Saturday, September 14, 2013

सैर करनी है तो अंतरिक्ष में आइए

 आपकी जेब में पैसा है तो अगले साल गर्मियों की छुट्टियाँ अंतरिक्ष में बिताने की तैयारी कीजिए। रिचर्ड ब्रॉनसन की कम्पनी वर्जिन एयरलाइंस ने पिछले शुक्रवार को अपने स्पेसक्राफ्ट वर्जिन गैलेक्टिकका दूसरा सफल परीक्षण कर लिया। वर्जिन गैलेक्टिक पर सवार होकर अंतरिक्ष में जाने वालों की बुकिंग शुरू हो गई है। एक टिकट की कीमत ढाई लाख डॉलर यानी कि तकरीबन पौने दो करोड़ रुपए है, जो डॉलर की कीमत के साथ कम-ज्यादा कुछ भी हो सकती है। वर्जिन गैलेक्टिक आपको किसी दूसरे ग्रह पर नहीं ले जाएगा। बस आपको सब ऑर्बिटल स्पेस यानी कि पृथ्वी की कक्षा के निचले वाले हिस्से तक लेजाकर वापस ले आएगा। कुल जमा दो घंटे की यात्रा में आप छह मिनट की भारहीनता महसूस करेंगे। जिस एसएस-2 में आप विराजेंगे उसमें दो पायलट होंगे और आप जैसे छह यात्री। लगे हाथ बता दें कि इस यात्रा के लिए जून के महीने तक 600 के आसपास टिकट बिक चुके हैं। वर्जिन गैलेक्टिक की तरह कैलीफोर्निया की कम्पनी एक्सकोर ने लिंक्स रॉकेट प्लेन तैयार किया है। यह भी धरती से तकरीबन 100 किलोमीटर की ऊँचाई तक यात्री को ले जाएगा।


अंतरिक्ष हमारे मन में रोमांच पैदा करता है। चाँद-सितारों के देश में जाने की बात हम सिर्फ सपनों में ही सोचते हैं। पर शायद यह सपना हमारे जीवन काल में पूरा हो जाए। चूंकि सब कुछ तयशुदा नहीं है। अंतरिक्ष के बारे में अंतरराष्ट्रीय संधिया हैं, पर उनका यथेष्ट स्पष्टीकरण नहीं है इसलिए दुनिया भर में तमाम निजी कम्पनियाँ खड़ी हो रहीं हैं। कोई मंगल ग्रह की सैर करा रही है तो कोई चन्द्रमा की। इससे ज्यादा रोचक है मंगल और चाँद पर जमीन बेचने वालों की। इंटरनेट पर तमाम वैबसाइट चल रहीं हैं जो चन्द्रमा पर प्लॉट बेच रहीं हैं। इसके विपरीत इंटरनेट पर ऐसी वैबसाइटें भी हैं जो दावा करती हैं कि मनुष्य की अंतरिक्ष यात्रा की कहानियाँ झूठी हैं। अमेरिका का चन्द्र अभियान झूठा था। किसी नील आर्मस्ट्रांग ने चाँद की जमीन पर पैर नहीं रखे। मंगल पर कोई रोवर नहीं उतरा। जो तस्पीरें दिखाई जाती हैं उनकी शूटिंग नेवादा के रेगिस्तान में की गई है। क्या वजह है कि दुनिया की सरकारें मंगल और चाँद पर जमीनें बेचने वालों पर पाबंदियाँ नहीं लगा पाती हैं? सन 1967 की संयुक्त राष्ट्र आउटर स्पेस संधि के अनुसार अंतरिक्ष सम्पूर्ण मानवजाति का प्रांतर है। किसी देश उसे अपनी मिल्कियत घोषित नहीं कर सकता। पर ऐसे लोग हैं, जो दावा करते हैं कि चाँद की दस फीसदी जमीन मैने बेच दी। और उसे खरीदने वाले भी हैं। 

निजी अंतरिक्ष यात्राओं के बारे में जानकारी लेने के पहले कुछ बुनियादी बातों पर हमें ध्यान देना चाहिए। अंतरिक्ष यात्राएं साठ के दशक में अमेरिका और रूस के बीच अपनी तकनीकी और वैज्ञानिक सामर्थ्य का परिचय देने के लिए शुरू हुईं थीं। शीतयुद्ध के दौर में ये टकराव की प्रतीक थीं। पर अब इनमें सहयोग है। प्रतियोगिता के साथ-साथ मनुष्य जाति के कल्याण की कामना भी जुड़ती चली गई। और इसका प्रतीक है अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
अंतरिक्ष में इस वक्त एक अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन और दूसरा चीन का तियांगांग स्पेस स्टेशन सक्रिय है। चीनी स्पेस स्टेशन अभी निर्माण की प्रक्रिया में है। अंतरिक्ष स्टेशन को ऑर्बिटल स्टेशन के नाम से भी जाना जाता है। इंसानों के रहने योग्य यह एक उपग्रह होता है, जिसे इस प्रकार डिजाइन किया जाता है कि अंतरिक्ष में लम्बे समय तक रहा जा सके। वर्ष 1998 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण शुरु हुआ था। पहले इसे सिर्फ 15 साल के लिए अंतरिक्ष में रखने की बात थी लेकिन एक करार के बाद इसका इस्तेमाल 2020 तक किया जाएगा। सबसे पहला स्पेस स्टेशन सैल्यूत-1 था जिसे 1971 में सोवियत संघ ने छोड़ा था।

यह स्टेशन पहले धरती पर बनाया गया, फिर छोड़ा गया। इसके बाद सैल्यूत-2, 3, 5, 6 और 7 भेजे गए। इसके बाद 1986 में मीर स्टेशन भेजा गया, जिसने सन 2001 तक काम किया। स्पेस स्टेशन का एक उद्देश्य यह है कि कई अंतरिक्ष यात्री लम्बे समय तक अंतरिक्ष में रहकर प्रयोग कर सकें। इन दिनों इंटरनेशनल् स्पेस स्टेशन बाहरी अन्तरिक्ष में काम कर रहा है। इसे बनाने में अमेरिका की नासा के साथ रूस की रशियन फेडरल स्पेस एजेंसी (आरकेए), जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए), कनाडा की कनेडियन स्पेस एजेंसी (सीएसए) और यूरोपीय देशों की संयुक्त यूरोपीयन स्पेस एजेंसी (ईएसए) काम कर रही हैं। अभी इस स्टेशन का विस्तार हो ही रहा है। सामान्यतः यह स्टेशन धरती से 354 किलोमीटर दूर रहता है, इसमें वातावरण के बदलाव के कारण मामूली फर्क पड़ सकता है।
कानूनी व्यवस्था
शुरुआती अंतरिक्ष यात्री वायुसेना से लिए जाते थे। इसकी वजह उनका आकाश में उड़ने का अनुभव और दमखम था। अब धीरे-धीरे गैर-सैनिक यात्री भी अंतरिक्ष में उड़ान भर रहे हैं। दूसरी बात यह कि शुरुआती अंतरिक्ष यात्राएं सरकारी साधनों से संचालित होती थीं और उनपर पूरा स्वामित्व सरकारों का होता था। पर अब धीरे-धीरे निजी क्षेत्र इसमें प्रवेश कर रहा है। अंतरिक्ष-पर्यटन, अंतरिक्ष में होटल, अंतरिक्ष में खेल-कूद, दूसरे ग्रहों पर निवास, वहाँ की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन जैसे मसले सामने आ रहे हैं। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों की जरूरत भी होगी। सन 1959 में संयुक्त राष्ट्र ने कमेटी ऑन द पीसफुल यूसेस ऑफ आउटर स्पेस (सीओपीयूओएस यानी कूपस) बनाई। इसकी दो उप समितियाँ बनीं। एक तकनीकी और वैज्ञानिक मामलों पर और दूसरी कानूनी मसलों से जुड़ी। इसके बाद से संयुक्त राष्ट्र की पाँच अंतरराष्ट्रीय संधियाँ अंतरिक्ष को लेकर हो चुकी हैं। सबसे ताजा है 1979 की चन्द्रमा संधि। इन संधियों का उद्देश्य यह है कि अंतरिक्ष को सम्पूर्ण मानवता की सम्पदा माना जाए साथ ही यदि कोई देश या संस्था इसके कारोबारी इस्तेमाल के बारे में सोचे तो उसका नियमन किया जाए। इसमें 1967 की आउटर स्पेस ट्रीटी सबसे महत्वपूर्ण है, जिसपर 100 से ज्यादा देशों ने दस्तखत किए हैं।

अंतरिक्ष यात्रा सिर्फ मौज-मस्ती और सैर-सपाटे के लिए ही खुलने वाली नहीं है। आने वाले समय में इसके कारोबारी मायने भी हैं। उसी तरह जैसे धरती पर आर्कटिक और अंटार्कटिक की प्राकृतिक दोहन के मायने हैं। वर्जिन गैलेक्टिक और एक्सकोर एयरोस्पेस रॉकेट मोटर के सफल अंतरिक्ष प्रयोगों के बाद कहा जा सकता है कि ये अंतरिक्ष टूरिज्म के एक युग की शुरुआत है। हालांकि इस यात्रा में आने वाला प्रति व्यक्ति खर्च इतना ज़्यादा है कि फिलहाल इसे सिर्फ अमीर लोग ही उठा पाएंगे। महंगा होने के अलाव आपको अंतरिक्ष देखने और समझने के लिए बेहद कम समय मिलेगा। इससे आप अंतरिक्ष वैज्ञानिक नहीं बन पाएंगे। हाँ आप समझ पाएंगे कि अंतरिक्ष कैसा होता है। बहरहाल अभी तक किसी गैर-सरकारी यात्री को अंतरिक्ष में भेजने का काम सिर्फ रूसी स्पेस एजेंसी ने किया है, जिसने सन 2001 से 2009 के बीच आठ बार प्राइवेट यात्रियों को अंतरिक्ष की सैर कराई भारी फीस लेकर। इसके लिए स्पेस एडवेंचर्स लिमिटेड, वियना ने रूसी संस्था के साथ मिलकर काम किया। चूंकि अतंरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर जगह नहीं थी इसलिए यह काम रुक गया था। अब इस संस्था ने घोषणा की है कि जल्द यह कार्यक्रम फिर शुरू किया जाएगा। अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने के सबसे क़रीब आपको यही स्पेस एडवेंचरकार्यक्रम ले जाता है, जिसके अंतर्गत यात्री को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में दस दिनों तक रहने का मौका मिलता है। इसके लिए वह चुकाता है करीब दो अरब 75 करोड़ रुपए। वर्जिन एयरलाइंस के कार्यक्रम के मुकाबले यह वास्तव में अंतरिक्ष यात्रा है। वर्जिन जैसी एक दर्जन से ज्यादा संस्थाएं इन दिनों अपने यान विकसित करने में जुटी हैं।
हाल में सबसे चर्चित हुआ है मार्स वनमिशन। नीदरलैंड्स के एक समूह की योजना लोगों को मंगल ग्रह पर भेजने की है। और यह मिशन इतना महत्वाकांक्षी है कि इसे पागलपन भी कह सकते हैं। मिशन की योजना साल 2023 तक मंगल ग्रह को रिहायशी स्थान बनाने की है। इस मिशन की दूसरी खासियत यह है कि इस पर जाने वाले यात्रियों की धरती पर वापसी की कोई सम्भावना नहीं है। आप कहेंगे कि कौन जाएगा ऐसी यात्रा पर तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक लाख से ज्यादा लोग मंगल पर जाने की अर्जी दे चुके हैं। पृथ्वी से मंगल और वापसी का भी एक कार्यक्रम है इंस्पिरेशन मार्स। 18 महीने की इस यात्रा में यात्री मंगल ग्रह की सतह पर उतरेंगे। यह योजना अभी बन ही रही है, क्योंकि आयोजकों के पास पैसों का इंतजाम पूरी तरह हुआ नहीं है।
गोल्डन स्पाइकनामक कम्पनी ने चंद्रमा की यात्रा का है। इसका खर्च है तकरीबन 70 अरब रुपए। आपके पास अरबों रुपए या बेहतरीन व्यक्तित्वन हो तो कृपया अंतरिक्ष यात्री बनने के बारे में न सोंचे।



Box.1
मंगल ग्रह की यात्रा या सुसाइड मिशन?
मार्स वनका लक्ष्य 2023 तक मंगल पर 4 अंतरिक्ष यात्री भेजना है। संगठन का उद्देश्य है 2023 तक चार इंसानों को मंगल पर भेजना और उसका एक 'ग्लोबल रियलिटी टीवी शो' तैयार करना। इस शो को टीवी चैनलों के माध्यम से पूरी दुनिया में दिखाया जाएगा। बाद में यह हर 2 वर्ष में 4 से 10 लोगों को मंगल पर भेजेंगे। साल 2022 में प्रस्तावित यह यात्रा केवल वहाँ जाने के लिए है, वापस आने के लिए नहीं। इस सवाल का जवाब वैज्ञानिकों के पास आज भी नहीं है कि मंगल पर इंसान जीवित कैसे रहेगा।  इसके बाद भी लोग मार्स वन प्रोजेक्ट पर दस्तखत कर रहे हैं। इस योजना की शुरुआती लागत 6 अरब डॉलर (360 अरब रुपए से ज्यादा) होगी। धारावाहिक बिग ब्रदरके निर्माता पॉल रोमर इसके फाइनेंसर बने हैं। ब्रॉडकास्टिंग राइट्स और प्रायोजकों से इसकी ज्यादातर लागत निकल जाएगी। यह आइडिया 35 वर्षीय इंजीनियर बास लैंसड्रॉप का है। उनकी इस योजना को 1999 में भौतिकी का नोबेल प्राप्त कर चुके वैज्ञानिक गेरार्ड टी हूफ्ट तकनीकी और वैज्ञानिक सहायता देंगे। हालांकि इस योजना के लिए एक लाख से ज्यादा लोगों ने पंजीकरण कराया है, पर लैंसड्राप ने यह नहीं बताया कि कितने लोगों ने फीस का भुगतान कर दिया है। यात्रा पर जाने के लिए उम्र 18 साल या उससे अधिक होनी चाहिए। लेकिन इसकी फीस अलग-अलग देश के लोगों के लिए अलग-अलग है। लैंसड्राप ने कहा,''हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग इसके बारे में सोचें और कम से कम लोग इसे वहन करें। जहाँ तक पहले दल की बात है, तो इस पर छह अरब डॉलर का खर्च आएगा।'' मंगल पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को आठ साल का प्रशिक्षण लेने की जरूरत होगी। इस दौरान वे घर की मरम्मत करना, सीमित जगह में सब्जियाँ उगाना, दाँत दर्द, मांसपेशियों के दर्द और हड्डियों के टूटने का इलाज करना सीखेंगे। मंगल पर भेजे जाने वाले कैप्सूल और रोबोटिक व्हीकल का ग्राफिकल वीडियो और स्टीम्युलेशन तैयार कर लिया गया है। लैंडिंग कैसे होगी, लोग कैसे रहेंगे इसकी रूपरेखा बना ली गई है। वैज्ञानिक कहते हैं कि इस 7 से 8 माह की यात्रा के दौरान व्यक्ति का वजन तेजी से घटेगा, मांस और हड्डियां कमजोर हो जाएगी और रेडिएशन के कारण उसे कैंसर भी हो जाएगा ऐसे में इस यात्रा का कोई महत्व नहीं है क्योंकि व्यक्ति मंगल ग्रह पर पहुंचने के पहले ही मर जाएगा।


जो लोग सदा के लिए मंगल ग्रह पर चले जाना चाहते हैं उनके जीवन की यह अंतिम यात्रा होगी। जिसमें वे पुन: धरती पर नहीं लौट सकते हैं। कोई वहां पहुंच गया तो उसके दो साल तक जीवित रहने लायक खाने-पीने रहने का इंतजाम किया जाएगा। किसी तरह उसने खुद को दो साल जीवित रखा तो उसकी मुलाकात उसके ही जैसे साथी से होगी। हर दो साल बाद धरती से 4 और 10-10 के समूह में यात्री मंगल जाएंगे। इस तरह मंगल पर मानवों की एक बस्ती निर्माण करने की योजना पर तेजी से काम चल रहा है।

आप पूछ सकते हैं कि मंगल ग्रह की यात्रा के लिए ऐसा टिकट क्यों दिया जा रहा है जिसमें वापस आना सुनिश्चत नहीं है? पर यह टिकट कोई सरकार, या वैज्ञानिक संस्था नहीं दे रही है बल्कि एक प्राइवेट कंपनी दे रही है। इस मामले में नासा से जुड़े अं‍तरिक्ष वैज्ञानिकों की चुप्पी से पता चलता है कि वे भी चाहते हैं कि प्रयोग के तौर पर इंसानों को मंगल भेजा जाए और इसके परिणाम जाने जाएं।
800 से ज्यादा भारतीय
हाल में खबर थी कि 800 भारतीय भी मंगल ग्रह की इस यात्रा की कतार में हैं। भारत 27 अगस्त को 8107 आवेदकों के साथ दुनिया में विभिन्न देशों के बीच चौथे स्थान पर था। पंजीकरण कराने वाले शीर्ष दस देश अमेरिका (37852) चीन (13124), ब्राजील (8686), भारत (8107), रूस (7138), ब्रिटेन (6999), मैक्सिको (6,771), कनाडा (6593), स्पेन (3621) और फिलीपीन (3516) हैं। पंजीकरण की अंतिम तिथि 31 अगस्त थी। और 'मार्स वन' को 165000 लोगों के आवेदन मिल गए थे, जो मंगल पर बसने वाले पहले मानव बनने की आस लगाए हैं।
Box.2
मंगल पर जीवन
बावजूद अटकलबाजियों के मंगल पर इस तरह के चिह्न मिले हैं जिनसे साबित होता है कि कभी इस लाल ग्रह पर पानी एक जगह से दूसरी जगह बहता होगा। यानी कभी यहाँ जीवन सम्भव था। अगर वहां पानी की मौजूदगी का पता चला तो उसकी सहायता से ऑक्सीजन का निर्माण किया जाएगा। ब्रॉवन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शोध के बाद यह दावा किया है। उनका कहना है कि एक समय मंगल पर सक्रिय हाइड्रोलॉजी रही है और जीवन के साक्ष्य खोजने के लिए यह बेहतर जगह है। वैज्ञानिक मानते हैं कि मंगल पर सौर तूफान सबसे बड़ा खतरा है, लेकिन उससे निपटने के इंतजाम कर लिए जाएं तो मंगल पर बस्ती बनाकर रहा जा सकता हैं। इस सबके कारण ही निजी कम्पनियों को मंगल ग्रह पर रहने के सपने बेचने में आसानी हो रही है।

Box.3
बिक रही है चाँद की जमीन
एक ब्रिटिश दंपती का दावा है कि उन्होंने चाँद पर प्लॉट बेचकर चार साल में 40 लाख डॉलर यानी करीब 24 करोड़ रुपये कमाए हैं। विलियम्स दम्पति की कंपनी मूनस्टेट्स 20 डॉलर (करीब 1300 रु) प्रति एकड़ की दर से चाँद पर जमीन बेच रही है। हालांकि धरती के बाहर जमीन खरीदने का यह शौकिया ट्रेंड मात्र है। फ्रांसिस विलियम्स और उनकी पत्नी सू अपनी कंपनी मूनस्टेट्स के जरिए पिछले कई सालों से चाँद पर जमीन बेचने के अलावा मंगल और शुक्र जैसे अन्य ग्रहों पर भी प्लॉट ऑफर कर रहे हैं। प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने कहा है कि इंसान को जिंदा रहना है, तो कुछ समय बाद धरती छोड़ कर कहीं और डेरा डालना होगा। रोचक बात यह है कि ब्रिटिश दम्पति ने चाँद पर जमीन बेचने का अधिकार अमेरिका के डेनिस होप से हासिल किया है, जिन्होंने 1980 में सौरमंडल के सभी ग्रहों का मलिक होने का दावा किया था। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की 1967 की आउटर संधि को चुनौती दी। इस संधि के मुताबिक कोई भी देश या सरकार अंतरिक्ष में किसी जमीन पर मालिकाना हक नहीं जता सकती। होप ने दलील दी कि इसमें किसी व्यक्ति के दावे पर मनाही नहीं है। उन्होंने अमेरिकी सरकार और सयुंक्त राष्ट्र महासभा में अपने दावे का बाकायदा एक घोषणा पत्र भी दाखिल किया।विलियम्स दंपती ने पहले चांद पर एक प्लॉट खरीदा। उसके बाद होप की कंपनी ने उन्हें चाँद पर जमीन बेचने का पहला फ्रेंचाइज दे दिया। सू का कहना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग और पृथ्वी को लेकर ढेर सारी डरावनी बातें हो रही हैं। हम सिर्फ किसी अन्य ग्रह पर रहने की संभावनाएं बेच रहे हैं।

इसी तरह चीन की एक कम्पनी चाँद पर जमीन बेच रही थी, पर वहाँ की अदालत ने उसे रोक दिया। बीजिंग न्यूज नामक अखबार के मुताबिक बीजिंग स्थित कम्पनी लूनर एम्बेसी-टू चाइना की याचिका को अदालत ने खारिज किया। यह कम्पनी लोगों को चाँद पर प्लॉट बेच रही थी। उद्योग एवं वाणिज्य प्रशासन ने कम्पनी का लाइसेंस रद्द कर दिया था। उस पर अक्टूबर 2005 में 50,000 युआन का आर्थिक दंड लगाया गया था। इस कम्पनी ने तब हाईदियान डिस्ट्रिक पीपुल्स कोर्ट में अपील की थी, जिसे नवम्बर 2005 में खारिज कर दिया गया। अदालत के इस फैसले के खिलाफ कम्पनी ने पेइचिंग की जन-अदालत याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया।


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