लाइफ स्टाइल पत्रिका सोसायटी के जनवरी अंक में वीर सांघवी और बरखा दत्त के इंटरव्यू छपे हैं। इनमें दोनों पत्रकारों ने अपन पक्ष को रखा है। दोनों अपने पक्ष को अपने कॉलमों, वैबसाइट और चैनल पर पहले भी रख चुके हैं। यह पहला मौका है जब दोनों ने एक साथ एक जगह अपनी बात रखी। इसमें ज़ोर इस बात पर है कि राडिया टेप का विवरण छापने के लिए जिन लोगों ने दिया उन्होंने हम दोनों से जुड़े विवरण को साफ-साफ अलग से अंकित किया था। यह लीक हम दोनों को टार्गेट करने के वास्ते थी।
वीर सांघवी ने अपने इंटरव्यू में कहा है कि -
"I am told by one of the publications that received the tapes that they came neatly marked and sub-divided. Barkha Dutt's conversations were first and mine were second. So, we were not collateral damage. The intention of the leaker was to target us."
उधर बरखा दत्त ने कहा है कि
"I can't comment on why the leakage has been so selective. But clearly, the conversations have been cherry picked and, in the interests of transparency, I think all 5,000-plus conversations should now be made public."
"I think the important thing for all of us to realise is that no matter whether we are well-known or successful, the truth is that we are nothing without the faith of our readers and our viewers. At the end of the day, if we cannot explain our own actions, then we cannot expect them to take us seriously when we comment on the actions of others.... All of us in the media are what our readers and viewers have made us. Without them, we are nothing."
"My viewers don't need to be disheartened. The way the story has been presented is so caricatured and distorted that it is made to look in a certain way. I am still the same journalist that I always was. I strongly object to the way these stories have been written."
वास्तव में खुद को बचाने या किसी दूसरे पर आरोप लगाने के बजाय वे इस खेल के बारे में खुलकर लिखें तो उनके पास बेहतर जानकारी होगी। आमतौर पर अच्छी आत्मकथाओं में व्यक्ति अपनी गलतियों को भी ईमानदारी से लिखते हैं। गांधी की आत्मकथा एक सरल व्यक्ति की आत्मकथा है। पत्रकारिता से जुड़े लोग कहानी के अंतर्विरोधों को बेहतर समझते हैं। वे अनेक पक्षों और अनेक सच्चाइयों से प्रत्यक्ष परिचित होते हैं. उनके विवरण इसीलिए पाठक को पसंद आते हैं, क्योंकि उनमें प्रत्यक्षदर्शी और अपेक्षाकृत तटस्थ व्यक्ति का नज़रिया होता है। व्यक्ति की साख किसी एक बात से बनती या बिगड़ जाती है, पर जज्बा हो तो वह फिर से बन भी सकती है।
राडिया टेप में केवल इन दो पत्रकारों की बातचीत ही नहीं थी। कुछ और पत्रकारों की बातें थीं। इन बातों से ऐसा लगता है कि इस कर्म का अपने पक्ष में इस्तेमाल करने वाली ताकतें सक्रिय हैं या थीं। मामला केवल सांघवी और बरखा दत्त का नहीं है। संकट तो पूरे प्रफेशन पर है। सोचना यह चाहिए कि यह कर्म अपनी साख चाहता भी है या नहीं।
हम सब गवाह बनकर रहे जाएंगे। कोई कुछ भी बोल सकता और जो बोलने लायक है उसे व्यवस्था ने इस लायक नहीं छोड़ा कि वह कुछ बोल सके। हम सिर्फ खुद के जमीर को बचाए रखें। यहीं सार्थकता है। इस लेख की और समय दोनों की।
ReplyDeleteमैं आपकी बात से सहमत हूं। पूरे प्राफेशन पर संकट है। मामला सिर्फ दो बड़े पत्रकारों का ही नहीं है, छोटे स्तर पर भी सरकारी निर्णयों में हस्तक्षेप कई बार देखा है।
ReplyDeleteसर, मैंने कुछ समय पहले इसी विषय पर कुछ पंक्तियां लिखी थीं। उसका लिंक भेज रहा हूं। अगर समय मिले तो देखिएगा।
http://mydunali.blogspot.com/2010/12/blog-post.html