रविवार की शाम नरेन्द्र मोदी ने नए दायित्व की प्राप्ति के बाद ट्वीट किया : 'आडवाणी जी से फोन पर बात हुई. अपना आशीर्वाद दिया. उनका आशीर्वाद और सम्मान
प्राप्त करने के लिए अत्यंत आभारी.' पर अभी तक आडवाणी जी ने सार्वजनिक रूप से मोदी को आशीर्वाद नहीं दिया है। यह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का टकराव है या कोई सैद्धांतिक मतभेद है? उमा भारती, सुषमा स्वराज और यशवंत सिन्हा ने सार्वजनिक रूप से मोदी को स्वीकार कर लिया है। इसके बाद क्या लालकृष्ण आडवाणी अलग-थलग पड़ जाएंगे? या राजनाथ सिंह उन्हें मनाने में कामयाब होंगे? और यह भी समझना होगा कि पार्टी किस कारण से मोदी का समर्थन कर रही है?
भारतीय जनता पार्टी को एक ज़माने तक ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’ कहा जाता था। कम से कम इस पार्टी को यह इलहाम था। आज उसे
‘पार्टी विद डिफरेंसेज़’ कहा जा रहा है।
मतभेदों का होना यों तो लोकतंत्र के लिए शुभ है, पर क्या इस वक्त जो मतभेद हैं वे सामान्य
असहमति के दायरे में आते हैं? क्या यह पार्टी विभाजन की ओर बढ़
रही है? और क्या इस प्रकार के मतभेदों को ढो रही पार्टी 2014
के चुनाव में सफल हो सकेगी?