हम अपना 72वाँ गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। अगले साल 15 अगस्त को हम 75वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे। हमारे तीन राष्ट्रीय पर्व हैं। स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त, गांधी जयंती 2 अक्तूबर और ‘गणतंत्र दिवस’ 26 जनवरी। वास्तविक अर्थ में जनता का दिन। कैसा महसूस कर रहे हैं आप? जवाब आपके चेहरों पर लिखा है। बेशक यह खुशी का मौका है, पर इस साल हम हर्ष और विषाद के दोराहे पर हैं।
रघुवीर सहाय की
एक कविता की अंतिम पंक्तियाँ हैं, ‘कौन-कौन है वह जन-गण-मन/
अधिनायक वह महाबली/ डरा हुआ मन बेमन जिसका/ बाजा रोज़ बजाता है।’ इस सवाल की गहराई
पर जाने की कोशिश करें। वह जन-गण-मन अधिनायक कौन है, जिसका बाजा हमारा
डरा हुआ मन रोज बजाता है? कुछ ऐसा संयोग पड़ा है कि
इस गणतंत्र दिवस पर दो अंतर्विरोधी घटनाएं एक साथ हो रही हैं।
करीब-करीब एक साल
तक महामारी के दंश से पीड़ित देश ने दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया
है। मृत्यु पर जीवन की विजय। दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सकीय परियोजना। दूसरी ओर गणतंत्र
दिवस के मौके पर नाराज किसान ‘ट्रैक्टर मार्च’ निकालने जा रहे हैं।
महात्मा गांधी ने कहा था, भारत का प्रधानमंत्री एक
किसान होना चाहिए। विडंबना है कि गांधी के देश में किसान आंदोलन की राह पर हैं।
व्यथित देश
हर्ष से ज्यादा गहरा गणतांत्रिक विषाद है। दशकों पहले काका हाथरसी ने लिखा, ‘जन-गण-मन के देवता, अब तो आँखें खोल/ महँगाई से हो गया, जीवन डांवांडोल।’ काका को भी जन-गण-मन के देवता से शिकायत थी। हम अपने गणतंत्र से संतुष्ट नहीं हैं, तो क्यों? कौन है जिम्मेदार इसका? इस गणतंत्र दिवस पर तीन बातें एक साथ सामने हैं। एक, कोविड-19 से मुकाबला, दूसरे, अर्थ-व्यवस्था की वापसी और तीसरे किसान आंदोलन। तीनों परेशान करती हैं और तीनों के भीतर संभावनाएं हैं। इन तीन के अलावा सामाजिक जीवन में घुलता विषाद भी बड़ी समस्या है।