Tuesday, December 13, 2022

बांग्लादेश में राजनीतिक हलचलें तेज, क्या शेख हसीना अगला चुनाव जीतेंगी?

ढाका में बीएनपी की रैली

पड़ोसी बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति के साथ भारत और बांग्लादेश के रिश्तों की बुनियाद भी टिकी है। ऐसा माना जाता है कि जब तक बांग्लादेश में शेख हसीना और अवामी लीग का शासन है, तब तक भारत के साथ रिश्ते बेहतर बने रहेंगे। अभी तक अवामी लीग का शासन चलता रहा। अब अगले साल वहाँ चुनाव होंगे, जिसमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) उसे चुनौती देने के लिए तैयार हो रही है। इस सिलसिले में शनिवार 10 दिसंबर को ढाका में रैली करके बीएनपी ने बिगुल बजा दिया है। रैली की सफलता को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं, पर इतना स्पष्ट है कि अगले साल होने वाले चुनाव के पहले वहाँ की राजनीति ने गरमाना शुरू कर दिया है। बीएनपी का दावा है कि सैकड़ों बाधाओं के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में लोगों का जुटना पार्टी के लिए बड़ी उपलब्धि है।

भारत से रिश्ते

बांग्लादेश में अगले साल के अंत में आम चुनाव हैं और उसके तीन-चार महीने बाद भारत में। दोनों चुनावों को ये रिश्ते भी प्रभावित करेंगे. दोनों सरकारें अपनी वापसी के लिए एक-दूसरे की सहायता करना चाहेंगी। कुछ महीने पहले बांग्लादेश के विदेशमंत्री अब्दुल मोमिन ने एक रैली में कहा था कि भारत को कोशिश करनी चाहिए कि शेख हसीना फिर से जीतकर आएं, ताकि इस क्षेत्र में स्थिरता कायम रहे. दो राय नहीं कि शेख हसीना के कारण दोनों देशों के रिश्ते सुधरे हैं और आज दक्षिण एशिया में भारत का सबसे करीबी देश बांग्लादेश है।

पिछले पचास साल से ज्यादा का अनुभव है कि बांग्लादेश जब उदार होता है, तब भारत के करीब होता है. जब कट्टरपंथी होता है, तब भारत-विरोधी। पिछले 13 वर्षों में अवामी लीग की सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर में चल रही देश-विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने में काफी मदद की है। अवामी लीग सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है आर्थिक-विकास, पर पिछले कुछ समय से वैश्विक मंदी का प्रभाव बांग्लादेश पर भी पड़ा है। इसका फायदा भी शेख हसीना-विरोधी उठाना चाहेंगे।

बीएनपी की रैली

बीएनपी ने ढाका की इस रैली से 24 दिसंबर को जन मार्च का आह्वान किया। विश्लेषकों का कहना है कि बीएनपी ने अपनी पिछली गलतियों से सीखा है और लगता है कि वह सरकार के डरे बगैर दबाव बनाने में समर्थ है। बीएनपी के सात सांसदों ने जनसभा में घोषणा की कि वे राष्ट्रीय संसद से इस्तीफे दे रहे हैं। साथ ही उन्होंने संसद को भंग करने, कार्यवाहक सरकार के तहत चुनाव समेत 10 सूत्रीय मांगें भी उठाईं।

चूंकि रैली ने केवल विरोध और जन मार्च का आह्वान किया है, इसलिए सवाल हैं कि पार्टी उस उम्मीद को कितना पूरा कर सकती है। कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि बीएनपी शांतिपूर्ण रास्ते पर चल रही है, क्योंकि हड़ताल और हड़ताल जैसे प्रमुख कार्यक्रमों का पहले भी राजनीति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके विपरीत, सरकार जिस तरह से विपक्ष को दबाने की कोशिश कर रही है, उसकी अनदेखी कर इस रैली को कर पाना एक बड़ी उपलब्धि है।

शुरुआत में बीएनपी ने नया पलटन में पार्टी के केंद्रीय कार्यालय के सामने रैली करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन पुलिस ने कहा कि उस जगह पर सार्वजनिक सभा के लिए कोई जगह नहीं है। दूसरी तरफ शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग का दावा है कि इस रैली के जरिए बीएनपी ने आम लोगों का भरोसा खो दिया है। बीएनपी के नेता और कार्यकर्ता महीनों से इस रैली को लेकर कह रहे थे कि उनकी नेता खालिदा जिया 10 तारीख की रैली में शामिल होंगी और उनके पुत्र तारिक जिया देश आएंगे। 11 तारीख से देश खालिदा जिया के शासन में चलेगा। इन बातों के सहारे उन्होंने ढाका में कार्यकर्ताओं को इकट्ठा किया। कार्यकर्ता ढाका आए, लेकिन रैली में कुछ नहीं हुआ। अगर 350 में से 7 सांसद जाते हैं तो कुछ नहीं होगा। वे यह जानते हैं।"

छोटे शहरों से शुरुआत

इसके पहले बीएनपी ने पिछले दो महीनों से अलग-अलग शहरों में रैलियाँ कर रही थी। वह कार्यक्रम अब समाप्त कर दिया गया है और उनका आंदोलन दूसरे चरण में प्रवेश कर गया है। अब समान विचारधारा वाले दलों के साथ-साथ आंदोलन होगा। पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान लंदन से इन सभी चीजों का समन्वय कर रहे हैं।

बीएनपी नेताओं को लगता है कि उनकी पार्टी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कायापलट करने में सफल रही है और उन्हें लगता है कि यह तारिक रहमान की राजनीतिक रणनीति के कारण संभव हुआ है। पिछले दो महीनों में सभाओं और जुलूसों में उनके कार्यकर्ताओं द्वारा जो नारे लगाए गए हैं, वे दरअसल पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान को लेकर थे।

तारिक रहमान की भूमिका

रहमान लंदन में रहते हैं, उनकी मां खालिदा जिया को फरवरी 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में जेल जाने के बाद, उन्होंने पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला और वहीं से पार्टी चला रहे हैं। उनके करीबी रहे बीएनपी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के सचिव नासिर उद्दीन अहमद असीम का कहना है कि रहमान ने केंद्र से लेकर तृणमूल तक बीएनपी के हर स्तर पर नेताओं और कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क स्थापित किया है, जिससे इस कठिन समय में भी बीएनपी को मजबूती मिली है।

पार्टी के एक नेता का कहना है कि तारिक रहमान लंदन में स्थानीय समयानुसार सुबह 3:40 बजे से नेताओं से बात करना शुरू करते हैं (उस समय बांग्लादेश में सुबह 9:00 बजे होता है तो लंदन में सुबह 4:00 बजे होता है)। कई मामलों में सजायाफ्ता तारिक रहमान अब बीएनपी के कार्यवाहक अध्यक्ष हैं। जब बीएनपी सत्ता में थी, तब वे बहुत शक्तिशाली थे।

उन्हें अवामी लीग की सरकार बनने के पहले 2007 में सेना समर्थित कार्यवाहक सरकार के दौरान गिरफ्तार किया गया था। जमानत पर रिहा होने के बाद, वे 11 सितंबर, 2008 को ढाका से लंदन के लिए रवाना हो गए। उस वक्त मीडिया ने उनके हवाले से कहा था कि वे दोबारा राजनीति में नहीं आएंगे। पर अब लगभग दस वर्षों के बाद उन्होंने लंदन से पुन: पूर्ण रूप से राजनीतिक गतिविधियों की शुरुआत कर दी है।

पार्टी का पुनर्गठन

बीएनपी की शहरों और जिलों में इकाइयों को गठित किया गया है और उन्हें सक्रिय किया जा रहा है। रहमान के एक करीबी नेता, मीर हलाल उद्दीन बीएनपी की अंतर्राष्ट्रीय संबंध समिति के सदस्य हैं। उनका कहना है कि तारिक रहमान बहुत अच्छे तरीके से पार्टी को संगठित कर रहे हैं। उन्होंने जनवरी 2019 में पार्टी की कमान संभाली और तबसे पुनर्गठन का काम शुरू किया। इसके परिणाम पिछले छह महीनों में इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।

अफगान अनुभव

अफगानिस्तान की अनुभव है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारें यदि आत्मरक्षा न कर पाएं, तो उनका अस्तित्व दाँव पर रहता है। बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार ने बहुत बड़ा संकल्प हाथ में ले लिया है। देश में कट्टरपंथियों का मुकाबला करने वाला एक बड़ा प्रगतिशील तबका भी मौजूद है। क्या वे कट्टरपंथियों को काबू में रख पाएंगी और कब तक? देश में अगले चुनाव 2023 में होंगे। क्या वे भविष्य में सत्ता पर काबिज रहेंगी?

पिछला चुनाव जीतने के बाद शेख हसीना ने कहा था कि 2023 के बाद मेरी दिलचस्पी प्रधानमंत्री बनने में नहीं है। उनके नेतृत्व में बांग्लादेश ने आर्थिक प्रगति की है और कट्टरपंथी तबकों को काबू में किया है, पर उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों का रक्षक नहीं माना जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से 9 और 10 दिसंबर 2021 को हुए लोकतांत्रिक देशों के शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान को बुलाया गया, बांग्लादेश को नहीं। तुर्रा यह कि पाकिस्तान ने चीन के प्रति अपना समर्थन दिखाने के लिए सम्मेलन का बहिष्कार किया, जबकि बांग्लादेश इसमें शामिल होने को उत्सुक था।

भारत और बांग्लादेश के बीच आर्थिक सहयोग के कई कार्यक्रमों की घोषणा मार्च, 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश-यात्रा के दौरान हुई। भारत और बांग्लादेश बिमस्टेक (बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) के सदस्य हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सक्रिय भागीदारी और क्वॉड देशों के समूह में शामिल होने के बाद बंगाल की खाड़ी एक तरफ रक्षा सहयोग का केंद्र बनेगी, दूसरी तरफ इसके चारों तरफ के देश भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, भूटान, नेपाल और श्रीलंका के विकास की धुरी भारत बनेगा।

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