तीन कृषि-कानूनों की वापसी का विधेयक दोनों सदनों से पारित हो चुका है, लेकिन किसान क़ानूनों की वापसी के साथ-साथ, लगातार एक मांग करते आए हैं कि उन्हें फसलों पर एमएसपी की गारंटी दी जाए। उधर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने फसल विविधीकरण, शून्य-बजट खेती, और एमएसपी प्रणाली को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक समिति गठित करने की घोषणा की है। कमेटी में किसान संगठनों के प्रतिनिधि भी होंगे। एमएसपी व्यवस्था को पुष्ट और व्यावहारिक बनाना है, तो इसमें किसान संगठनों की भूमिका भी है। उनकी जिम्मेदारी केवल आंदोलन चलाने तक सीमित नहीं है।
क्या किसान मानेंगे?
शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में तय
किया गया कि अभी हमारे कुछ मसले बाकी हैं। सरकार के साथ बात करने के लिए किसानों
की पाँच-सदस्यीय समिति बनाई गई है। अब 7 दिसंबर को एक और बैठक होगी, जिसमें आंदोलन के बारे में फैसला किया जाएगा। मोर्चा ने 21 नवंबर को
छह मांगों को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। सरकार संसद में एमएसपी गारंटी
कानून बनाने पर प्रतिबद्धता बताए। कमेटी गठित कर इसकी ड्राफ्टिंग क्लियर करे और
समय सीमा तय करे। किसानों पर दर्ज मुकदमे रद्द करे, आंदोलन
के शहीदों के आश्रितों को मुआवजा और उनका पुनर्वास, शहीद
स्मारक बनाने को जगह दे। किसानों का कहना है कि सरकार ने इस पत्र का जवाब नहीं
दिया है।
कानूनी गारंटी
इनमें सबसे महत्वपूर्ण माँग है एमएसपी गारंटी
कानून। सरकार ने एमएसपी पर कमेटी बनाने की घोषणा तो की है, पर
क्या वह इसकी गारंटी देने वाला कानून बनाएगी या बना पाएगी? भारत में किसानों को उनकी उपज का ठीक
मूल्य दिलाने और बाजार में कीमतों को गिरने से रोकने के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन
मूल्य (एमएसपी) की घोषणा करती है। कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों पर सरकार
फसल बोने के पहले कुछ कृषि उत्पादों पर समर्थन मूल्य की घोषणा करती है। खासतौर से
जब फसल बेहतर हो तब समर्थन मूल्य की जरूरत होती है, क्योंकि
ऐसे में कीमतें गिरने का अंदेशा होता है।
कितनी फसलें
इस समय 23 फसलों की एमएसपी केंद्र-सरकार घोषित करती है। इनमें सात अन्न (धान, गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ), पाँच दलहन (चना, तूर या अरहर, मूँग, उरद और मसूर), सात तिलहन (रेपसीड-सरसों, मूँगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम (सैफ्लावर) और नाइजरसीड) और नकदी (कॉमर्शियल) फसलें गन्ना, कपास, नारियल और जूट शामिल हैं। सिद्धांततः एमएसपी का मतलब है लागत पर कम से कम पचास फीसदी का लाभ, पर व्यावहारिक रूप से ऐसा होता नहीं। फसल के समय पर किसानों से एमएसपी से कम कीमत मिलती है। चूंकि एमएसपी को कानूनी गारंटी नहीं है, इसलिए वे इस कीमत पर अड़ नहीं सकते। किसान चाहते हैं कि उन्हें यह कीमत दिलाने की कानूनन गारंटी मिले।