बजट एक राजनीतिक दस्तावेज भी है। सालाना हिसाब-किताब से ज्यादा उसमें की गई
नीतियों की घोषणाएं महत्त्वपूर्ण होती हैं। इन बातों का सीधा रिश्ता चुनाव से है। सरकारें
चुनाव जीतने के लिए ही काम करती हैं। पाँच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बजट लाने
का कांग्रेस ने विरोध ही इसलिए किया था कि सरकार कहीं खुद को ज्यादा बड़ा
देश-हितैषी साबित न कर दे।
पाँचों राज्यों में हो रहे चुनावों में केंद्र सरकार के बजट की अनुगूँज निश्चित
रूप से सुनाई पड़ेगी। चुनाव का आगाज ही इसबार नोटबंदी से हुआ है। विपक्ष जहाँ
नोटबंदी के मार्फत बीजेपी के दुर्ग में दरार डालना चाहता है वहीं आम बजट का मूल
स्वर नोटबंदी के नकारात्मक असर को कम करने का है।
बेशक सरकार ने चुनाव आयोग के
निर्देशों का पालन करते हुए राज्यों के नाम से नए कार्यक्रमों की घोषणा नहीं की।
पर बजट के मार्फत बीजेपी ने संदेश दिया है कि हमारा जनाधार बदल रहा है। बीजेपी को
व्यापारियों की पार्टी और उद्योगपतियों तथा उच्च मध्यवर्ग की हमदर्द माना जाता है,
पर नोटबंदी की पहली मार व्यापारियों पर ही पड़ी है।
अपने जनाधार को व्यापक बनाए बगैर कोई पार्टी सत्ता में नहीं आ सकती। जनाधार को
अपने पक्ष में करने के दो ही रास्ते हैं। एक जाति और संप्रदाय का है और दूसरा
गरीबी का। बजट पेश होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि किसान, गाँव और गरीब का यह बजट है। पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में किसान, गाँव
और गरीब शब्द जादू का काम करते हैं।
आयकर में सबसे निचले तबके को छूट देकर और अमीर तबके पर सरचार्ज बढ़ाकर सरकार ने
यह जताया कि हम अमीरों की जेब से निकालकर गरीबों को देंगे। लगता है कि बीजेपी अगले
दो-ढाई साल तक इसी छवि को मजबूत बनाने की कोशिश करेगी। वह यह भी साबित करेगी कि
बगैर नोटबंदी के यह काम संभव नहीं था। अपने बजट भाषण में वित्तमंत्री ने यह भी कहा
कि हम बैंकों का पैसा दबाने वालों के खिलाफ कड़े कानून बनाने वाले हैं। ऐसे संदेश
गरीबों के मन को भाते हैं।
नोटबंदी की तमाम तकलीफों के बावजूद जनता ने सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन
नहीं किया तो उसकी वजह यही है कि गरीबों को लगा कि अमीरों के नोट बाहर निकाले जा रहे
हैं। मोदी अमीरों की बाँहें मरोड़ रहा है वगैरह। वित्तमंत्री ने कहा कि
विमुद्रीकरण के लाभ गरीबों और वंचितों को दिए जाएंगे। महात्मा गांधी की सन 2019
में होने वाली 150वीं जयंती तक एक करोड़ परिवारों को गरीबी से निजात दिलाने और 50 हजार ग्राम पंचायतों को गरीबी-मुक्त बनाने के लिए अंत्योदय मिशन पर हम काम
करेंगे। यह चुनावी भाषण ही है।
बजट के कागजों में ग्रामीण, वंचित और दलित शब्दों पर जोर है। ग्रामीण और संबद्ध
क्षेत्रों के लिए किए गए प्रावधानों को एक साथ जोड़कर बताया गया है कि इसके 1,87,223
करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। अनुसूचित जातियों के लिए बजट में बड़ा इजाफा
किया है। 2016-17 में यह राशि 38,833 करोड़ रुपये थी
जिसे 2017-18 में बढ़ाकर 52,393 करोड़ रुपये कर
दिया गया है। यह 35 फीसदी वृद्धि सीधे-सीधे सरकार के नजरिए को रेखांकित करती है।
ऐसी ही एक संख्या मनरेगा के संदर्भ में 48,000 करोड़ रुपये के प्रावधान की है,
जो इस मद में अब तक रखी गई सबसे बड़ी रकम है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जिसके लिए
19,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. इसमें राज्यों की धनराशि को भी जोड़ दें
तो पूरी धनराशि 27,000 करोड़ रुपये होती है। खेती-किसानी के लिए
नाबार्ड के माध्यम से 10 लाख करोड़ रुपये के कृषि ऋण का लक्ष्य रखा गया है, जो
सीधे इस बजट का हिस्सा नहीं है, पर जिसे सिर्फ इस बात को रेखांकित करने के लिए
इस्तेमाल किया जा सकता है कि सरकार खेती को महत्व दे रही है।
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2019 तक एक करोड़ घर बनाने की बात उत्तर प्रदेश
के चुनाव में वोटर का ध्यान खींचेगी। उत्तर प्रदेश में आबादी के 20 फीसदी लोगों के
पास घर नहीं है। अन्य राज्यों में यह 8-10 प्रतिशत ही है। यह कार्यक्रम सबसे
ज्यादा उत्तर प्रदेश को प्रभावित करेगा। उत्तर प्रदेश की शहरी आबादी के लिहाज से
भी यही स्थिति है। सरकार ने 3.96 लाख करोड़ रुपये के आसपास के जिस भारी
इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश की घोषणा की है, वह जबर्दस्त है बशर्ते वोटर उसपर ध्यान दे।
देश में इतने
बड़े स्तर पर निर्माण पर निवेश पहले कभी नहीं हुआ। सड़कों, पुलों, भवनों, बिजली की
लाइनों और रेल लाइनों के निर्माण से विकास की गाड़ी तेज होगी। ये निर्माण गाँवों
और शहरों से होकर गुजरेंगे। इनके सहारे छोटे रोजगारों को बढ़ने का मौका मिलेगा।
बड़ी तादाद में मजदूरों का काम मिलेगा।
प्रधानमंत्री कौशल केन्द्रों को मौजूदा 60 जिलों से बढ़ाकर देशभर के 600 जिलों
में फैलाने की घोषणा भी महत्वाकांक्षी है। देशभर में 100 भारतीय अंतर्राष्ट्रीय
कौशल केन्द्र स्थापित होंगे। इनमें उन्नत प्रशिक्षण तथा विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम
संचालित किए जाएंगे। ये केंद्र देश के अंदरूनी इलाकों के नौजवानों को रोजगार
दिलाने के साथ-साथ मोदी के कनेक्ट को बेहतर बनाने का काम भी करेंगे। रोजगार का
मतलब सरकारी नौकरियाँ ही नहीं हैं, अपने रोजगार खड़े करना भी है।
बजट के राजनीतिक निहितार्थ को जितना भाजपा भुनाने की कोशिश करेगी, उतना ही
विरोधी दल नोटबंदी के नकारात्मक पक्ष को भुनाएंगे। पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम
ने कहा भी है कि नोटबंदी के कारण किसानों, मजदूरों, मिस्त्रियों, गरीबों को करोड़ों रुपये का घाटा हुआ, लेकिन बजट में इनके लिए एक भी ऐलान नहीं
होना निराश करता है। उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन गाँवों में इस बात को
उठा रहा है कि जब फसल बोने का टाइम आया तब किसान के हाथ में पैसा नहीं रहा, जिससे
उसे बीज और खाद लेने में परेशानी हुई। नोटबंदी का असर हर घर और हर जेब पर पड़ा है।
दोनों तरफ से इस बात को खबरों में बनाए रखने की कोशिश की जाएगी। ममता बनर्जी
की तृणमूल कांग्रेस ने बजट के दिन संसद का बहिष्कार भी इसीलिए किया। राज्यसभा में
राष्ट्रपति के बजट अभिभाषण में विरोधी दलों ने 651 संशोधन अभी से इसीलिए पेश किए हैं।
और इसीलिए बीजेपी की सभाओं में बजट के आँकड़े पेश किए जा रहे हैं।
हरिभूमि में प्रकाशित
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