दिल्ली के चुनाव परिणाम के
अनेक संकेत हैं, पर सबसे बड़ा संदेश है शहरी गरीब वोटर की महत्वपूर्ण होती भूमिका. मोटे तौर पर इन
परिणामों में बीजेपी, कांग्रेस और ‘आप’ तीनों के लिए कुछ संदेश छिपे हैं. ‘आप’ और बीजेपी दोनों अपनी सफलता का
दावा कर सकती हैं. बेशक ‘आप’ की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी और केजरीवाल
मुख्यमंत्री बनेंगे, पर उसकी सीटें कम हुई हैं और वोट प्रतिशत भी घटा है.
ऐसा तब हुआ है, जब कांग्रेस का काफी वोट ‘आप’ को ट्रांसफर हुआ.
बीजेपी की सीटों और वोट
प्रतिशत दोनों में वृद्धि हुई है, पर वह ‘आप’ को अपदस्थ करने में विफल
हुई है. सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ है, जो वोट प्रतिशत के आधार पर इतिहास
के सबसे निचले स्तर पर आ गई है. बहरहाल इतना तय है कि ये परिणाम आने वाले समय में
राष्ट्रीय राजनीति की धारा को बदलेंगे जरूर.
सन 2013 से अबतक दिल्ली में
विधानसभा के तीन और लोकसभा के दो चुनाव हुए हैं. ‘आप’ को 2013 में 29.43, 2014
में 32.90, 2015 में 54.3, 2019 में 18.0 और अब 53 फीसदी के आसपास वोट मिले हैं.
बीजेपी को क्रमशः 33.07, 46.40, 32.2, 56.58 और अब 39 फीसदी के आसपास वोट मिले
हैं. 2013 में 24.55 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस करीब 3 फीसदी पर आ गई है. इससे
दिल्ली दो ध्रुवीय राज्य हो गया है. दोनों के वोट प्रतिशत को देखें तो कहानी में
बदलाव नजर आता है.
‘आप’ के वोट प्रतिशत में मामूली सी गिरावट है और बीजेपी के करीब 7 फीसदी की वृद्धि
हुई है. यानी कांग्रेस के ज्यादातर वोट बीजेपी की तरफ गए हैं. मान लें कि उसके
मुस्लिम वोट ‘आप’ के खाते में गए हैं, तो इसका दूसरा मतलब यह हुआ कि ‘आप’ के भी कुछ वोट बीजेपी की ओर
झुके हैं. यानी अंतिम क्षणों के ध्रुवीकरण ने बीजेपी की मदद की है.
एक बात यह भी स्पष्ट है कि
दिल्ली का वोटर बिजली-पानी और दूसरी नागरिक सुविधाओं को महत्व देता है. ‘आप’ ने काम किया या नहीं, यह
बहस का विषय हो सकता है, पर इतना स्पष्ट है कि वोटर के मन में स्पष्ट था कि ‘आप’ ने काम किया है. बीजेपी का
कहना है कि ‘आप’ ने काम नहीं किया, बल्कि दिखावा किया.
ऐसा था भी तो बीजेपी इस बात
को वोटर को समझाने में कामयाब नहीं हुई, बल्कि पिछले साल के लोकसभा चुनाव की सफलता
से वह इतनी आत्म मुग्ध थी कि उसने इस दिशा में कुछ सोचा ही नहीं. इसके विपरीत
पिछले आठ-दस महीनों में ‘आप’ ने अपने प्रचार की दिशा ही बिजली, पानी, शिक्षा और
स्वास्थ्य पर केंद्रित रखी. इसका उसे लाभ मिला.
सबसे पहले कुछ सवालों को
लें. क्या इसे भारतीय जनता पार्टी के पराभव की शुरुआत मानें? क्या नागरिकता कानून के कारण उसकी राजनीति विचलित हो
गई है? क्या भारतीय जनता पार्टी अपने वजनदार केंद्रीय नेतृत्व के समांतर क्षेत्रीय
नेताओं और क्षेत्रीय प्रश्नों की अनदेखी कर रही है? क्या यह परिणाम शाहीनबाग आंदोलन की परिणति है? क्या कांग्रेस पार्टी इसे भुनाने में विफल रही? क्या केजरीवाल अब राष्ट्रीय
नेता बनकर उभरेंगे?
उपरोक्त सारे प्रश्न अभी बेमानी हैं. यह चुनाव नागरिकता कानून पर आमराय
नहीं था, बल्कि स्थानीय सवालों पर केंद्रित था. एक मायने में दिल्ली के चुनाव की
तुलना नगरपालिका चुनावों से करनी चाहिए. जहाँ तक केजरीवाल का सवाल है, यह सफलता
उन्हें राष्ट्रीय नेता नहीं बना पाएगी. 2015 के चुनाव की भारी सफलता के बाद
उन्होंने जैसे ही अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाया, उनका पराभव शुरू हो
गया था. पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस के भी पीछे तीसरे
नम्बर पर थी.
उसके बाद से केजरीवाल ने
राष्ट्रीय राजनीति के प्रसंगों से खुद को दूर रखा और केवल दिल्ली तक खुद को
केंद्रित रखा. अब यदि वे अगले पाँच साल में राजनीति के किसी नए मॉडल को स्थापित कर
पाए, तभी उन्हें राष्ट्रीय राजनीति के बारे में सोचना चाहिए. दूसरी तरफ भारतीय
जनता पार्टी को भी क्षेत्रीय प्रश्नों पर विचार करना चाहिए. सिर्फ़ भावनाओं के सहारे अनंत काल तक चुनाव
जीते नहीं जा सकेंगे.
बीजेपी की पिछले लोकसभा चुनाव में भारी विजय के पीछे पुलवामा
वगैरह के अलावा ग्रामीण गरीबों के कल्याण के लिए लागू की गई उसकी योजनाएं भी थीं.
अब अगले एक दशक में ग्रामीण आबादी का भारी पलायन शहरों की ओर होगा या बड़े गाँव
शहरों की शक्ल लेंगे. बीजेपी को अब शहरी गरीबों के कल्याण पर ध्यान देना होगा.
चुनाव परिणाम आने के बाद
पार्टी के प्रवक्ता संजय सिंह ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए दिल्ली की जनता
को धन्यवाद किया है. इस मौके पर उन्होंने कहा कि केजरीवाल को कोई नहीं हरा सकता. परिणाम आने के एक दिन
पहले पार्टी के सोशल मीडिया सेल की एक कार्यकर्ता ने ट्वीट किया, जिसका भावार्थ था
कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में जो शुरुआत की है, उसपर दूसरे राज्यों ने भी चलना
शुरू कर दिया है. इस ट्वीट को अरविंद केजरीवाल ने रिट्वीट किया और अपनी टिप्पणी
लगाई जिसका आशय था कि दिल्ली ने सस्ती बिजली ने राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श को दिशा
दी है और साबित किया है कि इससे वोट भी मिलते हैं.
इस ट्वीट श्रृंखला
की शुरुआत इस खबर के साथ हुई थी कि केजरीवाल के फॉर्मूले से प्रभावित होकर
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में सस्ती बिजली देने का कार्यक्रम बनाया
है. दिल्ली में फिर से भारी विजय के बाद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता फिर से कहने
लगे हैं कि हमें राष्ट्रीय राजनीति में फिर से प्रवेश करना चाहिए. ऐसा होगा या
नहीं कहना मुश्किल है, पर इतना तय है कि इस चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रीय राजनीति
के सरोकारों में बदलाव जरूर आएगा.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.02.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3610 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क