सम्पादकीय पेज खत्म करने के बाद आज के डीएनए में उसके पाठकों की चिट्ठियाँ छपीं हैं। कुछ ने समर्थन किया है और कुछ ने असहमति जताई है। बेशक पाठक पसंद करें तो सब ठीक है, पर क्या अखबार ने सम्पादकीय पेज खत्म करने के पहले पाठकों से पूछा था?
कुछ लोग मानते हैं कि बाज़ार तय करता है कि सही क्या है और गलत क्या है। पर बाज़ार क्या सोचता है इसका पता कैसे लगता है? मुम्बई में बाज़ार का लीडर तो टाइम्स ऑफ इंडिया है। करीब दसेक साल पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के लखनऊ संस्करण में सम्पादकीय पेज खत्म कर दिया गया था। सिर्फ पेज खत्म किया था। सम्पादकीय किसी पेज में छपते थे, मुख्य लेख किसी और पेज में पाठकों के पत्र किसी और पेज में। खैर टाइम्स ने बाद में सम्पादकीय पेज अपनी जगह वापस कर दिया। टाइम्स के सम्पादकीय पेज आज भी श्रेष्ठ है।