Wednesday, June 29, 2022

फैसला फ्लोर टेस्ट से ही होगा, पर कब?

 


महाराष्ट्र की राजनीतिक हलचल में आज कोई नया मोड़ आने की सम्भावना है। मंगलवार को देर रात देवेन्द्र फडणवीस ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की और फ्लोर टेस्ट की मांग की। फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार के पास बहुमत नहीं है। बागी विधायक उद्धव सरकार को समर्थन नहीं दे रहे हैं। इस औपचारिक माँग के बाद राज्यपाल को कोई दृष्टिकोण अपनाना होगा। देखना होगा कि वे करते हैं। बागी नेता एकनाथ शिंदे का कहना है कि फ्लोर टेस्ट गुरुवार को होगा। 

मुलाकात के दौरान फडणवीस ने राज्यपाल को एक चिट्ठी भी सौंपी है। फडणवीस ने कहा कि उद्धव सरकार को फ्लोर पर बहुमत साबित करना चाहिए। इसके पहले फडणवीस ने दिन में दिल्ली जाकर गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी।  

दूसरी तरफ शिवसेना ने स्पष्ट किया है कि राज्यपाल फ्लोर टेस्ट का फैसला करेंगे, तो हम अदालत की शरण लेंगे। शिवसेना का कहना है कि कम से कम 11 जुलाई तक फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए। 11 को सुप्रीम कोर्ट बागी विधायकों के उस नोटिस पर विचार करेगी, जिसमें डिप्टी स्पीकर पर अविश्वास व्यक्त किया गया है। यदि इस नोटिस को वैध माना गया, तो शक्ति परीक्षण डिप्टी स्पीकर के प्रति अविश्वास पर ही हो जाएगा। डिप्टी स्पीकर के हटने का मतलब है सरकार की हार।

सवाल है कि क्या 11 के पहले फ्लोर टेस्टसम्भव है? शिंदे गुट के विधायक बीजेपी के साथ गए, तो सरकार गिर जाएगी। अब स्थिति यह है कि यदि वे मतदान से अलग रहेंगे, तब भी सरकार गिर जाएगी।

'फ्लोर टेस्ट'

फ्लोर टेस्ट का मतलब है सदन के भीतर बहुमत परीक्षण। यह विश्वास-प्रस्ताव और अविश्वास-प्रस्ताव दो तरीके से किया जा सकता है। सरकार विश्वास-प्रस्ताव रख सकती है और विरोधी दल अविश्वास-प्रस्ताव ला सकते हैं।

यह सांविधानिक प्रावधान है, जिसके तहत राज्यपाल मुख्यमंत्री से अपनी पार्टी का बहुमत साबित करने के लिए कह सकते हैं। यदि यह स्पष्ट नहीं है कि किसके पास बहुमत है, तो राज्यपाल सदन का विशेष सत्र बुला सकता है। विश्वास मत साबित कर सकता है कि किसके पास बहुमत है।

बहुमत का आंकड़ा इस बात पर निर्भर करता है कि सदन में कितने सदस्य मौजूद हैं और मतदान करेंगे। इसका मतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत 145 है और सदस्यों की संख्या 288 है। लेकिन मान लीजिए कि सदन में 46 विधायक किसी कारण से अनुपस्थित हैं या वे बिना मतदान के तटस्थ रुख अपनाते हैं, तो बहुमत 23 से कम हो जाएगा।

'कंपोजिट फ्लोर टेस्ट' के लिए वोटिंग दो तरह से की जा सकती है। एक है वॉयस वोटिंग जिसमें विधायक चिल्लाते हैं और बताते हैं कि उनका वोट किसका है। दूसरा विभाजित वोट है। प्रत्येक सदस्य स्वतंत्र रूप से अपना वोट डालता है। यह वोटिंग इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, बैलेट पेपर या बैलेट पेपर पर की जाती है।

आइए एक नजर डालें महाराष्ट्र में विभिन्न पार्टियों की स्थिति पर:

·      गुवाहाटी में फिलहाल 49 विधायक रह रहे हैं। शिवसेना विधायक 39 और निर्दलीय विधायक 10।

·      बहुमत के लिए आवश्यक संख्या है-145। अब यदि गुवाहाटी वाले शिवसेना विधायक अनुपस्थित रहेंगे, तो बहुमत का आंकड़ा कम हो जाएगा।

·      287 में से 39 विधायकों को घटाएं, तो उपस्थित विधायकों की संख्या होगी 248।

·      बीजेपी नेताओं का दावा है कि उनके पास 129 विधायकों का समर्थन है। पहले से भाजपा के विधायक और निर्दलीय समर्थक-113। गुवाहाटी से निर्दलीय विधायक – 10। बहुजन विकास अघाड़ी-3। शेकप-1। दो विधायकों देवेंद्र भुयार और संजय मामा शिंदे का समर्थन। कुल-129।

·      इस स्थिति में बहुमत का आंकड़ा होगा-125।

अब महाविकास अघाड़ी की ताकत पर नजर डालें:

·      शिवसेना-14, कांग्रेस-44, राष्ट्रवादी कांग्रेस-51।कुल = 109

इस स्थिति में सरकार हार जाएगी।

शरद पवार की भूमिका

बहरहाल उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को गुवाहाटी में डेरा डाले अपनी पार्टी के बागी विधायकों को एक बार फिर से मनाने की कोशिश की। उन्होंने बागी विधायकों से अपील की है कि वे मुंबई लौटे और उनसे बातचीत कर समाधान निकालें। अपनी भावुक अपील में उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी अध्यक्ष होने के नाते उन्हें अब भी उनकी परवाह है। उनके एक सहयोगी ने मुख्यमंत्री के बयान का हवाला देते हुए कहा, 'अभी बहुत देर नहीं हुई है।

दूसरी तरफ शिवसैनिकों की तोड़-फोड़ जारी है। उद्धव ठाकरे किसी दिन भावुक अपील करते हैं और किसी दिन धमकियाँ देते हैं। गत 20 जून की रात और अगले दिन उन्होंने अपने विधायकों की बैठक बुलाई। पर उन्हें उनकी संख्या देखकर स्थिति समझ में आ गई। पहले दिन तो उन्होंने इस्तीफा देने तक की बात कह दी थी। कुल मिलाकर उन्होंने अपनी स्थिति कमजोर की है। इसकी एक वजह यह है कि वे राकांपा के सुप्रीमो शरद पवार की सलाह पर चल रहे हैं।

महाराष्ट्र के सूत्र बताते हैं कि ठाकरे को जब लगा कि स्थिति उनके हाथ के बाहर जा चुकी है, तो उन्होंने पहले दिन ही इस्तीफा देने का मन बना लिया था। वे शालीनता के साथ हटना चाहते थे। उन्होंने मुख्यमंत्री निवास से अपना सामान भी उठवा लिया। उस मौके पर शरद पवार ने उन्हें रोका। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यदि वे उसी दिन इस्तीफा दे देते, तो उनके पास नैतिक आधार रहता, जो अब हाथ से निकल गया है। दूसरे अब उनकी छवि यह बनी है कि वे शरद पवार के कहे पर चल रहे हैं। तीसरे पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को संजय राउत द्वारा अपनाई गई भाषा-शैली को लेकर भी आपत्ति है। उनका कहना है कि राजनीति में सत्ता आती-जाती रहती है, पर जान लेने-देने की धमकी देना गलत है।

 

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