Tuesday, January 7, 2020

देश के भव्य रूपांतरण की महत्वाकांक्षी परियोजना



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में आधारभूत संरचना पर 100 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही थी. इसके बाद एक कार्यबल बनाया गया था, जिसने 102 लाख करोड़ की परियोजनाओं की पहचान की है. नए साल पर अब केंद्र सरकार ने अब इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की इस महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की है. यह परियोजना न केवल देश की शक्ल बदलेगी, बल्कि सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति भी प्रदान करेगी. मंगलवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) की घोषणा की, जिसके तहत अगले पांच साल में 102 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को पूरा किया जाएगा.
ये परियोजनाएं ऊर्जा, सड़क, रेलवे और नगरों से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की हैं. इनमें से 42 फीसदी परियोजनाओं पर पहले से ही काम चल रहा है, 19 फीसदी विकास की स्थिति में और 31 फीसदी अवधारणा तैयार करने के स्टेज पर हैं. अच्छी बात यह है कि एनआईपी टास्क फोर्स ने एक-एक परियोजना की संभाव्यता जाँच की है और राज्यों के साथ उनपर विचार किया है. इस प्रकार एनआईपी अब भविष्य की एक खिड़की के रूप में काम करेगी, जहाँ से हम अपने इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर नजर रख सकेंगे. समय-समय पर इसकी समीक्षा होती रहेगी, जिससे हम इसकी प्रगति या इसके सामने खड़ी दिक्कतों को देख पाएंगे. यानी कि यह केवल परियोजनाओं की सूची मात्र नहीं है, बल्कि उनकी प्रगति का सूचकांक भी है.

इंफ्रास्ट्रक्चर न केवल राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जान है, साथ ही यह रोजगार का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है. साथ ही यह हमारे जीवन को आसान बनाने का माध्यम भी है. मसलन शहरों में बनती जा रही मेट्रो परियोजनाएं, रेलवे लाइनें, राजमार्गों का विस्तार, टेलीकॉम और ब्रॉडबैंड लाइनों का विस्तार, नए आवासीय भवनों का निर्माण वगैरह. इसके साथ ही इसकी मदद से सीमेंट, इस्पात और विद्युत उद्योगों का विस्तार होता है. इन उद्योगों के लाभकारी बनने से इनमें निवेश की संभावनाएं बढ़ती हैं. चीन के वृहत आर्थिक विकास के पीछे इंफ्रास्ट्रक्चर पर उसके भारी निवेश का हाथ है. चूंकि इस काम में काफी बड़ी संख्या में श्रमिकों को काम मिलता है, जिसके कारण उपभोक्ता सामग्री के बाजार को बढ़ावा मिलता है. दूसरी तरफ सामाजिक कल्याण की राहें भी इसकी मदद से खुलती हैं, क्योंकि नए अस्पतालों और विद्यालयों का निर्माण तेजी पकड़ता है.
हालांकि अर्थव्यवस्था के विकास में निजी क्षेत्र की पूँजी की बड़ी भूमिका है, पर  इंफ्रास्ट्रक्चर विकास में सबसे बड़ी भूमिका सरकार की है. मोटे तौर पर एनआईपी जिन परियोजनाओं पर नजर रखेगा, उनमें से केंद्र और राज्य सरकारें 39-39 फीसदी यानी कुल मिलाकर 78 फीसदी परियोजनाओं के लिए पूँजी की व्यवस्था करेंगी. शेष 22 फीसदी धनराशि निजी क्षेत्र की होगी, जिसे 2025 तक बढ़ाकर 30 फीसदी तक करने की योजना है. यानी उसके बाद सरकार पर से बोझ कम करके धीरे-धीरे निजी क्षेत्र को अपनी भूमिका बढ़ाने का मौका दिया जाएगा.
 इस लिहाज से देखें तो अगले पाँच वर्ष में केंद्र सरकार को 39 लाख करोड़ रुपये का निवेश करना है. मोटे तौर पर हर साल आठ लाख करोड़ रुपये. यह छोटी रकम नहीं है, खासतौर से वर्तमान वित्तीय स्थिति को देखते हुए. राज्य सरकारों पर भी यही बात लागू होती है. निजी क्षेत्र का निवेश भी इन दिनों ढीला है. देश की वित्तीय संस्थाएं इन दिनों भारी बदलाव से गुजर रहीं हैं और लगता है कि अगले दो-तीन साल में वे निवेश को बढ़ावा देने की स्थिति में होंगी. देश के बैंकों को इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश के कार्यक्रमों की मदद के लिए पूँजी की व्यवस्था करनी होगी. फिलहाल चुनौती मौजूदा समय की है.
अब हमें अगले महीने पेश होने वाले बजट का इंतजार करना होगा, जिसमें अगले वित्तीय वर्ष की वित्तीय व्यवस्थाएं दिखाई पड़ेंगी. वित्तमंत्री ने बताया कि इन परियोजनाओं के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों ने पिछले छह सालों में बुनियादी संरचना विकास पर 51.2 लाख करोड़ रुपए खर्च किए हैं. यानी कि पिछले छह साल में जितना निवेश हुआ है, उसके दुगने निवेश की उम्मीद अगले पाँच साल में है.
बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2013-2017) की अवधि में जीडीपी की तुलना में निवेश कम हुआ है. इस लिहाज से यह बेहद महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है, खासतौर से तब जब जीडीपी की संवृद्धि में सुस्ती आ रही है. बहरहाल इस कार्यक्रम की सफलता पर हमारे देश की अर्थव्यवस्था का काफी दारोमदार होगा. पर इसके लिए हमें निरंतर इन कार्यक्रमों पर नजर रखनी होगी और किसी भी कार्यक्रम को समय से पीछे नहीं जाने देना होगा.
इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाएं समय से पूरी नहीं हो पाती हैं, जिसके कारण उनकी लागत बढ़ती है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इन परियोजनाओं के लिए पूँजी हमेशा उपलब्ध रहे और स्टील और सीमेंट वगैरह की सप्लाई निरंतर जारी रहे. दूसरी तरफ इस पाइपलाइन में जो परियोजनाएं विकास के चरण में हैं या जिनकी अवधारणा पर काम चल रहा है, उन्हें भी जल्द से जल्द लागू कराने की स्थिति में लाना चाहिए. वस्तुतः यह राष्ट्र निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ है, जिसे सफल बनाकर हम न केवल देश की शक्ल बदल सकते हैं, बल्कि करोड़ों लोगों को गरीबी के फंदे से बाहर निकाल सकते हैं.
मौजूदा आर्थिक सुस्ती को देखते हुए एनआईपी के लिए धन जुटाना आसान नहीं होगा, फिर भी सरकार ने इसके लिए कुछ रास्ते सोचे हैं. इससे जुड़ी परियोजनाओं के लिए बैंकों और बॉण्ड मार्केट का सहारा लेना होगा. इसके अलावा एक इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट भी बनाया जा रहा है. सालाना ग्लोबल इन्वेस्टमेंट सम्मेलन का सिलसिला भी शुरू किया जाएगा जिसमें निवेशकों को जानकारी दी जाएगी. बहरहाल इक्कीसवीं सदी के भारत को जबर्दस्त पुश देने की यह परिकल्पना शानदार है. इसकी सफलता पर देश का दारोमदार है. निवेशकों को आकर्षित करने के लिए देश में अनुशासन का माहौल भी होना चाहिए. क्या हम इसके लिए तैयार हैं?   

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