ट्यूनीशिया ने दी प्रेरणा |
हाल में अमेरिकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन ने क़तर में कहा कि जनता भ्रष्ट संस्थाओं और जड़ राजनैतिक व्यवस्था से आज़िज़ आ चुकी है। उन्होंने इशारा किया कि इस इलाके की ज़मीन हिल रही है। हिलेरी क्लिंटन ट्यूनीशिया के संदर्भ में बोल रहीं थीं. उनकी बात पूरी होने के कुछ दिन के भीतर ही मिस्र से बगावत की खबरें आने लगीं हैं। मिस्र में लोकतांत्रिक आंदोलन भड़क उठा है। राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक ने अपनी सरकार को बर्खास्त करके जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली है। पिछले दो-तीन हफ्तों से काहिरा और स्वेज में प्रदर्शन हो रहे थे. प्रधानमंत्री अहमद नज़ीफ ने हर तरह के प्रदर्शनों पर पाबंदी लगा दी थी, पर प्रदर्शन रुक नहीं रहे थे।
विरोधी स्वर व्यक्त करने वाले मुख्य आंदोलन का नाम है 6 अप्रेल युवा मोर्चा। सन 2008 में फेसबुक पर बने इस ग्रुप ने शुरू में महल्ला-अल-कुर्बा के मजदूरों की आवाज़ उठाई थी। इसके लिए 6 अप्रेल 2008 को देशव्यापी हड़ताल हुई थी। इसीलिए इस ग्रुप को 6 अप्रेल ग्रुप कहते हैं। मिस्र का यह आंदोलन पेसबुक, ट्विटर और ब्लॉगों की मदद से चल रहा है। सरकार ने ब्लैकबैरी और एसएमएस पर रोक लगा दी है।
ट्यूनीशिया की चिंगारी
दिसम्बर की 17 तारीख को उत्तरी अफ्रीका के छोटे
से देश ट्यूनीशिया के शहर सिदी बाऊज़ीद की एक सड़क पर मुहम्मद बुआज़ीज़ी नाम के एक बेरोज़गार ग्रेजुएट युवक ने अपने शरीर में आग लगा ली। वह सड़क पर फल और सब्जियाँ बेचने निकला था। पुलिस ने उसका माल ज़ब्त कर लिया, क्योंकि उसके पास सब्जी बेचने का परमिट नहीं था। एक अरसे से लोकतांत्रिक अधिकारों से महरूम लोगों का गुस्सा अचानक भड़क उठा। इसके दो-एक रोज़ बाद एक नौजवान बिजली के खम्भे पर चढ़ गया और देखते ही देखते करंट का शिकार हो गया। अचानक ऐसी घटनाएं कई जगह हुईं। पूरे देश में सरकार विरोधी दंगे शुरू हो गए। जनता के गुस्से ने फौजी ताकत के सहारे राज कर रही सरकार को पटक कर रख दिया। राष्ट्रपति ज़ाइल आबेदीन बेन अली देश छोड़कर भाग गए। आंदोलन से स्तब्ध युरोप और अमेरिका समझ नहीं पाए कि यह क्या हो गया। अफ्रीका के धुर उत्तर में ट्यूनीशिया के अलावा अल्जीरिया, मोरक्को, लीबिया और मॉरीतानिया हैं। ट्यूनीशिया इनमें सबसे छोटा है। एटलस पहाड़ियाँ और सहारा रेगिस्तान इसे सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से शेष अफ्रीका से अलग करते हैं। अफ्रीकी देशों के लिए यह इलाका मगरिब यानी पश्चिम है। सांस्कृतिक रूप से यह समृद्ध इलाका है। प्राचीन फिनीशियन शहर कार्थेज या कार्ताज़ यहीं है। इस इलाके को कभी ब्रेड बास्केट ऑफ रोम कहा जाता था।
संकटग्रस्त समाजों में व्यंग्यकार सबसे सफल होते हैं। मिस्र के कार्टून इसका बेहतर उदाहरण हैं। |
1956 मेंट्यूनीशिया आज़ाद हुआ था और 25 जुलाई 1957 को इसे गणतांत्रिक देश घोषित किया गया। इसका नया नाम है अल-ज़म्हरिया-अल-टुनीज़िया। राष्ट्रवादी नेता हबीब बर्गीबा देश के पहले राष्ट्रपति बने। वे करीब 30 साल तक पद पर बने रहे। 1987 में डॉक्टरों ने उन्हें अनफिट घोषित किया और उनके प्रधानमंत्री बिन अली राष्ट्रपति बन गए जो अब तक बने ही रहे। बिन अली अब अपने दामाद को राष्ट्रपति बनाने के मंसूबे में थे कि ट्यूनीशिया में जैस्मिन या यास्मीन क्रांति हो गई। यास्मीन इस देश का राष्ट्रीय फूल है। इसे हम चमेली के नाम से भी जानते हैं।
अलोकतांत्रक समाजों का एक दोष यह भी है कि वहाँ के तानाशाह चुनाव जीतकर आते हैं।बेन अली पहले दो चुनाव निर्विरोध जीते थे। उसके बाद भी उन्हें चुनाव जीतने में कभी दिक्कत नहीं हुई। पिछले चुनाव अक्टूबर 2009 में हुए थे, जिसमें बेन अली को करीब 90 फीसदी वोट मिले। उनके सबसे मुखर विरोधी अहमद इब्राहीम को सिर्फ डेढ़ फीसदी वोट मिले। इब्राहीम को चुनाव के दौरान न तो कोई पोस्टर लगाने दिया गया और न किसी सभा को सम्बोधित करने दिया गया।
ट्यूनीशिया अपेक्षाकृत प्रगतिशील देश है। देश का संवैधानिक धर्म इस्लाम है। यहाँ का राष्ट्रपति कोई मुसलमान ही हो सकता है। बावजूद इसके इस इलाके में धार्मिक कट्टरपंथी आंदोलन नहीं है। अल-कायदा वगैरह का प्रभाव भी नहीं है। मोटे तौर पर यह अमेरिका से सहयोग करने वाला देश है। इसका युरोपीय यूनियन के साथ गठबंधन है। और यह न्यूक्लियर ऊर्जा का इस्तेमाल करता है।
ट्यूनीसिया की बगावत का एक पहलू है इंटरनेट पर सूचनाओं का प्रवाह और नौजवानों का संवाद। 17 दिसम्बर को मुहम्मद बुआजीजी के आत्मदाह के दस दिन पहले 7 दिसम्बर को विकीलीक्स पर जारी सामग्री में ट्यूनीशिया के बाबत जानकारियां भी थीं। ट्यूनीशिया में अमेरिकी राजदूत ने कुछ केबल भेजे थे जिनमें ट्यूनीशिया की सरकार और उसके भ्रष्टाचार के काफी विवरण थे। हो सकता है कि जनता के गुस्से की वजह यह भी हो। ट्यूनीशिया का अनुभव आसपास के देशों पर भी असर डाल सकता है। इसकी शुरूआत मिस्र से हो चुकी है। अल्जीरिया और जॉर्डन के लोकतांत्रिक आंदोलन इससे प्रेरित हो सकते हैं. लीबिया में कर्नल गद्दाफी की तानाशाही सरकार के खिलाफ शायद कोई आंदोलन तत्काल शुरू न हो, पर गद्दापी स बगावत को गौर से देख रहे हैं। उन्होंने ही सबसे पहले आरोप लगाया कि विकीलीक्स के कारण ट्यूनीशिया में बगावत हुई है।
जिन शासकों को अब मिलेगी चुनौती
सीरियाः- असद परिवार 40 साल से सत्ता पर काबिज़ है। ज्यादातर पदों पर इस परिवार के या इनके दोस्तों का कब्ज़ा है।
मिस्रः-सबसे ज्यादा आबादी वाले इस अरब देस के 82 वर्षीय राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक 30 साल से इस पद पर हैं। उनका परिवार का भी महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्ज़ा है।
लीबियाः- कर्नल मुअम्मार गद्दापी 41 साल से सत्ता में हैं। गद्दाफी के दो बेटे अब सत्ता सम्हालने के लिए तैयार हो रहे हैं।
यमनः- अली अब्दुल्ला सालेह 32 साल से सत्ता में हैं। ज्यातार पदों पर उनके रिश्तेदार बैठे हैं।
अल्जीरियाः- राष्ट्रपति अब्देलअज़ीज़ बूतेफ्लिका 11 साल से सत्ता में हैं। अपने छोटे भाई को कुर्सी पर बैठाना चाहते थे, पर 1990 से देश की खुफिया सेवा के प्रमुख जनरल मोहम्मद तौफीक ने अड़ंगा लगा दिया।
जब पूंजीवादी शोषण असह्य हो जाता है तो इसी प्रकार जन-क्रांतियाँ ही होती हैं.हमारे देश में लोग भाग्यवादी हैं इसलिए सम्भावना न के बराबर है.वर्ना यहाँ की हालत भी अच्छी नहीं है.
ReplyDeleteबड़ी मुश्किल हो रही है अरब शासकों को यह समझने पाने में कि सुविधाओं की अफ़ीम के बावजूद लोग उन्हें उखाड़ फेंकने पर क्यों उतारू हैं
ReplyDeleteइब्तदाए इश्क है....
ReplyDeleteइस जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ! बहुत सरलतासे उपयुक्त जानकारी ! मै तुनिसिया के लिये कितने दिन से खोज रही थी!
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