सेना में भरती से जुड़े 'अग्निपथ' कार्यक्रम के विरोध में देश के कई क्षेत्रों में हिंसा की जैसी लहर पैदा हुई है, उसे रोकने की जरूरत है। यह जिम्मेदारी केवल सरकार की ही नहीं है, विरोधी दलों की भी है। नौजवानों को भड़काना बंद कीजिए। बेशक उनकी सुनवाई होनी चाहिए, पर विरोध को शांतिपूर्ण तरीके से व्यक्त करना चाहिए। जिस प्रकार की हिंसा सड़कों पर देखने को मिली है, वह देशद्रोह है। रेलगाड़ियों, बसों और सरकारी बसों में आग लगाने वाले सेना में भरती के हकदार कैसे होंगे? सरकार ने फौरी तौर पर इस स्कीम भरती होने वालों की आयु में इस साल दो साल की छूट भी दी है। साथ ही रक्षा मंत्रालय से जुड़ी अन्य सेवाओं में अग्निवीरों को 10 प्रतिशत का आरक्षण देने की घोषणा की है। सरकार ने यह भी कहा है कि भविष्य में अर्धसैनिक बलों की भरती में अग्निवीरों को वरीयता दी जाएगी। राज्य सरकारों की पुलिस में भी इन्हें वरीयता दी जा सकती है। वायुसेना ने भरती की प्रक्रिया 24 जून से शुरू करने का कार्यक्रम भी घोषित कर दिया है। इससे माहौल को सुधारने में मदद मिलेगी। 14 जून को जिस दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अग्निपथ कार्यक्रम को स्वीकृति दी, उसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी विभागों और मंत्रालयों में मानव संसाधन की स्थिति की समीक्षा की और निर्देश दिया कि अगले डेढ़ साल में सरकार द्वारा मिशन मोड में 10 लाख लोगों की भरती की जाए। इन दोनों फैसलों का असर सकारात्मक असर होने के बजाय नकारात्मक होना चिंता का विषय है।
हिंसा के पीछे कौन?
यह देखने की जरूरत भी है कि अचानक शुरू हुए इस
आंदोलन के पीछे किन लोगों की भूमिका है और वे चाहते क्या हैं। यह संदेश नहीं जाना
चाहिए कि सरकार को आंदोलन की धमकियाँ देकर दबाया जा सकता है। शाहीनबाग, किसान
आंदोलन और नूपुर शर्मा से जुड़े मामलों में सरकार की नरम नीति से बेजा फायदे उठाने
की कोशिशों को सफलता नहीं मिलनी चाहिए। अग्निपथ कार्यक्रम सेनाओं के आधुनिकीकरण और
देश के सुधार कार्यक्रमों का हिस्सा है। देश को अत्याधुनिक हथियारों से लैस एक
युवा सशस्त्र बल की ज़रूरत है। यह रोजगार गारंटी कार्यक्रम नहीं है। उसे इस प्रकार
आंदोलनों का शिकार बनने से रोकना चाहिए। शुक्रवार तक की जानकारी के अनुसार विरोध
प्रदर्शनों के कारण 300 से अधिक ट्रेनें प्रभावित हुई हैं, जबकि 200 से अधिक रद्द
की जा चुकी हैं। इनमें 94 मेल व एक्सप्रेस और 140 पैसेंजर ट्रेन रद्द की जा चुकी
हैं। वहीं 65 मेल व एक्सप्रेस ट्रेन और 30 यात्री ट्रेन आंशिक रूप से रद्द की गई
हैं। तेलंगाना, बिहार और उत्तर प्रदेश में
प्रदर्शनकारियों ने तमाम स्थानों पर रेलवे स्टेशनों को नुकसान पहुँचाया है,
कैश-काउंटरों से रुपयों की लूट की है और ट्रेनों में आग लगाई है। यह भयावह स्थिति
है और इसे किसी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
अग्निपथ योजना
योजना के तहत 90
दिनों के भीतर क़रीब 40 हजार युवकों की सेना में भरती की
जाएगी। उन्हें 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी। भरती
होने के लिए उम्र साढ़े 17 साल से 21
साल के बीच होनी चाहिए। चूंकि पिछले दो साल भरती नहीं हो पाई थी, इसलिए पहले बैच
के लिए अधिकतम आयु सीमा दो साल बढ़ाई गई है। इसमें भाग लेने के लिए शैक्षणिक
योग्यता 10वीं या 12वीं पास होगी। जनरल ड्यूटी सैनिक में
प्रवेश के लिए, शैक्षणिक योग्यता कक्षा 10 है। इस स्कीम के तहत भरती चार साल के लिए होगी। पहले साल का वेतन प्रति
महीने 30 हज़ार रुपये होगा, जो हर साल बढ़ते हुए चौथे
साल में प्रति माह 40 हज़ार रुपये हो जाएगा। चार साल बाद
सेवाकाल में प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन होगा और 25 प्रतिशत
लोगों को नियमित किया जाएगा। योजना का विरोध करने वाले कहते हैं कि चार साल की सेवा
के बाद उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है।
सामयिक परिवर्तन
कुछ लोगों का कहना है कि चार साल बाद नौजवान एटीएम का गार्ड बनकर रह जाएगा। इस कार्यक्रम को बदलते समय के दृष्टिकोण से भी देखा चाहिए। सभी देशों की सेनाओं का आकार छोटा हो रहा है, क्योंकि युद्धों में सैनिकों की भूमिका कम हो रही है और तकनीकी भूमिका बढ़ रही है। चीन की सेना ने पिछले तीन-चार साल में अपना आकार करीब आधा कर लिया है। भारतीय सेना की थिएटर कमांड योजना और इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स बेहतर समन्वय और संसाधनों के इस्तेमाल को देखते हुए बनाए जा रहे हैं। सेना को बदलती चुनौतियों के बीच अपनी गैर-परंपरागत युद्ध क्षमताओं और साइबर और खुफ़िया इकाइयों का विस्तार करने की ज़रूरत है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने एक टेलीविज़न चैनल से कहा, योजना अभी आई ही है। इसे शुरू तो होने दें, इसमें पहली नियुक्तियां होने दें। ये देखें कि ये योजना कैसे काम करती है। सुधार सभी योजनाओं में होते हैं। शॉर्ट सर्विस कमीशन को पांच साल के लिए शुरू किया गया था और बाद में उसे कोई पेंशन और चिकित्सकीय सुविधा नहीं मिलती थी।
औसत आयु
नए नियम सेना में सैनिकों की औसत आयु कम करने
में मदद करेंगे। अफसरों की आयु भी कम की जा रही है। अग्निपथ कार्यक्रम में सबसे
बेहतर जवान को स्थायी पदों के लिए चुना जाएगा और बाकी पुलिस और अन्य सेवाओं में
शामिल हो सकते हैं। सेना में केवल बंदूक लेकर सीमा पर लड़ने वाले सैनिक ही नहीं
होते हैं। इनमें ड्राइवर, टेक्नीशियन, रेडियो से लेकर जेसीबी, कम्प्यूटर और रेडार
ऑपरेटर, गनर जैसे तमाम तकनीकी काम होते हैं। वायुसेना और नौसेना में खासतौर से
तकनीकी काम ज्यादा होता है। लोग 10वें दर्जे के बाद अपने बच्चों को तकनीकी शिक्षा
के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं फिर भी रोजगार की गारंटी नहीं होती। पर सेना चार
साल की सेवा के दौरान वेतन, आवास, भोजन, चिकित्सा वगैरह के अलावा करीब 11 लाख
रुपये एकमुश्त सबसे अंत में दे रही है। इसके अलावा 48 लाख रुपये का बीमा और एक्शन
में मृत्यु होने पर 44 लाख रुपये का कवर भी दे रही है। यह इस कार्यक्रम की शुरुआत
है। भविष्य में इसमें भी बदलाव सम्भव है। शॉर्ट सर्विस कमीशन वगैरह में बदलाव हुए
ही हैं। जिन 25 फीसदी युवाओं को स्थायी सेवा में रखा जाएगा, उनके जूनियर कमीशंड
ऑफिसर बनने के अवसर सुरक्षित रहेंगे।
सवाल भी हैं
इस कार्यक्रम को लेकर सवाल भी हैं। मसलन कुछ
पूर्व सैनिक अफसरों ने कहा है, इससे सरकार को वित्तीय फायदा होगा।
खर्चा कुछ घटेगा। लेकिन, दूसरी तरफ़ इसका असर राष्ट्रीय सुरक्षा
पर होगा। इसमें चार साल के लिए भरती होगी, इसमें छह महीने की ट्रेनिंग होगी जबकि
सामान्यतः ट्रेनिंग नौ महीने की होती है। बाकी बचे साढ़े तीन साल तो छुट्टी
निकालकर क़रीब दो से ढाई साल बचेंगे। अब इसमें 17 से 21 साल की उम्र का लड़का क्या
सैनिक बनेगा? सर्जिकल स्ट्राइक और पूर्वी लद्दाख में कैलाश
ऑपरेशन जैसे अभियान क्या ये बच्चे कर पाएंगे? हमारे पास उच्च तकनीकी उपकरण हैं तो ये लड़के
तकनीकी रूप से मुश्किल से ही योग्य होंगे, वो ऐसे उपकरणों
को कैसे सीख पाएंगे। दो दशक पहले बनी करगिल समीक्षा समिति ने सेना की औसत उम्र
करने का सुझाव दिया था। इसे लागू करने में भारत ने देरी की, परिणाम यह है कि चीन
ने हमसे पहले अपनी सेना की संरचना में बदलाव कर लिया है। अग्निपथ कार्यक्रम के बाद
सेना की यूनिटों की औसत उम्र 32 वर्ष से कम होकर 26 वर्ष हो जाएगी।
तकनीकी विस्तार
हमारी काफी सीमाएं पहाड़ी इलाकों में हैं, जहाँ
युवा सैनिक बेहतर साबित होते हैं। सेना का इस्तेमाल बाढ़, भूकम्प और अन्य प्रकार
की आपदाओं में भी होता है। इन सब बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए। दूसरे अब
प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सिम्युलेटरों का काफी इस्तेमाल होने लगा है, जिसके कारण
कम समय में ज्यादा बातों की ट्रेनिंग देना सम्भव है। अग्निपथ के समांतर भी कुछ और
हो रहा है। तीनों सेनाओं की स्पेशल ऑपरेशंस डिवीजन भी तैयार है, जिसकी ट्रेनिंग,
शस्त्रास्त्र और तकनीक मामूली नहीं है। सेना की साइबर और स्पेस एजेंसियाँ भी गठित
हुई हैं। अग्निवीर उस द्वार पर खड़े होंगे, जहाँ से वे विशेषज्ञता की राह पर जा
सकेंगे। उनसे कोई कुछ छीनेगा नहीं, बल्कि ट्रेनिंग देकर कुशल ही बनाएगा। उनके
सेवानिवृत्त होने के बाद भी सरकार उनके हितों की रक्षा के लिए तैयार रहेगी। सबसे
बड़ी बात है कि देश में कुशल (स्किल्ड) कर्मियों की बेहद कमी है। सेना उन्हें
स्किल्ड बनाएगी। तेज आर्थिक विकास के लिए उनकी जरूरत है।
राजनीतिक-दृष्टि
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने इस कार्यक्रम
को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर
निशाना साधा है। प्रियंका गांधी ने भी इस योजना को वापस लेने की मांग की है। सांसद
दीपेंदर सिंह हुड्डा ने इसे देश की सुरक्षा और युवाओं के लिए ख़तरनाक बताया है। अधीर
रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार की वित्तीय हालत बिगड़ रही है और पैसा बचाने के लिए वह
ये कदम उठा रही है। भगवंत मान ने कहा है कि सैनिकों को भाड़े पर नहीं रखा जा सकता।
इस समय सबसे उग्र आंदोलन बिहार में हो रहा है, जहाँ नीतीश कुमार के नेतृत्व में
सरकार है, जिसे बीजेपी का समर्थन प्राप्त है। बिहार में आंदोलनकारियों को
राजनीतिक-समर्थन भी मिल रहा है। क्या यह राजनीतिक मामला है? क्या इस कार्यक्रम को बनाने में सेना की कोई भूमिका नहीं है? क्या सेना को अपनी जरूरतों का पता नहीं है? इन
सवालों का क्या जवाब है?
हरिभूमि में प्रकाशित
No comments:
Post a Comment