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Sunday, December 5, 2021

एमएसपी-गारंटी से जुड़े सवाल


तीन कृषि-कानूनों की वापसी का विधेयक दोनों सदनों से पारित हो चुका है, लेकिन किसान क़ानूनों की वापसी के साथ-साथ, लगातार एक मांग करते आए हैं कि उन्हें फसलों पर एमएसपी की गारंटी दी जाए। उधर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने फसल विविधीकरण, शून्य-बजट खेती, और एमएसपी प्रणाली को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक समिति गठित करने की घोषणा की है। कमेटी में किसान संगठनों के प्रतिनिधि भी होंगे। एमएसपी व्यवस्था को पुष्ट और व्यावहारिक बनाना है, तो इसमें किसान संगठनों की भूमिका भी है। उनकी जिम्मेदारी केवल आंदोलन चलाने तक सीमित नहीं है।

क्या किसान मानेंगे?

शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में तय किया गया कि अभी हमारे कुछ मसले बाकी हैं। सरकार के साथ बात करने के लिए किसानों की पाँच-सदस्यीय समिति बनाई गई है। अब 7 दिसंबर को एक और बैठक होगी, जिसमें आंदोलन के बारे में फैसला किया जाएगा। मोर्चा ने 21 नवंबर को छह मांगों को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। सरकार संसद में एमएसपी गारंटी कानून बनाने पर प्रतिबद्धता बताए। कमेटी गठित कर इसकी ड्राफ्टिंग क्लियर करे और समय सीमा तय करे। किसानों पर दर्ज मुकदमे रद्द करे, आंदोलन के शहीदों के आश्रितों को मुआवजा और उनका पुनर्वास, शहीद स्मारक बनाने को जगह दे। किसानों का कहना है कि सरकार ने इस पत्र का जवाब नहीं दिया है।

कानूनी गारंटी

इनमें सबसे महत्वपूर्ण माँग है एमएसपी गारंटी कानून। सरकार ने एमएसपी पर कमेटी बनाने की घोषणा तो की है, पर क्या वह इसकी गारंटी देने वाला कानून बनाएगी या बना पाएगीभारत में किसानों को उनकी उपज का ठीक मूल्य दिलाने और बाजार में कीमतों को गिरने से रोकने के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा करती है। कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों पर सरकार फसल बोने के पहले कुछ कृषि उत्पादों पर समर्थन मूल्य की घोषणा करती है। खासतौर से जब फसल बेहतर हो तब समर्थन मूल्य की जरूरत होती है, क्योंकि ऐसे में कीमतें गिरने का अंदेशा होता है।

कितनी फसलें

इस समय 23 फसलों की एमएसपी केंद्र-सरकार घोषित करती है। इनमें सात अन्न (धान, गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ), पाँच दलहन (चना, तूर या अरहर, मूँग, उरद और मसूर), सात तिलहन (रेपसीड-सरसों, मूँगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम (सैफ्लावर) और नाइजरसीड) और नकदी (कॉमर्शियल) फसलें गन्ना, कपास, नारियल और जूट शामिल हैं। सिद्धांततः एमएसपी का मतलब है लागत पर कम से कम पचास फीसदी का लाभ, पर व्यावहारिक रूप से ऐसा होता नहीं। फसल के समय पर किसानों से एमएसपी से कम कीमत मिलती है। चूंकि एमएसपी को कानूनी गारंटी नहीं है, इसलिए वे इस कीमत पर अड़ नहीं सकते। किसान चाहते हैं कि उन्हें यह कीमत दिलाने की कानूनन गारंटी मिले।

Monday, November 22, 2021

आंदोलन फिर से जागेंगे, राजनीतिक अंतर्विरोध अब और मुखर होंगे

आंदोलन को जारी रखने की घोषणा करते हुए बलवीर सिंह राजेवाल

देश में चल रहे किसान आंदोलन, उसकी राजनीति और अंतर्विरोध अब ज्यादा स्पष्ट होने का समय आ गया है। तीन कानूनों की वापसी इसका एक पहलू था। इसके साथ किसानों की दूसरी माँगें भी जुड़ी हैं। ये माँगे फिलहाल पंजाब और हरियाणा के किसानों की नजर आती हैं, क्योंकि इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप देने की माँग भी शामिल है।

कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा के बाद नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर भी आंदोलन फिर से शुरू करने की सुगबुगाहट है। अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिंदू' के अनुसार असम में सीएए के ख़िलाफ़ कई समूह फिर से जागे हैं और 12 दिसंबर को प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं।

उधर केंद्रीय कैबिनेट 24 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मंजूरी पर विचार करेगी। इसके बाद कानूनों को वापस लेने वाले बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाएंगे। संसद का सत्र 29 नवंबर से शुरू होने वाला है।

आंदोलन जारी रहेगा

संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) का आंदोलन फिलहाल जारी रहेगा। रविवार को यह फैसला मोर्चे की बैठक में लिया गया। भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के अध्यक्ष बलवीर सिंह राजेवाल और जतिंदर सिंह विर्क ने बताया- 22 नवंबर को लखनऊ में महापंचायत बुलाई गई है। 26 नवंबर को काफी किसान आ रहे हैं। 27 को आंदोलन के अगले कदम के बारे में विचार किया जाएगा।

इसके पहले संयुक्त किसान मोर्चा की नौ सदस्यीय कोऑर्डिनेशन कमेटी की शनिवार बैठक हुई, जिसमें मोर्चा के शीर्ष नेता बलवीर सिंह राजेवाल, डॉ. दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्काजी), युद्धवीर सिंह आदि उपस्थित थे।

कुछ और माँगें

राजेवाल के मुताबिक, प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखा है, जिसमें कुछ मांगें की जाएंगी। ये हैं- एमएसपी-गारंटी बिल के लिए कमेटी बनाई जाए, बिजली के शेष बिल को रद्द किया जाए और पराली जलाने के लिए लाए गए कानून को रद्द किया जाए। पत्र में अजय मिश्र टेनी को लखीमपुर मामले का मास्टरमाइंड मानते हुए कहा गया है कि उन्हें पद से हटाकर गिरफ्तार किया जाए।

Sunday, November 29, 2020

लाठी से नहीं, प्रेम से बात करें

हरियाणा और दिल्ली में पुलिस के साथ हुए दो दिन के संघर्ष के बाद आखिरकार शुक्रवार को केंद्र सरकार ने किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश करने और अपने आंदोलन-प्रदर्शन को जारी रखने की अनुमति दे दी। पर यह अनुमति बुराड़ी से आंदोलन चलाने की है। प्रदर्शनकारी बुराड़ी के बजाय रामलीला मैदान तक जाना चाहते हैं, जहाँ शहर की मुख्यधारा है। इस बीच गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि आप बुराड़ी चले जाएं, हम आपसे फौरन बात करने को तैयार हैं। इससे कुछ देर के लिए टकराव टल गया है, पर समस्या का समाधान नहीं निकला है। इस पेशकश पर किसानों की प्रतिक्रिया अभी मिली नहीं है। शायद आज आए। 

यह कहना ठीक नहीं होगा कि बीजेपी को राजनीति की सही समझ नहीं है, पर यह बात भी जाहिर हो रही है कि बीजेपी की राजनीति पंजाब में सफल नहीं है। गौर से देखें तो पाएंगे कि सन 2014 और 2019 में और बीच में हुए पंजाब के विधानसभा चुनावों में उत्तर भारत के दूसरे राज्यों के विपरीत पंजाब में मोदी की लहर नहीं चली। पहली नजर में लगता है कि केंद्र सरकार ने बहुत गलत मोड़ पर, गलत समय पर और गलत तरीके से किसान आंदोलन से निपटने की कोशिश की है। इसे जल्द से जल्द दुरुस्त किया जाना चाहिए। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि दिल्ली में शांतिपूर्ण विरोध की अनुमति देने के केंद्र के कदम से यह संकेत मिलता है कि सरकार हमारी मांगें मानने के लिए भी तैयार होगी। किसान अब भी उद्वेलित हैं, पर कम से कम कहा जा सकता है कि उनकी भावनाओं का सम्मान किया गया।