नवम्बर 2014 में काठमांडू में दक्षेस शिखर सम्मेलन जब हुआ था, एक खबर हवा में थी कि नेपाल सरकार चीन को भी इस संगठन का सदस्य बनाना चाहती है। सम्मेलन के दौरान यह बात भारतीय मीडिया में भी चर्चा का विषय बनी थी। यों चीन 2005 से दक्षेस का पर्यवेक्षक देश है, और शायद वह भी इस इलाके में अपनी ज्यादा बड़ी भूमिका चाहता है। काठमांडू के बाद दक्षेस का शिखर सम्मेलन पाकिस्तान में होना था, वह नहीं हुआ और फिलहाल यह संगठन एकदम खामोश है। भारत-पाकिस्तान रिश्तों की कड़वाहट इस खामोशी को बढ़ा रही है।
इस दौरान भारत ने बिम्स्टेक जैसे वैकल्पिक क्षेत्रीय संगठनों में अपनी भागीदारी बढ़ाई और ‘माइनस पाकिस्तान’ नीति की दिशा में कदम बढ़ाए। पर चीन के साथ अपने रिश्ते बनाकर रखे थे। लद्दाख में घुसपैठ की घटनाओं के बाद हालात तेजी से बदले हैं। पाकिस्तान तो पहले से था ही अब नेपाल भी खुलकर बोल रहा है। पिछले पखवाडे की कुछ घटनाओं से लगता है कि बांग्लादेश को भी भारत-विरोधी मोर्चे का हिस्सा बनाने की कोशिशें हो रही हैं। बावजूद इसके कि डिप्लोमैटिक गणित बांग्लादेश को पूरी तरह चीनी खेमे में जाने से रोकता है। पर यह भी लगता है कि बांग्लादेश सरकार ने भारत से सायास दूरी बनाई है।
चीनी सक्रियता
चीन के
महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में दक्षिण एशिया महत्वपूर्ण पड़ाव है, और भारत इसका विरोधी है। पर चीनी सक्रियता में कमी नहीं है।
चीनी इशारे पर पाकिस्तान एक अलग क्षेत्रीय सहयोग संगठन बनाने की कोशिश कर रहा है, जिसमें चीन, ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देश शामिल हों। हाल में ईरान
और चीन के बढ़ते रिश्तों से इस संभावना को बल मिला भी है, पर अभी ईरान का रुख स्पष्ट नहीं है। हालांकि इससे जुड़े
तमाम किन्तु-परन्तु भी हैं। ईरान स्वतंत्र नीति पर चलने वाला देश है और उससे यह
उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वह किसी का पिछलग्गू बनेगा।
सोमवार 27 जुलाई को चीन के विदेशमंत्री यांग यी ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल के विदेशमंत्रियों के साथ वर्चुअल
बैठक करके इस संभावना को बल प्रदान किया है कि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग
के नए मुहावरे गढ़े जा रहे हैं। चीन का दक्षिण एशिया के चार देशों के साथ इस तरह
की बैठक करना सामान्य बात नहीं है। खासतौर से इसमें भारत का शामिल नहीं होने का
विशेष मतलब है। बैठक में महामारी, आर्थिक सहयोग और चीन की
बेल्ट एंड रोड परियोजना को लेकर चर्चा हुई।
बैठक में
अफगानिस्तान का शामिल होना भी महत्वपूर्ण है। अफगानिस्तान में शांति-स्थापना का
कार्यक्रम चल रहा है। अमेरिका चाहता है कि भविष्य में भारत वहाँ महत्वपूर्ण भूमिका
निभाए, पर पाकिस्तान चाहता है कि भारत की कोई भूमिका
नहीं होनी चाहिए। केवल चीन की भूमिका हो। चीन के पास लगाने के लिए पूँजी है और
अफगानिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की प्रचुर संभावनाएं हैं। ऐसा लगता है
कि चीन और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में सहयोग का आधार तैयार किया है। अफगान सरकार
इसमें किस हद तक मदद करेगी, यह अलग सवाल है।
इमरान खान का फोन
भारत के पूर्व
में म्यांमार और बांग्लादेश के साथ चीन का सहयोग कार्यक्रम चलता है। दोनों देशों
ने चीन से शस्त्रास्त्र भी खरीदे हैं। लद्दाख विवाद पर चर्चा चल ही रही थी कि चीन
ने भूटान में अपनी दिलचस्पी दिखाकर भारत में चिंता पैदा कर दी। उसके पहले
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अचानक 22 जुलाई को शेख हसीना से
फोन पर बातचीत की और कश्मीर पर उनका समर्थन माँगा।
अटकलें लगाई गईं
कि शायद दोनों देशों के रिश्तों में बदलाव आ रहा है। बांग्लादेश के विदेशमंत्री
एके अब्दुल मोमिन के बयान के बाद इतना स्पष्ट हो गया कि ऐसा बदलाव फिलहाल संभव
नहीं है। उन्होंने कहा कि अच्छी बात है कि पाकिस्तान रिश्ते सुधारना चाहता है, पर हम सन 1971 में 30 लाख बांग्लादेशियों की हत्या को भूले नहीं हैं। पाकिस्तान
ने उस नरमेध के लिए माफी नहीं माँगी है।
इसी दौरान
बांग्लादेश के अखबार ‘भोरेर कागोज’ ने खबर दी कि
भारतीय उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मुलाकात
के लिए चार महीने से समय नहीं दिया है। कारण जो भी रहे हों, पर भारत और बांग्लादेश के विदेश विभागों ने तेजी से इन
खबरों पर स्पष्टीकरण जारी किए। बांग्लादेश का कहना है कि शेख हसीना ने पिछले चार
महीनों से किसी विदेशी राजनयिक से मुलाकात नहीं की है। कोविड-19 के प्रसार के कारण वे फिलहाल जन-संपर्क के किसी कार्यक्रम
में शामिल नहीं होती हैं। दूसरी तरफ भारतीय सूत्रों का कहना है कि भारतीय
उच्चायुक्त ने प्रधानमंत्री से भेंट का कोई औपचारिक अनुरोध नहीं किया है।
कनेक्टिविटी
कार्यक्रम
दोनों देशों के
आपसी सहयोग की दो बड़ी घटनाएं भी इस दौरान हुईं हैं। गत 21 जुलाई को भारत के आठ पूर्वोत्तर राज्यों में माल भेजने का
ट्रायल हुआ। माल समुद्री मार्ग से बांग्लादेश होकर भेजा गया है। बांग्लादेश के
चटोग्राम (चटगांव) बंदरगाह पर व्यापारी जहाज से चार कंटेनर उतारे गए। इस माल को
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव देव ने अखौरा इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट पर जाकर
प्राप्त किया। यह खबर महत्वपूर्ण थी, पर उसका प्रचार नहीं हुआ।
इससे लगा कि शायद कहीं खलिश है।
विभाजन के बाद
पहली बार कनेक्टिविटी की इस परिघटना को ऐतिहासिक माना जा सकता है। बांग्लादेशी
मीडिया में इस खबर को इस ट्विस्ट के साथ पेश किया गया कि भारतीय जहाजों को
चटोग्राम बंदरगाह पर प्राथमिकता दी जाएगी। हसीना सरकार पर इन दिनों राजनीतिक
विरोधियों का दबाव बढ़ रहा है। भारत के नागरिकता कानून और रोहिंग्या शरणार्थियों
को लेकर शिकायतें पहले से थीं। अमित शाह ने बांग्लादेशियों को दीमक बताया और उन्हें
बंगाल की खाड़ी में फेंक देने की धमकी दी।
स्वाभाविक है कि
इन बातों की प्रतिक्रिया होनी ही है। अयोध्या में राम-मंदिर के निर्माण का
कार्यक्रम घोषित होने के बाद भी उत्तेजना है। मोदी सरकार का हिन्दुत्व बांग्लादेश
सरकार के गले की हड्डी बनता है। इस वजह से भी भारत के साथ सहयोग की खबरों को
ज्यादा प्रचार नहीं दिया जाता। दूसरी तरफ चीनी प्रभाव बढ़ता हुआ साफ नजर आ रहा
है।
सिल्हट परियोजना
चीन को
हाल में सिल्हट
के एमएजी ओस्मानी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नए टर्मिनल का ठेका चीनी कंपनी
बीयूसीजी को मिला है। इस प्रतियोगिता में भारतीय कंपनी लार्सन एंड टूब्रो भी शामिल
थी, जिसे ठेका नहीं मिला। बांग्लादेश के विदेशमंत्री एके अब्दुल मोमिन ने सफाई दी
कि चीनी कंपनी ने कम खर्च की निविदा दाखिल की थी, इसलिए ठेका उसे मिला। भारत की
चिंता है कि सिल्हट की भौगोलिक स्थिति पूर्वोत्तर के राज्यों के नजदीक है। सुरक्षा
से जुड़े जोखिम इसके साथ हैं। चीनी कंपनियाँ सरकार के काम ही करती हैं। सरकार उनकी
आर्थिक भरपाई करती है। भारतीय कंपनियों के लिए ऐसे सौदों को हासिल करना अपने आप
में चुनौती भरा होता है।
इमरान खान के फोन
और उच्चायुक्त से प्रधानमंत्री की मुलाकात न हो पाने की खबरों ने जो नकारात्मकता
पैदा की थी, उसे दूर करने का प्रयास विदेशमंत्री एस जयशंकर
और रेलमंत्री पीयूष गोयल ने 27 जुलाई को किया। एक
पुराने आश्वासन को पूरा करते हुए भारत सरकार ने बांग्लादेश रेलवे को दस डीजल इंजन
उपहार में दिए। इस कार्यक्रम का टीवी पर लाइव प्रसारण किया गया। यह सब होने के
बावजूद संदेह अपनी जगह बने हुए हैं।
प्रेक्षकों का
कहना है कि बेशक बांग्लादेश ने खुलेआम ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे उसकी नीयत बदली हुई नजर आए। वे काफी संयम बरत रहे
हैं। शेख हसीना ताकतवर नेता हैं और अपने विरोधियों पर काबू पाने में समर्थ हैं।
फिर भी भारतीय विदेश विभाग के अधिकारी दबे-छिपे स्वरों में स्वीकार करते हैं कि
बांग्लादेश पर चीन का आर्थिक सम्मोहिनी जादू है। गत 1 जुलाई से चीन ने बांग्लादेश से आने वाले 97 फीसदी माल को ड्यूटी फ्री कर दिया है। इस खबर का
बांग्लादेश में खूब जिक्र हो रहा है।
चीन के बेल्ट एंड
रोड इनीशिएटिव में शामिल होने वाले देशों में बांग्लादेश भी है। एक तरफ चीन उन्हें
लुभा रहा है और दूसरी तरफ भारत की तरफ से उन्हें कड़वाहट मिल रही है। चीन सरकार
अपनी कंपनियों को बढ़ावा देती है। भारत को चिढ़ाने के लिए या अपने हितों की रक्षा
के लिए चीनी कंपनियों की निगाहें बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर
है। यह उसकी आर्थिक डिप्लोमेसी है, जो फिलहाल काम कर रही है।
अच्छा विशलेषण है।
ReplyDeleteतथ्यपूर्ण जानकारी। धन्यवाद।
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