भारत के समानव अंतरिक्ष-अभियान गगनयान की पहली परीक्षण उड़ान जल्द ही होने वाली है। शुरुआती उड़ान में अंतरिक्ष-यात्री नहीं होंगे, पर जब जाएंगे तब उनके साथ ‘व्योममित्र’ नामक एक रोबोट भी अंतरिक्ष जाएगा। यह रोबोट पूरे यान के मापदंडों पर निगरानी रखेगा। इसमें कोई नई बात नहीं है, केवल आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते दायरे की ओर इशारा है।
तकनीकी विकास के हम ऐसे दौर में हैं, जब
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का प्रवेश जीवन में हो रहा है। पहले हमें लगता था कि
मशीनें ज्यादा से ज्यादा सोचेंगी भी तो एक सीमा तक ही सोचेंगी। पर हाल में ब्रिटिश
पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने लिखा है कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस
का अब कविता, पेंटिंग और साहित्य जैसी ललित कलाओं में भी प्रवेश होगा। ऐसा
कम्प्यूटर की ‘डीप लर्निंग’ तकनीक के कारण सम्भव हुआ है। पेंटिंग
वगैरह तो कम्प्यूटर बना ही रहे थे, पर वे अब आपके पसंदीदा कलाकार की शैली में
पेंटिंग बना देंगे। सभी बारीकियों के साथ।
डीप लर्निंग
यह तकनीक मनुष्य के मस्तिष्क में काम करने वाले
करोड़ों-अरबों न्यूरॉन्स की ‘डीप लर्निंग’ के
सिद्धांत पर काम करती है। शुरू में लगता था कि इसकी भी सीमा है, पर हाल में विकसित
‘फाउंडेशन
मॉडल्स’ ने साबित किया है कि पहले से कई गुना जटिल ‘डीप लर्निंग’ सम्भव है। आप कम्प्यूटर पर जो वाक्य लिखते हैं, उसे व्याकरण-सम्मत आपका कम्प्यूटर
बनाता जाता है। आप चाहते हैं कि आपके आलेख का अच्छा सा शीर्षक बन जाए, बन जाएगा।
लेख का सुन्दर सा इंट्रो बन जाएगा।
आप मोबाइल फोन पर संदेश लिखते हैं, तो आपकी
जरूरत के शब्द अपने आप आपके सामने बनते जाते हैं। तमाम जटिल पहेलियों के समाधान
कम्प्यूटर निकाल देता है। लूडो से लेकर शतरंज तक आपके साथ खेलता है। शतरंज के
चैम्पियनों को हराने लगा है। तकनीक ने हमारे तमाम काम आसान किए हैं। अब वह मनुष्य
की तरह काम करने लगी है।
आप संगीत-रचना रिकॉर्ड कर रहे हैं। उसके दोष दूर करता जाएगा। इससे रचनात्मकता के नए आयाम खुल रहे हैं। आप चाहते हैं कि पिकासो या रैम्ब्रां की शैली में कोई चित्र बनाएं, तो आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यह काम कर देगी, क्योंकि उसके पास सम्बद्ध कलाकार की शैली से जुड़ा छोटे से छोटा विवरण मौजूद है। उस जानकारी के आधार पर कम्प्यूटर चित्र बना देगा।
हर क्षेत्र में
क्वांटम कम्प्यूटिंग का दौर भी आ रहा है। यानी
स्पीड की सीमाएं टूटने वाली हैं। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का खासतौर से इस्तेमाल इन
क्षेत्रों में किया जा रहा है: कंप्यूटर गेम, प्राकृतिक
भाषा प्रसंस्करण, एक्सपर्ट सिस्टम, दृष्टि प्रणाली, स्पीच रिकग्निशन, इंटेलिजेंट
रोबोट वगैरह। बेहद जटिल प्रणालियों को चलाने, औषधि, रसायन, खनन उद्योग जैसे
कार्यों में हो रहा है।
हर तरह के डेटा एनालिसिस और क्रिकेट, हॉकी और
फुटबॉल जैसे खेलों से जुड़े सॉफ्टवेयरों में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। शेयर
बाजार से लेकर मौसम के उतार-चढ़ाव का अनुमान लगाने के लिए भी इसका इस्तेमाल हो रहा
है। एयर ट्रैफिक और नेवीगेशन तथा रक्षा उद्योग में मिसाइलों, सेंसरों और रेडारों
के साथ इस तकनीक को जोड़ा जा चुका है।
ऐसे युद्धपोत तैयार हो रहे हैं, जो आत्मरक्षा
का सम्पूर्ण प्रबंध खुद कर सकते हैं। बिना ड्राइवर की कारें, रेलवे इंजन और मेट्रो
गाड़ियाँ चल रही हैं। हवाई जहाज ऑटो पायलट पर हैं। लड़ाकू विमान अपने आप उड़ान भर
रहे हैं। आपकी कार दिल्ली से चलकर आगरा कितने बजे पहुँचेगी, यह आप लगातार देख सकते
हैं। ट्रैफिक में आने वाले हरेक बदलाव के अनुसार उसकी स्थिति बदलती रहती है।
वैश्विक रूपांतरण
मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी
(एमआईटी) के प्रोफेसर और फ्यूचर ऑफ लाइफ इंस्टीट्यूट के सह-संस्थापक मैक्स
टैगमार्क का विचार है कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के अल्टीमेट तकनीक के रूप में
प्रकट होने का समय आ गया है। यह तकनीक भविष्य में होने वाले तमाम परिवर्तनों और
नवोन्मेषों को जन्म देने जा रही है। ब्रह्मांड के पिछले 13.8 अरब वर्षों की सबसे
बड़ी देन है मनुष्य जाति की प्राकृतिक क्रिया-कलाप पर विजय। उसकी इस सामर्थ्य का
अब और विस्तार होने वाला है। उनके अनुसार हम तकनीक का सावधानी के साथ इस्तेमाल
करेंगे, तो अपने सपनों को पूरा करने में सफल होंगे। जो तकनीकें विकसित हो रही हैं,
वे अगले कुछ वर्षों में ही नहीं अनंतकाल तक मनुष्य जाति के जीवन को सुखद बनाती
रहेंगी।
मैक्स टैगमार्क के अनुसार आर्टिफीशियल
इंटेलिजेंस का मतलब सरल शब्दों में है, जटिल लक्ष्यों को हासिल करना। जितना लक्ष्य
जटिल होगा, उतनी ही ज्यादा इंटेलिजेंस यानी मेधा की जरूरत होगी। फिजिक्स का कोई
नियम तकनीक को वे सारे काम करने से नहीं रोकता, जो मनुष्य कर सकता है। यह
आर्टिफीशियल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआई) तकनीक वह सब सीख और सकती है, जो इंसान कर
सकता है। और यह सब एक-डेढ़ दशक में हासिल होने वाला है।
अब सवाल यह है कि जब तकनीक वह सब कर सकती है,
जो मनुष्य कर सकता है, तब क्या एक दिन मनुष्य इस तकनीक का गुलाम नहीं हो जाएगा? कुछ साल पहले हिब्रू यूनिवर्सिटी, यरुसलम
के इतिहासकार प्रो युवाल हरारी ने लिखा था कि एक सम्भावना है कि अंततः यह कृत्रिम
मेधा मनुष्य के वर्चस्व को खत्म कर देगी। उनके अनुसार बुद्धिमत्ता और चेतना का
अटूट गठबंधन टूटने के कगार पर है।
हाल तक उच्च मेधा को अति विकसित चेतना का ही एक
पहलू समझा जाता था। पर आज हम ऐसी नई तरह की अचेतन बुद्धिमत्ता विकसित कर रहे हैं, जो
इस तरह के कामों को इंसानों से कहीं ज्यादा बेहतर कर सकती है। इस परिघटना ने एक
अनूठे सवाल को जन्म दिया है- दोनों में कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है, बुद्धिमत्ता या चेतना? मशीनों से बुद्धि ही निकलेगी या चेतना
भी तैयार होगी?
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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चेतना स्वयं भू है और बुद्धिमत्ता को चेतना पर निर्भर होना पड़ता है, इसलिए भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है
ReplyDeleteयह साधारण बात नहीं है। वास्तव में वह स्थिति आने वाले है, जब मशीनी-मेधा यानी बुद्धि मनुष्य की बुद्धि से आग निकल जाएगी। बेशक यह मान लेने की जरूरत नहीं है कि यह बुद्धि इंसान के अस्तित्व को चुनौती देगी, पर विचार का विषय बहुत व्यापक हो गया है।
Deleteअब सवाल यह है कि जब तकनीक वह सब कर सकती है, जो मनुष्य कर सकता है, तब क्या एक दिन मनुष्य इस तकनीक का गुलाम नहीं हो जाएगा?
ReplyDeleteमशीनों से बुद्धि ही निकलेगी या चेतना भी तैयार होगी?
वाकई विचारणीय...
बहुत ही चिंतनपरक लेख ।