भारत में आर्थिक सुधारों के पीछे सबसे बड़ा कारण वैश्वीकरण है, जिसे लेकर पश्चिमी देशों का जोर सबसे ज्यादा है। नब्बे के दशक में विश्व व्यापार संगठन बन जाने के बाद वैश्विक कारोबार से जुड़े मसले लगातार उठ रहे हैं। इन दिनों भारत में चल रहा किसान आंदोलन वस्तुतः कारोबार के उदारीकरण की दीर्घकालीन प्रक्रिया का एक हिस्सा है। इसके तमाम पहलू हैं और उन्हें लेकर कई तरह की राय हैं, पर भारत में और भारत के बाहर सारी बहस किसान-आंदोलन के इर्द-गिर्द है। लोग जो भी विचार व्यक्त कर रहे हैं, वो दोनों मसलों को जोड़कर बातें कर रहे हैं।
बहरहाल इस विषय पर चर्चा को आगे बढ़ाने के पहले इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक खबर का हवाला देना बेहतर होगा। भारत की विदेश-सेवा से जुड़े 20 पुराने अधिकारियों ने विश्व व्यापार संगठन के नाम एक चिट्ठी लिखी है। इस पत्र में वस्तुतः डब्लूटीओ, अमेरिका, ब्रिटेन और दूसरे पश्चिमी देशों के राजनीतिक समूहों को कोसा है। इसका आशय यह है कि आप हमें बाजार खोलने का सुझाव भी देंगे और ऊपर से नसीहत भी देंगे कि ऐसे नहीं वैसे चलो। यह हमारे देश का मामला है। हमें बाजार, खाद्य सुरक्षा और किसानों के बीच किस तरह संतुलन बनाना है, यह काम हमारा है। खेती से जुड़े कानून इस संतुलन को स्थापित करने के लिए हैं। यह तो आपका दोहरा मापदंड है। एक तरफ आप वैश्विक खाद्य बाजार के चौधरी बने हुए हैं और दूसरी तरफ किसान-आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।