Sunday, December 18, 2022

भारत-चीन टकराव और आंतरिक राजनीति


गत 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम से ज्यादा भारतीय राजनीति का विषय बन गई हैं। पाकिस्तान ने संरा में जहाँ कश्मीर के मसले को उठाया है और उनके विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ने नरेंद्र मोदी पर बेहूदा टिप्पणी की है, वहीं इसी अंदाज में आंतरिक राजनीति के स्वर सुनाई पड़े हैं। भारत के विदेशमंत्री जहाँ चीन-पाक गठजोड़ पर प्रहार कर रहे हैं, वहीं आंतरिक राजनीति नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर वार कर रही है। तवांग-प्रकरण देश की सुरक्षा और आत्म-सम्मान से जुड़ा है, पर आंतरिक राजनीति के अंतर्विरोधों ने इसे दूसरा मोड़ दे दिया है। इस हफ्ते संरा सुरक्षा परिषद में भारत की अध्यक्षता में वैश्विक आतंकवाद को लेकर कुछ सवाल उठाए गए हैं, जिनके कारण भारत-चीन और पाकिस्तान के रिश्तों की तल्खी एकबार फिर से साथ उभर कर आई है।

टकराव और कारोबार

क्या वजह है कि नियंत्रण रेखा पर चीन ऐसी हरकतें करता रहता है, जिससे बदमज़गी बनी हुई है? पिछले दो-ढाई साल से पूर्वी लद्दाख में यह सब चल रहा था। अब पूर्वोत्तर में छेड़खानी का मतलब क्या है? क्या वजह है कि लद्दाख-प्रकरण में भी सोलह दौर की बातचीत के बावजूद चीनी सेना अप्रेल 2020 से पहले की स्थिति में वापस नहीं गई हैं? यह भारतीय राजनय की विफलता है या चीनी हठधर्मी है? सुरक्षा और राजनयिक मसलों के अलावा चीन के साथ आर्थिक रिश्तों से जुड़े मसले भी हैं। चीन के साथ जहाँ सामरिक रिश्ते खराब हो रहे हैं, वहीं कारोबारी रिश्ते बढ़ रहे हैं। 2019-20 में दोनों देशों के बीच 86 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था, जो 2021-22 में बढ़कर 115 अरब डॉलर हो गया। इसमें आयात करीब 94 अरब डॉलर और निर्यात करीब 21 अरब डॉलर का था। तमाम प्रयास करने के बावजूद हम अपनी सप्लाई चेन को बदल नहीं पाए हैं। यह सब एक झटके में संभव भी नहीं है।

क्या लड़ाई छेड़ दें?

राहुल गांधी के बयान ने आग में घी का काम किया। उन्होंने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को राजनीतिक बयानों से अब तक अलग रखा था, पर अब वे अपने आपको रोक नहीं पाए। उन्होंने कहा, चीन हमारे सैनिकों को पीट रहा है और देश की सरकार सोई हुई है। फौरन बीजेपी का जवाब आया, राहुल गांधी के नाना जी सो रहे थे और सोते-सोते उन्होंने भारत का 37000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र गँवा दिया। इस जवाबी कव्वाली से इस प्रसंग की गंभीरता प्रभावित हुई है। सवाल है कि भारत क्या करे? क्या लड़ाई शुरू कर दे? अभी तक माना यही जाता है कि बातचीत ही एक रास्ता है। इसमें काफी धैर्य की जरूरत होती है, पर ऐसे बयान उकसाते हैं। यूपीए की सरकार के दौरान भी ऐसी कार्रवाइयाँ हुई हैं, तब मनमोहन सिंह की तत्कालीन सरकार ने मीडिया से कहा था कि वे चीन के साथ सीमा पर होने वाली गतिविधियों को ओवरप्ले न करें। इतना ही नहीं एक राष्ट्रीय दैनिक के दो पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज भी की गई थी। 2013 में भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन ने पूर्वी लद्दाख में इसी किस्म की गश्त से भारत का 640 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हथिया लिया है। श्याम सरन तब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष थे। पहले सरकार ने और फिर श्याम सरन ने भी इस रिपोर्ट का खंडन कर दिया। भारत ने उस साल चीन के साथ बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीसीडीए) पर हस्ताक्षर किए थे। बावजूद इसके उसी साल अप्रैल में देपसांग इलाके में चीनी घुसपैठ हुई और उसके अगले साल चुमार इलाके में। दरअसल चीन के साथ 1993, 1996, 2005 और 2012 में भी ऐसे ही समझौते हुए थे, पर सीमा को लेकर चीन के दावे हर साल बदलते रहे।

किसने किसको पीटा?

9 दिसंबर को तवांग के यांग्त्से क्षेत्र में हुई घटना का विस्तृत विवरण अभी उपलब्ध नहीं है। कुछ वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुए हैं, पर उन्हें विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों को पीटा है। गलवान में भारतीय सैनिकों को मृत्यु की सूचना सेना और रक्षा मंत्रालय ने घटना के दिन ही दे दी थी। इस घटना की सूचना रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 13 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों में दी है। प्राप्त सूचनाओं से दो बातें स्पष्ट हो रही हैं। एक यह कि चीनी सैनिकों ने पहाड़ी की चोटी पर एक भारतीय चौकी पर कब्जा करने की कोशिश की थी, जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली और वापस जाना पड़ा। दूसरी तरफ चीनी सेना के प्रवक्ता ने कहा है कि पीएलए (चीनी सेना) का दस्ता चीनी भूभाग पर रोजमर्रा गश्त लगा रहा था, तभी भारतीय सैनिक चीन के हिस्से में आ गए और उन्होंने चीनी सैनिकों को रोका। इस टकराव में दोनों पक्षों को सैनिकों को चोटें आई हैं, पर यह भी बताया जाता है कि चीनी सैनिकों को ज्यादा नुकसान हुआ। बताया जाता है कि टकराव के समय चीन के 300 से 600 के बीच सैनिक उपस्थित थे। सामान्य गश्त में इतने सैनिक नहीं होते। वस्तुतः चीन इस इलाके पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कई बार कर चुका है। अक्तूबर, 2021 में भी यांग्त्से में चीन ने 17,000 फुट ऊँची इस चोटी पर कब्जा करने का प्रयास किया था। इस चोटी से नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ के क्षेत्र का व्यापक पर्यवेक्षण संभव है। इस समय भारतीय वायुसेना भी इस इलाके में टोही उड़ानें भर रही है।

चीन का इरादा

सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने इस साल मई में कहा था कि सीमा-विवाद को चीन जीवित रखना चाहता है। आप पूछ सकते हैं कि ऐसा क्यों चाहता है चीन? क्या इसके पीछे उसका कोई हित है? हालांकि जनरल पांडे ने अपनी बात को स्पष्ट नहीं किया, पर विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन की रणनीति अपनी ताकत को क्रमशः बढ़ाने की है, ताकि भविष्य में वह अपनी शर्तों पर समझौते करे। विशेषज्ञ मानते हैं कि अक्तूबर में हुई चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने तेवर स्पष्ट कर दिए थे। अलबत्ता इसबार भारतीय सेना तैयार थी और उसने भी कायदे का जवाब दिया है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि अंदरूनी परेशानियों से ध्यान हटाने के लिए चीनी नेतृत्व ने इसका फैसला किया होगा। शी जिनपिंग को कोविड नीति के कारण चीन के अंदर बहुत विरोध का सामना करना पड़ रहा है। हाल में देश में जबर्दस्त विरोध प्रदर्शनों के कारण कोविड पाबंदियाँ वापस भी ली गई हैं।

सलामी स्लाइस

शतरंज का यह खेल इसबार भी चल रहा है। सीमा विस्तार की चीनी रणनीति को ‘सलामी स्लाइस’ की संज्ञा दी जाती है। वह दूसरे देशों की ज़मीन को धीरे-धीरे कुतरता या काटता रहता है। भारत और चीन के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा तो अस्पष्ट है ही, सन 1962 के युद्ध के बाद की वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर भी अस्पष्टता है। इसका वह फायदा उठाता है। टकराव की ज्यादातर घटनाएं अब भी पश्चिमी क्षेत्र से सुनाई पड़ती हैं। दोनों देशों की सीमा पर नियंत्रण रेखा पश्चिमी (लद्दाख), मध्य (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम) और पूर्व (अरुणाचल) सेक्टरों में विभाजित है। पिछले दो साल से पूर्वी लद्दाख में कई स्थानों पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। बातचीत के कई दौरों के बाद तनाव में कुछ कमी भी आई है।

बातचीत के सोलह दौर

गत 8 सितंबर को भारत और चीन की ओर से अचानक घोषणा की गई कि कोर कमांडरों के बीच 16वें दौर की बातचीत के आधार पर पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स (पेट्रोलिंग पिलर-15) इलाक़े से दोनों सेनाएं पीछे हट रही हैं। भारत और चीन ‘गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स’ इलाके से न केवल पीछे हटने पर सहमत हुए, बल्कि पूर्ण शांति बहाली के लिए दोनों ओर बने अस्थायी निर्माणों को गिराने पर भी सहमत हुए। तब भी पर्यवेक्षकों का कहना था कि चीन ऐसा अभिनय करता रहेगा कि वह विवादों का हल चाहता है, पर उसकी दिलचस्पी मसलों को हल करने में नहीं है। उन्हीं दिनों यह खबर भी आई कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने लश्करे तैयबा के आतंकी और मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमलों के मास्टरमाइंड साजिद मीर को ग्लोबल टैररिस्ट घोषित कराने के भारत और अमेरिका के एक प्रस्ताव पर चीन ने अड़ंगा लगा दिया। इससे पहले वह लश्करे तैयबा और जमात-उद-दावा के लीडर अब्दुल रहमान मक्की, जैश-ए मोहम्मद के मुखिया मसूद अज़हर के भाई अब्दुल रऊफ़ के मसले में भी अड़ंगा लगा चुका है। मसूद अज़हर के मामले को चीन ने करीब दस साल तक लटकाया था।

सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर

चीन के साथ लगी सीमा पर इन दिनों सड़कों और हवाई अड्डों का जाल बिछाया जा रहा है। यह बात भी चीन को अखरती है। अरुणाचल में भी काफी निर्माण हुआ है। पूर्वी लद्दाख में हुई झड़पों के पीछे यह भी एक कारण था। सामरिक लिहाज से देपसांग इलाका बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत ने इस इलाके में 255 किलोमीटर लंबी एक सड़क बनाई है, जो अब चीनी तोपखाने की मार में है। यह स्थान भारत के दौलत बेग ओल्दी हवाई पट्टी के नजदीक है और यहां से कराकोरम दर्रा करीब 30 किलोमीटर दूर है। 2013 में भी इस इलाके में चीनी सैनिक घुसे थे और उन्होंने भारतीय इलाके में टेंट लगा लिए थे। भारत का ध्यान इस ओर गया। 2019 में इस इलाके में देश की सबसे दुर्गम और सबसे महत्वपूर्ण सड़क बनकर तैयार हो गई थी। इसकी मदद से सेना को जम्मू कश्मीर के पूर्वोत्तर में स्थित लद्दाख के सीमांत क्षेत्र तक आने-जाने के लिए बारहों मास चलने वाली सड़क मिल गई है। दौलत बेग ओल्दी में भारत ने एक हवाई-पट्टी बना रखी है।

हरिभूमि में प्रकाशित

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