करीब 14 महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों ने आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा की है। अब देखना होगा कि यह विषय राष्ट्रीय-विमर्श का विषय रहता है नहीं। किसान इसे अपनी विजय मान सकते हैं, पर सरकार को इसे अपनी पराजय नहीं मानना चाहिए। अभी तक कोई भी निर्णायक फैसला नहीं हुआ है, केवल वे तीन कानून वापस हुए हैं, जिन्हें सरकार लाई थी। इन कानूनों की प्रासंगिकता और निरर्थकता को लेकर अब विचार होना चाहिए।
कृषि-सुधार पर विमर्श
अभी इस विषय पर चर्चा नहीं हुई है कि सरकार कानून
लाई ही क्यों थी। क्या भारतीय कृषि
में सुधार की जरूरत है? सुधार
किस प्रकार का हो और कैसे होगा? देश की राजनीतिक व्यवस्था और खासतौर से
लोकलुभावन राजनीति ने कर्जों की माफी, सब्सिडी, मुफ्त बिजली, एमएसपी वगैरह को
कृषि-सुधार मान लिया है। इन सारे प्रश्नों
पर भी विचार की जरूरत है। सरकार ने भी कुछ छोटी-मोटी
कोशिशों के अलावा इस विषय पर ज्यादा विमर्श की कोशिश नहीं की।
इस विमर्श में किसान-संगठनों को शामिल करना
उपयोगी और जरूरी है। यह विमर्श पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ देशभर के
किसानों के साथ देश के सभी क्षेत्रों के किसानों के साथ होना चाहिए। उनके
दीर्घकालीन हितों पर भी विचार होना चाहिए, साथ ही अर्थव्यवस्था के दीर्घकालीन
प्रश्नों पर उन्हें भी विचार करना चाहिए। यह केवल किसानों या केवल खेती का मामला
नहीं है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का मामला है। इसके साथ ग्रामीण-अर्थव्यवस्था
के सवाल जुड़े हैं।
जब हम किसान की बात करते हैं, तब सारे मामले
बड़ी जोत वाले भूस्वामियों तक सिमट जाते हैं। गाँवों में भूस्वामियों की तुलना में
भूमिहीन खेत-मजदूरों का तादाद कई गुना ज्यादा है। उन्हें काम देने के बारे में भी
विचार होना चाहिए।
15 जनवरी को समीक्षा
संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली-हरियाणा के
सिंघु बार्डर पर अहम बैठक के बाद किसान आंदोलन का स्थगित करने का ऐलान किया। इसके
साथ यह भी कहा गया है कि 15 जनवरी को मोर्चा की समीक्षा बैठक होगी। यदि केंद्र सरकार ने बातें नहीं मानीं तो आंदोलन फिर शुरू होगा। ऐसा
इशारा भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की ओर से किया गया
है। गुरनाम सिंह चढूनी ने भी कहा कि हम इस आंदोलन के दौरान सरकार से हुए करार की
समीक्षा करते रहेंगे। यदि सरकार अपनी ओर से किए वादों से पीछे हटती है तो फिर से
आंदोलन शुरू किया जा सकता है। इस आंदोलन ने सरकार को झुकाया है।
दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बार्डर (कुंडली बार्डर) शंभु बार्डर तक जुलूस के रूप में किसान प्रदर्शनकारी जाएंगे। इसके बीच में करनाल में पड़ाव हो सकता है। प्रदर्शनकारियों की वापसी के दौरान हरियाणा के किसान पंजाब जाने वाले किसानों पर जगह-जगह पुष्प वर्षा करेंगे। इसके बाद 13 दिसंबर को किसान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अरदास करेंगे और अपने घरों को चले जाएंगे।