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Monday, April 22, 2024

हिंदी और मध्यम वर्ग का विकास

1853 में जब रेलगाड़ी चली, तब आगरा के साप्‍ताहिक अखबार बुद्धि प्रकाश ने लिखा,हिंदुस्‍तान के निवासियों को प्रकट हो कि एक लोहे की सड़क इस देश में भी बन गई 

अमृतलाल नागर

अमृतलाल नागर का यह लेख 1962 में प्रकाशित हुआ था। इस लेख को मैंने अपने पास कुछ संदर्भों के लिए जमा करके रखा था। ब्लॉग पर लगाने का उद्देश्य यह है कि जिन्होंने इसे नहीं पढ़ा है, वे भी पढ़ लें। इसमें नागर जी ने हिंदी समाचार लेखन की कुछ पुरानी कतरनों को उधृत किया है, जो मुझे रोचक लगीं। हिंदी गद्य के बारे में कुछ लोगों का विचार है कि कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज की खड़ी बोली गद्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है, पर मुझे कुछ ऐसे संदर्भ मिले हैं, जो बताते हैं कि उसके काफी पहले से खड़ी बोली हिंदी गद्य लिखा जाने लगा था। बहरहाल उस विषय पर कभी और, फिलहाल इस लेख को पढ़ें:

समय निकल जाता है, पर बातें रह जाती हैं। वे बातें मानव पुरखों के पुराने अनुभव जीवन के नए-नए मोड़ों पर अक्‍सर बड़े काम की होती हैं। उदाहरण के लिए, भारत देश की समस्त राष्ट्रभाषाओं के इतिहास पर तनिक ध्यान दिया जाए। हमारी प्रायः सभी भाषाएँ किसी न किसी एक राष्ट्रीयता के शासन-तंत्र से बँध कर उसकी भाषा के प्रभाव या आतंक में रही हैं। हजारों वर्ष पहले देववाणी संस्कृत ने ऊपर से नीचे तक, चारों खूँट भारत में अपनी दिग्विजय का झंडा गाड़ा था। फिर अभी हजार साल पहले उसकी बहन फारसी सिंहासन पर आई। फिर कुछ सौ बरसों बाद सात समुंदर पार की अंग्रेजी रानी हमारे घर में अपने नाम के डंके बजवाने लगी। यही नहीं, संस्कृत के साथ कहीं-कहीं समर्थ, जनपदों की बोलियाँ भी दूसरी भाषाओं को अपने रौब में रखती थीं।