Monday, December 21, 2020

जन. नरवणे की अरब-यात्रा की पृष्ठभूमि में है भावी आर्थिक-सहयोग

भारत के थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे मंगलवार 8 दिसंबर को एक हफ़्ते के लिए संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के दौरे पर जब रवाना हुए, तब कुछ पर्यवेक्षकों का माथा ठनका था। उन्हें यह बात अटपटी लगी। वे भारत और मुस्लिम देशों के रिश्तों को पाकिस्तान के संदर्भ में देखते हैं, जबकि यह नजरिया अधूरा और गलतियों से भरा है। कोविड-19 के कारण यह यात्रा प्रस्तावित समय के बाद हुई है। अन्यथा इसे पहले हो जाना था। इसलिए इसके पीछे किसी तात्कालिक घटना को जोड़कर देखना उचित नहीं होगा।

सच यह है कि पश्चिम एशिया में राजनीतिक-समीकरण बदल रहे हैं। खासतौर से इजरायल के साथ अरब देशों के रिश्तों में बदलाव नजर आ रहा है। हाल में ईरान के नाभिकीय वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या के बाद से भी इस इलाके में तनाव है। हत्या के पीछे ईरान ने इजरायल का हाथ बताया है, पर तनाव की गर्म हवाएं सऊदी अरब तक भी पहुँची हैं। स्वाभाविक रूप से ये बातें भी पृष्ठभूमि में होंगी।

यात्राओं का दौर शुरू

कोविड-19 के कारण कई महीनों की चुप्पी के बाद यात्राएं फिर शुरू हुई हैं। तोक्यो में क्वाड विदेशमंत्रियों की बैठक के बाद विदेशमंत्री एस जयशंकर की नवंबर में बहरीन और यूएई की यात्रा से इस बात का संकेत मिल गया था कि भारत की दिलचस्पी इस इलाके में बढ़ रही है। अरब देशों के साथ हमारे रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं और पिछले तीन-चार साल से उनमें काफी सुधार हुआ है।

अक्टूबर, 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी की सऊदी यात्रा के दौरान सैन्य रिश्तों को लेकर तीन अहम समझौते हुए थे। इसी दौरान दोनों देशों ने स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप कौंसिल की स्थापना का ऐलान किया था। जनरल नरवणे की यात्रा के दौरान पहली बार दोनों पक्षों के बीच उक्त पार्टनरशिप कौंसिल से जुड़े मुद्दों पर विमर्श किया गया। सऊदी अरब ने भारत समेत आठ देशों के साथ कौंसिल बनाने का फैसला किया है। भारत चौथा ऐसा देश है, जिसने सऊदी अरब के साथ स्ट्रैटेजिक कौंसिल का गठन किया है।

जनरल नरवणे ने सऊदी शाही थलसेना के कमांडर जनरल फहद बिन अब्दुल्ला मोहम्मद अल-मुतीर, चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल फैयाद बिन हामिद अल-रुवाइली और जॉइंट फोर्सेस के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल मुतलक बिन सलीम बिन अल-अज़ीमा से भी मुलाकात की। उन्होंने सऊदी अरब की थल सेना रॉयल सऊदी लैंड फोर्स के मुख्यालय, संयुक्त बल कमान मुख्यालय और किंग अब्दुल अजीज सैन्य अकादमी का दौरा भी किया। सऊदी अरब के राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय में छात्रों और संकाय कर्मियों को संबोधित भी किया।

इसके पहले यूएई में थलसेना के कमांडर मेजर जनरल सालेह मोहम्मद सालेह अल-अमेरी से भी वे मिले। सामरिक सहयोग के पहले चरण में संयुक्त अभ्यास और ट्रेनिंग शामिल है। इसके अलावा रक्षा-तकनीक के आदान-प्रदान और संयुक्त क्षेत्र में रक्षा-उत्पादन की योजनाएं भी हैं। हाल में भारतीय सेना के लिए कार्बाइनों की सप्लाई के लिए यूएई की सरकारी फर्म कैराकैल के साथ बात हुई है। उम्मीद है कि भारत में इस फर्म के सहयोग से एक उत्पादन केंद्र की स्थापना की जाएगी। इन देशों के सैनिक प्रतिनिधिमंडल एक-दूसरे के यहाँ जाएंगे।

सामरिक-राजनय

जनरल नरवणे का यह तीसरा विदेशी दौरा था। इससे पहले वे अक्टूबर में भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला के साथ म्यांमार गए थे और पिछले महीने ही नेपाल के दौरे से लौटे थे। इस दौरान म्यांमार को भारत ने एक पनडुब्बी दी है। भारत की कोशिश है कि म्यांमार पर चीन का प्रभाव कम किया जाए। इन तीनों दौरों को विदेश-नीति के संदर्भ में देखना चाहिए, जो खासतौर से रक्षा-नीति के साथ जुड़ी हुई है।

सामरिक सम्पर्कों की जरूरत वैश्विक-व्यवस्था और क्षेत्रीय-स्थिरता को बनाए रखने के लिए भी होती है। भारत और अरब देशों के रिश्तों में बदलाव की प्रक्रिया कई साल पहले शुरू हो गई थी, जो अब तार्किक परिणति पर पहुँच रही है। किसी भी देश के प्रभाव-क्षेत्र के विस्तार में विदेश-नीति के साथ सामरिक-नीति महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उभर कर आई है। पिछले दो दशकों में चीन की आर्थिक प्रगति के समांतर हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी नौसेना की उपस्थिति लगातार बढ़ती गई है। यह एक सहज प्रक्रिया है। भारत की आर्थिक प्रगति के साथ उसकी सामरिक पहुँच का विस्तार भी होगा।

सामरिक-शक्ति का अर्थ युद्ध नहीं है। शांति बनाए रखने के लिए भी उसकी जरूरत होती है। समुद्री मार्गों को सुचारु रखना और सुदूर सागर-मार्ग से गुजर रहे अपने कारोबारी पोतों को सुरक्षा देना देश की बुनियादी जरूरत होती है। भारत की आर्थिक-नीति के रूपांतरण के समांतर इक्कीसवीं सदी की शुरुआत से यह प्रक्रिया चल रही है।

अरब पूँजी की विदेश-यात्रा

यह यात्रा इस मायने में ऐतिहासिक है कि पहली बार कोई भारतीय सैनिक प्रमुख यूएई और सऊदी अरब का दौरा करके आया है। चीन, अमेरिका और जापान के बाद सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है। भारत सबसे ज़्यादा खनिज तेल सऊदी अरब से आयात करता है। अपनी जरूरत का 18 फीसदी पेट्रोलियम और 30 प्रतिशत द्रवीभूत पेट्रोलियम गैस हम सऊदी अरब से लेते हैं। अरब देश अब अपना ध्यान पेट्रोलियम से हटाकर दूसरे क्षेत्रों में लगाना चाहते हैं।

सऊदी अरब के वली अहद मोहम्मद बिन सलमान ने इसके लिए विजन-2030 तैयार किया है। भारत उभरती अर्थव्यवस्था है, जिसके साथ वे बेहतर रिश्ते बनाना चाहते हैं। खाड़ी के देशों में भारत के 85 लाख कामगार रहते हैं। केवल सऊदी अरब में ही 27 लाख से ज़्यादा भारतीय कामगार हैं जबकि यूएई की कुल आबादी के 30 फ़ीसदी लोग भारतीय हैं। जाहिर है कि भारत के हित इन देशों के साथ जुड़े हैं।

दोनों देशों ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक अलंकरण से सम्मानित किया है। यह प्रतीकात्मक गतिविधि है। पिछले महीने खबर थी कि यूएई की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी 45 अरब डॉलर के निवेश से पेट्रोकेमिकल प्लांट के लिए भारतीय पार्टनर की तलाश कर रही है। यह परियोजना महाराष्ट्र में लग सकती है। सऊदी पेट्रोलियम कम्पनी आराम्को ने भारत में 15 अरब डॉलर के पूँजी निवेश की योजना बनाई है। यों सऊदी अरब ने भारत में 100 अरब डॉलर और यूएई ने 75 अरब डॉलर के पूँजी निवेश का संकल्प किया है। दोनों को लगता है कि भारत ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। यूएई के साथ रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के सहयोग की नई संभावनाएं बनी हैं। बैंकिग, इंफ्रास्ट्रक्चर और एयरलाइंस के कारोबार में भी सहयोग की संभावनाएं हैं।

राजनीतिक राग-द्वेष

इस सहयोग के अलावा सऊदी अरब और तुर्की के रिश्तों में बढ़ती खलिश भी एक बड़ा कारण है। भारत और तुर्की के बीच हाल के वर्षों में रिश्ते खराब हुए हैं, जिसका असर इन रिश्तों की गरमाहट में देखा जा रहा है। उधर भारत के रिश्ते इजरायल के साथ अच्छे हैं। अरब देशों और इजरायल के बीच बढ़ती घनिष्ठता में भारत से अच्छे रिश्ते होना मददगार है।

हालांकि पिछले कुछ समय से सऊदी अरब और पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी आई है, पर यह नहीं मान लेना चाहिए कि यह रिश्ता टूट जाएगा या भारतीय सेना जरूरत पड़ने पर अरब देशों की सहायता के लिए मार्च करेगी। पाकिस्तानी पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ सऊदी अरब के नेतृत्व में गठित इस्लामिक-सैनिक गठबंधन के प्रमुख हैं। रिश्तों में क्रमिक बदलाव होगा, अलबत्ता उसकी संभावनाएं स्पष्ट होने लगी हैं।

यूएई और सऊदी कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म होने पर खामोश रहे। पाकिस्तान ने कोशिश की थी कि दोनों देश कुछ बोलें। हाल में नाइजर की राजधानी नियामे में ओआईसी विदेशमंत्रियों के सालाना सम्मेलन के घोषणापत्र में कश्मीर का औपचारिक जिक्र जरूर है, पर यह बात सब समझ रहे हैं कि अरब देशों की दृष्टि में बदलाव आ रहा है। इस साल अगस्त में पाकिस्तान के विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सऊदी अरब को लेकर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। उसके बाद उनके सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा को सऊदी अरब जाकर स्पष्टीकरण देना पड़ा था।

पश्चिमी हिंद महासागर में भारत और ओमान के बीच रक्षा संबंध पहले से बने हुए हैं। अब खाड़ी देशों के साथ इन रिश्तों का विस्तार होगा। इस साल भारत हिंद महासागर आयोग के पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुआ है। इसके तहत फ्रांसीसी अधिकार वाले रियूनियन द्वीप के अलावा कोमोरोस, मैडागास्कर, मॉरिशस तथा सेशेल्स के साथ रिश्ते प्रगाढ़ हुए हैं। भारत एक और क्षेत्रीय समूह जिबूती कोड ऑफ कंडक्ट का पर्यवेक्षक बना है। उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका में पायरेसी के खिलाफ यह बड़ी मुहिम है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में दो चरणों में हुए चार देशों के मालाबार युद्धाभ्यास ने भी हमारी सामरिक वरीयताओं को स्पष्ट किया है।  

नवजीवन में प्रकाशित

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


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