पिछले दो-तीन हफ्ते के घटनाक्रम से लगता है कि कांग्रेस पार्टी के भीतर गम्भीर अंतर्मंथन चल रहा है। यह अंतर्मंथन सायास नहीं है। पार्टी हाल में राजस्थान के संकट से बाहर आई है। राजस्थान में कांग्रेस को विजयी मानें भी, तो यह भी मानना होगा कि सचिन पायलट के रूप में एक ‘रुष्ट’ युवा राजनेता पार्टी के भीतर बैठा है। ऐसे नाराज नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। 23 वरिष्ठ नेताओं का पत्र भी यही बता रहा है। इनमें से कुछ और ज्यादा नाराज होंगे और कुछ अपनी नाराजगी को छोड़कर जैकारा लगाने लगेंगे। इधर कपिल सिब्बल ने कहा है कि हमने क्या गलत बात की? हम एक प्रक्रिया की बात कर रहे हैं। बीजेपी पर हम आरोप लगाते हैं कि वह संविधान का पालन नहीं करती है। पर हम क्या करते हैं? हमने जो बातें कहीं, उनका जवाब नहीं दिया गया, बल्कि हमारी आलोचना की गई और किसी ने हमारे पक्ष में नहीं बोला।
अब सवाल तीन हैं। क्या कांग्रेस सन 1969 के आसपास के दौर में आ गई है, जब पार्टी के भीतर दो साफ धड़े बन गए थे? क्या यह दौर भी ‘गांधी परिवार’ के पक्ष में गया है? तीसरा सवाल है कि यदि धड़ेबाज़ी चलने वाली नहीं है और पार्टी एक ही रहेगी, तो वर्तमान असंतोष की तार्किक परिणति क्या है? कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी की बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस के पास अब क्या बचा है? उसे कौन बचाने वाला है?
सोमवार 24 अगस्त को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सुधार की
माँग करने वालों की बात सुनने के बजाय, उल्टे उनपर ही आरोप लगे। फौरी
तौर पर लगता है कि पार्टी में अब केवल एक मसला है, आप गांधी परिवार
के साथ हैं या नहीं? पर ज्यादा
गहराई से देखें, तो इस चिट्ठी ने पार्टी के भीतर की परतें खोल दी हैं। सब जानते
हैं कि गांधी परिवार के नेतृत्व को चुनौती देने की ताकत पार्टी में किसी को नहीं
है, पर इस पत्र में जो बातें लिखी हैं, उतना लिखने की ताकत भी तो किसी में नहीं थी।
तब यह पत्र क्यों लिखा गया?
कांग्रेस इन दिनों मोदी सरकार पर बड़े हमले बोलने की तैयारी
कर रही है। राहुल गांधी तमाम सवाल उठा रहे हैं। ऐसे में पार्टी के भीतर से
ओवरहॉलिंग की बात उठना अटपटा लगता है। कार्यसमिति की बैठक में कहा गया कि चार
सदस्यों की समिति सोनिया गांधी को सलाह देने के लिए गठित की जाएगी। उस दिशा का पता
नहीं, पर एक समिति बनी है, जो सरकार पर प्रहार करने के लिए है। इसमें पूर्व वित्तमंत्री पी
चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश, अमर सिंह और गौरव गोगोई शामिल हैं। रमेश को समिति का संयोजक
बनाया गया है।
राहुल गांधी ने
इस पत्र के समय पर सवाल उठाया और पत्र लिखने वालों की मंशा पर खुलकर प्रहार किया। इसका
मतलब है कि हाईकमान से पूछे बगैर अंतर्मंथन की माँग करने वाले दगाबाज हैं। दूसरे
‘गांधी परिवार’ से बाहर पार्टी नेतृत्व की कल्पना भी संभव नहीं। इस पत्र पर विचार के
लिए हुई बैठक में सारी बातें पीछे रह गईं, केवल पत्र की आलोचना हुई।
पत्र लिखने की मंशा पर वार होते रहे। कार्यसमिति ने जो प्रस्ताव पास किया, उसमें इस बात
का उल्लेख किया गया है कि देश ने पिछले छह महीनों में जो परेशानियाँ देखी हैं,
उनके खिलाफ पार्टी के दोनों शीर्ष नेता यानी सोनिया गांधी और राहुल गांधी आवाज
उठाते रहे हैं। किसी को भी पार्टी को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और
पार्टी के आंतरिक मामलों को मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर नहीं उठाया जाना चाहिए।
एक प्रकार से
पत्र लिखने वालों के नाम पार्टी ने कठोर संदेश भेजा है। अब क्या होगा? पत्र में लिखी बातें तो हवा में फिर भी गूँजेगी। पत्र लेखक वरिष्ठ
नेता हैं, हालांकि किसी न किसी वजह से हाशिए पर हैं। इनमें गुलाम नबी आजाद, आनन्द
शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर और कपिल सिब्बल काफी प्रभावशाली रहे हैं। उनकी मंशा
क्या है? कपिल सिब्बल ने अपने ऊपर लगे आरोप को लेकर एक
करारा सा ट्वीट जरूर किया, पर वह ट्वीट राहुल गांधी
के एक फ़ोन कॉल के बाद डिलीट कर दिया। कार्यसमिति की बैठक के बाद गुलाम नबी आजाद
के घर पर बैठक हुई। इसके बाद भी सोनिया
और राहुल ने गुलाम नबी से बात की। देखना होगा कि किसी स्तर पर उनकी सुनवाई हो भी
रही है या नहीं।
सबसे बड़ा मसला
पार्टी के नेतृत्व का है। फिलहाल सोनिया गांधी अध्यक्ष बनी रहेंगी, पर आने वाले समय में किसी न किसी को अध्यक्ष तो बनाना ही
होगा। राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं हैं, पर वस्तुतः लीड तो वही कर रहे हैं।
कार्यसमिति के प्रस्ताव में दो नेताओं के नाम लिखे हैं। तब राहुल औपचारिक रूप से
अध्यक्ष क्यों नहीं बन रहे हैं? सवाल है कि क्या
पत्र लिखने वाले परिस्थितियों को नहीं समझते हैं? क्या वे अपनी पार्टी के मिजाज को नहीं समझते
हैं? क्या यह पत्र किसी और बात की पेशबंदी है? क्या इसके पीछे बीजेपी है, जैसाकि कहा जा रहा है।
‘गांधी परिवार’
के चतुर्दिक जैकारे के बीच भी, इस पत्र ने कुछ देर के लिए असहमति को स्वर दिए हैं।
लगता यह है कि इन नेताओं के बीच लम्बे विचार-विमर्श के बाद यह पत्र लिखा गया है। इसकी
प्रतिक्रिया क्या होगी, इसका उन्हें अनुमान भी होगा। यानी कि उन्होंने भी अपने
प्लान बी को बनाया होगा। पार्टी कह रही है कि हम बीजेपी से लड़ रहे हैं, जबकि पत्र
कह रहा है कि बीजेपी से लड़ने के लिए कांग्रेस को नई शक्ल अपनानी होगी। इस पत्र का मूल
तत्व यह है कि कांग्रेस हमेशा से ‘लेफ्ट ऑफ सेंटर’ पार्टी रही है, पर
राहुल गांधी के नेतृत्व में यह चरम वामपंथी पार्टी बन गई है। क्या यह वैचारिक
टकराव है? फिलहाल यह शुद्ध
व्यक्तिगत मामला लगता है।
अब ज्यादा गम्भीर
सवाल सामने आते हैं। क्या 'असंतुष्ट' नेता पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ पाएंगे? मान लेते हैं कि पार्टी में नीचे तक काफी असंतोष है, पर क्या कार्यकर्ता खुलकर सामने आएंगे? और आ भी गए तो क्या कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ी हो पाएगी? पार्टी के भीतर इस समय नेतृत्व ही सबसे बड़ा सवाल है, जो अब अनिश्चित नहीं है। राहुल गांधी ही नेता हैं। वे सामने आएं या पीछे रहें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पत्र लेखकों की सामान्य
सी माँग है। सत्ता का विकेंद्रीकरण हो। हर स्तर पर चुनाव हों। राज्यों की शाखाओं
को अपने फैसले करने का मौका दिया जाए। ये इतनी छोटी बातें थीं, तो अबतक पूरी हो
चुकी होतीं। पर क्या इतने भर से कांग्रेस बदल जाएगी? नहीं बदलेगी।
अच्छा है ना बदले किसी की मौज इसी तरह बनी रहे। बांस खड़ा रहे बांसुरी ना बने।
ReplyDeleteयही होता रहेगा कांग्रेस में ...
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