पिछले महीने 16 फरवरी को टीवी सम्पादकों के साथ बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, मैं इस बात को खारिज नहीं कर रहा हूँ कि हमें गवर्नेंस में सुधार की ज़रूरत है। उसके पहले गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, बेशक कुछ मामलों में गवर्नेंस में चूक है, बल्कि मर्यादाओं का अभाव है। अभी 3 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हसन अली के मामले में सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, ऐसे उदाहरण हैं जब धारा 144 तक के मामूली उल्लंघन में व्यक्ति को गोली मार दी गई, वहीं कानून के साथ इतने बड़े खिलवाड़ के बावजूद आप आँखें मूँदे बैठे हैं। उसी रोज़ मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने चीफ विजिलेंस कमिश्नर के पद पर पीजे थॉमस की नियुक्ति को रद्द करते हुए कि यह राष्ट्रीय निष्ठा की संस्था है। इसके साथ घटिया खेल मत खेलिए।
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Sunday, March 13, 2011
Monday, November 15, 2010
करप्शन कोश
मेरे मन में विचार आया है कि एक करप्शन कोश बनाया जाय। यह सिर्फ विचार ही है, पर इसे मूर्त रूप दिया जाय तो पठनीय सामग्री एकत्र की जा सकती है। इससे हमें कुछ जानकारियों को एक जगह लाने और विश्लेषण करने का मौका मिलेगा। करप्शन कितने प्रकार के हैं। सरकारी और अ-सरकारी करप्शन में क्या भेद है। करप्शन को रोकने के लिए समाज ने क्या किया। प्रतिफल क्या रहा। सामाजिक विकास के साथ करप्शन बढ़ा है या कम हुआ है। इस तरह के सैकड़ों बिन्दु हो सकते है।
हालांकि मैने बात भारतीय संदर्भ में शुरू की है, पर करप्शन तो वैश्विक अवधारणा है। इसका जन्म कहाँ हुआ। भारत में या कहीं और। क्या यह अनिवार्य है। यानी इससे पल्ला छुड़ाया जा सकता है या नहीं। करप्शन कोश की टाइमलाइन क्या हो। यानी 1947 या ईपू पाँच हजार साल। या पाँच अरब साल। क्या आप मेरी मदद करेंगे।
लगे हाथ मैं आपको ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ताज़ा नतीज़ों से परिचित करादूँ। नीचे एक सूची है जिसमें खास-खास देशों के नाम है। जितना बड़ा नम्बर उतना ज्यादा करप्शन। पर क्या वास्तव में यह सूची ठीक बनी होगी।
बहरहाल विचार कीजिए और मेरी मदद कीजिए। कुछ ग्रैफिक भी साथ में रख दिए हैं। यह बताने के लिए कि यह समस्या सर्व-व्यापी है।
हालांकि मैने बात भारतीय संदर्भ में शुरू की है, पर करप्शन तो वैश्विक अवधारणा है। इसका जन्म कहाँ हुआ। भारत में या कहीं और। क्या यह अनिवार्य है। यानी इससे पल्ला छुड़ाया जा सकता है या नहीं। करप्शन कोश की टाइमलाइन क्या हो। यानी 1947 या ईपू पाँच हजार साल। या पाँच अरब साल। क्या आप मेरी मदद करेंगे।
लगे हाथ मैं आपको ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ताज़ा नतीज़ों से परिचित करादूँ। नीचे एक सूची है जिसमें खास-खास देशों के नाम है। जितना बड़ा नम्बर उतना ज्यादा करप्शन। पर क्या वास्तव में यह सूची ठीक बनी होगी।
1 Denmark, New Zealand, Singapore |
15 Germany |
17 Japan |
17 Japan |
19 Qatar |
22 United States |
28 United Arab Emirates |
30 Israel |
50 Saudi Arabia |
66 Rwanda |
67 Italy |
78 China |
87 India |
98 Egypt |
105 Kazakhstan |
127 Syria |
143 Pakistan |
146 Iran |
154 Russia |
175 Iraq |
176 Afghanistan |
178 Somalia |
बहरहाल विचार कीजिए और मेरी मदद कीजिए। कुछ ग्रैफिक भी साथ में रख दिए हैं। यह बताने के लिए कि यह समस्या सर्व-व्यापी है।
Wednesday, July 14, 2010
छोटी बातें और मिलावटी गवर्नेंस
हत्याओं, आगज़नी और इसी तरह के बड़े अपराधों को रोकना बेशक ज़रूरी है, पर इसका मतलब यह नहीं कि छोटी बातों से पीठ फेर ली जाय। सामान्य व्यक्ति को छोटी बातें ज्यादा परेशान करती हैं। सरकारी दफ्तरों में बेवजह की देरी या काम की उपेक्षा का असर कहीं गहरा होता है। हाल में लखनऊ के रेलवे स्टेशन पर एक फर्जी टीटीई पकड़ा गया। कुछ समय पहले गाजियाबाद में फर्जी आईएएस अधिकारी पकड़ा गया। दिल्ली मे नकली सीबीआई अफसर पकड़ा गया। जैसे दूध में मिलावट है वैसे ही सरकार भी मिलावटी लगती है।
लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें
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Saturday, June 12, 2010
भोपाल त्रासदी
त्रासदी के पच्चीस साल बाद हमारे पास सोचने के लिए क्या है?
कि वॉरेन एंडरसन को देश से बाहर किसने जाने दिया?
कि क्या उन्हें हम वापस भारत ला सकते हैं?
कि राजीव गांधी को दिसम्बर 1984 में सलाह देने वाले लोग कौन थे? श्रीमती गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री बने उन्हें एक महीना और कुछ दिन हुए थे।
कि क्या हम सच जानना चाहते हैं या इसे या उसे दोषी ठहराना चाहते हैं?
कि हमारी अदालतों में क्या फैसले होते रहे? जस्टिस अहमदी ने कानून की सीमा के बारे में जो बात कही है, क्या हम उससे इत्तफाक रखते हैं? मसलन प्रातिनिधिक दायित्व(विकेरियस लायबिलिटी) क्या है? इस तरह के हादसों से जुड़े कानून बनाने के बारे में क्या हुआ?
कि हमने ऐसे कारखानों की सुरक्षा के बारे में क्या सोचा?
कि भोपाल में वास्तव में हुआ क्या था?
कि 1982 में भोपाल गैस प्लांट के सेफ्टी ऑडिट में जिन 30 बड़ी खामियों को पकड़ा गया, उनका निवारण क्यों नहीं हुआ?
कि कल को कोई और हादसा ऐसा हुआ तो हम क्या करेंगे?
कि भोपाल में मुआबजे का बँटवारा क्या ठीक ढंग से हो पाया?
ऐसे सैकड़ों सवाल हैं, पर आज सारे सवाल बेमानी है। हम सब आपत्तियाँ ठीक उठाते हैं, पर गलत समय से। 1996 में जस्टिस अहमदी ने फैसला किया। 1984 में वॉरेन एंडरसन बचकर अमेरिका गए। हम क्या कर रहे थे? 1996 में तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आ गया था। फिर यूनियन कार्बाइड के भारतीय प्रतिनिधि तो देश में ही थे। जून 2010 में अदालती फैसला आने के पहले हम कहाँ थे? हमने क्या किया?
आसानी से समझ में आता है कि अमेरिका का दबाव था तो किसी एक व्यक्ति पर नहीं था। और हमारी व्यवस्था किसी एक व्यक्ति के कहने पर चल सकती है तो फिर किसी से शिकायत क्यों? आज भी हर राज्य में मुख्यमंत्री सरकारी अफसरों से वह करा रहे हैं, जो वे चाहते हैं। राजनीति में अपराधियों की खुलेआम आमदरफ्त है। भोपाल में मुआवजे को लेकर कई प्रकार के स्वार्थ समूह बन गए हैं। एक विवाद के बाद दूसरा। शायद भोपाल हादसे की जगह कल-परसों कोई नई बात सामने आएगी तो हम इसे भूल जाएंगे। हमें उत्तेजित होने और शोर मचाने की जगह शांति से और सही मौके पर कार्रवाई करनी चाहिए। हाथी गुज़र जाने के बाद उसके पद चिह्नं पीटने से क्या फायदा?
कि वॉरेन एंडरसन को देश से बाहर किसने जाने दिया?
कि क्या उन्हें हम वापस भारत ला सकते हैं?
कि राजीव गांधी को दिसम्बर 1984 में सलाह देने वाले लोग कौन थे? श्रीमती गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री बने उन्हें एक महीना और कुछ दिन हुए थे।
कि क्या हम सच जानना चाहते हैं या इसे या उसे दोषी ठहराना चाहते हैं?
कि हमारी अदालतों में क्या फैसले होते रहे? जस्टिस अहमदी ने कानून की सीमा के बारे में जो बात कही है, क्या हम उससे इत्तफाक रखते हैं? मसलन प्रातिनिधिक दायित्व(विकेरियस लायबिलिटी) क्या है? इस तरह के हादसों से जुड़े कानून बनाने के बारे में क्या हुआ?
कि हमने ऐसे कारखानों की सुरक्षा के बारे में क्या सोचा?
कि भोपाल में वास्तव में हुआ क्या था?
कि 1982 में भोपाल गैस प्लांट के सेफ्टी ऑडिट में जिन 30 बड़ी खामियों को पकड़ा गया, उनका निवारण क्यों नहीं हुआ?
कि कल को कोई और हादसा ऐसा हुआ तो हम क्या करेंगे?
कि भोपाल में मुआबजे का बँटवारा क्या ठीक ढंग से हो पाया?
ऐसे सैकड़ों सवाल हैं, पर आज सारे सवाल बेमानी है। हम सब आपत्तियाँ ठीक उठाते हैं, पर गलत समय से। 1996 में जस्टिस अहमदी ने फैसला किया। 1984 में वॉरेन एंडरसन बचकर अमेरिका गए। हम क्या कर रहे थे? 1996 में तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आ गया था। फिर यूनियन कार्बाइड के भारतीय प्रतिनिधि तो देश में ही थे। जून 2010 में अदालती फैसला आने के पहले हम कहाँ थे? हमने क्या किया?
आसानी से समझ में आता है कि अमेरिका का दबाव था तो किसी एक व्यक्ति पर नहीं था। और हमारी व्यवस्था किसी एक व्यक्ति के कहने पर चल सकती है तो फिर किसी से शिकायत क्यों? आज भी हर राज्य में मुख्यमंत्री सरकारी अफसरों से वह करा रहे हैं, जो वे चाहते हैं। राजनीति में अपराधियों की खुलेआम आमदरफ्त है। भोपाल में मुआवजे को लेकर कई प्रकार के स्वार्थ समूह बन गए हैं। एक विवाद के बाद दूसरा। शायद भोपाल हादसे की जगह कल-परसों कोई नई बात सामने आएगी तो हम इसे भूल जाएंगे। हमें उत्तेजित होने और शोर मचाने की जगह शांति से और सही मौके पर कार्रवाई करनी चाहिए। हाथी गुज़र जाने के बाद उसके पद चिह्नं पीटने से क्या फायदा?
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