पिछले हफ्ते तमाम बड़ी खबरों के बीच तकनीक और विज्ञान से जुड़ी एक खबर को उतना महत्व नहीं मिला, जितने की वह हकदार थी। ओपनएआई के सीईओ सैम अल्टमैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया: ‘अंतर्दृष्टिपूर्ण बातचीत के लिए सैम अल्टमैन को धन्यवाद…हम उन सभी सहयोगों का स्वागत करते हैं, जो नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए हमारे डिजिटल बदलाव को गति दे सकते हैं।’ यह मुलाकात भले ही बड़ी खबर नहीं बनी हो, पर आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यानी एआई इन दिनों तकनीकी-विमर्श के शिखर पर है। मई के महीने में जापान में हुई जी-7 की बैठक में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस पर विचार भी एजेंडा में शामिल था। उन्हीं दिनों जब ओपनएआई ने आईओएस के लिए चैटजीपीटी ऍप लॉन्च किया, तब से इसका ज़िक्र काफी हो रहा है। चैटजीपीटी ओपन एआई द्वारा विकसित नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग मॉडल है। इसके बारे में विवरण पहली बार 2018 में एक शोधपत्र में प्रकाशित किया गया था। इसे आप गूगल की तरह का एक टूल मान सकते हैं, जो आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की मदद से प्रश्नों के जवाब देता है। महत्वपूर्ण चैटजीपीटी या ओपनएआई नहीं, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस है, जिसे मनुष्य-जाति के लिए तकनीकी वरदान माना जा रहा है, वहीं इसे खतरा भी माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह तकनीक अंततः मनुष्य-जाति के अस्तित्व के लिए खतरे पैदा कर सकती है।
ओपनएआई
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जुड़ी रिसर्च
लैबोरेटरी ओपनएआई आईएनसी, नॉन-प्रॉफिट संस्था है, जिससे जुड़ी ओपनएआई एलपी लाभकारी
संस्था है। इसकी स्थापना 2015 में सैम अल्टमैन, एलन मस्क और कुछ अन्य व्यक्तियों
ने सैन फ्रांसिस्को में की थी। फरवरी, 2018 में मस्क ने इसके बोर्ड से इस्तीफा दे
दिया था, पर वे डोनर के रूप में इसके साथ बने रहे। इसके बाद माइक्रोसॉफ्ट और
मैथ्यू ब्राउन कंपनी ने इसमें निवेश किया। इस साल माइक्रोसॉफ्ट ने इसमें 10 अरब
डॉलर का एक और निवेश किया है। आईआईटी दिल्ली में डिजिटल इंडिया डायलॉग्स कार्यक्रम
में, अल्टमैन ने खुलासा किया कि प्रधानमंत्री मोदी के
साथ उनकी मुलाकात मजेदार रही। पीएम मोदी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) को लेकर
उत्साहित हैं। अल्टमैन ने कहा कि उन्होंने उभरती प्रौद्योगिकी के डाउनसाइड्स, यानी
खतरों पर भी चर्चा की।
खतरा कैसा खतरा?
यह अंदेशा कंप्यूटर-युग की शुरुआत में ही व्यक्त किया गया था कि जब मशीनें मनुष्य का स्थान लेने लगेंगी, तब उसका विस्तार एक दिन इंसान के अंत के रूप में भी हो सकता है। अब विशेषज्ञ खुलकर कह रहे हैं कि आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस से इंसानी वजूद को ख़तरा हो सकता है। उसका हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। मसलन ड्रग डिस्कवरी टूल्स की मदद से रासायनिक हथियार बनाए जा सकते हैं। फ़ेक जानकारियाँ अस्थिरता पैदा करेंगी। साथ ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित होगी। एआई की ताक़त थोड़े से हाथों में सिमटने का खतरा भी है। सरकारें बड़े पैमाने पर लोगों की निगरानी करने और दमनकारी सेंसरशिप के लिए इस्तेमाल करेंगी। मनुष्य एआई पर निर्भर होकर जबर्दस्त आलसी बन जाएंगे और मशीनें अमर होने के तरीके खोज लेंगी, जैसा पिक्सेल फ़िल्म ‘वॉल ई’ जैसी फिल्मों में दिखाया गया है। दूसरी तरफ एआई वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि ऐसे सर्वनाश की परिकल्पना भी कुछ ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर बताई जा रही है।
अगली पीढ़ी का विकास!
इस साल मार्च में एलन मस्क और कुछ विशेषज्ञों
ने एक खुला ख़त लिखा, जिसमें इस तकनीक के अगली पीढ़ी के विकास को रोकने की गुजारिश
की गई है। पत्र में सवाल किया गया है कि क्या हमें ऐसे गैर-इंसानी दिमाग तैयार
करने चाहिए जो हमसे आगे निकल जाएं? हमसे ज़्यादा स्मार्ट हों और हमारी जगह
ले लें? ओपनएआई, गूगल डीपमाइंड, एंथ्रॉपिक और
दूसरी एआई प्रयोगशालाओं ने चेतावनी दी है कि यह खतरा महामारियों और नाभिकीय युद्ध
जैसा है। इन तीनों संस्थाओं के 350 से ज्यादा अधिकारियों ने एक खुले खत में कहा है
कि सुपर इंटेलिजेंस को नाभिकीय ऊर्जा की तरह
नियंत्रित किया जाना चाहिए। यह तकनीक मनुष्य के मस्तिष्क में काम करने वाले
करोड़ों-अरबों न्यूरॉन्स की ‘डीप लर्निंग’ के सिद्धांत पर काम करती है। शुरू में
लगता था कि इसकी भी सीमा है, पर हाल में विकसित ‘फाउंडेशन मॉडल्स’
ने साबित किया है कि पहले से कई गुना जटिल ‘डीप लर्निंग’ सम्भव है। आप कम्प्यूटर
पर जो वाक्य लिखते हैं, उसे व्याकरण-सम्मत आपका कम्प्यूटर
बनाता जाता है। आप चाहते हैं कि आपके आलेख का अच्छा सा शीर्षक बन जाए, बन जाएगा। लेख का सुन्दर सा इंट्रो बन जाएगा। आप मोबाइल फोन पर संदेश
लिखते हैं, तो आपकी जरूरत के शब्द अपने आप आपके सामने बनते
जाएंगे। तमाम जटिल पहेलियों के समाधान कम्प्यूटर निकाल देता है। शतरंज के
चैम्पियनों को हराने लगा है।
रचनात्मकता के आयाम
मशीन अब मनुष्य की तरह काम करने लगी है। आप
संगीत-रचना रिकॉर्ड कर रहे हैं। उसके दोष दूर करता जाएगा। इससे रचनात्मकता के नए
आयाम खुल रहे हैं। आप चाहते हैं कि पिकासो या रैम्ब्रां की शैली में कोई चित्र
बनाएं, तो आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यह काम कर देगी,
क्योंकि उसके पास सम्बद्ध कलाकार की शैली से जुड़ा छोटे से छोटा
विवरण मौजूद है। उस जानकारी के आधार पर कम्प्यूटर चित्र बना देगा। क्वांटम
कम्प्यूटिंग का दौर भी आ रहा है। स्पीड की सीमाएं टूटने वाली हैं। हर तरह के डेटा
एनालिसिस और क्रिकेट, हॉकी और फुटबॉल जैसे खेलों से जुड़े
सॉफ्टवेयरों में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। एयर ट्रैफिक और नेवीगेशन तथा रक्षा
उद्योग में मिसाइलों, सेंसरों और रेडारों के साथ इस तकनीक को
जोड़ा जा चुका है। ऐसे युद्धपोत तैयार हो रहे हैं, जो
आत्मरक्षा का सम्पूर्ण प्रबंध खुद कर सकते हैं।
सकारात्मक पक्ष
मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी
(एमआईटी) के प्रोफेसर और फ्यूचर ऑफ लाइफ इंस्टीट्यूट के सह-संस्थापक मैक्स
टैगमार्क का विचार है कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के अल्टीमेट तकनीक के रूप में
प्रकट होने का समय आ गया है। यह तकनीक भविष्य में होने वाले तमाम परिवर्तनों और
नवोन्मेषों को जन्म देने जा रही है। ब्रह्मांड के पिछले 13.8 अरब वर्षों की सबसे
बड़ी देन है मनुष्य जाति की प्राकृतिक क्रिया-कलाप पर विजय। उसकी इस सामर्थ्य का
अब और विस्तार होने वाला है। टैगमार्क के अनुसार आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का मतलब
सरल शब्दों में है, जटिल लक्ष्यों को हासिल करना। जितना
लक्ष्य जटिल होगा, उतनी ही ज्यादा इंटेलिजेंस यानी मेधा
की जरूरत होगी। फिजिक्स का कोई नियम तकनीक को वे सारे काम करने से नहीं रोकता,
जो मनुष्य कर सकता है। यह आर्टिफीशियल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआई) तकनीक
वह सब सीख और सकती है, जो इंसान कर सकता है। और यह सब एक-डेढ़
दशक में हासिल होने वाला है।
मशीन की गुलामी!
सवाल है कि जब तकनीक वह सब कर सकती है, जो मनुष्य कर सकता है, तब क्या एक दिन
मनुष्य इस तकनीक का गुलाम नहीं हो जाएगा? कुछ साल पहले
हिब्रू यूनिवर्सिटी, यरुसलम के इतिहासकार प्रो युवाल हरारी
ने लिखा था कि एक सम्भावना है कि अंततः यह कृत्रिम मेधा मनुष्य के वर्चस्व को खत्म
कर देगी। उनके अनुसार बुद्धिमत्ता और चेतना का अटूट गठबंधन टूटने के कगार पर है। इंडियन
एक्सप्रेस की खबर है कि एक आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम ने अपने आप बांग्ला
भाषा में काम करना सीख लिया। जिस तरह बच्चे भाषा और बहुत सी बातें कैसे सीख जाते
है, उसका पता नहीं लगता, वैसे ही यह परिघटना रोचक है और खतरनाक भी। हम मानकर चलते हैं
कि मशीन के पीछे मनुष्य की बुद्धि काम करती है, पर जब मशीन खुद फैसले करने लगेगी,
तब सवाल खड़े होंगे। हरारी के अनुसार हाल तक उच्च मेधा को अति विकसित चेतना का ही
एक पहलू समझा जाता था। पर आज हम ऐसी नई तरह की अचेतन बुद्धिमत्ता विकसित कर रहे
हैं, जो इस तरह के कामों को इंसानों से कहीं ज्यादा
बेहतर कर सकती है। दोनों में कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है, बुद्धिमत्ता
या चेतना? मशीनों से बुद्धि ही निकलेगी या चेतना भी तैयार
होगी?
नियमन की जरूरत
अब इसके नियमन की बातें शुरू हो गई हैं। एक तरफ
इसके दुरुपयोग की आशंका है, तो दूसरी तरफ खतरा यह भी है कि दुनिया की सरकारें
नागरिकों के निजी जीवन में और ज्यादा हस्तक्षेप करेंगी। सच यह है कि इस सिलसिले
में ज्यादातर रिसर्च निजी क्षेत्र में हुई है। इंटरनेट की पूरी व्यवस्था निजी
हाथों में है। इससे एक दूसरा खतरा यह भी पैदा हो रहा है कि दुनिया की व्यवस्था कुछ
कंपनियों के हाथों में सिमटती जा रही है। शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री राजीव
चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार बहुत जल्द एआई के लिए नए नियम ला सकती है। उन्होंने यह
भी बताया कि नया डिजिटल पर्सनल डेटा संरक्षण विधेयक बिल बहुत जल्द संसद में पेश
किया जाएगा। इंटरनेट को ओपन, सेफ और डिजिटल नागरिक की सुरक्षा के
लिए हमने कानूनी पहल शुरू की है। दुनिया में भारत सबसे ज्यादा कनेक्टेड देश है और
हम भारत को सबसे सुरक्षित और विश्वसनीय देश बनाना चाहते हैं। सरकार ने 2019 में
बिल पेश किया था, जिसे बाद में वापस ले लिया। अब उस बिल को नए जरूरतों के हिसाब से
बदलकर ला रही है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट में जहरीली बातें और आपराधिक गतिविधियाँ
बढ़ी हैं। डॉकिंग (गलत मंशा से और किसी की सहमति के बिना इंटरनेट पर व्यक्तियों की
निजी जानकारी पोस्ट करना) जैसे अपराध बढ़े हैं। एआई के दौर में ये खतरे और
बढ़ेंगे।
हरिभूमि में प्रकाशित
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