जम्मू कश्मीर में
हिज्बुल मुजाहिदीन के दो आतंकवादियों के साथ पुलिस अधिकारी दविंदर सिंह की
गिरफ्तारी के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. यह गिरफ्तारी ऐसे मौके पर हुई
है, जब राज्य की प्रशासनिक और पुलिस व्यवस्था में आमूल परिवर्तन हुआ है. केंद्र
शासित प्रदेश होने के नाते अब राज्य की पुलिस पूरी तरह केंद्र सरकार के अधीन है.
क्या यह गिरफ्तारी उस बदलाव के महत्व को को रेखांकित कर रही है, या राज्य पुलिस की उस कार्यकुशलता को बता रही है, जिसे राजनीतिक कारणों से
साबित करने का मौका नहीं मिला?
कश्मीर के आतंकवाद के साथ जुड़ी कुछ बातें शायद अब सामने आएं. जो हुआ है,
उसमें कहीं न कहीं उच्च प्रशासनिक स्तर पर स्वीकृति होगी. यह मामला इतना छोटा नहीं
होना चाहिए, जितना अभी नजर आ रहा है. मोटे तौर पर ज़ाहिर हुआ है कि इस डीएसपी के
साथ हिज्बुल मुजाहिदीन का सम्पर्क था. यह सम्पर्क क्यों था और क्या इसमें कुछ और
लोग भी शामिल थे, इस बात की जाँच होनी चाहिए. क्या वह डबल एजेंट की काम कर रहा था? जाँच आगे बढ़ने पर 13 दिसम्बर,
2001 को संसद पर हुए हमले के बाबत भी कुछ जानकारियाँ सामने आएंगी.
केंद्रीय प्रशासन के पास कश्मीर की सच्चाइयों को सामने लाने का मौका है. यह
केवल एक पुलिस अधिकारी तक सीमित बात नहीं होगी. पुलिस का कहना है कि डिप्टी एसपी दविंदर सिंह
पर एक अरसे से निगाह रखी जा रही थी, उसके बाद ही उन्हें 11 जनवरी को गिरफ्तार किया
गया. पुलिस ने सिंह को हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी नवीद बाबा और अल्ताफ के साथ
गिरफ्तार किया था.
नवीद ने दविंदर
सिंह से कई बार फोन पर संपर्क किया था. चूंकि दविंदर सिंह एंटी-हाईजैकिंग यूनिट का
प्रभारी था, इसलिए यह गिरफ्तारी बेहद महत्वपूर्ण हो गई है. आश्चर्य इस बात पर है
कि हाल में श्रीनगर में 15 राजदूतों की यात्रा के समय दविंदर सिंह स्वागत करने
वाली टीम में शामिल था, जबकि पुलिस उसकी गतिविधियों पर नजर रख रही थी. पुलिस ने
उसे मौके पर सप्रमाण पकड़ा.
अभी कुछ बातों का
इंतजार हमें करना होगा. अक्सर खुफिया ऑपरेशनों में अपराधियों के साथ अनौपचारिक
संपर्क भी बनाए जाते हैं, पर इस मामले में लगता नहीं कि ऐसी बात है. देखना यह भी
होगा कि दविंदर सिंह के साथ क्या कुछ लोग और भी जुड़े हैं? इस प्रकरण के साथ राज्य में आतंकियों की
पुलिस-प्रशासन में पैठ का भी पता लगेगा. बहरहाल उपराज्यपाल जीसी मुर्मू के सलाहकार
फारूक खान ने दविंदर सिंह को ‘भेड़ की खाल में भेड़िया’ करार दिया है. उन्होंने
कहा कि सिंह की पहचान करने और उसे पकड़ने का श्रेय राज्य की पुलिस को जाता है.
यह सच है कि 5
अगस्त के बाद से राज्य में आतंकी गतिविधियों पर जिस मजबूती के साथ पुलिस ने पकड़
बनाई है, वह भी उल्लेखनीय है. यह काम राज्य की पुलिस ने ही किया है. शुरू में
श्रीनगर के कुछ इलाकों में लोगों ने पत्थरबाजी की, पर पुलिस ने सरगना टाइप के
लोगों को पहले दबोचा. उसके बाद से राज्य में शांति है. गिरफ्तार डीएसपी दविंदर
सिंह ने पूछताछ के दौरान एनआईए को बताया है कि वह पिछले तीन साल से हिज्बुल
मुजाहिदीन के आतंकवादियों के आवागमन में मदद कर रहा था. उसने यह भी बताया है कि
कुछ और अधिकारी भी इसमें साथ दे रहे थे. शायद अगले कुछ दिनों में किसी बड़े गिरोह
का भंडाफोड़ हो.
इतना साफ लगता है
कि उग्रवादियों को एक जगह से दूसरी जगह तक जाने में इसी प्रकार के पुलिस अधिकारी
मदद कर रहे थे. हालांकि यह केस अभी तक नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) को दिया
नहीं गया है, पर उम्मीद है कि जल्द ही उसे मिल जाएगा. यह एजेंसी इसके पहले भी
कश्मीर के राजनीतिक नेताओं तथा हुर्रियत के कुछ सदस्यों तथा कुछ कारोबारियों को
पाकिस्तान से मिलने वाले पैसे की जाँच कर रही है. इस जाँच का एक पहलू 13 दिसंबर,
2001 को दिल्ली में संसद भवन पर हुए हमले से भी जुड़ता है.
कश्मीर की पुलिस
के सूत्रों ने मीडिया को बताया है कि अब संसद पर हुए हमले से जुड़ी जाँच की फाइलों
को फिर से खँगाला जा रहा है. माना जाता है कि उस हमले की योजना लश्करे-तैयबा के
कमांडर गाज़ी बाबा ने तैयार की थी. वह गाज़ी बाबा एक अरसे तक इस इलाके में रहा भी
था. दविंदर सिंह उस मामले की जाँच से भी जुड़ा था. उन दिनों मीडिया के साथ उसका एक
इंटरव्यू भी प्रसारित हुआ था. उस मामले में फाँसी की सजा प्राप्त अफजल गुरु अपने
वकील सुशील कुमार को लिखे पत्र में दविंदर सिंह का जिक्र किया था.
अफजल गुरु ने
दावा किया था कि संसद पर हुए हमले के पूर्व दविंदर ने ही उसे बॉर्डर पार कराने में
मदद की थी. इस बीच मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफजल गुरु की पत्नी ने दावा किया है कि दविंदर सिंह को एक
लाख रुपए देने के लिए उसने साल 2000 में अपने गहने भी बेच दिए थे.
उस वक्त अफजल
गुरु के पत्र में किए गए दावे की जांच नहीं की गई थी. सवाल यह जरूर है कि जब अफजल
गुरु ने दविंदर सिंह पर इतने गंभीर आरोप लगाए थे तो किसी ने तहकीकात करने की कोशिश
क्यों नहीं की? अफजल को फाँसी के बाद
सारी बातें दबी रह गईं. शायद अब कुछ भेद खुलें या कम से कम इस बात की
सच्चाई पर से परदा हटे. इस मामले को लेकर कई ऐसी बातें भी कही जा रही हैं, जो सच
नहीं हैं. मसलन दविंदर सिंह को राष्ट्रपति का पुलिस पदक या किसी प्रकार का सम्मान
या पुरस्कार नहीं मिला है, जिसका जिक्र किया जा रहा है. कश्मीर पुलिस ने इस बात का
खंडन किया है. हालांकि उसे केंद्र सरकार ने पुरस्कृत नहीं किया था, पर 25-26 अगस्त 2017 को पुलवामा पुलिसलाइंस पर हमले के मामले में राज्य सरकार ने उसे शेरे कश्मीर पुलिस पदक से सम्मानित किया था. उस हमले में सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के 8 जवान और 3 आतंकवादी मारे गए थे. क्या उस हमले में दविंदर सिंह की कोई भूमिका थी? पुरस्कार का क्या मतलब है? जिस समय वह हमला हुआ था राज्य में महबूबा मुफ्ती की सरकार थी. जून 2018 में बीजेपी ने उस सरकार से समर्थन वापस लिया. अगस्त 2018 में दविंदर सिंह को सम्मानित किया गया.
Inext
में प्रकाशित
यह आलेख छपने के बाद ऐसी जानकारियाँ सामने आई हैं कि दविंदर सिंह ने रॉ के लिए काम किया है। प्रवीण स्वामी का आलेख यहाँ पढ़ें
https://www.news18.com/news/india/raw-used-rogue-police-officer-davinder-singh-in-operation-to-infiltrate-hizb-say-police-intel-sources-2470201.html
यह आलेख छपने के बाद ऐसी जानकारियाँ सामने आई हैं कि दविंदर सिंह ने रॉ के लिए काम किया है। प्रवीण स्वामी का आलेख यहाँ पढ़ें
https://www.news18.com/news/india/raw-used-rogue-police-officer-davinder-singh-in-operation-to-infiltrate-hizb-say-police-intel-sources-2470201.html
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