तमिलनाडु
के सत्ता-संघर्ष में बारह मसाले की चटनी का स्वाद आ रहा है। देश की लोकतांत्रिक
व्यवस्था सामंती तौर-तरीकों के माया-जाल में घिर गई है, यह साफ नजर आ रहा है। व्यक्ति
पूजा और चाटुकारिता के सारे प्रतिमान तमिलनाडु की राजनीति में टूटते रहे हैं। शनिवार को शशिकला खेमे के ई पलनीसामी की सरकार ने विश्वासमत जरूर हासिल कर लिया है, पर ओ पन्नीरसेल्वम को जनता की हमदर्दी हासिल हुई है। कहानी अभी जारी है।
‘अम्मा
से चिनम्मा’ की यह कहानी रोमांचक मोड़ों से भरी है। हर किस्म
की नाटकीयता इसमें शामिल है। दरबारी साजिशों और षड्यंत्रों का तड़का भी। गिरफ्तारी
के पहले वीके शशिकला ने अम्मा की समाधि पर जाकर जिस अंदाज में अपने दाएं हाथ को
जमीन पर मारा था उससे यह भी पता लगा कि जयललिता से उन्होंने और कुछ सीखा हो या न
सीखा हो, अभिनय जरूर सीखा है।
शशिकला
की कोशिशों से पन्नीरसेल्वम किनारे हो गए हैं और पलनीसामी मुख्यमंत्री बन गए
हैं। पर असमंजस खत्म नहीं हुआ है। जयललिता के निधन के फौरन बाद पन्नीरसेल्वम
को मुख्यमंत्री पद पर बैठा जरूर दिया गया था, पर यह भी स्पष्ट था कि उनसे जब
चाहेंगे, इस्तीफा लिखवा लेंगे। बावजूद इसके उनका देर तक मुख्यमंत्री बने रहना भी
शशिकला के हित में नहीं था। उन्हें डर था कि कहीं इस कुर्सी को वह अपनी न मानने
लगे। बाद में ऐसा हुआ भी।
जिस दिन पन्नीरसेल्वम से इस्तीफे पर दस्तखत कराए गए, उस दिन शायद उनका दिमाग
काम नहीं कर रहा था। पर इस बात पर किसी को विस्मय नहीं हुआ। तमिल राजनीति में ऐसा
होता ही है। वहाँ तक कहानी सीधे-सपाट तरीके से चली। पर अचानक पन्नीरसेल्वम की
अम्मा की आत्मा से संवाद हुआ और कहानी में मोड़ आ गया।
शशिकला जेल चली गईं हैं, पर जाते-जाते पलनीसामी को मुख्यमंत्री बना गई हैं।
उनके पूरे परिवार की पोस गार्डन में वापसी हो चुकी है। सवाल है कि क्या पलानीसामी उनके
वफादार बने रहेंगे? शशिकला ने पार्टी से पांच साल पहले निष्कासित किए गए अपने निकट संबंधियों
टीटीवी दिनाकरन और एस वेंकटेश को फिर से पार्टी में शामिल कर लिया है। अदालत से
सज़ा पाने के एक दिन बाद शशिकला ने घोषणा की कि पूर्व राज्यसभा सदस्य दिनाकरन को
पार्टी का उप-महासचिव नियुक्त किया गया है।
जयललिता ने सन 2011 में शशिकला और उनके पति एम नटराजन के अलावा दिनाकरन और
वेंकटेश को पार्टी से निष्कासित किया था। पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहा गया कि
दूर-दूर के जिलों से वे लोगों को भरकर चेन्नई लाएं। शशिकला के नेतृत्व को वैधता
दिलाने के लिए यह जरूरी था। पार्टी इसी तरीके से काम करती रही है।
जेल जाने का मतलब यह नहीं कि शशिकला का राजनीतिक अस्तित्व खत्म हो गया है।
बिहार का उदाहरण सामने है। वहाँ राजनीति की डोर अभी लालू के हाथों में है। जेल में रहते हुए भी वे पीछे
से राजनीति का संचालन कर सकती हैं। इसके बाद वे कानूनी रास्ते खोजेंगी। पर सवाल यह
है कि क्या पार्टी बचेगी? बची भी तो क्या उनके काबू में रहेगी? दो धड़े बने तो कौन ज्यादा
ताकतवर बनकर उभरेगा? इसका फायदा क्या डीएमके को नहीं होगा?
तमिलनाडु में पिछले साल ही चुनाव हुए हैं। दोनों धड़ों में से कोई एक सत्ता पर
कब्जा करने में सफल भी हो जाए या दोनों में समझौता हो जाए, तब भी क्या यह सरकार
चार साल चलेगी? क्या फिर से चुनाव की
नौबत आएगी?
केंद्र ने हाथ खींचा
इस लड़ाई के पहले दौर में केंद्र सरकार का झुकाव पन्नीरसेल्वम की ओर लगता था।
बाद में उसने हाथ खींच लिया। इसकी वजह शायद यह भी है कि पन्नीरसेल्वम अपने पक्ष
में ज्यादा विधायकों को लाने में कामयाब नहीं रहे। अलबत्ता 12 सांसद उनके खेमे में
दिखाई पड़ रहे हैं। कहा नहीं जा सकता कि कौन किसके साथ जाएगा। जयललिता के साथ
भारतीय जनता पार्टी के रिश्ते बेहतर थे। खासतौर से नरेंद्र मोदी के। बावजूद इसके
जयललिता ने खुलकर भाजपा का साथ कभी नहीं दिया, क्योंकि पार्टी मुसलमान समर्थकों को
खोना नहीं चाहती।
पहले लगता था कि अम्मा के निधन के बाद पार्टी को जनता की हमदर्दी मिलेगी। ऐसा
तभी होगा, जब एकता होगी। अब क्षत्रपों के आपसी संग्राम को देखते हुए लगता है कि पार्टी
कमजोर होगी और जनता की हमदर्दी भी खोएगी। इसके कारण प्रदेश की राजनीति में नई ताकत
के लिए स्पेस बनेगा। अपने विस्तार की कोशिश कर रही भाजपा के लिए यह अच्छा अवसर होगा।
स्पेस बनाने के अलावा केंद्र की भाजपा सरकार को राज्यसभा में अद्रमुक 13 और लोकसभा
में 37 सदस्यों के समर्थन की उम्मीदें भी हैं। इस साल राष्ट्रपति चुनाव भी होंगे,
जिसमें अद्रमुक मददगार होगी। ऐसा तभी होगा, जब पार्टी में एकता बनी रहेगी।
राजनीतिक असमंजस
बीजेपी के
महासचिव पी मुरलीधर राव ने अगरतला में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का
दूरगामी असर तमिलनाडु की राजनीति में देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि अद्रमुक
संकट में है और उसकी परीक्षा इस बात की है कि वह किस प्रकार के नेतृत्व को अब पेश
करेगी। भाजपा के आंतरिक सूत्र मानते हैं कि पार्टी का कमजोर होना हमारे हित में नहीं
है। इससे डीएमके को आगे आने का मौका मिलेगा, जो भाजपा नहीं चाहेगी।
राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए निमंत्रण भेजने में जो देरी की है उससे शशिकला
खेमे के मन में भाजपा को लेकर खलिश है। पर यह खेमा अभी खुद डांवांडोल है। वह
ताकतवर होगा तभी मोल-भाव करने की स्थिति में आ जाएगा।
जयललिता के अस्पताल में भरती होने के बाद कांग्रेस ने भी अद्रमुक के साथ
रिश्ते सुधारने की कोशिश शुरू कर दी थी। राहुल गांधी खुद उन्हें देखने अस्पताल गए
थे। जिस वक्त जयललिता
बीमार थीं, तब अद्रमुक और कांग्रेस का गठबंधन की बातें भी उठी थीं। हालांकि
औपचारिक रूप से कांग्रेस और डीएमके का गठबंधन कायम है, पर वह सिर्फ नाम का है। इसका संकेत तब मिला जब राहुल गांधी
ने अस्पताल जाकर जयललिता का हाल-चाल पूछा और करुणानिधि से मुलाकात भी नहीं की।
तमिलनाडु
कांग्रेस के नए अध्यक्ष एस तिरुनवुक्करसार इसके पहले अद्रमुक के साथ भी जुड़े रहे
हैं। ऐसा माना जा रहा है कि पी चिदंबरम खेमे के नेताओं के साथ उनके अच्छे रिश्ते
हैं और वे अद्रमुक के साथ रिश्ते बेहतर बनाने के उद्देश्य से ही लाए गए हैं। दोनों
पार्टियों के बीच बेहतर रिश्ते बनाने की इच्छा शायद दोनों तरफ से थी।
कब तक ‘यस मैन’ रहेंगे पलनीसामी?
अम्मा का निधन
कहानी में पहला मोड़ था। शशिकला का जेल जाना दूसरा मोड़ है। पर तूफान अभी शांत
नहीं हुआ है। पलनीसामी मुख्यमंत्री बन गए हैं, पर कब तक? क्या गारंटी है कि वे भी ‘यस मैन’ बने रहेंगे? शशिकला पार्टी को
शिखर पर पहुँच गईं हैं, पर वे जयललिता नहीं हैं। उन्हें उतना खुलकर न तो नेतृत्व
करने का मौका मिलेगा और न जनता के बीच वे जयललिता जैसी लोकप्रिय हैं। बल्कि तमाम
बातें चर्चा में हैं। पलानीसामी से पहले जयललिता के भतीजे दीपक का नाम भी मुख्यमंत्री पद के लिए
सामने आया था। दीपक की बहन दीपा के मन में भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं। वे
पन्नीरसेल्वम खेमे में खड़ी हैं।
जयललिता का निधन जिस वक्त हुआ तब तक पार्टी उनके उत्तराधिकारी के बारे में सोच
भी नहीं पाई थी। फिर ऐसे शक्तिशाली नेता का उत्तराधिकारी खोजना आसान भी नहीं होता।
ऐसे संगठनों में या तो नेता स्वयं उत्तराधिकारी को चुनते हैं या कोई नया नेता
पुराने नेतृत्व को चुनौती देकर सामने आता है। शशिकला को लगता था कि वे जयललिता के साथ अपने
पुराने लगाव के बहाने जनता का समर्थन हासिल कर लेंगी। पर यह काफी मुश्किल काम है।
जयललिता के निधन
के बाद शशिकला के परिवार की वापसी हो गई है। यह पूरी टीम है, जिसे ‘मन्नारगुडी
माफिया’ कहा जाता है। क्या पार्टी का सीनियर नेतृत्व इन्हें स्वीकार कर चुका है? या किसी स्तर पर आंतरिक द्वंद्व
जारी है? अभी किसी को नहीं पता।
मान लेते हैं कि शशिकला कैम्प पार्टी के सीनियर नेताओं को अपने पक्ष में लाने में
कामयाब हो गया था। पर किसी न किसी स्तर पर पन्नीरसेल्वम ने अपना मन बदला। उनके
मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे और शशिकला के विधायक दल का नेता चुने जाने तक रास्ता
काफी आसान लगता था।
अभी तमाम बातें
अंधेरे में हैं। शशिकला के जेल जाने के बाद पार्टी के अंतर्विरोध खुलेंगे। देखना
होगा कि पार्टी के भीतर कितने प्रकार की धाराएं हैं। पार्टी संगठन का सबसे बड़ा पद
महासचिव का है। अभी तक जयललिता महासचिव भी थीं। एमजीआर और जयललिता दोनों के पास
मुख्यमंत्री और महासचिव दोनों पद थे। अब कोई ऐसा नेता नहीं है, जिसे सर्वशक्तिमान
कहा जाए।
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कांग्रेस और
बीजेपी की निगाहें
जयललिता के जीते
जी अद्रमुक के साथ रिश्ते बेहतर करने की कोशिशें कांग्रेस ने भी कीं और भाजपा ने
भी। दोनों पार्टियों की निगाहें फिलहाल संसद के दोनों सदनों में अद्रमुक के 50
सांसदों पर हैं। इसके बाद इस साल राष्ट्रपति पद का चुनाव है। सन 2019 के गठबंधन की
संभावनाएं भी हैं। जयललिता के अस्पताल में भरती होने के बाद गुलाम नबी आजाद, पी चिदंबरम और मुकुल वासनिक के जरिए पार्टी ने अद्रमुक के
साथ संपर्क बनाया। राहुल गांधी स्वयं उनका हाल पूछने गए। बीजेपी के अमित शाह, अरुण जेटली और वेंकैया नायडू अम्मा से अस्पताल में मिलकर आए
थे। अम्मा के अंतिम संस्कार के लिए नरेंद्र मोदी खुद चेन्नै गए थे।
पिछले साल हुए
तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तमिलनाडु ईवीकेएस
इलंगोवन ने पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था।
इस्तीफे का तात्कालिक कारण यह था कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस की
पराजय को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। पर अब समझ में आता है कि कांग्रेस ने
डीएमके का साथ छोड़कर जयललिता के साथ जाने का फैसला कर लिया था।
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मन्नारगुडी खानदान?
तमिलनाडु की राजनीति में शशिकला के परिवार को 'मन्नारगुडी खानदान' के नाम से भी जाना
जाता है। तिरुवरुर ज़िले में मन्नारगुडी वह जगह है जहां शशिकला के परिवार की जड़ें
हैं। शशिकला की शादी तमिलनाडु सरकार में तत्कालीन जनसंपर्क अधिकारी रहे एम नटराजन
से हुई थी। 1980 के दशक में ही नटराजन ने दक्षिण आर्कोट जिले की कलेक्टर वीएस
चंद्रलेखा से शशिकला की जयललिता से मुलाकात कराने का अनुरोध किया। बाद में शशिकला को
जयललिता के कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी का काम मिल गया। उसके बाद उनके रिश्ते बेहतर
होते गए। सन 1988 से जयललिता के घर पर शशिकला साथ ही रहने आ गईं। उनके साथ उनका
परिवार भी जया के घर पर ही शिफ्ट हो गया। धीरे-धीरे वे ‘चिनम्मा’ यानी छोटी माँ बन गईं। वे तय करने लगीं कि कौन अम्मा से मिलेगा।
शशिकला का प्रभाव बढ़ता गया। जयललिता की गैरहाजिरी में उनके निवास स्थान पोस
गार्डन से लेकर पूरे तमिलनाडु में शशिकला की चलने लगी। पर जयललिता ने उन्हें राजनीति
में नहीं आने दिया। अपने निधन से ठीक पहले भी 'अम्मा' ने उन्हें किसी रूप में अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया।
जयललिता को शशिकला और उनके परिवार को लेकर कोई न कोई शिकायत भी थी। इसीलिए सन 2011
में जयललिता ने शशिकला को पार्टी से और अपने घर से भी निकाल दिया। बाद में शशिकला
ने उनसे माफी माँग ली और उनकी वापसी पोस गार्डन में हो गई, पर उनके परिवार की
वापसी नहीं हुई। पर यह भी सच है कि जयललिता की सम्पत्ति का काफी जानकारी शशिकला को
है। उनके लगभग दो दर्जन रिश्तेदार किसी न किसी रूप में पार्टी संगठन या जयललिता की
विरासत से जुड़े हैं। जयललिता के चैनल जया टीवी की जिम्मेदारी भी शशिकला के परिवार
से जुड़े लोग संभालते हैं। यह चैनल निरंतर शशिकला के पक्ष में प्रसारण कर रहा है।
शानदार पोस्ट ... बहुत ही बढ़िया लगा पढ़कर .... Thanks for sharing such a nice article!! :) :)
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