अयोध्या में राम मंदिर के समानांतर मस्जिद की स्थापना का कार्यक्रम जिस सकारात्मकता के साथ सामने लाया गया है उसका स्वागत होना चाहिए। उम्मीद करनी चाहिए कि यह कार्यक्रम धार्मिक संस्थाओं की सामाजिक भूमिका की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। मस्जिद और उससे जुड़ी दूसरी इमारतों में आधुनिक स्थापत्य तथा डिजायन का इस्तेमाल सोच-विचार की नई दिशा को बता रहा है।
मंदिर-मस्जिद विवाद के
फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत उ.प्र. सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या के
धन्नीपुर गांव में प्रदेश सरकार द्वारा दी गई पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद
के निर्माण की तैयारी शुरू हो गई है। इस निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने
इंडो-इस्लामिक फाउंडेशन के नाम से एक ट्रस्ट
गठित किया है।
इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट ने शनिवार 19 दिसंबर को अयोध्या प्रस्तावित उस मस्जिद के ब्लूप्रिंट को जारी किया, जो उस जमीन पर बनेगी, जो अयोध्या से जुड़े मुकदमे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मिली है। राज्य सरकार ने अयोध्या के धन्नीपुर गाँव में पाँच एकड़ जमीन इस काम के लिए दी है।
ट्रस्ट का कहना है कि यदि प्रस्तावित नक्शे को सम्बद्ध विभागों की स्वीकृति
मिल जाएगी, तो आगामी गणतंत्र दिवस पर इसका काम शुरू हो सकता है। यदि समय से परमीशन
नहीं मिली, तो काम शुरू होने की अगली तारीख स्वतंत्रता दिवस होगी।
इसके पहले ट्रस्ट ने इस बात की पुष्टि की थी कि मस्जिद के अलावा कुछ दूसरी
संस्थाएं भी इस जमीन पर बनाई जाएंगी। इनमें इंडो-इस्लामिक संस्कृति और अध्ययन से
जुड़ा शोध केंद्र, दातव्य अस्पताल, सामुदायिक रसोई, संग्रहालय और सार्वजनिक पुस्तकालय
का निर्माण भी यहाँ किया जाएगा।
शनिवार को लखनऊ के ट्रस्ट
के दफ्तर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वरिष्ठ वास्तुविद् और इस मस्जिद के डिजायनर
प्रो. एस.एम. अख्तर ने मस्जिद का डिजायन सार्वजनिक किया। इस मस्जिद के साथ अस्पताल,
प्रकाशन गृह व शोध केन्द्र आदि का भी निर्माण
करवाया जाएगा। यह जानकारी ट्रस्ट के प्रवक्ता अतहर हुसैन ने दी। उन्होंने जोर देकर
कहा कि इसका नाम बाबरी मस्जिद नहीं बल्कि धन्नीपुर मस्जिद होगा।
एक सवाल पर उन्होंने
बताया कि मस्जिद, अस्पताल आदि का
नक्शा अयोध्या जिला पंचायत में जमा होगा या अयोध्या विकास प्राधिकरण में ,इस बाबत वास्तुविद् प्रो. अख्तर ही राय देंगे।
इसी क्रम में चूंकि अस्पताल अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होगा और उसमें लगने वाले
उपकरण बाहर से मंगवाए जाएंगे इसलिए अभी इस पूरे निर्माण की लागत का आंकलन नहीं
किया गया है।
उन्होंने बताया कि इस मस्जिद, अस्पताल के साथ ही यहां अभिलेखागार व संग्रहालय भी बनेगा जिसमें भारतीय और इस्लामी संस्कृति की नायाब झलक मिलेगी।
प्रो. अख्तर ने बताया कि मस्जिद के साथ 200-बिस्तरों वाले सुपर स्पेशलिटी
अस्पताल की चार मंजिला बिल्डिंग बनेगी। मस्जिद की दो मंजिलें होंगी। इसकी इमारत
गोलाकार होगी। पूरी अवधारणा जलवायु परिवर्तन से जुड़े संदेश देने की है। फाउंडेशन
ट्रस्ट के सचिव और प्रवक्ता अतहर हुसेन ने कहा कि यह केवल प्रतीकात्मक काम नहीं
होगा, बल्कि हम इस इमारत को शून्य-ऊर्जा भवन (जीरो इनर्जी बिल्डिंग) बनाएंगे। इसकी
ऊर्जा से जुड़ी सभी जरूरतें सौर ऊर्जा पैनलों की मदद से पूरी की जाएंगी। इसके लिए
बिजली का कोई कनेक्शन नहीं लिया जाएगा।
उन्होंने कहा, इसके अलावा हम एक ग्रीन पैच विकसित करेंगे, जिसके लिए दुनियाभर
से पौधे लेकर आएंगे। इनमें अमेज़न के जंगलात और ऑस्ट्रेलिया की बुशफायर और भारत
में भी ऐसे ही हादसों से जुड़े पेड़ भी शामिल हैं। सामुदायिक रसोई और संग्रहालय के
सलाहकार व क्यूरेटर जवाहर
लाल नेहरू वि.वि.(जेएनयू) के प्रो. पुष्पेश पंत हैं। यह बात हमारी मिली-जुली
विरासत की प्रतीक है। उन्होंने यह भी कहा कि इस्लाम में किसी मस्जिद के शिलान्यास
के मौके पर शानदार समारोह करने की परंपरा नहीं है। जैसे ही उसका निर्माण पूरा हो
जाएगा, हम बड़ा समारोह करेंगे।
ट्रस्ट के अधिकारियों ने
बताया कि हमारे पास परियोजना के लिए धन-संग्रह की विस्तृत योजना नहीं है। एक मोटा
अनुमान है कि अस्पताल के निर्माण पर 100 करोड़ रुपये लगेंगे। निर्माण के लिए
धन-संग्रह करने के वास्ते दो बैंक खाते खोले गए हैं। एक मस्जिद के लिए और दूसरा अन्य
कार्यों के लिए।
ट्रस्ट के सदस्यों का कहना है हालांकि मस्जिद का नाम अभी तय नहीं है, पर यह तय
किया गया है कि इसका नाम बाबर या किसी और बादशाह के नाम पर नहीं रखा जाएगा।
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