

पाकिस्तान की सुरक्षा-नीति है या चूँ चूँ का मुृरब्बा?


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने शुक्रवार को देश की पहली राष्‍ट्रीय सुरक्षा नीति को जारी किया है। इस नीति में भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने की मनोकामना व्यक्त की गई है, साथ ही कश्मीर को द्विपक्षीय संबंधों का आधार बताया गया है। इस नीति में पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि हिंदुत्व आधारित भारतीय राजनीति पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए चिंता का सबब है। यह बात अपने आप में विचित्र है।

इस नीति में कहा गया है कि कश्मीर मुद्दे का न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण समाधान होने तक यह हमारे द्विपक्षीय रिश्तों का आधार बना रहेगा। इस दस्‍तावेज में चीन के साथ अच्छे बनाए रखने और चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को पाकिस्तान के लिए राष्‍ट्रीय महत्व का प्रोजेक्‍ट बताया गया है।

इमरान सरकार भारत के दोस्त रूस के साथ भी अच्छे रिश्ते बनाना चाहती है। दस्तावेज में कहा गया है कि अमेरिका के साथ हमारे सहयोग का लंबा इतिहास रहा है। पाकिस्तान किसी खेमे की राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहता है और अमेरिका के साथ व्यापक रिश्ते बनाना चाहता है।

Wednesday, October 27, 2021

पाकिस्तान के हाथों भारत की क्रिकेट में हार, एक साधारण सी घटना के असाधारण निहितार्थ


भारतीय टीम की हार मुझे भी अच्छी नहीं लगी। मैं भी चाहता हूँ कि हमारी टीम जीते। खेल के साथ राष्ट्रीय भावना भी जुड़ती है, पर मैं अच्छा खेलने वालों का भी प्रशंसक हूँ, भले ही वे हमारी टीम के खिलाड़ी हों या किसी और टीम के। खराब खेलकर हमारी टीम जीते, ऐसा मैं नहीं चाहता। पर टी-20 विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता में रविवार 24 अक्तूबर को भारत की हार के बाद मिली प्रतिक्रियाओं को देखने-सुनने के बाद चिंता हो रही है कि खेल को अब हम खेल के बजाय किसी और नजरिए से देखने लगे हैं।

यह विषयांतर है, पर मैं उसे यहाँ उठाना चाहूँगा। बहुत से लोगों के मन में सवाल आता है कि भारत में जनता पार्टी के उभार के पीछे वजह क्या है? क्या वजह है कि हम जिस गंगा-जमुनी संस्कृति और समरसता की बातें सुनते थे, वह लापता होती जा रही है? जो बीजेपी के राजनीतिक उभार को पसंद नहीं करते उनके जवाब घूम-फिरकर हिन्दू-साम्प्रदायिकता पर केन्द्रित होते हैं। उस साम्प्रदायिकता को पुष्टाहार कहाँ से मिलता है, इसपर वे ज्यादा ध्यान नहीं देते। वे भारतीय इतिहास, मुस्लिम और अंग्रेजी राज तथा राष्ट्रीय आंदोलन वगैरह को लेकर लगभग एक जैसी बातें बोलते हैं। दूसरी तरफ बीजेपी-समर्थकों के तर्क हैं, जो घूम-फिरकर दोहराए जाते हैं, पर नई घटनाएं उनके क्षेपक बनकर जुड़ी जाती हैं।

मुझे तमाम बातें अर्ध-सत्य लगती हैं। खेल के मैदान, साहित्य, संस्कृति, संगीत समेत जीवन के हर क्षेत्र में निष्कर्ष एकतरफा हैं। इतिहास के पन्ने खुल भी रहे हैं, तो इन एकतरफा निष्कर्षों को समर्थन मिल रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान की विजय और उसके बाद भारत सरकार की नीतियों, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के फैसले, नागरिकता कानून, शाहीनबाग आंदोलन, किसान आंदोलन, लखीमपुर खीरी की हिंसा, डाबर का विज्ञापन और शाहरुख खान के बेटे की गिरफ्तारी सब कुछ इसी नजर से देखा जा रहा है। मीडिया की कवरेज और उनमें होने वाली बहसों की भाषा और तथ्यों की तोड़मरोड़ से बातें कहीं से कहीं पहुँच जाती हैं। टी-20 क्रिकेट भी इसी नजरिए का शिकार हो रहा है।

बहरहाल आप क्रिकेट देखें और इस घटनाक्रम पर विचार करें। सम्भव हुआ, तो इस चर्चा को आगे बढ़ाने का प्रयास करूँगा। फिलहाल क्रिकेट के इस घटनाक्रम पर मैं कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूँगा:

1.हमारी टीम एक मैच हारी है, टूर्नामेंट से बाहर नहीं हुई है। हो सकता है कि हमें पाकिस्तान के साथ फिर खेलने का मौका मिले। हो सकता है कि दोनों देश फाइनल में हों। हम यह प्रतियोगिता नहीं भी जीते, तब भी भविष्य की प्रतियोगिताएं जीतने का मौका है। इस हार से टीम ने कुछ सीखा हो, तभी अच्छा है।

2.टीम के कप्तान या किसी भी खिलाड़ी को कोसना गलत है। टीम जीत जाए, तो जमीन-आसमान एक करना और हार जाए, तो रोना नासमझी है। खासतौर से उनका विलाप कोई मायने नहीं रखता, जिन्हें खेल की समझ नहीं है।

3.इसके विपरीत जो लोग भारतीय टीम को भारतीय जनता पार्टी की टीम मानकर चल रहे हैं, वे भी गलत हैं। यह दृष्टि-दोष है। मीडिया की अतिशय कवरेज और कुछ खेल के साथ जुड़े देश-प्रेम के कारण ऐसा हुआ है। पर इस हार पर खुशी मनाने का भी कोई मतलब नहीं है।

4.हो सकता है लोग कहें, हम खुशी नहीं मना रहे हैं, केवल भक्तों का मजाक बना रहे हैं, उनकी प्रतिक्रिया भी मुझे समझ में नहीं आती। ऐसे वीडियो सोशल मीडिया में आए हैं, खासतौर से कश्मीर और पंजाब के शिक्षा-संस्थानों के जिनमें पाकिस्तानी टीम की विजय के क्षणों पर खुशी का माहौल नजर आता है। पर क्या यह राजद्रोह है? इस किस्म की प्रतिक्रियाओं की विपरीत प्रतिक्रिया होती है, जो अतिशय या आक्रामक-राष्ट्रवाद को जन्म देती हैं।

5.इस परिणाम पर हर्ष या विषाद के बजाय जिस तरह से साम्प्रदायिक टिप्पणियाँ हुईं, वे चिंताजनक हैं। मोहम्मद शमी को निशाना बनाने वाले ट्रोल नहीं जानते कि वे इतनी गलत बात क्यों बोल रहे हैं। अच्छा हुआ कि शमी के पीछे देश के तकरीबन ज्यादातर सीनियर खिलाड़ियों ने ट्वीट जारी किए।

6.क्या वास्तव में शमी को ट्रोल किया गया?  चर्चा इस बात की भी है कि सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे हैंडलों ने इस ट्रोलिंग को शुरू किया, जो पाकिस्तान से संचालित होते हैं। ऐसा क्यों किया होगा? ताकि भारत में हिन्दू-मुस्लिम विभाजन बढ़े।

बरखा दत्त ने 25 अक्तूबर को 9.46 पर यह ट्वीट किया। क्या इसके पहले या इसके बाद शमी को ट्रोल करते हुए आपने ट्वीट देखे थे?

Wednesday, October 13, 2021

क्या हम पीओके वापस ले सकते हैं?


दो साल पहले 5 अगस्त, 2019 को भारत ने कश्मीर पर अनुच्छेद 370 और 35 को निष्प्रभावी करके लम्बे समय से चले आ रहे एक अवरोध को समाप्त कर दिया। राज्य का पुनर्गठन भी हुआ है और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है। पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का मामला अब भी अधूरा है। कश्मीर हमारे देश का अटूट अंग है, तो हमें उस हिस्से को भी वापस लेने की कोशिश करनी चाहिए, जो पाकिस्तान के कब्जे में है। क्या यह सम्भव है? कैसे हो सकता है यह काम?

गृह मंत्री अमित शाह ने नवम्बर 2019 में एक कार्यक्रम में कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के लिए हम जान भी दे सकते हैं और देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिनके मन में यही भावना है। साथ ही यह भी कहा कि इस सिलसिले में सरकार का जो भी ‘प्लान ऑफ एक्शन’ है, उसे टीवी डिबेट में घोषित नहीं किया जा सकता। ये सब देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें ठीक वैसे ही करना चाहिए, जैसे अनुच्छेद 370 को हटाया गया। इसके समय की बात मत पूछिए तो अच्छा है।

इसके पहले संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए भी उन्होंने कहा था कि पीओके के लिए हम जान दे सकते हैं। गृहमंत्री के इस बयान के पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सितम्बर 2019 में एक मीडिया कॉन्फ्रेंस में कहा ता कि पाकिस्तान के कब्जे में जो कश्मीर है, वह भारत का हिस्सा है और हमें उम्मीद है कि एक दिन इस पर हमारा अधिकार हो जाएगा।

इन दोनों बयानों के बाद जनवरी 2020 में भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने सेना दिवस के पहले एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यदि देश की संसद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का आदेश देगी तो हम कारवाई कर सकते है। ‌उन्होंने कहा, संसद इस बारे में प्रस्ताव पास कर चुकी है कि पीओके भारत का अभिन्न अंग है‌‌। इन बयानों के पीछे क्या कोई संजीदा सोच-विचार था? क्या भविष्य में हम कश्मीर को भारत के अटूट अंग के रूप में देख पाएंगे?

संसद का प्रस्ताव

इस सिलसिले में भारतीय संसद के एक प्रस्ताव का उल्लेख करना भी जरूरी है। हमारी संसद के दोनों सदनों ने 22 फरवरी 1994 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इस बात पर जोर दिया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसलिए पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले राज्य के हिस्सों को खाली करना होगा संकल्प में कहा गया, जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहा है, और रहेगा तथा उसे देश के बाकी हिस्सों से अलग करने के किसी भी प्रयास का सभी आवश्यक साधन के द्वारा विरोध किया जाएगा। प्रस्ताव में कहा गया कि पाकिस्तान बल पूर्वक कब्जाए हुए भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों को खाली करे।

Tuesday, July 6, 2021

भारत-पाकिस्तान रिश्तों में फिर से लू-लपट


भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों में कितनी तेजी से उतार-चढ़ाव आता है इसकी मिसाल पिछले चार महीनों में देखी जा सकती है। गत 25 फरवरी को दोनों देशों के बीच अचानक नियंत्रण रेखा पर युद्ध-विराम के एक पुराने समझौते को मजबूती से लागू करने का समझौता हुआ। इससे अचानक शांति का माहौल बनने लगा। पाकिस्तान की तरफ से एक के बाद एक बयान आए। भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शुभकामनाएं भेजीं।

केवल युद्ध-विराम ही नहीं आपसी व्यापार फिर से शुरू करने की बातें होने लगीं। ऐसे संकेत मिले कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब गणराज्य के बीच में पड़ने से दोनों देशों के बीच बैकरूम-बातचीत भी हो रही है। इसके बाद जम्मू में भारतीय वायुसेना के हवाई अड्डे पर ड्रोन हमले की खबरें आईं और सब कुछ अचानक यू-टर्न हो गया। उधर 23 जून को लाहौर में हाफिज सईद के घर के पास एक बम धमाका हुआ, जिसके लिए पाकिस्तान ने भारत को जिम्मेदार ठहराया है।

पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसुफ ने कहा है कि लाहौर धमाके का मास्टर माइंड एक भारतीय नागरिक है जो रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (भारतीय ख़ुफिया एजेंसी रॉ) से जुड़ा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने सीधे-सीधे इसे 'भारत प्रायोजित आतंकवादी हमला' क़रार दिया है। इमरान खान ने ट्वीट किया, मैंने अपनी टीम को निर्देश दिया कि वे जौहर टाउन लाहौर धमाके की जाँच की जानकारी कौम को दें। मैं पंजाब पुलिस के आतंकवादी निरोधक विभाग की तेज़ रफ़्तार से की गई जाँच की तारीफ़ करूंगा कि उन्होंने हमारी नागरिक और ख़ुफ़िया एजेंसियों की शानदार मदद से सबूत निकाले।

सवाल है कि क्या वास्तव में ऐसी कोई जाँच हुई? क्या पाकिस्तान के पास कोई सबूत है या वह इस दौरान बनी शांति की सम्भावनाओं से बाहर निकलना चाहता है? वह बाहर निकलना चाहता है, तो इन सम्भावनाओं में शामिल ही क्यों हुआ था? क्या वहाँ सेना और सरकार के बीच मतभेद हैं? या पाकिस्तान अपने बुने जाल में फँसता जा रहा है? ऐसे तमाम सवालों ने दक्षिण एशिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। एक तरफ अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हो रही है और दूसरी तरफ भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक-प्रक्रियाओं को तेज कर दिया है। इससे पाकिस्तानी अंतर्विरोध खुलकर सामने आने लगे हैं।

Monday, April 12, 2021

क्या कश्मीरी ‘हठ’ को त्याग सकेगा पाकिस्तान?


पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की प्रसिद्धि यू-टर्न पीएम के नाम से है। पर भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर जब उनका यू-टर्न हुआ, तो पाकिस्तान में भी काफी लोगों को हैरत हुई। बुधवार 31 मार्च को जब खबर मिली कि इकोनॉमिक कोऑर्डिनेशन कौंसिल (ईसीसी) ने भारत से चीनी और कपास मँगाने का फैसला किया है, तो लगा कि रिश्तों को बेहतर बनाने का जो ज़िक्र एक महीने से चल रहा है, यह उसका पहला कदम है।

इसके पहले नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस पर इमरान खान को बधाई का पत्र भेजा कि पाकिस्तान के साथ भारत दोस्ताना रिश्ते चाहता है। साथ ही यह भी कि दोस्ती के लिए आतंक मुक्त माहौल जरूरी है। जवाब में इमरान खान की चिट्ठी आई, 'हमें भरोसा है कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए दोनों देश सभी मुद्दों को सुलझा लेंगे, खासकर जम्मू-कश्मीर को सुलझाने लायक बातचीत के लिए सही माहौल बनना जरूरी है।'

दोनों पत्रों में रस्मी बातें थीं, पर दोनों ने अपनी सैद्धांतिक शर्तों को भी लिख दिया था। फिर भी लगा कि माहौल ठीक हो रहा है। गत 26 फरवरी से नियंत्रण रेखा पर और पिछले कुछ समय से अखबारों में बयानों की गोलाबारी रुकी हुई है। बताते हैं कि यूएई ने बीच में पड़कर माहौल बदला है। तीन महीनों से दोनों देशों के बीच बैक-चैनल बात चल रही है वगैरह।

Sunday, April 11, 2021

क्या था ऑपरेशन गुलमर्ग?

 


।।चार।।

अगस्त 1947 में विभाजन के पहले ही कश्मीर के भविष्य को लेकर विमर्श शुरू हो गया था। कांग्रेस की इच्छा थी कि कश्मीर का भारत में विलय हो और मुस्लिम लीग का कहना था कि रियासत में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान हैं, इसलिए उसे पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहिए। तमाम तरह के विमर्श के बावजूद महाराजा हरिसिंह अक्तूबर के तीसरे सप्ताह तक फैसला नहीं कर पाए। फिर जब स्थितियाँ उनके नियंत्रण से बाहर हो गईं, तब उन्होंने भारत में विलय का फैसला किया। उन परिस्थितियों पर विस्तार से हम किसी और जगह पर विचार करेंगे, पर यहाँ कम से कम तीन घटनाओं का उल्लेख करने की जरूरत है। 1.जम्मू में मुसलमानों की हत्या. 2.गिलगित-बल्तिस्तान में महाराजा के मुसलमान सैनिकों की बगावत और 3.पश्चिम से कबायलियों का कश्मीर पर हमला।

हाल में मेरी इस सीरीज के दूसरे भाग को जब मैंने फेसबुक पर डाला, तब एक मित्र ने बीबीसी की एक रिपोर्ट के हवाले से लिखा, कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि पाकिस्तान से आने वाले ये कबायली हमलावर थे या वे मुसलमानों की हिफ़ाज़त के लिए आए थे? जम्मू-कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक थे, जबकि उसके शासक महाराजा हरि सिंह हिंदू थे। 1930 के बाद से अधिकारों के लिए मुसलमानों के आंदोलनों में बढ़ोतरी हुई। अगस्त 1947 में देश के बंटवारे के बाद भी यह रियासत हिंसा की आग से बच नहीं पाई… जम्मू में हिंदू अपने मुसलमान पड़ोसियों के ख़िलाफ़ हो गए। कश्मीर सरकार में वरिष्ठ पदों पर रह चुके इतिहासकार डॉ. अब्दुल अहद बताते हैं कि पश्तून कबायली पाकिस्तान से मदद के लिए आए थे, हालांकि उसमें कुछ 'दुष्ट लोग' भी शामिल थे।… उधर, प्रोफ़ेसर सिद्दीक़ वाहिद इस बात पर सहमत होते हैं कि पाकिस्तानी कबायलियों का हमला जम्मू में जारी अशांति का जवाब था।

ऑस्ट्रेलिया के लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन ने अपनी किताब कश्मीर द अनरिटन हिस्ट्री में भी इस बात को लिखा है। हालांकि उनकी वह किताब मूलतः पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के बारे में है, पर उन्होंने किताब की शुरुआत में ही लिखा है कि इस सिलसिले में प्राप्त ज्यादातर विवरणों में बताया जाता है कि पाकिस्तान से आए पश्तून कबायलियों ने स्थिति को बिगाड़ा, इस किताब में बताया गया है कि जम्मू के लोगों ने इसकी शुरुआत की। विभाजन के बाद जम्मू के इलाके में तीन काम हुए। पहला था, पश्चिमी जम्मू प्रांत के पुंछ इलाके में मुसलमानों ने महाराजा हरिसिंह के खिलाफ बगावत शुरू की। दूसरे, पूरे जम्मू-प्रांत में साम्प्रदायिक हिंसा शुरू हो गई, तीसरे पश्चिमी जम्मू क्षेत्र में बागियों ने एक इलाके पर कब्जा करके उसे आज़ाद जम्मू-कश्मीर के नाम से स्वतंत्र क्षेत्र घोषित कर दिया। पूरी रियासत साम्प्रदायिक टुकड़ों में बँटने लगी। यह सब 26 अक्तूबर, 1947 के पहले हुआ और लगने लगा कि पूरे जम्मू-कश्मीर को किसी एक देश के साथ मिलाने का फैसला लागू करना सम्भव नहीं होगा। इस घटनाक्रम पर भी हम आगे जाकर विचार करेंगे, पर पहले उस ऑपरेशन गुलमर्ग का विवरण देते हैं, जिसका उल्लेख पिछले आलेख में किया था।