असम में राष्ट्रीय
नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) पर चली करीब चार साल की वरजिश के बावजूद असम
में विदेशी नागरिकों की घुसपैठ का मामला सुलझा नहीं। अब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को संसद में कहा कि पूरे देश
में एनआरसी को लागू किया जाएगा और असम में इसकी नए सिरे से शुरूआत की जाएगी। इस
साल 31 अगस्त को जारी की गई असम की एनआरसी से करीब 19 लाख लोग बाहर रह गए हैं। इस
सूची से बाहर रह गए लोगों के पास अभी चुनौती देने के विकल्प हैं, पर इस प्रक्रिया
से पूरे पूर्वोत्तर में कई प्रकार के भय पैदा हो गए हैं। इस एनआरसी को भारतीय जनता
पार्टी ने भी अस्वीकार कर दिया है। सवाल है कि इसे तार्किक परिणति तक कैसे
पहुँचाया जाएगा?
भारत के सांप्रदायिक
विभाजन से उपजी इस समस्या के समाधान के लिए गंभीर विमर्श की जरूरत है। इसके कारण
पिछले कई दशकों से असम में अस्थिरता है। बेशक इसकी जड़ों में असम है, पर यह समस्या
पूरे देश को परेशान करेगी। ब्रिटिश
ईस्ट इंडिया कम्पनी के दौर में चाय बागान में काम के लिए पूर्वी बंगाल से बड़ी संख्या
में मुसलमान यहाँ आए। मारवाड़ी व्यापारियों के साथ भी काफी बड़ी संख्या में मजदूर
आए, जिनमें बड़ी संख्या मुसलमानों की थी। विभाजन के
समय मुस्लिम लीग की कोशिश थी कि असम को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल किया जाए, पर स्थानीय नेता गोपीनाथ बोरदोलोई के प्रतिरोध के
कारण ऐसा सम्भव नहीं हुआ। बोरदोलोई को सरदार पटेल और महात्मा गांधी का समर्थन
हासिल था।