दिल्ली में केंद्र और राज्य
सरकार के बीच टकराव मर्यादा की सीमाएं तोड़ रहा है. स्थिति हास्यास्पद हो चुकी है.
सरकार का कानून मंत्री फर्जी डिग्री के आरोप में गिरफ्तार है. सवाल उठ रहे हैं कि
गिरफ्तारी की इतनी जल्दी क्या थी? इस मामले में अदालती फैसले
का इंतज़ार क्यों नहीं किया गया? मंत्री के खिलाफ एफआईआर
करने वाली दिल्ली बार काउंसिल से भी सवाल किया जा रहा है कि उसके पंजीकरण की
व्यवस्था कैसी है, जिसमें बगैर कागज़ों की पक्की पड़ताल के वकालत का लाइसेंस मिल
गया? प्रदेश सरकार अपने ही उप-राज्यपाल के खिलाफ
कानूनी कार्रवाई की धमकी दे रही है. उप-राज्यपाल ने एंटी करप्शन ब्रांच के प्रमुख
पद पर एक पुलिस अधिकारी की नियुक्ति कर दी. सरकार ने उस नियुक्ति को खारिज कर
दिया, फिर भी उस अधिकारी ने नए पद पर काम शुरू करके अपने अधीनस्थों के साथ बैठक कर
ली. कहाँ है दिल्ली की गवर्नेंस? यह सब कैसा नाटक है? आम आदमी पार्टी इसे केजरीवाल बनाम मोदी की लड़ाई के रूप
में पेश कर रही है. क्या है इसके पीछे की सियासत?
सबसे पहले व्यवस्था कायम होनी चाहिए. इसमें केंद्र और दिल्ली दोनों सरकारों
की जिम्मेदारी है. अधिकारों की व्याख्या का प्रश्न सुप्रीम कोर्ट के सामने है. उसका
इंतज़ार करना चाहिए और तब तक बड़े फैसलों को नहीं करना चाहिए. सवाल सांविधानिक
संस्थाओं और उनकी मर्यादा का है. संयोग से इसी समय आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के
मुख्यमंत्रियों के अधिकारों का टकराव सामने आया है. अभी तक यह टकराव छोटे स्तर पर
था, पर अचानक सोमवार को आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के एक ऑडियो स्टिंग
के बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री के खिलाफ दर्जनों मुकदमे दर्ज कर दिए गए. दक्षिण
की इस खबर पर देश का ध्यान नहीं गया है, पर यह भी सांविधानिक व्यवस्था का सवाल है.
पिछले कई महीनों से दिल्ली
के कानून मंत्री जितेंद्र सिंह
तोमर की विश्वविद्यालय डिग्री को लेकर विवाद चल रहा था. यह मामला हाईकोर्ट में भी
है. पुलिस में इस मामले को लेकर शिकायत भी दर्ज है. मंगलवार को दिल्ली पुलिस ने
उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सरकार बनने के बाद उनकी डिग्री को लेकर सवाल खड़े हुए हो
गए थे. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बजाय उनको हटाने के मंत्री पद पर ज़ारी
रखने का फैसला किया. इसका मतलब है कि उन्हें डिग्री की वैधता पर भरोसा है या वे
मानते थे कि सब चलता है. वे ध्यान नहीं दे पाए कि यह सामान्य शैक्षिक योग्यता का
मामला नहीं है, बल्कि कानून की व्यावसायिक डिग्री से जुड़ा मसला है, जो उन्हें देश
की कानूनी प्रक्रियाओं में शामिल होने का विशेषाधिकार देती है. दूसरी ओर सवाल यह
भी है कि पुलिस ने अचानक यह गिरफ्तारी क्यों की? क्या यह केजरीवाल सरकार को दबाव में लेने की
कोशिश है?
डिग्री सही है या
गलत है, इसका फैसला अदालत में होगा, पर दिल्ली सरकार ने इसे केंद्र सरकार से सीधे
टकराव का मुद्दा बना लिया और इस गिरफ्तारी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को
जिम्मेदार ठहराया. आम आदमी पार्टी का आरोप है कि यह गिरफ्तारी दिल्ली में सन 2002
में हुए सीएनजी फिटनेस घोटाले की फाइल खुलने की पेशबंदी में की गई है. खबर यह भी है
कि दिल्ली सरकार ने इस आशय की पूछताछ की है कि क्या इस मामले में कार्रवाई रोकने
के कारण दिल्ली के उप-राज्यपाल के खिलाफ केस दायर किया जा सकता है?
उप-राज्यपाल नजीब
जंग ने दिल्ली सरकार की एंटी क्राइम ब्रांच के प्रमुख पद पर दिल्ली पुलिस के जॉइंट
कमिश्नर मुकेश कुमार मीणा की जो नियुक्ति की है, वह भी पेशबंदी लगती है. दिल्ली
सरकार के तेवरों से ज़ाहिर है कि भ्रष्टाचार को लेकर दिल्ली सरकार कुछ बड़े कदम
उठाएगी. मीणा की नियुक्ति को केजरीवाल
सरकार चुनी हुई सरकार के ऊपर हमला मान रही है. इसकी वजह से एसीबी केजरीवाल के हाथ
से बाहर हो गई है. एसीबी के जरिए ही केजरीवाल दिल्ली में भ्रष्टाचार को मिटाने की मुहिम
चला रहे थे और सड़कों पर होर्डिंग लगवाकर करप्शन के खिलाफ अपनी लड़ाई को सफल बता रहे
थे. राजनीतिक लिहाज से इस मुहिम को जनता का समर्थन मिलेगा.
क्या जितेंद्र
तोमर की गिरफ्तारी सीएनजी मामले की पेशबंदी है? पर गिरफ्तारी से वह मामला किस तरह दबेगा? दबने की सम्भावना हो भी
तो अब उसे खोलने का दबाव बढ़ेगा. पर मंत्री की फर्जी डिग्री के मामले से सरकार
कैसे पल्ला झाड़ेगी? दिल्ली पुलिस गलत कदम उठा रही है तो यह बात अदालत में कही
जानी चाहिए. लगता है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस मामले की अनदेखी की है. 'आप' नेता संजय सिंह ने कहा है, ‘मोदी सरकार हमें मुकदमे
और थाने से डरा रही है, जिसे हम कुछ समझते नहीं
हैं. उन्होंने यह भी कहा कि स्मृति ईरानी और राम शंकर कठेरिया पर भी फर्जी डिग्री
के आरोप हैं, क्या दिल्ली पुलिस में हिम्मत है कि उन्हें
थाने ले जाएगी?’ गिरफ्तारी सही है या गलत इसका फैसला अदालत को करना है. और
अदालत से ही पता लगेगा कि स्मृति ईरानी और जितेंद्र तोमर के मामलों में समानता है
या नहीं.
इस टकराव ने देश
का ध्यान मूल विषय से हटा दिया है. मसला तो गवर्नेंस का था. दिल्ली सरकार यदि अपने
अधिकारों की व्याख्या चाहती है तो उसे भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए.
फिलहाल उसे दिल्ली की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. आम आदमी पार्टी दिल्ली
को अपनी दीर्घकालीन राजनीति का लांच पैड बनाना चाहती है. कानून मंत्री की गिरफ्तारी
को वह कैश करेगी. हमदर्दी पैदा करेगी. केंद्र सरकार पर प्रताड़ना के आरोप लगाएगी. केंद्र
सरकार के पास भी पंगा लेने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है. शायद उसने दबाव बनाने
के लिए गिरफ्तारी का रास्ता चुना है.
उप-मुख्यमंत्री
मनीष सिसोदिया ने उप-राज्यपाल नजीब जंग को भ्रष्टाचार के मामले में लपेट लिया है.
उनके अनुसार, ''कल ही दिल्ली सरकार ने सीएनजी घोटाले की जांच
के आदेश दिए और कल ही एसीबी में नियुक्ति हो गई. एलजी साहब का नाम है, सीबीआई की रिपोर्ट में वे ही मैनेज कराने की कोशिश कर रहे
हैं.” सिसौदिया का कहना है, दिल्ली की जनता ने हमें 67 सीटें देकर कहा है, जाओ और
भ्रष्टाचार का खात्मा करो. यह राजनीतिक बयान है. बेहतर होता कि वे कानून मंत्री को
पद पर बनाए रखने के बजाय, उन्हें हटाकर पाक-साफ साबित करते. पर यह घटनाक्रम राजनीति
को बदनामी देगा. राजनीति माने ‘राजनीति’.
प्रभात खबर में प्रकाशित
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