ग्राहम स्टेंस की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर कुछ लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए एक प्रेस नोट ज़ारी किया। इसपर आधारित खबर हिन्दू में भी छपी। इसका रोचक पक्ष यह था कि खबर में कहा गया कि देश के प्रमुख सम्पादकों ने यह बयान जारी किया है। हैरत की बात थी कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का विरोध करने वाले सम्पादकों में एन राम और चन्दन मित्रा के नाम एक साथ थे।
इस खबर का स्पष्टीकरण एन राम के नाम से जारी हुआ जो नीचे दिया गया था। खबर लिखते वक्त असावधानी से प्रेस नोट पर साइन करने वालों के नाम की जगह उनके नाम छप गए जिनको ईमेल भेजा गया था। अखबार के दफ्तर में जल्दबाज़ी में अक्सर गलतियाँ हो जाती हैं। हिन्दू में तो ऐसी गलतियों को छापने का एक कॉलम ही है। पर जो चीज़ ध्यान खींचती है वह यह कि अपने अखबार के सम्पादक के नाम से जारी वक्तव्य की ओर अपने ही पत्रकार का ध्यान नहीं गया। यह भी किसी ने ध्यान नहीं दिया कि भला चन्दन मित्रा इस टिप्पणी का विरोध क्यों कर रहे हैं। खबर लिखने से पास करने तक का एक सिलसिला है। कम्प्यूटर के उदय ने कई काम आसान कर दिए हैं, जैसे की नामों को कॉपी पेस्ट करना। पर कई काम बढ़ा दिए हैं। जैसे कि इस खबर का छपना।
एन राम को यह गलती इतनी छोटी नहीं लगी होगी। तभी उन्होंने अपने नाम से सफाई जारी की है। कोई और अखबार होता तो स्पष्टीकरण नहीं छापता, क्योंकि वे इसे इज्जत घटाने वाला काम मानते हैं। बहरहाल नीचे पढ़ें-
Correction and retraction
It was wrongly stated in the report by our Special Correspondent published in The Hindu of January 23, 2011 titled “Expunge remarks against Graham Staines: Supreme Court's remarks 'gratuitous,' say editors, civil society members” that the statement was signed by N. Ram, Editor-in-Chief of The Hindu, Chandan Mitra, Editor-in-Chief of The Pioneer, and editorial representatives from The Times of India,Hindustan Times, The Indian Express, The Hindu, The Pioneer, and The Telegraph. It was not signed by any of them.
The statement reported in the news item (published on the back page) was actually signed by Anand Patwardhan, Fr. Dominic Emanuel, Harsh Mander, John Dayal, Navaid Hamid, H.L. Hardenia, Praful Bidwai, Ram Puniyani, Shabnam Hashmi, Shahid Siddiqui, and Seema Mustafa.
We apologise for the serious blunder by our Special Correspondent, who inexplicably mistook the persons to whom the statement was emailed for publication for the list of signatories.
Editor-in-Chief
सर जी आपने सही फरमाया। मेरा भी अखबार का थोड़ा सा अनुभव यही है कि अक्सर गलतियाँ होती हैं, अखबार की दुनिया भी बड़ी हसीन है।
ReplyDeleteमन कि गलतियां हो ही जाती हैं लेकिन गंभीर पाठकों की दृष्टि से इस प्रकार की गलतियों को हलके में नहीं लिया जाना चाहिए.
ReplyDeleteसादर
गलतियाँ सभी करते हैं लेकिन अपनी गलतियों को स्वीकार करने वाले लोग बड़े लोग होते हैं . हमेशा की तरह प्रमोद जी बहुत ही उम्दा ब्लॉग पोस्ट था आपका.
ReplyDeleteएक बात बड़ी अजीब लगती है. आज से कई दशक पहले कोई सर्वोच्च न्यायलय के बारे में टिपण्णी करने के पहले दो बार सोचता था, आज लोग सोचते भी नहीं. क्या इसका मतलब यह है की हमारी दृष्टि में सर्वोच्च न्यायलय का महत्व कम हो गया है?
कापी पेस्ट बहुत ख़तर नाक है, ज़्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत होती ही है.
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