Tuesday, October 31, 2023

‘भाषा के बहाने’ हिंदी की बातें

करीब आठ महीने पहले सुरेश पंत की पुस्तक शब्दों के साथ-साथ का आगमन हुआ था, जिसने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। उस किताब क दूसरे,  तीसरे और चौथे भाग की जरूरत बनी रहेगी। शब्द-सागर की गहराई अथाह है और उसमें गोता लगाने का आनंद अलग है। शब्दों के करीब जाने पर तमाम रोचक बातें जानकारी में आती हैं। उन्होंने अपनी नवीनतम पुस्तक भाषा के बहाने में शब्दों से कुछ आगे बढ़कर भाषा से जुड़े दूसरे मसलों को भी उठाया है। इस अर्थ में यह किताब पाठक को शब्दों के दायरे से बाहर निकाल कर भाषा-संस्कृति के व्यापक दायरे में ले जाती है।

संस्कृति, सभ्यता और समाज के विकास की धुरी भाषा है। हालांकि जानवरों और पक्षियों की भाषाएं भी होती हैं, पर मनुष्यों की भाषाओं की बराबरी कोई दूसरा प्राकृतिक संवाद-तंत्र नहीं कर सकता। अमेरिकी भाषा-शास्त्री रे जैकेनडॉफ (Ray Jackendoff) के अनुसार हमारी भाषाएं अनगिनत विषयों, जैसे मौसम, युद्ध, अतीत, भविष्य, गणित, विज्ञान, गप्प वगैरह, से जुड़ी हैं। इसका सूचना और ज्ञान के प्रसार, संग्रह, मंतव्यों के प्रकटीकरण, प्रश्न करने और आदेश देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

इंसानी भाषाओं में चंद दर्जन वाक् ध्वनियों से लाखों शब्द बनते हैं। इन शब्दों की मदद से वाक्यांश और वाक्य गढ़े जाते हैं। विलक्षण बात यह है कि सामान्य बच्चा भी बातें सुनकर भाषा के समूचे तंत्र को सीख जाता है। भाषा या संवाद सांस्कृतिक और राजनीतिक-पृष्ठभूमि को भी व्यक्त करते हैं। दूसरी तरफ जानवरों के संवाद तंत्र में मात्र कुछ दर्जन अलग-अलग ध्वनियां होती हैं। इन ध्वनियों को वे केवल भोजन, धमकी, खतरा या समझौते जैसे फौरी मुद्दों को प्रकट करने के लिए कर सकते हैं। इस लिहाज से मनुष्यों की भाषा की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक-भूमिकाओं का आकाश बहुत विस्तृत है।  

इस पुस्तक में पंत जी ने भाषा के बहाने कई प्रकार के विषयों को उठाया है। सभी विषय भाषा से सीधे नहीं भी जुड़े हैं, तो उन्हें जोड़ा जा सकता है। उन्होंने किताब की प्रस्तावना में लिखा है, भाषा के बहाने उठाए गए विषयों का काल-क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत है। समय-समय पर लिखे गए कुछ लेख भी इस पुस्तक में स्थान पा गए हैं।…हिंदी के बहुत से रोचक पहलुओं पर भी कलम चली है-गाली से लेकर आशीर्वाद तक, ठग से ठुल्ला तक, शिक्षण से पत्रकारिता तक, किसान से राष्ट्रपति तक, गू से गुएँन तक, केदारनाथ से एवरेस्ट तक अनेक विषयों पर चर्चाएं इस पुस्तक में मिल जाएँगी। कुछ कहावतें, कुछ विश्वास, कुछ मसले, कुछ चिंताएँ और कुछ दिशाएँ। इस लिहाज से कुछ अस्त-व्यस्त और बिखरी हुई सामग्री भी है, जिसे सधे हाथों से तरतीब दी गई है। पुस्तक में 80 छोटे-छोटे अध्यायों के अलावा दो परिशिष्ट हैं। एक में कुछ परिभाषाएं हैं और दूसरे में संदर्भ पुस्तकों की सूची।

Monday, October 30, 2023

दिल्ली ‘शराब-नीति कांड’ से जुड़ी गिरफ्तारियों की नीति और राजनीति


दिल्ली के शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी मनीष सिसोदिया की जमानत पर रिहाई को स्वीकार नहीं किया है। इस मामले की वजह से आम आदमी पार्टी को भविष्य के चुनावों में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। अदालत ने कहा, हम बेल के आवेदन को खारिज कर रहे हैं, लेकिन स्पष्ट करते हैं कि अभियोजन पक्ष ने आश्वासन दिया है कि मुकदमा छह से आठ महीने के भीतर समाप्त हो जाएगा। तीन महीने के भीतर यदि केस लापरवाही से या धीमी गति से आगे बढ़ा, तो सिसोदिया जमानत के लिए आवेदन करने के हकदार होंगे।

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी के पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने दोनों याचिकाओं पर 17 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने 17 अक्टूबर को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कहा था कि अगर दिल्ली आबकारी नीति में बदलाव के लिए कथित तौर पर दी गई रिश्वत ‘अपराध से आय' का हिस्सा नहीं है, तो संघीय एजेंसी के लिए सिसोदिया के खिलाफ धन शोधन का आरोप साबित करना कठिन होगा।

सीबीआई ने आबकारी नीति 'घोटाले' में कथित भूमिका को लेकर सिसोदिया को 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था। वे तब से हिरासत में हैं। इसके बाद सिसोदिया ने 28 फरवरी को दिल्ली मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। ईडी ने सीबीआई की प्राथमिकी पर मनी लाउंडरिंग (धन शोधन) मामले में 9 मार्च को तिहाड़ जेल में पूछताछ के बाद सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया था।

Wednesday, October 25, 2023

नवाज़ शरीफ़ की वापसी से पैदा हुईं सियासी-लहरें

मंगलवार 24 अक्तूबर को इस्लामाबाद हाईकोर्ट में पेशी के लिए जाते नवाज़ शरीफ़

पाकिस्‍तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की स्वदेश-वापसी, स्वागत और उनके बयानों से लगता है कि कानूनी दाँव-पेच में फँसे होने के बावजूद देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के इरादे से वे वापस आए हैं और उससे जुड़े हर तरह के जोखिमों का सामना करने के लिए वे तैयार हैं. उन्होंने वापस लौटकर कम से कम उन लोगों को ग़लत साबित किया है, जो कहते थे कि वे लौटकर नहीं आएंगे, राजनीतिक दृष्टि से वे हाशिए पर जा चुके हैं और अप्रासंगिक हो चुके हैं.

अदालतों ने उन्हें अपराधी और भगोड़ा घोषित कर रखा है. अब पहिया उल्टा घूमेगा या नहीं, इसका इंतज़ार करना होगा. उनकी वापसी के तीसरे दिन ही लग रहा है कि कानूनी बाधाएं ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगी हैं. बहुत कुछ उनके और सेना के रिश्तों पर और अदालतों के रुख पर भी निर्भर करेगा. अतीत में वे कई बार कह चुके हैं कि उन्हें बेदखल करने में सेना का हाथ था.

अलबत्ता उनके साथ मुर्तज़ा भुट्टो जैसा व्यवहार नहीं हुआ, जो बेनजीर के प्रधानमंत्रित्व में 3 नवंबर, 1993 में कराची हवाई अड्डे पर उतरे थे और सीधे जेल भेजे गए थे. इसके बाद बेनज़ीर की सरकार बर्खास्त कर दी गई थी और तीन साल बाद मुर्तज़ा भुट्टो मुठभेड़ में मारे गए थे.

नए सपने

नवाज़ शरीफ़ का पहला भाषण आने वाले वक्त में उनकी राजनीति का प्रस्थान बिंदु साबित होगा. वे पाकिस्तान को नए सपने देना चाहते हैं, पर कहना मुश्किल है कि वे कितने सफल होंगे. भारत की दृष्टि से संबंधों को सुधारने की बात कहकर भी उन्होंने अपने महत्व को रेखांकित किया है.

Sunday, October 22, 2023

दक्षिण के गोलू और उत्तर भारत के टेसू


तमिलनाडु, आंध्र और कर्नाटक में घरों में सीढ़ीनुमा स्टैंड पर गुड्डे-गुड़ियों जैसी छोटी-छोटी प्रतिमाएं सजाई जाती हैं। इन प्रतिमाओं में देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं के पात्रों, दशावतार के अलावा सामान्य स्त्री-पुरुषों, बच्चों, पालतू जानवरों और वन्य-प्राणियों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ सजाई जाती हैं। इसके साथ ही देवी दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती की गुड़ियों के साथ मारापाची बोम्मई नामक लकड़ी की गुड़िया इस परंपरा का खास हिस्सा होती हैं। देश के संतों और नायकों की मूर्तियां स्थापित होती हैं। ऐसी उम्मीद की जाती है कि हर साल एक नई गुड़िया इसमें शामिल की जाएगी। यह संकलन पीढ़ी-दर-पीढ़ी समृद्ध होता जाता है। इस मौके पर लोग एक-दूसरे के घर में गोलू देखने जाते हैं। महिलाएं गीत गाती हैं। तमिल में गोलू या कोलू का मतलब है दिव्य-उपस्थिति, तेलुगु में बोम्माला कोलुवु का अर्थ है खिलौनों का दरबार, कन्नड़ में बॉम्बे हब्बा का अर्थ है गुड़ियों का महोत्सव। अब इनमें नए-नए विषय जुड़ते जा रहे हैं। जैसे कि चंद्रयान, फिल्म अभिनेता पुनीत राजकुमार और सुपरस्टार रजनीकांत, कार्टून चरित्र डोरेमोन और नोबिता वगैरह-वगैरह।

उत्तर के टेसू

उत्तर भारत में और खासतौर से ब्रज के इलाके में शारदीय नवरात्र के दौरान शाम को टेसू और झाँझी गीत हवा में गूँजते हैं। लड़के टेसू लेकर घर-घर जाते हैं। बांस के स्टैण्ड पर मिट्टी की तीन पुतलियां फिट की जाती हैं। टेसू राजा, दासी और चौकीदार या टेसू राजा और दो दासियां। बीच में मोमबत्ती या दिया रखा जाता है। जनश्रुति के अनुसार टेसू प्राचीन वीर है। पूर्णिमा के दिन टेसू तथा झाँझी का विवाह भी रचाया जाता है। सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर अब तक भारत में उत्तर से दक्षिण तक मिट्टी और लकड़ी के खिलौने और बर्तन जीवन और संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग के रूप में दिखाई पड़ते हैं। इनके समानांतर कारोबार चलता है, जो आमतौर पर गाँव और खेती से जुड़ा है। इसके पहले कि ये कलाएं पूरी तरह खत्म हो जाएं हमें उनके ने संरक्षकों को खोजना चाहे। देश और विदेश में मिट्टी के इन खिलौनों को संरक्षण देने वाले काफी लोग हैं। जरूरत है उन तक माल पहुँचाने की।

सांस्कृतिक-विविधता में एकता के वाहक हमारे पर्व और त्योहार

भारत की विविधता में एकता को देखना है, तो उसके पर्वों और त्योहारों पर नज़र डालें। नवरात्र की शुरूआत के साथ ही चौमासे का सन्नाटा टूट गया है। माहौल में हल्की सी ठंड आ गई है और उसके साथ बढ़ रही है मन की उमंग। बाजारों में रौनक वापस आ गई है। घरों में साज-सफाई शुरू हो गई है। नई खरीदारी शुरू हो गई है। वर्षा ऋतु की समाप्ति के साथ भारतीय समाज सबसे पहले अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए पितृ-पक्ष मनाता है। उसके बाद पूरे देश में त्योहारों और पर्वों का सिलसिला शुरू होता है, जो अगली वर्षा ऋतु आने के पहले तक चलता है। जनवरी-फरवरी में वसंत पंचमी, फिर होली,  नव-संवत्सर, अप्रेल में वासंतिक-नवरात्र, रामनवमी, गंगा दशहरा, वर्षा-ऋतु के दौरान रक्षा-बंधन, जन्‍माष्‍टमी, शिव-पूजन, ऋषि पंचमी, हरतालिका तीज, फिर शारदीय नवरात्र, करवाचौथ, दशहरा और दीपावली।

हमारा हर दिन पर्व है। यह खास तरह की जीवन-शैली है, जो परंपरागत भारतीय-संस्कृति की देन है। जैसा उत्सव-धर्मी भारत है, वैसा शायद ही दूसरा देश होगा। इस जीवन-चक्र के साथ भारत का सांस्कृतिक-वैभव तो जुड़ा ही है, साथ ही अर्थव्यवस्था और करोड़ों लोगों की आजीविका भी इसके साथ जुड़ी है। आधुनिक जीवन और शहरीकरण के कारण इसके स्वरूप में बदलाव आया है, पर मूल-भावना अपनी जगह है। यदि आप भारत और भारतीयता की परिभाषा समझना चाहते हैं, तो इस बात को समझना होगा कि किस तरह से इन पर्वों और त्योहारों के इर्द-गिर्द हमारी राष्ट्रीय-एकता काम करती है।

अद्भुत एकता

कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक कुछ खास तिथियों पर अलग-अलग रूप में मनाए जाने वाले पर्वों के साथ एक खास तरह की अद्भुत एकता काम करती है। चाहें वह नव संवत्सर, पोइला बैसाख, पोंगल, ओणम, होली हो या दीपावली और छठ। इस एकता की झलक आपको ईद, मुहर्रम और क्रिसमस के मौके पर भी दिखाई पड़ेगी। दीपावली के दौरान पाँच दिनों के पर्व मनाए जाते हैं। नवरात्र मनाने का सबका तरीका अलग-अलग है, पर भावना एक है। गुजरात में यह गरबा का पर्व है और बंगाल में दुर्गा पूजा का। उत्तर भारत में नवरात्र व्रत और रामलीलाओं का यह समय है। देवोत्थान एकादशी के साथ तमाम शुभ कार्य शुरू हो गए हैं।  

Saturday, October 21, 2023

समानव अंतरिक्ष-यात्रा की दिशा में पहला कदम


चंद्रयान-3 आदित्य एल-1 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मिशन-गगनयान के टेस्ट वेहिकल की सफल लॉन्चिंग के साथ अब समानव-अंतरिक्ष यात्रा की दिशा में पहला कदम रख दिया है। भविष्य की समानव उड़ानों के मद्देनज़र यह मानवरहित परीक्षण-उड़ान बड़ी खबर है। इसरो ने टेस्ट वेहिकल एबॉर्ट मिशन-1 (टीवी-डी1) के जरिए पहले क्रू मॉड्यूल का परीक्षण किया है।

गत 21 अक्तूबर को इस मिशन की टेस्ट उड़ान टीवी-डी1 को सुबह आठ बजे लॉन्च किया जाना था, लेकिन अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए इसका लॉन्च टाइम आगे बढ़ा दिया गया। खराब मौसम की वजह से इसरो ने मिशन को 10 बजे लॉन्च किया। अंतरिक्ष में भेजने के बाद इसे सफलतापूर्वक बंगाल की खाड़ी में उतार लिया गया। टेस्ट फ़्लाइट की सफलता की घोषणा के साथ ही इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने बधाई दी।

टीवी डी1 टेस्ट फ़्लाइट के डायरेक्टर एस शिवकुमार ने कहा, यह तीन प्रयोगों का गुलदस्ता है। हमने तीन सिस्टम की विशेषताओं को देखा है। इनमें टेस्ट वेहिकल, क्रू एस्केप सिस्टम और क्रू मॉड्यूल का पहले ही प्रयास में सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है। 2025 में प्रस्तावित समानव-प्रक्षेपण के पहले इसरो करीब 20 प्रकार के परीक्षण करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  2040 तक चंद्रमा पर भी भारत के अंतरिक्ष-यात्री को पहुँचाने की घोषणा कर चुके हैं। 

Wednesday, October 18, 2023

दोतरफा समझदारी से हो सकता है फलस्तीन समस्या का समाधान


आसार इस बात के हैं कि गत 7 अक्तूबर से गज़ा पट्टी में शुरू हुई लड़ाई का दूसरा मोर्चा लेबनॉन में भी खुल सकता है. इसराइली सेना और हिज़्बुल्ला के बीच झड़पें चल भी रही हैं. लड़ाई थम भी जाए, पर समस्या बनी रहेगी. पिछली एक सदी या उससे कुछ ज्यादा समय से फ़लस्तीन की समस्या इतिहास की सबसे जटिल समस्याओं में से एक के रूप में उभर कर आई है.

ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया इसके स्थायी समाधान के बारे में विचार करे. पहले राष्ट्र संघ, फिर संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के हस्तक्षेपों के बावजूद समस्या सुलझी नहीं है. जब भी समाधान का रास्ता दिखाई पड़ता है, कहीं न कहीं से व्यवधान पैदा हो जाता है.

समाधान क्या है?

अमेरिकी-पहल पर अरब देशों और इसराइल के बीच जिस समझौते की बातें इन दिनों हो रही हैं, क्या उसमें फलस्तीन के समाधान की भी कोई व्यवस्था है? ऐसा संभव नहीं है कि फलस्तीन की अनदेखी करके ऐसा कोई समझौता हो जाए. फिलहाल समझौते की कोशिश को धक्का लगा है, फिर भी सवाल है कि फलस्तीन की समस्या का समाधान क्या संभव है? संभव है, तो उस समाधान की दिशा क्या होगी?

दो तरह के समाधान संभव हैं. एक, गज़ा, इसराइल और पश्चिमी किनारे को मिलाकर एक ऐसा देश (वन स्टेट सॉल्यूशन) बने जिसमें फलस्तीनी और यहूदी दोनों मिलकर रहें और दोनों की मिली-जुली सरकार हो. सिद्धांततः यह आदर्श स्थिति है, पर इस समाधान के साथ दर्जनों किंतु-परंतु हैं. किसका शासन होगा, क्या अलग-अलग स्वायत्त इलाके होंगे, यरुसलम का क्या होगा वगैरह.

Friday, October 13, 2023

गठबंधन ‘इंडिया’ की विसंगतियाँ


गठबंधन ‘इंडिया’ ने मुंबई में हुई बैठक के दौरान तीन प्रस्ताव पास किए थे। पहला, सीट बँटवारे की प्रक्रिया जल्द ही पूरी की जाएगी, दूसरा, ‘इंडिया’ के घटक दल जनता के मुद्दों पर देश के अलग-अलग हिस्सों में जनसभाएं करेंगे और तीसरा, इंडिया के सभी घटक दलों का अपना चुनाव अभियान जुड़ेगा भार औरजीतेगा इंडिया की थीम पर होगा। इनमें पहला काम सबसे बड़ा और जरूरी होगा। शेष दो काम किसी न किसी रूप में चल जाएंगे, पर सीटों का बँटवारा सबसे जटिल विषय है। ऐसा लग रहा है कि फ़िलहाल गठबंधन उसे आगे के लिए टाल रहा है।

चार राज्यों में फज़ीहत

पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब और केरल कम से कम चार ऐसे राज्य हैं, जो साफ-साफ इस गठबंधन की किसी भी समय फज़ीहत कर सकते हैं। हाल में तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे ने सनातन धर्म के बारे में टिप्पणी करके कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। इसी वजह से गठबंधन की भोपाल में होने वाली बैठक रद्द कर दी गई। इसका असर मध्य प्रदेश के चुनाव पर पड़ सकता है।

शुरू में लगता था कि नीतीश कुमार इस गठबंधन के समन्वय का काम करेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि उन्होंने अभी तक प्रत्यक्षतः कुछ ऐसा नहीं किया है, जिससे साबित हो कि वे नाराज हैं, पर गठबंधन ने जब टीवी के 14 एंकरों के बहिष्कार की घोषणा की, तो उन्होंने इस बात से अपनी असहमति व्यक्त कर दी। उधर सीपीएम ने गठबंधन की समन्वय समिति में शामिल नहीं होने की घोषणा करके एक और असमंजस पैदा कर दिया है।

2024 की सर्पिल राहें और संभावनाओं की शतरंज

पिछले कुछ समय से टीवी चैनलों पर और सोशल मीडिया में कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 के परिणाम क्या होगे? इन कयासों की बुनियाद राष्ट्रीय स्तर पर बने दो गठबंधनों की हाल की गतिविधियों पर आधारित हैं। दो गठबंधन पहले से मौजूद हैं, पर कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों ने मिलकर इंडिया नाम से राष्ट्रीय गठबंधन बनाया है, जो संगठनात्मक शक्ल ले ही रहा है। इंडिया के प्रायोजकों को लगता है कि भाजपा का लगातार सत्ता पर बने रहना उनके अस्तित्व के लिए खतरा है। 2024 में कुछ नहीं हुआ, तो फिर कुछ नहीं हो पाएगा।

दूसरी तरफ बीजेपी के कर्णधारों को लगता है कि उनके खिलाफ विरोधी दलों का एकताबद्ध होना खतरनाक है। हाल में पंजाब, हिमाचल और कर्नाटक में बीजेपी को आशानुकूल सफलता नहीं मिली। इससे भी उन्हें चिंता है। एंटी इनकंबैंसी का अंदेशा भी है। उन्हें यह भी लगता है कि बीजेपी ने 2019 में ‘पीक’ हासिल कर लिया था। इसके बाद ढलान आएगा। उससे तभी बच सकते हैं, जब नए इलाकों में प्रभाव बढ़े। उनके एजेंडा को जल्द से जल्द लागू करने के लिए इसबार सरकार बननी ही चाहिए। यह एजेंडा एक तरफ हिंदुत्व और दूसरी तरफ भारत के महाशक्ति के रूप में उभरने से जुड़ा है। उन्हें यह भी दिखाई पड़ रहा है कि पार्टी की ताकत इस समय नरेंद्र मोदी हैं, पर उनके बाद क्या?

एनडीए बनाम इंडिया

इन दोनों गतिविधियों में बुनियादी फर्क है। एनडीए, के केंद्र में बीजेपी है। शेष दलों की अहमियत अपेक्षाकृत कम है। इंडिया के केंद्र में कांग्रेस है, पर उसमें परिधि के दलों की अहमियत एनडीए के सहयोगी दलों की तुलना में ज्यादा है। इसमें जेडीयू और तृणमूल जैसी पार्टियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इन दो के अलावा समाजवादी पार्टी, डीएमके, वाममोर्चा और आम आदमी पार्टी जैसे दल हैं, जो इंडिया की रणनीति को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।  इसमें क्षेत्रीय-क्षत्रपों की भूमिका है, जो महत्वपूर्ण हैं, पर जिनके होने से फैसले करने में दिक्कतें भी हैं। 

इसराइल ने 11 लाख लोगों को गज़ा छोड़ने का आदेश दिया


ऐसा लगता है कि इसराइली सेना गज़ा पट्टी में प्रवेश करने वाली है, पर बड़े स्तर पर नरसंहार को रोकने के लिए उसने उत्तरी गज़ा में रहने वाले करीब 11 लाख लोगों को 24 घंटे के भीतर वहाँ से हटने का आदेश जारी किया है। चूंकि संयुक्त राष्ट्र ने नरसंहार का संदेह व्यक्त किया था, संभवतः इसलिए इसराइली सेना ने यह आदेश संयुक्त राष्ट्र संघ को दिया है। इस आदेश का पालन किस तरह संभव होगा, यह देखना है। इस बीच सीरिया से खबर आई है कि गुरुवार को इसराइल ने दमिश्क और उत्तरी शहर अलेप्पो के हवाई अड्डों पर मिसाइलों से हमले किए हैं। ये हमले क्यों किए हैं और वहाँ कितनी नुकसान हुआ है, इसकी ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं है।

बीबीसी के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ने इसराइल को उस आदेश को वापस लेने को कहा है, जिसमें उसने 11 लाख लोगों को उत्तरी से दक्षिणी गज़ा जाने के लिए कहा है। यूएन का कहना है कि अगर ऐसा कोई आदेश दिया गया है तो इसे तुरंत रद्द करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो त्रासदी के हालात और भी भयावह हो जाएंगे।

दरअसल इसराइली सेना के प्रतिनिधियों ने गज़ा पट्टी में यूएन का नेतृत्व कर रहे लोगों को इस आदेश की जानकारी दी थी। लेकिन इसराइल के दूतों ने कहा है कि गज़ा पट्टी खाली करने के आदेश पर यूएन की प्रतिक्रिया 'शर्मनाक' है।  संयुक्त राष्ट्र में इसराइल के दूत ने कहा कि इसराइल गज़ा के लोगों को पहले से सावधान कर रहा था ताकि हमास से युद्ध के दौरान उन लोगों को कम से कम नुकसान पहुंचे, जो बेकसूर हैं।

इसराइल के राजदूत ने कहा, ''पिछले कई साल से संयुक्त राष्ट्र हमास को और अधिक हथियारों से लैस करने की कोशिशों से आंखें मूंदे रहा है। उसने हमास की ओर से और आम नागरिकों और गज़ा पट्टी पर होने वाले हमलों पर भी ध्यान नहीं दिया। लेकिन अब वो इसराइल के साथ खड़ा होने के बजाय उसे नसीहत दे रहा है।''

 

इसराइली सेना ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि गज़ा में रहने वाले 11 लाख लोग अगले 24 घंटों में दक्षिणी गज़ा चले जाएं। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता ने बताया कि 11 लाख लोगों की ये आबादी गज़ा पट्टी की आबादी की लगभग आधी है। इसराइली हमले से सबसे ज़्यादा प्रभावित घनी आबादी वाला गज़ा शहर है। इसराइली सेना ने गज़ा और यरुसलम के समय के मुताबिक़ ये चेतावनी आधी रात से पहले दी।

हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने एक बयान में कहा है कि उसका मानना है कि इतने लोगों का दक्षिणी गज़ा की ओर जाना इतना आसान नहीं होगा। इसमें लोग हमले के शिकार हो सकते हैं। सेनाधिकारियों ने बयान में कहा है, “गज़ा शहर में आप तब ही वापस लौटकर आएंगे जब दोबारा घोषणा की जाएगी।”

आईडीएफ़ ने कहा है कि हमास चरमपंथी शहर के नीचे सुरंगों और आम लोगों के बीच इमारतों के अंदर हैं। आम लोगों से अपील है कि वो शहर खाली करके ‘अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए चले जाएं और ख़ुद को हमास के आतंकियों से दूर रखें ताकि वो उन्हें मानव ढाल न बना सकें।’ इसमें कहा गया है, “आने वाले दिनों में आईडीएफ़ गज़ा शहर में अपने महत्वपूर्ण ऑपरेशन चलाएगी और पूरी कोशिश करेगी कि आम लोगों को नुक़सान न पहुंचे।”

इसराइल ने ये घोषणा तब की है जब अनुमान है कि उसकी सेना गज़ा में ज़मीनी हमला शुरू कर सकती है क्योंकि उसके हज़ारों सैनिक सीमा पर इकट्ठे हो रहे हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने मज़बूत अपील करते हुए इस फ़ैसले को रद्द करने की अपील की है और कहा है कि इलाक़े को खाली कराने से ‘नुकसानदेह स्थिति’ पैदा हो सकती है।

भारतीय-नीति में बदलाव नहीं

गत 7 अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट से ऐसा लगा कि भारत की फलस्तीन नीति में बदलाव आ गया है। प्रधानमंत्री ने हमास के हमले को आतंकी कार्रवाई बताया था और यह भी कहा था कि हम इसराइल के साथ खड़े हैं। इसमें नई बात इतनी थी कि उन्होंने हमास की कार्रवाई को आतंकी कार्रवाई बताया, पर उन्होंने फलस्तीन को लेकर देश की नीति में किसी प्रकार के बदलाव का संकेत नहीं किया था।

इस ट्वीट के पाँच दिन बाद विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि फलस्तीन के बारे में भारत की जो नीति रही है, उसमें कोई बदलाव नहीं है। उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय मानवीय-कानूनों के तहत एक सार्वभौमिक-दायित्व है और आतंकवाद के किसी भी तौर-तरीके और स्वरूप से लड़ने की एक वैश्विक-जिम्मेदारी भी है।

Wednesday, October 11, 2023

अरुंधति रॉय पर मुकदमा चलाने की अनुमति


दिल्ली के उप-राज्यपाल विजय कुमार सक्सेना ने लेखिका अरुंधति रॉय के खिलाफ तेरह साल पुराने एक मामले में मुकदमा चलाने को मंज़ूरी दे दी है। यह मामला 2010 के एक भाषण का है। अरुंधति रॉय के साथ-साथ जम्मू कश्मीर के एक प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन पर भी मुकदमा चलाए जाने को मंज़ूरी दी गई है। नई दिल्ली स्थित मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत के आदेश के बाद इन दोनों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गई थी।

शेख शौकत हुसैन ‘सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर’ में इंटरनेशनल लॉ के प्रोफेसर रह चुके हैं। उप-राज्यपाल ने पाया कि दोनों के खिलाफ मामला चलाए जाने के लिए पर्याप्त आधार हैं। दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा-153ए (धर्म, नस्ल, स्थान या भाषा के आधार पर दो समुदायों में नफरत पैदा करना, शांति भंग करना), 153बी (राष्ट्रीय अखंडता के विरुद्ध बातें करना) और 505 (भड़काऊ बयान देना) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

दिल्ली में ही हुई एक सभा में इन दोनों ने कहा था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग कभी नहीं रहा। दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा-124ए (राजद्रोह) के तहत भी मुकदमा चलाया जाना था, लेकिन यह फिलहाल संभव नहीं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि संवैधानिक पीठ की सुनवाई पूरी होने तक इस धारा से जुड़े सारे मामले रोक दिए जाएँ। इस मामले में दो अन्य अभियुक्त सैयद अली शाह गिलानी और दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक रहे अब्दुल रहमान गिलानी का निधन चुका है।

इस लड़ाई को जल्द रोकना संभव नहीं होगा


हमास के अचानक हमले ने इसराइल समेत सारी दुनिया को हैरत में डाल दिया है. यह हमला, जिस समय और जितने सुनियोजित तरीके से हुआ है, उससे कुछ सवाल खड़े हुए हैं. साफ है कि हमले का उद्देश्य राजनीतिक है, सामरिक नहीं. इरादा अमेरिकी मध्यस्थता में सऊदी अरब और इसराइल के बीच संभावित करार में खलल डालना है. यह बात चीनी मीडिया ने भी मानी है. भारत के नज़रिए से यह पश्चिम एशिया कॉरिडोर के खेल को बिगाड़ने के इरादे से हुआ है.  

जिस समय पश्चिम एशिया में सऊदी अरब और इसराइल के बीच समझौते की बातें हो रही हैं, यह हमला उसी वक्त होने का मतलब साफ है. यह योजना केवल हमास ने बनाई होगी, इसे लेकर संदेह है. हमला यह मानकर हुआ है कि इसकी वजह से शांति-प्रक्रिया और भारत-अरब कॉरिडोर पर आगे बात रुक जाएगी. बहरहाल अब इसराइल और हमास दोनों के अगले कदम बहुत महत्वपूर्ण होंगे.

हमास की भूमिका

इसराइल का कहना है कि हम हमास के नेतृत्व को नेस्तनाबूद कर देंगे, पर यह काम आसान नहीं है. साबित यह हो रहा है कि फलस्तीन के सवाल को ज्यादा देर तक अधर में रखने से अशांति बनी रहेगी. उसका निपटारा होना चाहिए. यह सवाल जरूर है कि फलस्तीनियों का प्रतिनिधि कौन है? कौन उनकी तरफ से बात करेगा? फतह, हमास या कोई और?  इस हमले का एक उद्देश्य यह साबित करना भी है कि हमास ही वास्तविक प्रतिनिधि है. कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि हमास चाहता है कि इसराइल उससे बात करे.

Tuesday, October 10, 2023

खेल की दुनिया में बड़ा कदम



हैंगजाऊ एशियाई खेलों में भारत की सफलता को दो तरह से देखना चाहिए। कई प्रकार के रिकॉर्ड तोड़ते हुए भारतीय खिलाड़ियों ने खेल की दुनिया में पहला बड़ा कदम रखा है। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है पदक तालिका में सौ की मानसिक सीमा-रेखा को पार करना। यह उपलब्धि देश के आकार को देखते हुए पर्याप्त नहीं है, पर पिछले प्रदर्शनों से इसकी तुलना करें, तो बहुत बड़ी है। यह भारत के विकसित होते बदलते सामाजिक-आर्थिक स्तर को भी रेखांकित कर रही है। उम्मीद है कि अगले साल पेरिस में होने वाले ओलिंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी सफलता के एक और चरण को पार करेंगे।

कुछ खेल ऐसे भी हैं, जिनमें इस एशियाड में मनोनुकूल सफलता नहीं मिली। इनमें कुश्ती और भारोत्तोलन शामिल हैं। कॉमनवैल्थ खेलों में हमने इन्हीं खेलों में बड़ी सफलता हासिल की थी। इसकी एक वजह यह भी है कि एशिया खेलों में कंपटीशन ज्यादा मुश्किल है। दूसरी तरफ हमारे खिलाड़ी घुड़सवारी, ब्रिज, गोल्फ, शतरंज, वुशु और सेपक टकरा जैसे खेलों में भी मेडल जीतकर लाए हैं। फिर भी कम से कम दो खेल ऐसे हैं, जिनमें हमें विश्व स्तर को छूना है। एक है जलाशय से जुड़े खेल यानी एक्वैटिक्स और दूसरे जिम्नास्टिक्स। इन दोनों खेलों में मेडलों की भरमार होती है।

फलस्तीन में हिंसा पर बदलता भारतीय-दृष्टिकोण


हमास के हमले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान सोशल मीडिया पर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि इसराइल में आतंकवादी हमलों की खबर से गहरा धक्का लगा है. हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं. हम इस कठिन समय में इसराइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं. इस वक्तव्य के जवाब में भारत में इसराइल के राजदूत नाओर गिलोन ने भारत को धन्यवाद कहा है.

भारत की तुरत-प्रतिक्रिया और इसराइली जवाब दोनों बातों का प्रतीकात्मक महत्व है. आमतौर पर ऐसे मसलों पर भारत फौरन अपनी राय व्यक्त नहीं करता है. प्रधानमंत्री ने संभवतः यह बयान वक्त की नज़ाकत को देखते हुए जारी किया है. उनके बयान की दो बातें ध्यान खींचती हैं. एक आतंकवादी हमला और दूसरे इसराइल के साथ एकजुटता. इन दोनों बातों के राजनीतिक निहितार्थ हैं और इनसे बदलता भारतीय दृष्टिकोण भी व्यक्त होता है.

Sunday, October 8, 2023

जातियों का मसला, समस्या या समाधान


बिहार में जातियों की जनगणना के नतीजे आने के बाद देश में जातिगत-आरक्षण की बहस फिर से तेज होने जा रहा है, जिसका असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। सर्वेक्षण का फायदा गरीब, पिछड़ों और दलितों को मिले या नहीं मिले, पर इसका राजनीतिक लाभ सभी दल लेना चाहेंगे। राष्ट्रीय स्तर पर जाति-जनगणना की माँग और शिक्षा तथा नौकरियों में आरक्षण की 50 फीसदी की कानूनी सीमा पर फिर से विचार करने की माँग जोर पकड़ेगी। न्यायपालिका से कहा जाएगा कि आरक्षण पर लगी कैप को हटाया जाए। हिंदुओं के व्यापक आधार तैयार करने की मनोकामना से प्रेरित भारतीय जनता पार्टी और ओबीसी, दलितों और दूसरे सामाजिक वर्गों के हितों की रक्षा के लिए गठित राजनीतिक समूहों के टकराव का एक नया अध्याय अब शुरू होगा। 

यह टकराव पूरी तरह नकारात्मक नहीं है। इसके सकारात्मक पहलू भी हैं। यह जानकारी भी जरूरी है कि हमारी सामाजिक-संरचना वास्तव में है क्या। सर्वेक्षण से पता चला है कि बिहार की 13 करोड़ आबादी के 63 फीसदी हिस्से का ताल्लुक अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणियों में शामिल की गई जातियों से है। इसमें लोगों के सामाजिक-आर्थिक विवरण भी दर्ज किए गए हैं, लेकिन वे अभी सामने नहीं आए हैं। उधर गत 31 जुलाई को रोहिणी आयोग ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। हालांकि उसकी सिफारिशों को सार्वजनिक नहीं किया गया है, पर उसके निहितार्थ महत्वपूर्ण होंगे। जो स्थिति अगड़ों की थी, वह अब पिछड़ों में अगड़ों की होगी। इससे एक नई राजनीति जन्म लेगी। बिहार का डेटा उसकी तरफ इशारा कर रहा है।  

Wednesday, October 4, 2023

मालदीव में राजनीतिक-परिवर्तन के मायने


मालदीव में राष्ट्रपति पद के चुनाव में चीन-समर्थक मुहम्मद मुइज़्ज़ू की विजय का हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय रणनीति पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह कुछ समय बाद स्पष्ट होगा, पर आमतौर पर माना जा रहा है कि प्रभाव पड़ेगा ज़रूर. नए राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू ने पहली घोषणा यही की है कि मैं देश में तैनात भारतीय सैनिकों को वापस भेजने के वायदे को पूरा करूँगा. अलबत्ता पिछले कुछ वर्षों का अनुभव कहता है कि हालात 2013 से 2018 के बीच जैसे नहीं बनेंगे. देश की नई सरकार भारत और चीन के बीच संतुलन बनाकर चलना चाहेगी.

यह चुनाव मुइज़्ज़ू के 'इंडिया आउट' और इब्राहिम सोलिह के इंडिया फर्स्ट के बीच हुआ था, जिसमें मुइज़्ज़ू को जीत मिली. दोनों देशों में मालदीव पर अपने असर को लेकर अरसे से होड़ चल रही है. चुनाव का यह नतीजा भारत और चीन से मालदीव के रिश्तों को एक बार फिर परिभाषित करेगा.

पिछले पाँच साल से वहाँ भारत-समर्थक सरकार थी, पर अब चीन फिर से वहाँ की राजनीति में अपने पैर जमाएगा. इस दौर में चीन को वैसी ही सफलता मिलेगी या नहीं, अभी कहना जल्दबाजी होगी. चीन के कर्जों को लेकर हाल के वर्षों में बांग्लादेश, श्रीलंका और यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी विरोध हुआ है. क्या मालदीव इस बात से बचा रहेगा?