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Wednesday, March 29, 2023

पश्चिम एशिया में ‘डी-अमेरिकनाइज़ेशन?’

KAL's Cartoon इकोनॉमिस्ट से साभार

देस-परदेश

बुधवार 22 मार्च को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस की अपनी यात्रा का समापन किया और अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का मुकाबला करने के लिए एक नई रणनीति की शुरुआत की. उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ ‘समान, खुली और समावेशी सुरक्षा-प्रणाली’ बनाने का संकल्प करते हुए अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ नए मोर्चे की शुरुआत की है.

गत 10 मार्च को सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता कराते हुए चीन ने दो संदेश दिए हैं. एक, चीन महत्वपूर्ण और जिम्मेदार शक्ति है और दूसरे यह कि वह अमेरिका के दबाव में आने वाला नहीं है. चीन ने पश्चिम एशिया में हस्तक्षेप करके अपने आपको शांति-स्थापित करने वाले देश के रूप में स्थापित किया है. साथ ही अमेरिका की छवि झगड़े कराने वाले देश के रूप में बनी है. इसे पश्चिम एशिया में डी-अमेरिकनाइज़ेशनकी शुरुआत कहा जा रहा है.

15 अगस्त, 2021 को जब तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा किया था, तब भी ऐसा ही कहा गया था. जब तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पश्चिमी फ्री-मार्केट की अवधारणा से जुड़ी है और संरा और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं कारगर हैं, तब तक यह मान लेना आसान नहीं है कि अमेरिका का वर्चस्व खत्म हो जाएगा. अलबत्ता पश्चिम एशिया के घटनाक्रम ने सोचने-विचारने के लिए कुछ नए तथ्य उपलब्ध कराए हैं.

ईरान का प्रतिरोध

अमेरिका के मुख्य प्रतिस्पर्धी के रूप में चीन का नाम लिया जा रहा है, पर हमें ईरान के प्रतिरोध पर भी ध्यान देना चाहिए. ईरान ने चार बातें साफ की हैं. एक, अरब देशों के साथ रिश्तों को सुधारने में उसे दिक्कत नहीं हैं. वह चीन पर भरोसा करता है. उसे अमेरिका पर भरोसा कत्तई नहीं है. चौथी, यूक्रेन युद्ध में वह रूस का समर्थक है. इसके प्रमाण हैं ईरान में बने सैकड़ों कामिकाज़े ड्रोन, जिनके अवशेष यूक्रेन के नागरिक इलाकों में मिले हैं.

इन सब बातों के अलावा वह अपने नाभिकीय कार्यक्रम को अमेरिका-समर्थित विश्व-व्यवस्था के हवाले करने को तैयार नहीं है. अब स्थिति यह है कि ईरान में हिजाब को लेकर चल रहे आंदोलन के खिलाफ सरकारी कार्रवाई छठे महीने में प्रवेश कर गई है. दूसरी तरफ मार्च के तीसरे हफ्ते में ईरान, चीन और रूस की नौसेनाओं ने ओमान की खाड़ी में संयुक्त युद्धाभ्यास किया है, जिससे आप अपने निष्कर्ष खुद निकाल सकते हैं.