यह बैठक भले ही बुलाई नीतीश कुमार ने है, पर उन्हें ममता बनर्जी ने प्रेरित किया है। विरोधी दलों की एकता पर सभी दलों की सिद्धांततः सहमति है, पर नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और के चंद्रशेखर राव के दृष्टिकोण कुछ अलग हैं। चंद्रशेखर राव तो इस बैठक में शामिल ही नहीं हो रहे हैं। सब जानते हैं कि तेलंगाना में उनका मुकाबला कांग्रेस पार्टी से है।
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला
बीजेपी के अलावा वाम मोर्चा से है। वे चाहती हैं कि कांग्रेस और वाममोर्चा के
रिश्ते स्पष्ट हों। उधर पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष और लोकसभा में
कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इंडियन एक्सप्रेस के साथ इंटरव्यू में कहा कि
ममता 'गठबंधन राजनीति' की सबसे
कमज़ोर कड़ी हैं। विपक्षी एकता को कमज़ोर करने में उन्होंने हमेशा ट्रोजन
हॉर्स की भूमिका निभाई है।
मीटिंग में हिस्सा लेने वालों की सूची में
कांग्रेस नेता राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे,
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, शिवसेना (उद्धव)
मुखिया उद्धव ठाकरे, आप नेता अरविंद केजरीवाल और सपा
अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत अन्य नेता हैं। ममता बनर्जी और स्टालिन 22 जून को ही पटना पहुंच रहे हैं, जबकि बाकी नेता 23 जून को पहुंचेंगे और बैठक के बाद उसी दिन वापस चले जाएंगे।
इस रणनीति की सबसे महत्वपूर्ण डोर कांग्रेस के
हाथ में हैं। उसका रुख अब तक साफ नहीं है। राहुल गांधी ने बीजेपी के खिलाफ विपक्ष
के एकजुट होने की बात कई बार कही है, पर पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने रायपुर
में यह भी साफ कहा था कि इस एकता के केंद्र में कांग्रेस होगी। बहरहाल अब 23 जून
की बैठक का जो कार्यक्रम जारी हुआ है, उससे समझ में आता है कि कम से कम दो नेताओं
के वक्तव्य इस एकजुटता के व्यावहारिक पक्ष को स्पष्ट करेंगे।
नीतीश कुमार का बीज वक्तव्य इस बैठक की टोन तय
करेगा, जो सबसे पहले होगा और राहुल गांधी का वक्तव्य सबसे अंत में होगा, जिसमें
नीतीश कुमार के सवालों के जवाब भी होंगे। पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह बैठक
नीतीश कुमार की पहल पर आयोजित की जा रही है। तारीख में बार-बार हुए बदलाव से
स्पष्ट है कि इसके आयोजन में कांग्रेस की सुविधा का खास ध्यान रखा गया है। कुल
मिलाकर विरोधी-एकता की संभावनाएं और उसकी विसंगतियाँ इस बैठक में नज़र आएंगी।
बैठक में नीतीश कुमार के संबोधन के बाद कांग्रेस
के मल्लिकार्जुन खरगे अपनी बात रखेंगे। इस प्रकार कांग्रेस को अपनी बात रखने को दो
महत्वपूर्ण मौके मिलेंगे। भाजपा से खिलाफ ‘वन फॉर वन’ फॉर्मूले को बनाने के लिए कई प्रकार
के भागीदारों की भूमिका है, पर यह सहयोग केवल सीटों का ही नहीं हो सकता। राजनीतिक
सहयोग की जरूरत भी होगी। मसलन दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था में बदलाव के लिए लाए
गए अध्यादेश के स्थान पर विधेयक लाया जाएगा, तब पार्टियों की भूमिका क्या होगी?
ममता बनर्जी ने ही विपक्षी एकजुटता को लेकर
होने वाली महाबैठक को पटना में कराने का प्रस्ताव दिया था। इसलिए महाबैठक में उनका
विशेष रूप से संबोधन होगा। खासतौर से यह देखते हुए कि सीताराम येचुरी या उनकी
पार्टी के प्रतिनिधि भी बैठक में हो सकते हैं। हिंदी बेल्ट में बीजेपी को हराने की
योजना को लेकर ममता बनर्जी उत्साहित हैं। वे सत्तर के दशक में जय प्रकाश नारायण की
पहल पर बने गठबंधन का इस सिलसिले में उदाहरण देती हैं। उनका यह भी कहना है कि कांग्रेस
यदि माकपा के साथ बंगाल में गठबंधन करेगी, तो फिर हमसे मदद की उम्मीद नहीं करनी
चाहिए।
बैठक के समांतर बिहार का सोशल इंजीनियरी मोर्चा
भी खुला हुआ है। बैठक के ठीक पहले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संरक्षक जीतन राम
मांझी ने महागठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया है और कहा कि हम दिल्ली जा रहे
हैं और दो-तीन दिन वहीं रहेंगे। अब उन्होंने एनडीए में शामिल होने का एलान किया है।
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