Sunday, February 16, 2020

‘आप’ की जीत पर कांग्रेस की कैसी खुशी?


दिल्ली में आम आदमी पार्टी की भारी जीत के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने ट्वीट किया, 'आप की जीत हुई, बेवकूफ बनाने तथा फेंकने वालों की हार। दिल्ली के लोग, जो भारत के सभी हिस्सों से हैं, ने बीजेपी के ध्रुवीकरण, विभाजनकारी और खतरनाक एजेंडे को हराया है। मैं दिल्ली के लोगों को सलाम करता हूं जिन्होंने 2021 और 2022 में अन्य राज्यों के लिए, जहां चुनाव होंगे मिसाल पेश की है।' इस ट्वीट के निहितार्थ को समझने के पहले कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी के दो ट्वीट पर भी ध्यान देना चाहिए।
चिदंबरम के ट्वीट के पहले उन्होंने ट्वीट किया, ''हम फिर से एक भी सीट नहीं जीत पाए. आत्ममंथन बहुत हो गया अब एक्शन लेने की ज़रूरत है। शीर्ष के नेताओं ने फ़ैसले लेने में बहुत देरी की। हमारे पास कोई रणनीति नहीं थी और न ही एकता थी। कार्यकर्ताओं में निराशा थी और ज़मीन से कोई जुड़ाव नहीं था। कांग्रेस पार्टी के संगठन का हिस्सा होने के नाते मेरी भी ज़िम्मेदारी है।''

शर्मिष्ठा के इस ट्वीट के पीछे एक ईमानदार कार्यकर्ता की भावना और असंतोष दोनों छिपे थे। हाल के वर्षों में कांग्रेस के भीतर से ऐसी प्रतिक्रियाएं अक्सर दिखाई और सुनाई पड़ रही हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक लहरें चलने लगी हैं, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि पार्टी के कार्यकर्ता हतोत्साहित हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि किससे अपनी बात कहें। चिदंबरम के ट्वीट के बाद शर्मिष्ठा ने एक जवाबी ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस की हार पर पार्टी को ही निशाने पर लिया।
उन्होंने चिदंबरम से पूछा मैं बड़े सम्मान के साथ आपसे यह पूछना चाहती हूँ कि क्या बीजेपी को हराने का काम हमने राज्यों के दलों को आउटसोर्स कर दिया है? यदि नहीं, तो फिर हम अपनी पराजय पर चिंतित हुए बगैर आप की विजय पर खुश क्यों हो रहे हैं? यदि मेरे सवाल का जवाब हाँ है, तो राज्यों के कांग्रेस दफ्तरों को हमें बंद कर देना चाहिए!
दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी को इस बात पर अफसोस नहीं है कि दस साल तक दिल्ली विधानसभा कांग्रेस विधायकों का मुँह नहीं देख पा रही है। बेशक पार्टी नेतृत्व को इस बात पर तकलीफ होगी और जरूरी नहीं कि वह इस मामले में आत्ममंथन खुले बाजार में करे, पर आप की जीत पर चिदंबरम की विद्रूप हँसी उसकी राजनीतिक समझ को व्यक्त करती है। लगता है जैसे चिदंबरम पर सामंती दौर की व्यक्तिगत रंजिश का भूत सवार है।
पार्टी के भीतर से जयराम रमेश और शशि थरूर जैसे गंभीर राजनेता इस बात को बार-बार कह रहे हैं कि हमें अपनी प्रतिक्रियाओं के मार्फत संयम और धैर्य का परिचय देना चाहिए और अपनी साख बनानी चाहिए। दिल्ली की हार के बाद शर्मिष्ठा मुखर्जी के अलावा मिलिन्द देवड़ा, जयवीर शेरगिल और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपनी टिप्पणियों में असंतोष व्यक्त किया है। इस पराजय का तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि पार्टी के प्रदेश प्रभारी पीसी चाको और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
इस दौरान पीसी चाको के एक बयान ने भी सबका ध्यान खींचा। उन्होंने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस का पराभव 2013 में ही शुरू हो गया था। उन्होंने प्रकारांतर से सारी जिम्मेदारी शीला दीक्षित पर डाल दी, जो आज जवाब देने के लिए जीवित नहीं हैं। विवाद बढ़ने के बाद चाको ने सफाई देते हुए कहा कि मैं शीला दीक्षित को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा था, बल्कि तथ्य रख रहे था कि किस तरह पार्टी का प्रदर्शन आहिस्ता-आहिस्ता खराब होता चला गया। चाको का कहना है कि कांग्रेस का पारंपरिक वोटबैंक आप की तरफ चला गया है। अब इसके लौटने की उम्मीद बहुत कम है।
पीसी चाको और शीला दीक्षित के मतभेद पिछले लोकसभा चुनाव के पहले उजागर हुए थे, जब पार्टी के सामने आम आदमी पार्टी के साथ गठजोड़ का सवाल खड़ा हुआ। सच यह है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आप को तीसरे नम्बर पर छोड़ दिया था, पर विधानसभा चुनाव में कहानी पूरी तरह बदल गई। सबसे ज्यादा शर्मिंदगी की बात यह रही कि जिन 66 सीटों पर उसने चुनाव लड़ा, उनमें से 63 पर उसके उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा पाए। फिर भी उसके नेताओं ने आम आदमी पार्टी को उछल-उछल कर मुबारकबाद दी। कांग्रेस पार्टी का दिल्ली में वोट शेयर सन 2015 में 9.7 प्रतिशत था, जो इसबार घटकर 4.26 हो गया है।
कांग्रेस के जीवन में 134वाँ साल सबसे भारी पराजय का साल रहा है। गत दिसम्बर में पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक इंटरव्यू में कहा कि यह हमारे लिए संकट की घड़ी है। ऐसा संकट पिछले 134 साल में कभी नहीं आया। पाँच साल पहले हमारे सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हुआ था, जो आज भी है। कोई जादू की छड़ी हमारी पार्टी का उद्धार करने वाली नहीं है। अभी तक यह तय नहीं है कि पार्टी का भविष्य का नेतृत्व कैसा होगा। विडंबना है कि पार्टी की उम्मीदें अब अपने पुनरोदय पर नहीं भारतीय जनता पार्टी के पराभव पर टिकी हैं।
पिछले साल मई में लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद इतिहास लेखक राम गुहा ने ट्वीट किया कि हैरत की बात है कि राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं दिया है। पार्टी को अब नया नेता चुनना चाहिए। परिणाम आने के पहले योगेन्द्र यादव ने कहीं कहा कि कांग्रेस को मर जाना चाहिए। पार्टी का सबसे बड़ा एजेंडा आज भी यही है कि किसी तरह से राहुल गांधी को लाओ। उसके पास क्षेत्रीय नेता नहीं हैं और उन्हें तैयार करने की योजना भी नजर नहीं आती।
दिल्ली के बाद इस साल बिहार के चुनाव हैं। उसके अगले साल यानी 2021 में असम और पश्चिम बंगाल के महत्वपूर्ण चुनाव हैं, जो राष्ट्रीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं। इन तीनों में कांग्रेस के लिए कोई उत्साहवर्धक संदेश नहीं है। अप्रैल में कांग्रेस महासमिति की बैठक उदयपुर में होगी। उसमें कांग्रेस आत्ममंथन करने वाली है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि आत्ममंथन नहीं, यह तय होना है कि राहुल को फिर से किस तरह से अध्यक्ष बनाया जाए। यह भी कांग्रेस का एक महत्वपूर्ण सत्य है।
हरिभूमि में प्रकाशित

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