Tuesday, February 21, 2017

रक्षा उद्योगों में आत्मनिर्भरता

बेंगलुरु में हाल में लगे एयरो इंडिया-2017 शो में भारतीय वायुसेना ने पहले स्वदेशी एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम को कमीशन करके रक्षा में स्वदेशीकरण की लम्बी प्रक्रिया में एक बड़ा कदम रखा है। आकाश में किसी भी प्रकार की गतिविधि पर नजर रखने वाले अवॉक्स आज किसी भी वायुसेना की पहली जरूरत है। हालांकि यह उपलब्धि है, पर ह कार्यक्रम अपने समय से तकरीबन छह साल पीछे चल रहा है।

भारत के पास इससे पहले इसरायली अवॉक्स हैं, पर पाकिस्तान और चीन के पास मौजूद साधनों को देखते हुए हमें बड़ी संख्या में अवॉक्स की जरूरत है। भारत ने ब्राजील में बने एम्ब्रेयर विमानों पर जो स्वदेशी रेडार और निगरानी उपकरण लगाए हैं, उस सीरीज में अभी दो विमान और तैयार होंगे। इसके बाद एयरबस प्लेटफॉर्म पर छह और अवॉक्स तैयार किए जाएंगे।
रक्षा उद्योगों के स्वदेशीकरण की दिशा में भारत स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर, मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन, कई प्रकार की स्वदेशी तोप प्रणालियों, कई सतह वाली स्वदेशी हवाई सुरक्षा प्रणाली और इसी प्रकार की दूसरी प्रणालियों पर काम कर रहा है। स्वदेशीकरण की दिशा में सबसे ज्यादा काम नौसेना ने किया है। आज हम कॉरवेट, फ्रिगेट से लेकर विमानवाहक पोत और अणुशक्ति चालित पनडुब्बी तक बना रहे हैं। हमारा अगला विमानवाहक पोत विशाल भी अणुशक्ति चालित होगा।
स्वदेशीकरण का आशय यह नहीं है कि हर तरह के उद्योग स्वदेशी हों। दुनिया में कोई देश पूर्ण स्वदेशी तकनीक का दावा नहीं कर सकता। लड़ाकू विमान बनाने वाली कोई भी कम्पनी सारे उपकरण खुद ही तैयार नहीं करती है। रक्षा तकनीक ऊँचे दर्जे की होती है और सरकारों को नियंत्रण में होती है। भारत ने पचास के दशक में ही स्वदेशी लड़ाकू विमान तैयार करने की योजना बना ली थी। हमने अपने दौर के सर्वश्रेष्ठ जर्मन विमान डिजाइनर कुर्ट टैंक की सेवाएं ली थीं, जिन्हें आईआईटी मद्रास की सेवा में लिया गया था।
पहला स्वदेशी एचएफ-24 मरुत बेहतरीन लड़ाकू विमान था, जिसने सन 1965 और 1971 की लड़ाइयों में हिस्सा भी लिया था। एक भी मरुत विमान शत्रु के विमानों के प्रहार से नष्ट नहीं हुआ। मरुत विमान को वैश्विक राजनीति के कारण उपयुक्त इंजन नहीं मिला। यही दिक्कत तेजस कार्यक्रम में सामने आई है। तेजस के लिए हम कावेरी इंजन को तैयार कर रहे हैं, उसमें खामियाँ हैं। रफेल विमान की खरीदारी के साथ जो अनुबंध है, उसके तहत कावेरी इंजन को ठीक करने का विचार है।
तेजस विमान के अलावा भारत को एक इंजन वाले विमान की एक उत्पादन लाइन की और जरूरत है। यह उत्पादन निजी क्षेत्र में होगा। भारत ने इस सिलसिले में जो प्रस्ताव माँगे हैं उनके तहत अमेरिका के लॉकहीड मार्टिन के एफ-16 और स्वीडिश साब के ग्रिपन विमानों को भारत में ही बनाने के प्रस्ताव हैं। मेक इन इंडिया के तहत ये अनूठे कार्यक्रम होंगे और दुनिया में इस किस्म का यह पहला उदाहरण होगा। इन कार्यक्रमों का महत्त्वपूर्ण पहलू है कि हम इनका निर्यात भी कर सकेंगे।
भारत को दो इंजन वाले लड़ाकू विमान की जरूरत भी है, जो विमानवाहक पोत विशाल पर तैनात होगा। इसके लिए बोइंग के एफ-18 को भारत में बनाने का प्रस्ताव है। एफ-18 का इस्तेमाल नौसेना के अलावा वायुसेना भी कर सकती है। भारत पाँचवीं पीढ़ी के स्टैल्थ विमान के लिए रूस के साथ मिलकर काम कर रहा है। यह भी स्वदेशी विमान होगा। देश में बन रही स्कोर्पीन पनडुब्बियों के बाद भारत को अगली पीढ़ी की पनडुब्बियों के स्वदेशी कार्यक्रम पर भी फैसला करना है।  
पिछले महीने खबर थी कि भारत ने रूस और इसरायल से करीब 20,000 करोड़ रुपए के गोला-बारूद की आपातकालीन खरीद की है। इनमें एंटी टैंक मिसाइल, टैंकों के इंजन, रॉकेट लांचर तथा दूसरे किस्म का गोला-बारूद शामिल है, जिसकी युद्ध में फौरी जरूरत होती है। विदेशी मीडिया में इस किस्म की खबरें आईं कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से सीमा पर फौजी गतिविधियों में तेजी आई है। इसके पहले खबरें थीं कि भारत ने पाकिस्तानी सीमा पर 500 से ज्यादा नए टैंकों की तैनाती की है। खबरें यह भी थीं कि चीनी सीमा पर भारत अमेरिका से खरीदी गई हॉविट्ज़र तोपें तैनात कर रहा है।
लम्बे अरसे बाद देश की रक्षा जरूरतों को पूरा करने की कोशिशें की जा रहीं हैं। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की रिपोर्टों के अनुसार भारत दुनिया का सबसे बड़ा शस्त्र आयातक देश है। सन 2011-15 के बीच वैश्विक शस्त्र आयात में भारत की हिस्सेदारी 14 फीसदी की थी। अभी कुछ साल तक यह स्थिति जारी रहेगी, क्योंकि भारत का स्वदेशी रक्षा उद्योग इस स्थिति में नहीं है कि वह देश की जरूरतों को पूरा कर सके।
पिछले साल देश ने फ्रांस से 36 रफेल विमान खरीदने का जो सौदा किया है वह 60,000 करोड़ रुपये का है। इसके अलावा हमने 39,000 करोड़ रुपये से रूस की हवाई रक्षा प्रणाली एस-400 खरीदने का फैसला किया है। अपनी रक्षा के आधुनिकीकरण के लिए हमें अभी तमाम तरह की शस्त्र प्रणालियों की जरूरत है। इसलिए सरकार रक्षा उद्योगों के स्वदेशीकरण पर जोर दे रही है। पिछले साल घोषित रक्षा खरीद प्रक्रिया-2016 के तहत देश के निजी उद्योगों को जब से भागीदार बनाने (स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप) की घोषणा की गई है, इस प्रक्रिया में तेजी आई है।

देश में रक्षा अनुसंधान विकास संगठन की 50 प्रयोगशालाएं हैं, चार शिपयार्ड हैं, 39 ऑर्डनेंस फैक्ट्री हैं और एचएएल, बीईएल जैसे अनेक सार्वजनिक रक्षा उद्योगों की श्रृंखला है। बावजूद इसके हम रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं। इस लिहाज से हमें आने वाले दिनों में मेक इन इंडिया की प्रगति को देखना होगा। टाटा, महिन्द्रा, लारसन एंड टूब्रो तथा रिलायंस जैसे उद्योग और उनके साथ छोटे उद्योगों की एक लम्बी श्रृंखला उभर कर सामने आ रही है। 

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