Saturday, February 11, 2017

संसदीय मर्यादा दो हाथों की ताली

संसदीय मर्यादाओं और राजनीतिक शब्दावली को लेकर गंभीर विमर्श की जरूरत दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इसकी जिम्मेदारी राजनीतिक दलों की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर जो बात कही और उसे लेकर कांग्रेस पार्टी ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की, दोनों से साफ जाहिर है कि ताली एक हाथ से नहीं बज सकती। इस कटुता को रुकना चाहिए। और इसकी जगह गंभीर विमर्श को बढ़ाया जाना चाहिए।
गुजरात में सन 2007 के विधानसभा चुनाव की शुरुआत में सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। पिछले साल सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी ने खून की दलाली शब्दों का इस्तेमाल किया था। कोई मौका ऐसा नहीं होता, जब राजनीति में आमराय दिखाई पड़ती हो। बेशक सभी दलों के हित अलग-अलग हैं, पर कहीं और कभी तो आपसी सहमति भी होनी चाहिए।

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस पर मंगलवार को लोकसभा में और बुधवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री के जवाब और बदले में कांग्रेसी व्यवहार के साथ संसदीय, लोकतांत्रिक मर्यादा के सवाल खड़े हुए हैं। इस घटनाक्रम को ध्यान से देखें तो बातें एक-दूसरे से जुड़ी हुई नजर आती हैं। दोनों पक्ष एक-दूसरे को जवाब देना चाहते हैं। दोनों के पास अपने-अपने कारण हैं। पर इसके लिए संसद का इस्तेमाल ठीक नहीं है।
प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में मनमोहन सिंह पर रेनकोट पहन कर नहाने के जिस रूपक इस्तेमाल किया, उसे कांग्रेस ने तल्ख और बेहूदा करार दिया है। पार्टी ने कहा है कि प्रधानमंत्री माफी माँगें। इस भाषण की परिस्थितियों को ध्यान से देखें तो लगेगा कि सब कुछ अनायास नहीं हुआ। प्रधानमंत्री का भाषण शुरू होते ही विरोधी कुर्सियों से आवाजें आने लगीं। कोई योजना नहीं भी थी, तब भी माहौल में उत्तेजना थी। बीच में एकबार वेंकैया नायडू ने उठकर कहा भी कि क्या यह ऐसे ही चलता रहेगा? क्या रनिंग कमेंट्री चलती रहेगी?
इस सिलसिले में एक सवाल है कि नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह को निशाना क्यों बनाया? मनमोहन सिंह सामान्यतः रोजमर्रा की राजनीति पर टिप्पणी नहीं करते हैं। इसकी वजह नोटबंदी को लेकर राज्यसभा में की गई टिप्पणी है, जो मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में की थी। नवम्बर में मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में कहा था कि नोटबंदी का फैसला ‘संगठित लूट और कानूनी डाकाजनी’ (ऑर्गनाइज्ड लूट एंड लीगलाइज्ड प्लंडर) है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने उनसे यह बयान दिलवाया था। लीगलाइज्ड प्लंडर कड़े शब्द हैं। एक पूर्व प्रधानमंत्री अपने बाद की सरकार पर लूट का आरोप लगा रहा है।
पिछले कुछ सत्रों से संसद में, खासतौर से राज्यसभा में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच टकराव चल रहा है। शीत सत्र में लगता था कि दोनों पक्ष ही संसद को चलने देना नहीं चाहते। सत्र के खत्म होते-होते राहुल गांधी ने कहा, मुझे संसद में बोलने नहीं दिया जाता। मैं बोलूँगा तो भूकम्प आ जाएगा। मंगलवार को लोकसभा में नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत इसी बात से की। उन्होंने कहा, ...लेकिन आखिर भूकम्प आ ही गया...धमकी तो बहुत पहले सुनी थी।
मंगलवार को मोदी ने काफी लम्बा भाषण दिया। 88 मिनट का वह भाषण संसद में उनका अब तक का सबसे लम्बा भाषण था। इसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी और खासतौर से राहुल गांधी को लेकर काफी चुटकियाँ लीं। पर विपक्ष सुनता रहा। सदन के बॉयकॉट का मौका बुधवार को राज्यसभा में आया। मनमोहन सिंह के संगठित और कानूनी डाकाजनी शब्दों को लेकर बीजेपी को आपत्ति थी। मोदी ने कहा, इतने बड़े व्यक्ति ने सदन में लूट और प्लंडर जैसे शब्द प्रयोग किए थे। तब पचास बार उधर भी सोचने की जरूरत थी। हम भी उसी कॉइन में वापस देने की ताकत रखते हैं।
इसके बाद मोदी ने मनमोहन सिंह से जुड़ी बातें कहना शुरू किया। मोदी ने वस्तुतः कहा कि मनमोहन सिंह का इस्तेमाल पार्टी करती है। कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी को अपनी बातों के लिए माफी माँगनी चाहिए। पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम का कहना है कि इस तरह के तल्ख और बेहूदा कमेंट्स कतई मंजूर नहीं हैं। पूर्व पीएम के बारे में इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना किसी भी पीएम के लिए अच्छी बात नहीं है। बीजेपी का कहना है कि माफी तो कांग्रेस को माँगनी चाहिए। प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान लगातार खलल डालने के लिए। मर्यादा पूर्व और वर्तमान दोनों ही प्रधानमंत्रियों की है। सवाल उस दृष्टि का है।
सत्तापक्ष और विपक्ष के हितों का टकराव अस्वाभाविक नहीं है, पर ये टकराव पूरे जीवन भर नहीं रहते। मनमोहन सिंह ने जब राज्यसभा में नोटबंदी को कानूनी डाकाजनी कहा था, तब भाषण के बाद लंच ब्रेक के वक्त नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह के पास जाकर उनसे हाथ मिलाया था। शाब्दिक गरमी-नरमी वक्त पर निर्भर करती है। नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी और मनमोहन सिंह का मजाक बनाने में कसर नहीं छोड़ी है, पर सन 2007 से कांग्रेस पार्टी मोदी को मौत का सौदागर साबित कर रही है।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के कारण इस वक्त जो राजनीतिक गरमी बाहर है, उसके कारण भी इस संसदीय टकराव पा महत्त्व बढ़ गया है। नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक और अब बजट को लेकर जनता के बीच चर्चा चल ही रही है। प्रधानमंत्री का कहना है कि नोटबंदी उसी प्रकार की आर्थिक स्वच्छता की दिशा में कदम है, जैसी स्वच्छता की जीवन में जरूरत है। यह फैसला हड़बड़ी में नहीं किया गया। यह नोटबंदी के लिए सही समय था।
मोदी ने लोकसभा में यह भी कहा कि केंद्र ने 1988 में बेनामी सम्पत्ति का कानून बनाया और 26 साल बाद तक उसे लागू नहीं किया। मोदी कहना चाहते हैं कि कांग्रेस के सामने मौके आए थे, पर उसमें जोखिम उठाने का साहस नहीं था। चाहे वह नोटबंदी हो या सर्जिकल स्ट्राइक। बजाय कटुता बढ़ाए यह बहस चलाई जा सकती है।


inext में प्रकाशित

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