रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गत 11 अगस्त को घोषणा की कि उनके देश की स्वास्थ्य विनियामक संस्था ने दुनिया की पहली कोरोना वायरस वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति दे दी है। यह खबर बेहद सनसनीखेज है। इसलिए नहीं कि बहुत बड़ी चीज दुनिया के हाथ लग गई है, बल्कि इसलिए कि ज्यादातर विज्ञानियों ने इस फैसले को खतरनाक बताया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि अभी यह सवाल नहीं है कि यह वैक्सीन कारगर होगी या नहीं, बल्कि चिंता इस बात पर है कि इसके परीक्षण का एक महत्वपूर्ण चरण छोड़ दिया गया है।
विश्व के तमाम देशों को रूसी वैक्सीन से उम्मीदें और आशंकाएं हैं। आखिर रूस इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रहा है? ऐसी ही जल्दबाजी चीन भी दिखा रहा है? ऐसा नहीं कि जल्दी बाजार में आने से किसी देश को ज्यादा आर्थिक लाभ मिल जाएगा। अंततः सफल वही वैक्सीन होगी, जिसकी साख सबसे ज्यादा होगी। और लगता है कि अब वह समय आ रहा है, जब तीसरे चरण को पार करके सफल होने वैक्सीन की घोषणा भी हो जाए। अगले दो-तीन महीने इस लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।
किसी भी वैक्सीन
का पूरी तरह ट्रायल ख़त्म होने में अमूमन सात साल लगते हैं। मॉस्को स्थित एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल
ट्रायल्स ऑर्गनाइजेशन (एक्टो) ने रूसी सरकार से इस वैक्सीन की स्वीकृति प्रक्रिया
को टालने की गुज़ारिश की है। उनके मुताबिक़ जब तक इस वैक्सीन के फेज़ तीन के
ट्रायल के नतीजे सामने नहीं आ जाते, तब तक सरकार को इसे
मंज़ूरी नहीं देनी चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य
संगठन का मोटे तौर पर अनुमान है कि दुनिया में कम से कम छह वैक्सीन पर तीसरे चरण का ट्रायल
चल रहा हैं। इनमें रूस की वैक्सीन का ज़िक्र नहीं है। मेडिकल जर्नल लैंसेट के
एडिटर इन चीफ़ रिचर्ड आर्टन के मुताबिक़ विश्व में सबसे तेज़ी से आज तक जो टीका
बना है, वो ज़ीका वायरस का था, जिसमें दो साल का समय
लगा। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक ज़ीका वायरस के ख़िलाफ़ टीका बन कर तैयार हुआ, तब तक, उसका कहर कम हो चुका था। वह
टीका कितना सफल रहा है, इस बारे में ज़्यादा डेटा
उपलब्ध नहीं है।
भारत की भूमिका
दुनिया में इन
दिनों जिन वैक्सीन पर काम चल रहा है, उनमें
सबसे ज्यादा वैक्सीन का आविष्कार कहीं भी हो, उसके उत्पादन में भारत की भूमिका
सबसे महत्वपूर्ण होगी। इस वक्त दुनिया की निगाहें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के
वैक्सीन पर हैं। इस वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है, उसमें 10,000 लोगों पर इसका ट्रायल किया जा रहा है। पहले
चरण में भी 1000 से ज़्यादा लोगों पर इसका ट्रायल किया गया था।
भारत के सीरम
इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड के साथ करार किया है। इस संस्था ने व्यावसायिक जोखिम मोल
लेते हुए इस वैक्सीन का उत्पादन शुरू भी कर दिया है, ताकि इसे स्वीकृति मिलते ही
बड़े स्तर पर आपूर्ति की जा सके। भारत में बड़े पैमाने पर वैक्सीन तैयार करने की
क्षमता भी है और हमारा देश दुनिया में हर प्रकार की वैक्सीन का सबसे बड़ा सप्लायर
है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में कहा कि हमारे
देश में तीन वैक्सीन तैयार हो रही हैं। जैसे ही वैज्ञानिक स्वीकृति देंगे, बड़े
स्तर पर उनके उत्पादन का काम शुरू कर दिया जाएगा। मीडिया स्रोतों के अनुसार देश में
कम से कम आठ वैक्सीन पर काम चल रहा है। इनमें
से दो अंतिम परीक्षण चरण में हैं।
प्रसिद्ध विज्ञान
जरनल नेचर के अनुसार ह्यूस्टन, टेक्सास के बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के वैक्सीन
विज्ञानी पीटर होटेज़ का कहना है कि रूसियों ने वैक्सीन के विकास के एक महत्वपूर्ण
चरण का परित्याग करके वैज्ञानिक समुदाय को चिंता में डाल दिया है। यह मूर्खतापूर्ण
निर्णय है। अधूरे परीक्षण के बाद तैयार की गई वैक्सीन के बड़े स्तर पर उत्पादन से
न केवल बड़े स्तर पर जनता के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने का अंदेशा है,
बल्कि भविष्य में लोगों का विश्वास वैक्सीन अनुसंधान पर से उठने का अंदेशा भी है।
उनके इस बयान को ब्रिटेन के साइंस मीडिया सेंटर में भी प्रसारित किया गया है।
व्लादिमीर पुतिन का
कहना है कि मेरी बेटी तक ने इस वैक्सीन को लगवाया है। रूस ने इस वैक्सीन का नाम
अपने पहले उपग्रह स्पूतनिक के नाम पर रखा है। सामान्यतः वैक्सीन के तीसरे चरण में
हजारों की तादाद में व्यक्तियों को वैक्सीन या प्लेसीबो (ऐसा इंजेक्शन जिसमें दवाई
नहीं होती है) लगाई जाती है। इसमें यह देखा जाता है कि क्या वैक्सीन रोगमुक्त करने
में मददगार है। इसमें वैक्सीन से जुड़े दुष्प्रभावों और सुरक्षा से जुड़े अन्य
प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने कहा
है कि इस वैक्सीन को धीरे-धीरे नागरिकों तक पहुँचाया जाएगा। पहले
स्वास्थ्यकर्मियों और अध्यापकों को लगाया जाएगा।
165 वैक्सीन पर
काम
कोविड-19 के लिए
दुनिया में करीब 165 से ज्यादा वैक्सीन पर काम चल रहा
है। इनमें से 31 वैक्सीन पर ह्यूमन ट्रायल चल रहे हैं। इनमें भी काफी वैक्सीन पर
फेज-3 के परीक्षण चल रहे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन परीक्षणों को पूरा
करने के बाद भी सफल वैक्सीनों को बाहर आने में अभी कई महीने लगेंगे। रूस में पहले
दो राउंड के परीक्षणों में 76 वॉलंटियरों को गैमालेया वैक्सीन दी गई, पर उस
क्लिनिकल परीक्षण का डेटा जारी नहीं किया गया है। इसके अलावा भी इसके बारे में
ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है।
अमेरिका की
क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री की सूची के अनुसार दो खुराकों में दी जाने वाली यह
वैक्सीन दो एडेनोवायरस से बनी है। पहली डोज़ एडी26 वायरस से बनी है और दूसरी
बूस्टर डोज़ एडी5 से। यह कोरोना वायरस में पाए जाने वाले स्ट्रक्चरल प्रोटीन की
नकल है जिससे शरीर में ठीक वैसी प्रतिरक्षण प्रतकिक्रिया होती है, कोरोना वायरस के
संक्रमण से पैदा होती है। व्यक्ति का शरीर वैसी ही प्रतिक्रिया देता है जैसी वह
कोरोना के संक्रमण पर देता लेकिन इसमें जानलेवा परिणाम नहीं मिलते। एडी26 स्ट्रेन
का इस्तेमाल जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा विकसित की जाने वाली वैक्सीन में किया जा रहा
है और एडी5 का चीन की कैनसायनो बायलॉजिक्स द्वारा विकसित वैक्सीन में किया जा रहा
है। चीन से भी वैक्सीन के तेज विकास की खबरें आ रहीं हैं।
सवाल क्वालिटी
कंट्रोल का
डॉ होटेज का कहना
है कि कोविड-19 की वैक्सीन तैयार करना बहुत जटिल काम नहीं है। असल बात है कि इसका
विकास क्वालिटी कंट्रोल की छतरी के नीचे किया जाना चाहिए। यह भरोसा दिलाया जाना
चाहिए कि वैक्सीन सुरक्षित है और कोविड-19 के खिलाफ काम करेगी। गैमालेया वैक्सीन
के तीसरे चरण का अता-पता ही नहीं है। कहीं उसका विवरण प्रकाशित नहीं है।
रूसी संवाद समिति
तास के अनुसार वैक्सीन परियोजना के लिए फंड मुहैया कराने वाली संस्था रशियन डायरेक्ट
इन्वेस्टमेंट फंड ने कहा है कि इस वैक्सीन का उत्पादन भारत, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, सऊदी अरब, तुर्की और क्यूबा में
किया जाएगा। इसमें यह भी बताया गया है कि वैक्सीन के तीसरे फेज का ट्रायल सऊदी अरब, यूएई, ब्राजील, भारत और फिलीपींस सहित कई देशों में किए जाने की योजना है। लैटिन अमेरिका,
पश्चिम एशिया और कुछ अन्य इलाके के 20 देशों ने एक अरब डोज़ की खरीद का आदेश दे
रखा है। हमने 50 करोड़ डोज़ के उत्पादन की व्यवस्था कर ली है और शेष के उत्पादन की
व्यवस्था की जा रही है।
इस वैक्सीन का
बड़े पैमाने पर उत्पादन सितंबर 2020 में शुरू होने की आशा है। इस साल के अंत तक वैक्सीन
के 20 करोड़ डोज बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से 3 करोड़ वैक्सीन केवल रूसी
लोगों के लिए होगी। गैमालेया रिसर्च सेंटर के निदेशक और रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय
के अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने कहा है कि हमारी वैक्सीन के प्रभावी रहने की अवधि एक
साल नहीं, बल्कि दो साल होगी।
न्यूयॉर्क सिटी
के माउंट सिनाई स्थित आईकैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के वायरोलॉजिस्ट फ्लोरियन क्रेमर ने
ट्वीट किया, ‘कोई नहीं जानता कि रूसी वैक्सीन क्या है। कम से
कम मैं तो ऐसी वैक्सीन नहीं लगवाऊँगा, जिसका फेज़-3 में परीक्षण नहीं हुआ हो।’ विश्व स्वास्थ्य संगठन
ने कहा है कि हमारे पास अभी तक रूसी वैक्सीन के बारे में जानकारी नहीं है कि हम उसका
मूल्यांकन कर सकें। विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े पैन-अमेरिकन हैल्थ ऑर्गनाइजेशन
के सहायक निदेशक जरबास बारबोसा ने कहा, सुनाई पड़ रहा है कि अब
ब्राज़ील वैक्सीन बनाना शुरू करेगा। जब तक ट्रायल पूरे नहीं हो जाते ऐसा नहीं करना
चाहिए।
कम मूल्य पर आम आदमी तक पहुंच हो तब बात है। जानकारी पूर्ण।
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