Sunday, June 7, 2015

पूर्वोत्तर में अशनि संकेत

मणिपुर के चंदेल जिले में गुरुवार को भारतीय सेना की डोगरा के सैनिकों पर हुआ हमला कोई नया संकेत तो नहीं दे रहा है? पूर्वोत्तर में आतंकी गिरोह एकताबद्ध हो रहे हैं। क्या यह किसी के इशारे पर हो रहा है या हमने इस इलाके के बागी गुटों के साथ राजनीतिक-संवाद कायम करने में देरी कर दी है? नगालैंड में पिछले दो दशक से और मिजोरम में तीन दशक से महत्वपूर्ण गुटों के साथ समझौतों के कारण अपेक्षाकृत शांति चल रही है, पर हाल में एक महत्वपूर्ण गुट के साथ सम्पर्क टूटने और कुछ ग्रुपों के एक साथ आ जाने के कारण स्थिति बदली है। इसमें दो राय नहीं कि म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश में भारत-विरोधी गतिविधियों को हवा मिलती है। ऐसा इन देशों की सरकारों के कारण न होकर वहाँ की सुरक्षा व्यवस्था में बैठे भ्रष्टाचार के कारण भी है।


जरूरत इस बात की है कि हम पूर्वोत्तर के निवासियों को जल्द से जल्द मुख्यधारा में जोड़ें और राजनीतिक संवाद को बढ़ाएं। विडंबना है कि इस इलाके पर हमारा ध्यान तभी जाता है जब कोई बड़ी हिंसक घटना होती है। संदेह यह भी पैदा होता है कि इन घटनाओं के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है। यह संदेह सेना पर हमला करने वालों की संख्या और गिरोह के हथियारों को देखते हुए पैदा होता है। समय का संयोग भी है। पाकिस्तान ने अपने देश में हो रही हिंसक घटनाओं के पीछे अचानक भारत का हाथ होने के आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बांग्लादेश में हैं। हालांकि इस हिंसा का सम्बंध बांग्लादेश से नहीं है, पर पूर्वोत्तर की समस्याएं बांग्लादेश से भी जुड़ी हैं। पूर्वोत्तर के उग्रवादी बांग्लादेश में भी शरण पाते हैं। बांग्लादेश इन मामलों में हमारी मदद कर सकता है। यदि यह हिंसा किसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है तो उसे तोड़ने में मददगार हो सकता है। सेना पर हमला करने वालों की संख्या 50 से कम नहीं रही होगी। पूर्वोत्तर की हिंसा में पहली बार रॉकेट प्रोपेपलर ग्रेनेड (आरपीजी) का इस्तेमाल हुआ। पिछले बीस साल में ऐसा पहली बार हुआ है जब भारतीय सेना के इतने जवान आतंकी हमले में मारे गए हैं।

मणिपुर के जिस इलाके में गुरुवार को यह घटना हुई है वहाँ नगा उग्रवादियों का प्रभाव है। यह इलाका म्यांमार की सीमा पर है, इसलिए हमलावरों को निकल कर भागने का मौका मिल जाता है। चंदेल में हुए हमले के कुछ घंटों दो उग्रवादी संगठनों-उल्फा (आई) और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खपलांग) यानी एनएससीएन (के) ने इस हमले की साझा जिम्मेदारी ली है। शुरू में लगता था कि इसके पीछे  मणिपुर के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और माइती गिरोह कांगलेई यावोल कन्ना लुप (केवाईकेएल) का हाथ है। अंततः इनके अम्ब्रेला संगठन यूएनएफएलडब्लू ने जिम्मेदारी ले ली, जिससे इस हमले का आयाम बड़ा हो गया है।

इस हमले के पहले मई में इस संगठन ने नगालैंड में असम रायफल्स के जवानों पर हमला किया था, जिसमें सात जवान शहीद हुए थे। यह इस इलाके के कई गिरोहों को मिलाकर बनाया गया संगठन है, जिसका लक्ष्य इस इलाके में भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों को तोड़कर पश्चिमी दक्षिण पूर्व एशिया नाम से एक नया देश बनाना है। इसका नेता एसएस खपलांग है। मार्च के महीने में इसने भारत के साथ चल रहे 14 साल पुराने युद्ध-विराम को खत्म किया है और युनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेसिया (यूएनएफएलडब्लू) बनाया है। इसके बाद से इस इलाके में हिंसक घटनाएं बढ़ गईं हैं।

इसके बाद 17 अप्रेल को यूएनएलएफडब्लू की स्थापना के लिए बैठक हुई। इसमें उल्फा के नेता परेश बरुआ, एसएस खपलांग और कुछ माइती संगठन भी शामिल हुए। इनमें युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) भी शामिल थे। इसी बैठक में खपलांग को यूएनएलएफडब्लू का नेता भी घोषित किया गया। गुरुवार को हुए हमले की भनक सेना को नहीं लग पाना खुफिया संगठनों की कमज़ोरी को भी बताता है। यह जानकारी भी मिली है कि मूल रूप से बर्मी नगा एसएस खपलांग की म्यांमार सरकार में पैठ है। हाल में उसे इलाज के लिए सरकारी हवाई जहाज से यांगोन के एक अस्पताल में ले जाया गया था। उसके संगठन के लोगों को म्यांमार के सैगैंग और काचिन प्रांतों में शरण मिलती है।

म्यांमार की भारत से लगी पश्चिमी सीमा पर कम से दर्जनों उग्रवादी संगठन तालमेल भी बढ़ेगा। सच यह भी है कि इस इलाके में सक्रिय तमाम गिरोहों के लोगों को किसी न किसी रूप में चीन में ट्रेनिंग मिली है। मिजोरम में पिछले 30 वर्ष से शांति रही है, पर पिछली 28 मार्च को मणिपुर आधारित हमार पीपुल्स कन्वेशन डेमोक्रेटिक (एचपीसी-डी) ने एक पुलिस दल पर मिजोरम में घात लगाकर हमला किया। इसमें तीन पुलिसकर्मी मारे गए और छह अन्य घायल हो गए।

पूर्वोत्तर की लगभग 5,000 किलोमीटर की सीमा बांग्लादेश, म्यांमार, चीन, नेपाल और भूटान की सीमाओं से जुड़ी है। समूचा पूर्वोत्तर भारत के बाकी हिस्से से 22 किलोमीटर चौड़े कॉरिडोर से जुड़ा है जो ‘चिकन नेक’ या फिर ‘सिलीगुड़ी नेक’ के नाम से जाना जाता है। चीन का बड़ी ताकत के रूप में उभरना, बांग्लादेश में भारत-विरोधी गतिविधियाँ और म्यांमार, नेपाल तथा भूटान में सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के कारण स्थिति हमेशा जटिल बनी रहती है। म्यांमार में भी अनेक बागी ग्रुप सक्रिय हैं। वहाँ की सरकार ने अनेक ग्रुपों के साथ युद्ध-विराम समझौते किए हैं। इनमें भारत-विरोधी ग्रुप भी शामिल हैं। इस किस्म की समस्या का समाधान कई देशों के आपसी समन्वय से ही सम्भव है।

पूर्वोत्तर के सभी प्रदेशों की कोई न कोई सीमा अंतरराष्ट्रीय है। देश की 42 प्रतिशत जन जातियाँ पूर्वोत्तर में निवास करती हैं। इनमें लगभग 200 जनजातीय समूह शामिल है। हालांकि सोलहवीं-सत्रहवीं सदी से इस इलाके को भारतीय मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिशें हो रहीं हैं, पर इसमें पूरी तरह सफलता नहीं मिली है। इसकी एक वजह यह भी है कि पूर्वोत्तर को जोड़ने वाली न तो अच्छी सड़कें हैं और न रेल लाइनें हैं।

यह इलाका पर्यटन के लिहाज से बहुत सुंदर है, पर आधार-ढाँचा न होने के कारण इसका समुचित विकास नहीं हो पाया है। उत्तर शेष भारत के लोगों को अभी इस इलाके का भूगोल भी अच्छी तरह पता नहीं है। इस इलाके की सुरक्षा तभी होगी, जब हम इसे अपना समझेंगे और यहाँ की समस्याओं को जानने की कोशिश करेंगे।

हरिभूमि में प्रकाशित

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