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Wednesday, June 10, 2015

दिल्ली में सियासी नौटंकी

दिल्ली में केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव मर्यादा की सीमाएं तोड़ रहा है. स्थिति हास्यास्पद हो चुकी है. सरकार का कानून मंत्री फर्जी डिग्री के आरोप में गिरफ्तार है. सवाल उठ रहे हैं कि गिरफ्तारी की इतनी जल्दी क्या थी? इस मामले में अदालती फैसले का इंतज़ार क्यों नहीं किया गया? मंत्री के खिलाफ एफआईआर करने वाली दिल्ली बार काउंसिल से भी सवाल किया जा रहा है कि उसके पंजीकरण की व्यवस्था कैसी है, जिसमें बगैर कागज़ों की पक्की पड़ताल के वकालत का लाइसेंस मिल गया? प्रदेश सरकार अपने ही उप-राज्यपाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दे रही है. उप-राज्यपाल ने एंटी करप्शन ब्रांच के प्रमुख पद पर एक पुलिस अधिकारी की नियुक्ति कर दी. सरकार ने उस नियुक्ति को खारिज कर दिया, फिर भी उस अधिकारी ने नए पद पर काम शुरू करके अपने अधीनस्थों के साथ बैठक कर ली. कहाँ है दिल्ली की गवर्नेंस? यह सब कैसा नाटक है? आम आदमी पार्टी इसे केजरीवाल बनाम मोदी की लड़ाई के रूप में पेश कर रही है. क्या है इसके पीछे की सियासत?

Thursday, September 11, 2014

दिल्ली-गतिरोध अब टूटना चाहिए


हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून
दिल्ली में लोकतांत्रिक सरकार बननी चाहिए। यह काम फौरन नहीं हो सकता तो चुनाव कराने चाहिए। पिछले दो महीने से जो सुगबुगाहट सुनाई पड़ रही है वह खत्म होनी चाहिए। यदि भाजपा को आम आदमी पार्टी के कुछ विधायकों से समर्थन मिलने की आशा है तो उसे साफ सामने आना चाहिए। आम आदमी पार्टी को लगता है कि वह सरकार बना सकती है तो उसे गम्भीरता के साथ दुबारा कांग्रेस के पास जाकर यह साफ करना चाहिए कि हम गम्भीरता से सरकार चलाना चाहते हैं। पिछले सात महीने से जिस तरह से दिल्ली में शासन चल रहा है वह भी ठीक नहीं। 
बहरहाल कोई हैरत नहीं कि किसी भी वक्त  लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का न्योता दे दें। फिलहाल गतिरोध टूटना चाहिए और आम आदमी पार्टी को उसकी तार्किक परिणति की और जाना चाहिए। ताज़ा खबर है कि भाजपा नेतृत्व की पेशकश को नरेंद्र मोदी ने हरी झंडी दे दी है। अब सरकार बनी तो पहला सवाल यह होगा कि दिसम्बर में पार्टी ने हाथ क्यों खींच लिया था? और यह कि अब बहुमत जुटाने की कीमत वह क्या देगी? नैतिक दृष्टि से भाजपा इस फैसले को सही नहीं ठहरा पाएगी, पर व्यावहारिक रूप से इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता दिल्ली के असमंजस को तोड़ने के लिए उपलब्ध नहीं है। भाजपा के कुछ पुराने हारे हुए नेताओं के अलावा कोई नहीं चाहता कि दुबारा चुनाव हों।

Tuesday, December 24, 2013

'आप' ने ओखली में सिर दिया

 मंगलवार, 24 दिसंबर, 2013 को 06:38 IST तक के समाचार
आम आदमी पार्टी के नेता
हिंदी की कहावत है 'ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना?' आम आदमी पार्टी ने जोखिम उठाया है तो उसे इस काम को तार्किक परिणति तक पहुँचाना भी होगा.
यह तय है कि उसे समर्थन देने वाली पार्टी ने उसकी 'कलई खोलने' के अंदाज़ में ही उसे समर्थन दिया है और 'आप' के सामने सबसे बड़ी चुनौती है इस बात को गलत साबित करना और परंपरागत राजनीति की पोल खोलना.
'आप' सरकार की पहली परीक्षा अपने ही हाथों होनी है. यह पार्टी परंपरागत राजनीति से नहीं निकली है.
देखना होगा कि इसका आंतरिक लोकतंत्र कैसा है, प्रशासनिक कार्यों की समझ कैसी है और दिल्ली की समस्याओं के कितने व्यावहारिक समाधान इसके पास हैं?
इससे जुड़े लोग पद के भूखे नहीं हैं लेकिन वे सरकारी पदों पर कैसा काम करेंगे? सादगी, ईमानदारी और भलमनसाहत के अलावा सरकार चलाने के लिए चतुराई की जरूरत भी होगी, जो प्रशासन के लिए अनिवार्य है.